शांति कैसे मिलेगी?
“आप शांति के विषय क्या सोचते हैं?” साथ में दोपहर का भोजन खाते समय मेरे मित्र ने पूछा l “शांति?” मैंने घबराकर उत्तर दिया l “मैं निश्चित नहीं हूँ – आप क्यों पूछ रहे हैं?” उसका उत्तर था, “अरे, जब तुम चर्च आराधना के समय अपने पैरों को हिला रही थी मैंने सोचा कि शायद तुम किसी बात के विषय क्षुब्ध थी l क्या तुमने उस शांति के विषय विचार किया है जो परमेश्वर अपने प्रेम करनेवालों को देता हैं?”
कुछ वर्ष पहले उस दिन, मुझे अपने मित्र के प्रश्न से ठेस पहुंचा था, किन्तु इससे मैं एक नयी यात्रा पर चल पड़ी l मैंने बाइबल में खोजना शुरू कर दिया कि किस प्रकार परमेश्वर के लोगों ने शांति और स्वास्थ्य के वरदान को, कठिनाई के समय भी गले लगाया है l जब मैंने कुलुस्सियों के नाम पौलुस की पत्री पढ़ी, मैंने प्रेरित के निर्देश को कि मसीह की शांति उनके हृदय में राज्य करे पर गहन चिंतन किया (कुलुस्सियों 3:15) l
पौलुस एक ऐसी कलीसिया को लिख रहा था जहाँ वह पहले कभी नहीं गया था किन्तु उनके विषय अपने मित्र इपफ्रास से सुना था l वह चिंतित था कि झूठी शिक्षा का सामाना करने के दौरान, वे मसीह की शांति को खो रहे थे l परन्तु उनको उलाहना देने के बजाए, पौलुस ने उनको मसीह में भरोसा करने के लिए उत्साहित किया, जो उन्हें निश्चितता और आशा दे सकता था (पद.15) l
हम सब ऐसे समयों का सामना करेंगे जब हम अपने हृदयों में मसीह की शांति के अधिकार का आलिंगन या उसका इनकार करने का चुनाव कर सकते हैं l जब हम यीशु को अपने अन्दर निवास करने के लिए उसकी ओर मुड़ते हैं, वह हमें कोमलता से चिंता और फ़िक्र से जो हमें दबाते हैं निकलेगा l जब हम उसकी शांति को खोजते हैं, हम भरोसा करते हैं कि वह अपने प्रेम के साथ हमसे पेश आएगा l
रस्सी खोलना
एक मसीही संस्था का उद्देश्य/मिशन क्षमा की चंगाई प्रकृति को बढ़ावा देना है l उनकी एक आकर्षक गतिविधि में एक लघु नाटिका शामिल है जिसमें हानि सहने और हानि पहुँचानेवाले को पीठ से पीठ लगाकर एक रस्सी से बांध दिया जाता है l जिसके विरुद्ध पाप किया गया है केवल वही रस्सी खोल सकता है l चाहे वह जो भी करे, कोई तो उसके पीठ पर है l क्षमा किये बिना – रस्सी खोले बिना – वह छुट नहीं सकता है l
किसी को क्षमा की पेशकश जो अपनी गलती के लिए खेद के साथ हमारे पास आता है हमारी और उनकी उस कड़वाहट और पीड़ा से निकलने की प्रक्रिया है जो हमारे द्वारा सहन की गयी गलातियों के लिए हमसे सख्ती से चिपक सकती है l उत्पत्ति में, हम याकूब द्वारा एसाव के पहिलौठे का अधिकार चुराने के बाद, दो भाइयों को बीस वर्षों तक एक दूसरे से अलग देखते हैं l इस लम्बे समय के बाद, परमेश्वर ने याकूब को अपनी जन्मभूमि लौटने को कहा (उत्पत्ति 31:3) l उसने आज्ञा मानी, परन्तु घबराहट के साथ, अपने आगे एसाव को भेंट स्वरुप पशुओं के झुंड भेजे (32:13-15) l जब भाई आपस में मिले, याकूब एसाव के पैरों पर गिरकर सात बार दण्डवत की (33:3) l उसके आश्चर्य की कल्पना करें जब एसाव दौड़कर उसे गले लगा लिया, और दोनों अपने मेल-मिलाप पर रो रहे थे (पद.4) l याकूब अब उस पाप से बिल्कुल छूट गया था जो उसने अपने भाई के विरुद्ध किया था l
क्या आप क्षमा न करने, क्रोध, भय, अथवा लज्जा के कैद में हैं? यह जान लें कि परमेश्वर अपने पुत्र और पवित्र आत्मा के द्वारा आपको छुटकारा दे सकता है जब आप उसकी सहायता मांगते हैं l वह किसी भी रस्सी को खोलने और आपको स्वतंत्र करने की प्रक्रिया आरंभ करने में आपको योग्य बनेगा l
“परमेश्वर ने मेरे जीवन को बचाया”
जब एरोन(उसका वास्तविक नाम नहीं) 15 वर्ष का था, वह शैतान से प्रार्थना करने लगा : “मुझे ऐसी अनुभूति हुयी वो और मैं साझेदार हैं l” एरोन ने झूठ, छोरी, और अपने परिवार और मित्रों के साथ हेर-फेर करना आरंभ कर दिया l उसने (शैतान) दू:स्वप्नों का भी अनुभव किया : “एक सुबह जागने पर पलंग की दूसरी ओर मैंने…
तराई से होकर
हे वू (उसका वास्तविक नाम नहीं) चीन की सीमा पार करने के जुर्म में उत्तर कोरिया के श्रम शिविर में कैद की गयी थी l उसने कहा, “क्रूर गार्ड दिन और रात यातना देते थे, कमरतोड़ मेहनत, और अत्यधिक ठंडे फर्श पर चूहों और चीलरों(lice) के साथ सोने के लिए अल्प समय देते थे l किन्तु प्रतिदिन परमेश्वर उसकी सहायता करने के साथ-साथ कैदियों से मित्रता करके उसे अपने विश्वास को साझा करने का अवसर भी देता था l
शिविर से रिहा होने के बाद दक्षिणी कोरिया में रहते हुए, वू शिविर के अपने कैद के समय पर विचार करके बोली कि भजन 23 उसके अनुभव का सार है l एक अँधेरी घाटी में होने के बावजूद, यीशु ही उसका चरवाहा था जिसने उसे शांति दी : “यद्यपि मैंने अपने को मृत्यु की छाया वाली वास्तविक घाटी में पाया, मैं किसी भी बात से डरी हुयी नहीं थी l परमेश्वर प्रतिदिन मुझे सहानुभूति देता था l” जब परमेश्वर उसे आश्वास्त करता था कि वह उसकी प्रिय बेटी थी उसने उसकी भलाई और प्रेम का अनुभव किया l “मैं एक भयंकर स्थान में थी, किन्तु मैं जानती थी . . . मैं परमेश्वर की भलाई और प्रेम का अनुभव करुँगी l” और उसे मालुम था वह हमेशा परमेश्वर की उपस्थिति में रहेगी l
हम वू की कहानी से प्रोत्साहित हो सकते हैं l उसकी खौफ़नाक स्थिति के बावजूद, उसने परमेश्वर के प्रेम एवं मार्गदर्शन को महसूस किया; और उसने उसे थामा और उसके भय को दूर कर दिया l यदि हम यीशु का अनुकरण करते हैं, वह हमारी परेशानी के समय कोमलता से हमारी अगुवाई करेगा l हमें डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि “[हम] यहोवा के धाम में सर्वदा वास [करेंगे]” (23:6) l
बादलों के द्वारा अस्पष्ट
नवम्बर 2016 में एक विचित्र चन्द्रमा दिखाई दिया था-अपनी कक्षा में चन्द्रमा साठ साल में पृथ्वी के सबसे निकटम बिन्दू पर पहुँच गया था और यह पहले से बड़ा और चमकदार दिखाई दिया। परन्तु मेरे लिए उस दिन आकाश स्लेटी रंग से ढका हुआ था। यद्यपि मैंने इस चमत्कार की दूसरे स्थानों पर मेरे मित्रों के द्वारा ली गई तस्वीरों को देखा और जब मैंने ऊपर देखा तो मुझे उस समय भरोसा करना था कि वह अद्भुत चन्द्रमा उन बादलों के पीछे छिप कर इन्तजार कर रहा था।
प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया से कठिनाइयों में अनदेखे, परन्तु सर्वदा तक बने रहने वाले, पर विश्वास करने के लिए आग्रह किया। उसने कहा उनकी “क्षणिक कठिनाइयाँ” किस प्रकार “एक अनन्त महिमा” को प्राप्त कर सकती हैं (2 कुरिन्थियों 4:17) । इसलिए उन्होंने अपनी आँखें “उस पर नहीं लगाई, जो दिखाई दे रहा था, अपितु उस पर जो दिखाई नहीं दे रहा था,” क्योंकि जो दिखाई नहीं दे रहा है, वह अनन्त है, (पद 18) । पौलुस ललायित था कि कुरिन्थुस के लोग विश्वास में बढ़ें और यद्यपि उन्होंने दुःख उठाया, फिर भी वे परमेश्वर पर भरोसा रखें। हो सकता है वे उन्हें देखने के योग्य न हों, परन्तु वे विशवास कर सकते थे कि वह उन्हें दिन-ब-दिन नया कर रहे थे (पद 16)।
मैंने विचार किया कि परमेश्वर किस प्रकार अनदेखा परन्तु अनन्त है, जब मैंने उस दिन बादलों में से देखा, तो मैं इस बात को जानती थी कि वह चन्द्रमा छिपा हुआ तो है, परन्तु वह वहीं है। और मैंने विचार किया कि जब अगली बार यह विश्वास करने की परीक्षा में हूँगी कि परमेश्वर मुझ से दूर है, तब मैं अपनी आँखें उस पर लगाऊँगी जो अनदेखा है।
अजनबियों का अभिनन्दन
जब मेरे मित्र मोल्डोवा, यूरोप के सबसे गरीब देश में रहते थे, तो वे उस अभिनन्दन से आश्चर्यचकित हो गए जो उन्हें वहाँ, विशेष रूप से मसीहियों से प्राप्त हुआ। एक बार वे अपनी कलीसिया के दम्पत्ति, जो बहुत ही गरीब थे, के लिए कुछ कपड़े और सामग्री ले गए, जो गरीब होने पर भी अनेक बच्चों की देखभाल कर रहे थे। उस दम्पत्ति ने मेरे मित्रों के साथ सम्माननीय मेहमानों जैसा व्यवहार किया, अपनी बदहाल परिस्थिति के बावजूद उन्हें मिठाइयाँ और चाय दी। जब मेरे मित्र तरबूज़ और अन्य फलों और सब्जियों के साथ वहाँ से निकले, तो वे उस मेहमान नवाज़ी (से) आश्चर्यचकित थे, जो उन्होंने वहाँ अनुभव की थी।
इन विश्वासियों ने वह अभिनन्दन पहना हुआ था, जिसकी आज्ञा परमेश्वर ने अपने लोगों, इस्राएलियों, को प्रदर्शित करने की आज्ञा दी थी। उन्होंने उन्हें “अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानने, और उसके सारे मार्गों पर चलने, उससे प्रेम रखने, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करने” के निर्देश दिए थे (व्यवस्थाविवरण 10:12) । इस्राएलियों को इनके अनुसार कैसे जीना था? इसका उत्तर कुछ पदों के बाद मिलता है: “इसलिये तुम भी परदेशियों से प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे” (पद 19)। अजनबियों का अभिनन्दन करने के द्वारा, वे परमेश्वर की सेवा और उसका सम्मान करेंगे; और उन्हें प्रेम और देखभाल दिखाने के द्वारा, वे परमेश्वर पर अपने भरोसे का प्रदर्शन करेंगे।
हमारी परिस्थितियाँ मोल्डोव के लोगों या इस्राएलियों से भिन्न हो सकती हैं, परन्तु हम भी दूसरों का अभिनन्दन करने के द्वारा परमेश्वर के लिए अपने प्रेम का जीवन जी सकते हैं। जिनसे हम मिलते हैं, उनके लिए चाहे अपने घर का दरवाजा खोलना या उनके लिए मुस्कुराना हो, इस प्रकार हम इस अकेले और आहत संसार को परमेश्वर की देखभाल और उपलब्धता प्रदान कर सकते हैं।
जीवित बलिदान
मेरी आंटी की विज्ञापन की एक रोमांचक नौकरी थी और वह शिकागो से न्यू यॉर्क सिटी के बीच यात्रा करती थी। परन्तु उन्होंने अपने माता-पिता के लिए अपने उस करियर को छोड़ देने को चुना। वे मिनेसोटा में रहते थे और उन्हें देखभाल की जरूरत थी। उनके दोनों भाइयों की युवावस्था में ही दुखद परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी और वह उनके माता-पिता की बची हुई एकलौती सन्तान रह गई थी। उनके लिए अपने माता-पिता की देखभाल करना उनके विश्वास का प्रकटन था।
रोम की कलीसिया को प्रेरित पौलुस के पत्र ने विश्वासियों को एक “जीवित और पवित्र और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान” होने का आग्रह किया (रोमियों 12:1) । उसने आशा की कि वे मसीह के त्यागमय प्रेम को एक-दूसरे को दिखाएँगे। और उसने उन्हें अपने आप को जैसा समझना चाहिए उससे बढ़कर अपने आप को न समझने के लिए कहा (पद 3) ।जब उनमें मतभेद और विभाजन आ गया, तो उसने उन्हें घमण्ड को त्याग देने को कहा क्योंकि “वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।” (पद 5) । उसने विनती की कि वे एक-दूसरे को त्यागमय प्रेम दिखाएँ।
हर दिन हमारे पास एक-दूसरे की सेवा करने का अवसर होता है। उदाहरण के लिए, हम कतार में किसी को हमारे से पहले जाने दे सकते हैं या हम, मेरी आंटी के समान किसी बिमार की देखभाल कर सकते हैं। या हम अपने अनुभव से किसी को सलाह या मार्गदर्शन दे सकते हैं। जब हम अपने आप को एक जीवित बलिदान के रूप में चढ़ाते हैं, तो हम परमेश्वर का आदर करते हैं।
सर्वदा परमेश्वर की एक सन्तान
कलीसिया की एक सभा के दौरान, जिसमें मैंने अपने माता-पिता के साथ भाग लिया, उस सभा के सामान्य अभ्यास के अनुसार प्रभु की प्रार्थना को एकसाथ बोलते हुए हम ने अपने हाथों को पकड़ा। जब मैं एक हाथ से अपनी माता और दूसरे हाथ से अपने पिता को पकड़े हुए थी, तो मेरे मन में एक विचार आया कि मैं सर्वदा उनकी बेटी रहूँगी। यद्यपि मैं पूरी तरह से मेरी मध्य आयु में हूँ, मुझे अभी भी “लियो और फिलिस की सन्तान” बुलाया जा सकता है। मैंने गौर किया कि मैं न केवल उनकी बेटी हूँ, परन्तु मैं सर्वदा परमेश्वर की भी सन्तान रहूँगी।
प्रेरित पौलुस रोम की कलीसिया के लोगों को समझाना चाहता था कि उनकी पहचान परमेश्वर के परिवार में गोद लिए हुए सदस्यों पर आधारित थी (रोमियों 8:15)। क्योंकि वे आत्मा से जन्में थे (पद 14), अब उन्हें उन बातों का और दास रहने की आवश्यकता नहीं है, जो वास्तव में महत्व नहीं रखती हैं। बल्कि, पवित्र आत्मा के उपहार के द्वारा, वे “परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं” (पद 17)।
उन लोगों के लिए जो मसीह के पीछे चलते हैं, यह क्या अन्तर पैदा करता है? बिलकुल साधारण सी बात, यह हर प्रकार का अन्तर पैदा करता है! परमेश्वर की सन्तान के रूप में हमारी पहचान हमें बुनियाद उपलब्ध करवाती है और हम स्वयं और संसार को कैसे देखते हैं, इसकी दृष्टि प्रदान करती है। उदाहरण के लिए यह जानना कि हम परमेश्वर के परिवार का हिस्सा हैं हमें, जब हम उसके पीछे चलते हैं, अपने आराम से बाहर आने में सहायता करता है। हम दूसरों की सहमति खोजने से भी स्वतन्त्र हो जाते हैं।
आज, क्यों न हम इस बात पर मनन करें की परमेश्वर की सन्तान होने का क्या अर्थ है?
संदेशवाहक
मेरे पास आपके लिए एक खबर है, बुरी खबर, या चुनौती देनेवाली खबर l पुराना नियम में, परमेश्वर ने अपने नबियों द्वारा आशा या न्याय का समाचार दिया l किन्तु निकटता से देखने पर, उन न्याय के शब्दों के पीछे भी पश्चाताप, चंगाई, और पुनर्स्थापन था l
मलाकी 3 में दोनों ही प्रकार की खबर है जब प्रभु ने एक संदेशवाहक भेजने की प्रतिज्ञा की जो उसके लिए मार्ग तैयार करेगा l यूहन्ना बपतिस्मादाता ने एक सच्चे संदेशवाहक, यीश की घोषणा की (देखें मत्ती 3:11) – “वाचा का वह दूत” (मलाकी 3:1) जो परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को पूरी करेगा l किन्तु वह “सोनार की आग और धोबी के साबुन” की तरह कार्य करेगा (पद.2), क्योंकि वह उसके वचन में विश्वास करनेवालों को पवित्र करेगा l प्रभु ने अपने लोगों की भलाई के लिए अपनी प्रेमपूर्ण चिंता के कारण अपने लोगों को शुद्ध करने के लिए अपना वचन भेजा l
परमेश्वर का सन्देश प्रेम, आशा, और छुटकारे का है l उसने अपने पुत्र को एक संदेशवाहक बनने के लिए भेजा जो हमारी भाषा बोलता है – कभी-कभी सुधार का समाचार, किन्तु हमेशा आशा की l हम उसके सन्देश पर भरोसा कर सकते हैं l