“दादी माँ, मेरी परियों की राजकुमारी का नृत्य देखिये!” हमारे केबिन के आँगन में चारोंओर दौड़ लगाती हुयी मेरी तीन साल की नातिन ने उल्लासित होकर पुकारा l उसका “नाचना” मुस्कराहट ला दिया; और उसके बड़े भाई की निराशा, “वह नाच नहीं रही है, केवल दौड़ रही है,” ने छुट्टियों में परिवार के साथ रहना उसके आनंद को ख़त्म न कर सका l
प्रथम खजूर का रविवार उतार चढ़ाव का दिन था l जब यीशु एक गधे पर सवार होकर यरूशलेम में प्रवेश किया, भीड़ उल्लासित होकर चिल्लाई, “होशाना!” . . . धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है (मत्ती 21:9) l फिर भी भीड़ में अनेक लोग उन्हें रोम से छुड़ाने के लिए एक मुक्तिदाता(Messiah) की आशा कर रहे थे, एक उद्धारकर्ता नहीं जो उसी सप्ताह उनके पापों के लिए मरने वाला था l
बाद में उसी दिन, महायाजकों के डर के बावजूद जिन्होंने यीशु के अधिकार पर प्रश्न किया, मंदिर में बच्चों ने चिल्लाते हुए अपने आनंद को प्रगट किया, “दाऊद के संतान को होशाना” (पद.15), शायद कूदते और खजूर की डालियाँ हिलाते हुए जब वे आँगन के चारों ओर दौड़ रहे थे l वे उसकी उपासना करने से खुद को रोक न सके, यीशु ने क्रोधित अगुओं से कहा, बालकों और दूध पिते बच्चों के मुंह से [परमेश्वर ने अपनी] अपार स्तुति कराई” (पद.16) l वे उद्धारकर्ता की उपस्थिति में थे!
यीशु कौन है वह हमें भी देखने के लिए बुलाता है l जब हम आनंद की बहुतायत के साथ एक बच्चे की तरह ऐसा करते हैं, हम उसकी उपस्थिति का आनंद लेने से खुद को रोक नहीं पाते l