“क्या मैं स्वामी हूं या प्रबंधक?” एक अरबों डॉलर की कंपनी के सी.ई.ओ ने स्वयं से यह सवाल पूछा क्योंकि उन्होंने सोचा कि उनके परिवार के लिए सबसे बेहतर क्या है। बहुत अधिक धन के साथ आने वाले प्रलोभनों के बारे में चिंतित होकर, वह अपने उत्तराधिकारियों पर उस चुनौती का बोझ नहीं डालना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी कंपनी का स्वामित्व(मालिकाना हक़) छोड़ दिया और 100 प्रतिशत वोटिंग स्टॉक (मताधिकार वाले शेयर) एक ट्रस्ट (किसी अन्‍य व्‍यक्ति की संपति की देखभाल के लिए, की गई वैधानिक व्‍यवस्‍था) में रख दिया। यह मानते हुए कि उनके पास जो कुछ भी है वह परमेश्वर का है, जिन्होंने उनको यह निर्णय लेने में मदद की है, कि उनका परिवार वहाँ काम  करके अपनी जीविका कमा सकें और साथ ही भविष्य में मिले मुनाफ़े द्वारा मसीही सेवकाई में भी मदद कर सकें।

भजन संहिता 50:10 में, परमेश्वर अपने लोगों से कहते हैं “वन के सारे जीव-जन्तु और हज़ारों पहाड़ों के जानवर मेरे ही हैI” सभी चीज़ों के सृष्टिकर्ता के रूप में, परमेश्वर को हमसे कुछ भी नहीं चाहिए और न ही उन्हें कोई ज़रुरत ही है। वह कहते हैं। “मैं न तो तेरे घर से बैल न तेरे पशुशाला से बकरे लूँगा” (पद 9)। वे उदारतापूर्वक वह सब कुछ प्रदान करते है जो हमारे पास है और उनका उपयोग भी करते है, साथ ही जीविका कमाने के लिए शक्ति और क्षमता भी प्रदान करते है। क्योंकि वह करता है, जैसा कि भजन  हमें दिखाता है, वह हमारी हार्दिक आराधना के योग्य है। परमेश्वर सभी चीज़ों के स्वामी है लेकिन अपनी भलाई के कारण जब भी कोई उनके पास आता है तब उसके साथ रिश्ते में जुड़ने के लिए परमेश्वर स्वयं को भी समर्पित करने का निर्णय लेते है । “क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे।” (मरकुस 10:45) जब हम उपहारों से अधिक महत्व उपहार देने वाले को देते हैं और उन उपहारों से उसकी सेवा करते हैं, तो हम उसमें सदैव आनंदित रह कर धन्य हो जाते हैं।