“मनभावन!”
“मनभावन!”
एक सुबह मेरी बेटी तैयार होते समय उपरोक्त विस्मयबोधक शब्द कहे l मैं नहीं जानता वह क्या कहना चाहती थी l उसके बाद उसने अपने चचेरे भाई से मिली शर्ट को थपथपाया l उस शर्ट के सामने “मनभावन” शब्द अंकित था l मैंने उसे गले लगाया, और वह पवित्र प्रेम से मुस्करा दी l “तुम मनभावन हो!” मैंने दोहराया l उसकी मुस्कराहट और बड़ी हो गयी होती, और अगर ऐसा संभव होता, और वह उन शब्दों को दोहराते हुए कूदती हुयी चली गयी l
मैं एक सिद्ध पिता नहीं हूँ l किन्तु वह क्षण सिद्ध था l उस स्वाभाविक, खूबसूरत बातचीत में, मैंने अपनी बेटी के दीप्तिमान चेहरे में शर्तहीन प्रेम को परिभाषित देखा l वह ख़ुशी की छवि थी l उसे मालूम था कि उसके शर्ट पर अंकित शब्द उसके विषय उसके पिता की भावना से पूरी तरह मेल खा रहा था l
हममें से कितनों को गहराई से मालूम है कि हमारे स्वर्गिक पिता हमसे असीमित प्रेम करते हैं? कभी-कभी हम सच्चाई से संघर्ष करते हैं l इस्राएली संघर्ष करते थे l उनकी सोच थी कि उनकी परीक्षा का अर्थ था कि अब परमेश्वर उनसे प्रेम नहीं करता है l किन्तु यिर्मयाह 31:3 में, नबी, अतीत में परमेश्वर द्वारा कही गयी बातें याद दिलाता है : “मैं तुझ से सदा प्रेम रखता आया हूँ l” हमें भी ऐसा शर्तहीन प्रेम चाहिए l फिर भी चोट, निराशाएँ, और गलतियां हमें मनभावन महसूस होने नहीं देती l किन्तु सिद्ध परमेश्वर अपनी बाहें फैलाकर हमें अपने प्रेम का अनुभव करने और उसमें विश्राम करने को आमंत्रित करता है l
उमड़ना (परिपूर्ण)
“नहीं! नहीं! नहीं! नहीं!” मैं चिल्लाया l मुझे किसी प्रकार की मदद नहीं मिली l बिलकुल नहीं l मैंने अपनी तेज़ बुद्धि से अपने फ्लश शौचालय की टंकी की मरम्मत की किन्तु पानी का बहना नहीं रुका l
कितनी बार हमारे बच्चे दूध ढालते समय गिरा देते हैं, और वह सब जगह फ़ैल जाता है l अथवा हमारी भूल से सोडा की 2 लीटर की बोतल बॉक्स में खुल जाती है जिसका परिणाम चौंकानेवाला होता है l
किसी तरल वस्तु का छलककर फ़ैल जाना अच्छी बात नहीं l बिलकुल नहीं l किन्तु एक अपवाद हो सकता है l पौलुस ऐसे लोगों के लिए परिपूर्णता(उमड़ना) का चित्र उपयोग करता है जो परमेश्वर की आत्मा से उमड़ रहे हैं और जिसका स्वाभाविक परिणाम आशा है (रोमियों 15:13) l हमारे जीवनों में परमेश्वर की प्रबल उपस्थिति के कारण आनंद, शांति, और विश्वास से भरे होने के चित्र को मैं पसंद करता हूँ l इस सीमा तक, वास्तव में, हम अपने स्वर्गिक पिता में बहुतायत का और सुखद भरोसा दर्शा सकते हैं l यह हमारे जीवनों के खूबसूरत, प्रसन्नचित्त काल में हो सकता है l अथवा जब हमारे जीवनों को झटका लगता है l दोनों में से कोई भी, उमड़ कर गिरनेवाला ही हमारे चारो-ओर के लोगों को आशा देता है जिससे वे “सराबोर” हो जाते हैं l
हमारे तूफानों में
हवा का शोर, बिजली का कौंधना, लहरों का टक्करना। मुझे लगा मैं मरने वाला था। झील में दादा-दादी समेत मछली पकड़ते हुए काफ़ी देर हो चुकी थी। सूरज ढलते ही हमारी नाव के ऊपर से तेज़ हवा गुजरी। नाव ना पलटे इसलिए दादाजी ने मुझे सामने बैठा दिया। दिल डर से भर गया। मैंने प्रार्थना आरंभ कर दी। मैं तब 14 वर्ष का था।
मैंने परमेश्वर से उनके आश्वासन और सुरक्षा को मांगा। तूफान नहीं थमा, परंतु हम किनारे पहुंच गए। परमेश्वर की उपस्थिति की गहन निश्चितता का अनुभव अभूतपूर्व था।
यीशु तूफान से अनभिज्ञ नहीं हैं। मरकुस 4: 35-41 में उन्होंने चेलों को झील के पार जाने को कहा जो जल्द तूफानी और क्रूर होने वाली थी। तूफान ने इन मछुआरों की परीक्षा ली और उन्हें सर्वश्रेष्ठ बना दिया। उन्हें भी लगा कि वे मरने वाले हैं, परंतु यीशु ने तूफान शांत और चेलों के विश्वास को गहरा किया।
हमारे तूफानों में यीशु हमें उनपर भरोसा करने को आमंत्रित करते हैं। कभी-कभी वह अद्भुत रूप से हवाओं और लहरों को, तो कभी हमारे मन को शांत करते हैं। और उनपर भरोसा करने में हमारी सहायता करते हैं। वह हमें इस विश्वास में स्थिर रहने को कहते हैं कि उनके पास लहरों से कहने का सामर्थ है, "शांत हो जाओ"।
जब परमेश्वर हमें भरते हैं
“मेरी क्या गलती थी”? यह मेरे लिए सबसे रोमांचक समय होना चाहिए था। कॉलेज के बाद मुझे पहली नौकरी मिली थी घर से सैंकड़ों मील दूर एक अन्य शहर में। परन्तु यह रोमांच जल्दी ही फीका पड़ गया। मेरा फ़्लैट छोटा था, जिसमें फर्नीचर भी नहीं था। अनजान शहर जहाँ मैं किसी को नहीं जानता था। नौकरी रोचक थी पर अकेलापन काटने को दौड़ता था।
एक रात मैंने अपनी बाइबिल खोली तो भजन-संहिता 16 सामने आ गया, जिसके 11 पद में परमेश्वर हमें भरने का वादा करते हैं। मैंने प्रार्थना की “हे प्रभु, पहले यह नौकरी मुझे सही लगी थी परन्तु अब अकेलापन काटता है। मुझे अपनी निकटता की भावना से भर दें”। मैं कई हफ्तों तक यही प्रार्थना करता रहा। कई रातों में मुझे परमेश्वर की उपस्थिति का गहरा अनुभव होता, परन्तु अन्य रातों में मुझे अकेलेपन का पीड़ा जनक अनुभव होता।
परंतु जब मैं वचन पर अपने हृदय को दृढ़ करता तो परमेश्वर मेरे विश्वास को और गहरा करते, हर रात। मैंने उनकी विश्वासयोगिता को ऐसे महसूस किया जैसे पहले कभी नहीं किया। मैंने सीखा कि मेरा काम है कि अपने हृदय को परमेश्वर के आगे उंडेल दूं...और उनके उत्तर का विनम्रतापूर्वक इंतजार करूं, उनके वादे पर विश्वास करते हुए कि वे हमें अपनी आत्मा से भरेंगे।
मकड़ियों के विषय में और परमेश्वर की उपस्थिति
मकड़ियां। कोई बच्चा उन्हें पसंद नहीं करता। अपने कमरे में तो नहीं...वो भी सोते समय। मेरी बेटी ने अपने बिस्तर के पास एक को देख लिया। “डैडी! मकड़ी!” वह चिल्लाई। कोशिश करने पर भी मैं उसे नहीं ढूँढ पाया। "वह तुम्हें कुछ नहीं करेगा," मैंने कहा पर वह नहीं मानी। यह कहने के बाद ही वह बिस्तर में घुसी कि मैं उसके सिरहाने चौकसी करूंगा।
मैंने उसका हाथ पकड़कर कहा, “मैं तुमसे प्यार करता हूं, मैं ठीक यहीं हूं। पर क्या तुम जानती हो परमेश्वर तुम्हें डैडी मम्मी से भी अधिक प्यार करते हैं। वह बहुत निकट हैं। जब तुम्हें डर लगे तुम उनसे प्रार्थना कर सकती हो। इस बात से उसे सांतवना मिली और नींद उसकी आँखों में भर गई।
बाइबिल बताती है कि परमेश्वर हमारे निकट हैं (भजन 145:18; रोमियो 8:38–39; याकूब 4:7–8), पर कभी-कभी हम विश्वास नहीं करते। शायद इसलिए पौलुस ने इफिसुस के विश्वासियों के लिए प्रार्थना की कि उन्हें सत्य समझने का सामर्थ और बल मिले (इफिसियों 3:16)। वह जानते थे कि भयभीत होने पर हम परमेश्वर की निकटता की भावना को खो सकते हैं। जैसे मैंने अपनी बेटी का हाथ थामा हुआ था, ठीक वैसे ही हमारे प्रेमी स्वर्गीय पिता भी हमारे उतने ही निकट होते हैं जितनी कोई प्रार्थना होती है।
अवसर की ओर कदम बढ़ाना
आम व्यक्तियों के समान, पर्याप्त व्यायाम के लिए मैं भी संघर्ष करता हूँ। हाल ही में मुझे एक पेडोमीटर मिला जो कदमों को गिनता है। अब सोफे से उठना कुछ और कदम चलने का अवसर लगता है। ऐसे काम करना जैसे बच्चे को पानी ला देना आदि ऐसे अवसर होते हैं जो बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ने में मेरी सहायता करते हैं। उस अर्थ में, मेरे पैडोमीटर ने मेरी धारणा और मेरी प्रेरणा बदल दिए हैं। अब जितना संभव हो मैं कुछ और कदम चलने के अवसर ढूंढता हूँ।
हमारा मसीही जीवन क्या कुछ ऐसा ही नहीं है। प्रत्येक दिन में लोगों की सेवा करने और उनसे बातचीत करने के अवसर होते हैं, जैसा पौलुस कुलुस्सियों 4:5 में समझाते हैं। परंतु क्या मैं साधारण प्रतीत होने वाली बातचीत में उत्साहजनक व्यक्ति होने के अवसर पर ध्यान देता हूँ? चाहे परिवार से, सहकर्मियों से या किराने की दुकान में काम करने वाले एक क्लर्क से हो, प्रत्येक बातचीत में परमेश्वर कार्य कर सकते हैं-भले ही वह “छोटी सी” प्रतीत होने वाली बात क्यों न हो, जैसे किसी रेस्तरां में वेटर से उसका हाल चाल पूछना।
जब हम उन अवसरों के प्रति सचेत होंगे जिन्हें वे हमारी ओर भेजते हैं, तो कौन जाने कि परमेश्वर उन क्षणों में कैसे काम करेंगे।
प्रतिज्ञाएं, प्रतिज्ञाएं
मेरी बेटी और मैं "पिन्चर्स" खेल खेलते हैं। ऊपर चड़ते हुए मैं उसका पीछा करता हूँ और उसकी चुटकी काटता हूँ। मैं तभी पिंच कर सकता हूँ जब वह सीढ़ियों पर हो। ऊपर पहुंचते ही वह सुरक्षित होगी। जब वह खेलने के मूड में न हो और मैं उसे सीढ़ियों में पाऊँ तो कहती है, "पिंचर्स नहीं!" मैं कहता हूँ, "पिंचर्स नहीं! प्रॉमिस।"
ऐसी प्रतिज्ञा साधारण बात है। लेकिन जब मैंने जो कहा वह करता हूँ, तो उसे मेरे चरित्र की पहचान होती है। कथनी अनुसार करनी के मेरे गुण का उसे अनुभव और भरोसा होता है कि मेरा कहना काफ़ी है, कि वह मुझ पर भरोसा कर सकती है। यह एक छोटी बात है। लेकिन प्रतिज्ञाएं-या मुझे कहना चाहिए कि, उन्हें निभाना-संबंधों को जोड़ने की गोंद होती हैं। ये प्रेम और विश्वास की नींव बनाती हैं।
पतरस ने लिखा कि परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं हमें "ईश्वरीय स्वभाव में सहभागी" बनाती हैं। (2 पतरस 1:4) परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर विश्वास कर, हमारे प्रति उनके ह्रदय को हम समझ पाते हैं। उनके वचन पर हमारा निर्भर होना उन्हें अपनी विश्वासयोगिता सिद्ध करने का अवसर देता है। मैं धन्यवादी हूँ कि बाइबिल उनकी प्रतिज्ञाओं से भरी है, जो याद दिलाती हैं कि "उसकी दया अमर है..."(विलापगीत 3:22-23)।
एक सेवक का दिल बढ़ाना
ऑफिस से घर लौटने पर मेरा "अन्य" काम करने का समय हो गया था। मेरी पत्नी और बच्चों के अभिवादन जल्द ही इन अनुरोधों में बदल गए, "डैड, रात के खाने के लिए क्या है"? "डैड, मेरे लिए आप पानी ला देंगे"? "डैड, हम फुटबॉल खेलें"?
मैं कुछ देर सुस्ताना चाहता था। उस समय परिवार की जरूरतों को पूरा करने का मन नहीं था। तभी मैंने एक थैंक-यू कार्ड देखा जो चर्च में मेरी पत्नी को किसी से मिला था। उसमें पानी का एक बर्तन, एक तौलिया, और मैले सैंडल का चित्र बना हुआ था और नीचे लूका 22:27 पद लिखा हुआ था:“मैं तुम्हारे बीच में सेवक की नाईं हूं।”
यीशु खोए हुओं को ढूंढ़ने... (लूका 19:10)। यदि यीशु अपने शिष्यों के लिए ऐसे काम करने को तैयार थे, जो सेवक करते थे-जैसे शिष्यों के पैर धोना जो निसन्देह रूप से मैले रहे होंगे (यूहन्ना 13:1-17)-तो मैं बिना शिकायत अपने बेटे को पानी लाकर दे सकता था। मुझे अहसास हुआ कि अपने परिवारवालों के अनुरोध मानना केवल एक दायित्व ही नहीं हैं लेकिन यीशु का सेवक का दिल और प्रेम दिखाने का अवसर भी हैं। उस व्यक्ति के समान बनने का अवसर जिसने हमारे लिए अपने जीवन को दे दिया और अपने शिष्यों की सेवा की।