श्वास और संक्षिप्तता
मेरी माँ, मेरी बहनें, और मैंने पिताजी के बिस्तर के निकट इंतजार किया क्योंकि उनकी साँसें समाप्त होने तक उथली और कम होती गई l पिताजी नवासी वर्ष से कुछ ही दिन कम थे, जब वह इस जीवन के पार शांति से चले गए, जहाँ परमेश्वर उनकी प्रतीक्षा कर रहा था l उनका जाना हमें एक शून्य के साथ छोड़ गया जहां वह एक समय रहते थे और हमें याद दिलाने के लिए केवल यादें और स्मृति चिन्ह थे । फिर भी हमें उम्मीद है कि एक दिन हम फिर से मिलेंगे ।
हमारे पास वह आशा है क्योंकि हम मानते हैं कि पिताजी परमेश्वर के साथ हैं, जो उन्हें जानता है और उनसे प्यार करता है । जब पिताजी ने अपनी पहली सांस ली, तब परमेश्वर उनके फेफड़ों में सांस भर रहा था (यशायाह 42:5) । फिर भी उनके पहले और बीच में हर सांस के साथ, परमेश्वर पिताजी के जीवन के प्रत्येक विवरण में अंतरंग रूप से शामिल था, जैसे वह आपके और मेरे में है l यह परमेश्वर था जिसने उन्हें गर्भ में अद्भुत रूप से अभिकल्पित किया था और एक साथ "बुना" था (भजन 139: 13-14) । और जब पिताजी ने अपनी अंतिम सांस ली, तो परमेश्वर की आत्मा वहाँ थी, उसे प्यार से पकड़कर अपने साथ ले जा रही थी (पद.7-10) l
परमेश्वर के सभी बच्चों के लिए भी यही सच है । वह पृथ्वी पर हमारे संक्षिप्त जीवन का प्रत्येक क्षण जानता है (vv। 1-4) । हम उसके लिए अनमोल हैं । शेष प्रत्येक दिन और उससे आगे के जीवन की प्रत्याशा में, उसकी प्रशंसा करने के लिए "जितने भी प्राणी हैं” सब के सब याह की स्तुति करें l “याह की स्तुति करो l”
प्रत्येक को सलाहकार चाहिये
जब मैंने अपने नए पर्यवेक्षक के कार्यालय में कदम रखा, मैंने अपने आप को सावधान और भावनात्मक रूप से अनुभवहीन महसूस किया l मेरे पुराने पर्यवेक्षक ने हमारे विभाग को कठोरता और गुरूर के साथ चलाया था, और अक्सर मुझे (और अन्यों को) रोते हुए छोड़ दिया था l अब मैंने सोचा, मेरा नया बॉस कैसा होगा? जैसे ही मैंने अपने नए बॉस के कार्यालय में कदम रखा, मुझे लगा कि मेरा डर गायब हो गया था जब उन्होंने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझसे अपने बारे में और मेरी कुंठाओं को साझा करने के लिए कहा । उसने गौर से सुना, और मैं उनकी दयालु अभिव्यक्ति और कोमल शब्दों से जान गया कि वह वास्तव में परवाह करता था । यीशु में एक विश्वासी, वह मेरा कार्य सलाहकार, प्रोत्साहन देने वाला और मित्र बन गया ।
प्रेरित पौलुस, तीतुस के लिए एक आध्यात्मिक सलाहकार था, जो "विश्वास की सहभागिता के विचार से [उसका] सच्चा पुत्र” था (तीतुस 1:4) । तीतुस को लिखे अपने पत्र में, पौलुस ने उसे चर्च में उसकी भूमिका के लिए उपयोगी निर्देश और मार्गदर्शन दिए । उसने न केवल शिक्षा दी बल्कि आदर्श बनकर दिखाया जो “खरे उपदेश के योग्य है” (2:1), और कैसे “भले कामों का नमूना,” और “उपदेश में सफाई, गंभीरता, और . . . खराई” हो (पद.7-8) l परिणामस्वरूप, तीतुस उसका सहयोगी, भाई और सहकर्मी बन गया (2 कुरिन्थियों 2:13; 8:23) — और दूसरों का सलाहकार ।
हममें से कई लोगों ने परामर्शदाता से लाभ प्राप्त किया है - एक शिक्षक, कोच, दादा-दादी, युवा अगुवा या पास्टर से, जिन्होंने हमें अपने ज्ञान, बुद्धि, प्रोत्साहन और विश्वास के साथ मार्गदर्शन किया है । यीशु के साथ आपकी यात्रा में सीखे गए आध्यात्मिक पाठों से कौन लाभ उठा सकता है?
धोखा न खाएँ
टिड्डी एक बहुत ही सुन्दर कीट है, जिसके बाहरी पंख चित्तीदार होते हैं और उन पर पीले रंग का फैलावट होता है जो उड़ते समय चमकते हैं l लेकिन इसकी सुन्दरता थोड़ी भ्रामक है l इस कीट को फसलों के लिए आक्रामक माना जाता है, अर्थात् यह पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है l टिड्डी व्यावहारिक रूप से हरे रंग के हर हिस्से को खा जाएंगे, जिसमें गेहूं, मक्का और अन्य पौधे शामिल हैं, वे इन पौधों के रसों को चूस कर उनको बेकार कर देते हैं l
आदम और हव्वा की कहानी में, हम एक अलग तरह के खतरे के विषय सीखते हैं l सर्प, शैतान, ने दम्पति को परमेश्वर की अवज्ञा करने और निषिद्ध फल खाने में धोखा दिया, कि वे “परमेश्वर के तुल्य हो [जाएंगे]“ (उत्पत्ति 3:1-7) l लेकिन एक सर्प की बात क्यों सुनें? क्या उसके शब्दों ने केवल हव्वा को लुभाया था, या उसके बारे में कुछ आकर्षक भी था? शैतान के विषय पवित्र शास्त्र संकेत देता है कि उसे सुन्दर बनाया गया था (यहेजकेल 28:12) l फिर भी शैतान उसी प्रलोभन से गिर गया जो उसने हव्वा को लुभाने के लिए किया था : “मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊँगा“(यशायाह 14:14; यहेजकेल 28:9) l
कोई भी सुन्दरता जो आज शैतान के पास है धोखा देने के लिए उपयोग किया जाता है (उत्पत्ति 3:1; यूहन्ना 8:44; 2 कुरिन्थियों 11:14) l जैसे वह गिरा, वह दूसरों को नीचे खींचना चाहता है – या उन्हें बढ़ने से रोकता है l लेकिन हमारे पास हमारी तरफ कोई अधिक शक्तिशाली हैं! हम अपने सुन्दर उद्धारकर्ता यीशु के पास दौड़ सकते हैं l
निराशाजनक स्थानों में उज्जवल पुंजदीप
जब मेरे पति और मैं कर्नाटक राज्य के एक छोटे, बीहड़ स्थान की खोज कर रहे थे, तो मैंने एक चट्टानी, सूखी जगह पर एक सूरजमुखी का पौधा देखा, जहाँ काँटेदार नागफनी(cactus) और अन्य खरपतवार उगे हुए थे l यह घरेलू सूरजमुखी जितना लंबा तो नहीं था, लेकिन वह उतना ही उज्ज्वल था - और मुझे खुशी महसूस हुई l
इस उबड़-खाबड़ स्थान में यह अप्रत्याशित उज्ज्वल स्थान मुझे याद दिलाता है कि कैसे यीशु में विश्वासियों के लिए भी, जीवन, बंजर और निराश लग सकता है l मुसीबतें अजेय लग सकती हैं, और भजनकार दाऊद के रोने की तरह, हमारी प्रार्थनाएँ कभी-कभी अनसुनी सी महसूस होती हैं : “हे यहोवा, कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं दिन और दरिद्र हूँ” (भजन संहिता 86: 1) l उसकी तरह, हम भी आनंद के लिए लालायित होते हैं (पद.4) l
लेकिन दाऊद आगे बढ़ते हुए घोषित करता हैं कि हम एक विश्वासयोग्य (पद.11), “दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर” (पद.15), की सेवा करते हैं (पद.15), जो उन्हें जो उसे “पुकारते हैं उन सभों के लिए . . . अति करुनामय है” (पद.5) l वह निश्चय उत्तर देता है (पद.7) l
कभी-कभी उजाड़ स्थानों में, परमेश्वर एक सूरजमुखी भेजता है - एक उत्साहजनक शब्द या एक मित्र की ओर से एक पत्र; एक आरामदायक पद या बाइबल सन्देश; एक सुन्दर सूर्योदय – जो हमें आशा के साथ एक हलके कदम से आगे बढ़ने में मदद करता है l यहां तक कि जब हम उस दिन का इंतज़ार करते हैं, जब हम अपनी कठिनाई से परमेश्वर के छुटकारा का अनुभव करेंगे, हम भजनकार के साथ घोषणा करने में शामिल हों, “ तू महान् और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है” (पद.10) l
हमारे मानों में
स्कूल में कुछ चुनौतियों का सामना करने के बाद एक युवा लड़के को, उसके पिता ने उसे एक प्रतिज्ञा सिखाना शुरू किया जिसे उसे स्कूल जाने से पहले सुनना था : “मैं परमेश्वर को आज मुझे जगाने के लिए धन्यवाद देता हूँ l मैं स्कूल जा रहा हूँ ताकि मैं सीख सकूँ . . . और एक अगुवा बन सकूँ जो बनने के लिए परमेश्वर ने मुझे रचा है l” प्रतिज्ञा एक तरीका है जिससे पिता अपने बेटे को खुद पर लागू करने और जीवन की अपरिहार्य चुनौतियों से निपटने में मदद करने की उम्मीद करता है l
एक तरह से, अपने बेटे से इस प्रतिज्ञा को याद करने में मदद करने के द्वारा, पिता कुछ वैसा ही कर रहा है जैसा कि परमेश्वर ने मरुभूमि में इस्राएलियों को दिया था : “ये आज्ञाएँ . . . तेरे मन में बनी रहें l तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना” (व्यवस्थाविवरण 6:6-7) l
चालीस साल तक जंगल में भटकने के बाद, इस्राएलियों की अगली पीढ़ी प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने वाली थी l परमेश्वर जानता था कि उनके लिए सफल होना आसान नहीं होगा – जब तक कि वे अपना ध्यान उस पर नहीं रखेंगे l और इसलिए, मूसा के द्वारा, उसे याद करने और उसके प्रति आज्ञाकारी होने का आग्रह किया – और अपने बच्चों को उसके वचन के बारे में “घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते” (पद.7) बात करके परमेश्वर को जानने और प्यार करने में मदद करने के लिए कहा l
हर नए दिन में, हम भी पवित्रशास्त्र को अपने दिलों और दिमागों का मार्गदर्शन करने की अनुमति देने के लिए प्रतिबद्ध हो सकते हैं जब हम उसके प्रति आभार व्यक्त करते हैं l
एक दूसरे के लिए बनाए गए
“मैं उसकी देखभाल करुँगी l जब वो खुश, तब मुझे ख़ुशी होती है,” स्टेला कहती है l प्रदीप उत्तर देता है, “जब वह मेरे पास होती है मुझे ख़ुशी होती है l प्रदीप और स्टेला की शादी के 79 वर्ष हो चुके हैं l हाल ही में जब प्रदीप को एक नर्सिंग होम में भर्ती किया गया, उसकी हालत दयनीय थी – तो स्टेला उसे आनंदपूर्वक घर ले आई l वह 101, और स्टेला 95 वर्ष की है l यद्यपि वह चलने-फिरने के लिए वॉकर का उपयोग करती है, वह प्रेमपूर्वक अपने पति के लिए वह सब करती है जो वह कर सकती है, जैसे कि उसका पसंदीदा भोजन तैयार करना l परन्तु वह अपने बल पर यह नहीं कर सकती थी l नाती-पोते और पड़ोसी स्टेला की उन बातों में मदद करते हैं जो वह खुद नहीं कर सकती है l
स्टेला और प्रदीप का एक साथ का जीवन उत्पत्ति 2 का एक उदहारण है, जहां परमेश्वर ने कहा है, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं, मैं उसके लिए एक ऐसा सहायक बनाऊंगा जो उससे मेल खाए” (पद.18) l कोई भी जीव जिसे परमेश्वर आदम के पास लेकर आया उस वर्णन में ठीक बैठता है l केवल हव्वा में, जो आदम की पसली से बनी थी, आदम ने एक सहायक और सहयोगी प्राप्त किया (पद.19-24) l
हव्वा ही आदम के लिए सही सहयोगी थी, और उनके द्वारा परमेश्वर ने विवाह की स्थापना की l यह केवल व्यक्तियों की आपसी सहायता के लिए नहीं थी बल्कि एक परिवार को शुरू करने और सृष्टि की देखभाल के लिए भी थी जिसमें अन्य लोग शामिल हैं (1:28) l उस पहले परिवार से एक समुदाय आया ताकि चाहे वह विवाहित हो या एकल, वृद्ध या युवा, हममें से कोई भी अकेला नहीं होगा l एक समुदाय के रूप में, परमेश्वर ने हमें “एक दूसरे का भार” (गलतियों 6:2) उठाने का विशेषाधिकार दिया है l
स्मरण रखना
स्मारक दिवस(Memorial Day) पर, मैं कई पूर्व सैनिकों के बारे में सोचता हूँ, लेकिन विशेष रूप से मेरे पिताजी और चाचा, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना में सेवा की थी l वे घर लौट आए, लेकिन उस युद्ध में सैंकड़ों हजारों परिवारों ने दुखद रूप से अपने देश की सेवा में अपने प्रियजनों को खो दिया l फिर भी, जब पूछा गया, मेरे पिताजी और उस युग के अधिकांश सैनिक कहते कि वे अपने प्रियजनों की रक्षा के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार थे और वे जो सही मानते थे, उसके लिए खड़े थे l
जब कोई अपने देश की रक्षा में मर जाता है, तो यूहन्ना 15:13 –“इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे” – अक्सर उनके बलिदान का सम्मान करने के लिए अंतिम संस्कार सेवा के दौरान सुनाया जाता है l लेकिन इस पद के पीछे क्या स्थिति थी?
जब यीशु ने उन लोगों से अंतिम भोज के दौरान अपने शिष्यों से बात की, वह मृत्यु के निकट था l और, वास्तव में, उसके शिष्यों के एक छोटे से समूह से, यहूदा ने पहले ही उसे धोखा देने के लिए छोड़ दिया था (13:18-30) l फिर भी मसीह यह सब जानता था और फिर भी उसने अपने दोस्तों औरदुश्मनों के लिए अपने जीवन को बलिदान करने का विकल्प चुना l
यीशु उन लोगों के लिए मरने के लिए इच्छित और तैयार था जो एक दिन उस पर विश्वास करने वाले थे, यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जो अभी भी उसके दुश्मन थे (रोमियों 5:10) l बदले में, वह अपने शिष्यों (तब और अब) से “एक-दूसरे से प्यार करने” के लिए कहता है जैसे उसने उनसे प्यार किया था (यूहन्ना 15:12) l उसका महान प्रेम हमें दूसरों के लिए बलिदानी प्रेम करने के लिए मजबूर करता है – मित्र और शत्रुओं को एक समान l
दुःख में सामर्थ्य
1948 में, एक भूमिगत चर्च के पादरी, हार्लेन पोपोव को उनके घर से “थोड़ी पूछताछ” के लिए ले जाया गया l दो सप्ताह बाद, उससे चौबीसों घंटे पूछताछ की गयी और दस दिनों तक भोजन नहीं दिया गया l हर बार उसने जासूस होने से इनकार किया, तो उसे पीटा गया l पोपोव न केवल अपने कठोर बर्ताव से बचे, बल्कि अपने साथी कैदियों को भी यीशु के पास ले आए l अंत में, ग्यारह साल बाद, उन्हें रिहा कर दिया गया और उन्होंने अपने विश्वास को साझा करना जारी रखा जब तक कि, दो साल बाद, वह उस देश को छोड़ कर पुनः अपने परिवार से जुड़ नहीं गए l वे आनेवाले वषों में बंद देशों में बाइबल वितरित करने हेतु प्रचार करते रहे और धन इकठ्ठा करते रहे l
यूगों से यीशु में अनगिनत विश्वासियों की तरह, पोपोव को उनके विश्वास के कारण सताया गया था l मसीह, अपनी खुद की यातना और मृत्यु और उसके अनुयायियों के समक्ष बाद में आने वाले उत्पीडन से बहुत पहले कहा था, “धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है” (मत्ती 5:10) l वह आगे कहता है, “धन्य हो तुम जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निंदा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बातें कहें” (पद.11) l
“धन्य”? यीशु का क्या मतलब हो सकता है? वह उसके साथ रिश्ते में मिलनेवाली पूर्णता, आनंद और आराम का जिक्र कर रहा था (पद. 4, 8-10) l पोपोव दृढ़ रहा क्योंकि उसने महसूस किया कि परमेश्वर की उपस्थिति उसके कष्ट में भी शक्ति प्रदान कर रही थी l जब हम परमेश्वर के साथ चलते हैं, तो हमारी परिस्थितिचाहे कुछ भी हो, हम भी उसकी शांति का अनुभव कर सकते हैं l वह हमारे साथ है l
पुनर्मिलन
छोटे लड़के ने उत्साह से सेना में कार्यरत पिता से प्राप्त एक डिब्बा खोला, जिनके बारे में उसका मानना था कि वे उसका जन्मदिन मनाने घर नहीं आ पाएँगे l उस डिब्बे के अन्दर लिपटा हुआ एक और उपहार था, और उस डिब्बे के अन्दर एक और जिसमें एक कागज़ के टुकड़े पर लिखा था, “आश्चर्य!” l उलझन में, उस लड़के ने ऊपर देखा – जब तुरंत ही उसका पिता कमरे में प्रवेश किया l आंसुओं के साथ वह बेटा चिल्लाते हुए अपने पिता की बाहों में कूद पड़ा, “डैडी, आई मिस्ड यू” और “आई लव यू!”
वह आश्रुपुरित लेकिन आनंदित पुनर्मिलन मेरे लिए प्रकाशितवाक्य 21 के हृदय के महिमामय क्षण के वर्णन को अधिकार में कर लेता है जब परमेश्वर की संतान अपने प्रेमी पिता को आमने-सामने देखते है – पूरी तरह नवीनीकृत और बहाल सृष्टि में l वहाँ “[परमेश्वर हमारी] आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा l” फिर हम कभी दर्द या दुःख का अनुभव नहीं करेंगे, क्योंकि हम अपने स्वर्गिक पिता के साथ होंगे l जिस प्रकार प्रकाशितवाक्य 21 में “ऊँचे शब्द” द्वारा घोषणा होती है, “देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है l वह उनके साथ डेरा करेगा . . . “ (पद.3-4) l
एक कोमल प्रेम और आनंद है जिसका यीशु के अनुयायी पहले से ही परमेश्वर के साथ आनंद लेते हैं, जैसा कि 1 पतरस 1:8 वर्णन करता है : “उससे तुम बिन देखे प्रेम रखते हो, और अब तो उस पर बिन देखे भी विश्वास करके ऐसे आनंदित और मगन होते हो जो वर्णन से बाहर और महिमा से भरा हुआ है l” फिर भी हमारे अविश्वसनीय, उमड़ते आनंद की कल्पना करें जब हम उसे देखेंगे जिसे हम प्यार करते थे और लालसा करते थे कि उसकी खुली बाहें हमारा स्वागत करेंगी!