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Articles by एमी बाउचर पाई

निकट रहना

अपनी बेटी को स्कूल छोड़कर एक मील चलकर लौटना मुझे बाइबल से कुछ पदों को कंठस्त करने का अवसर देता है, वो भी यदि मैं इसके विषय इच्छा रखता हूँ l जब मैं अपने मन में परमेश्वर के वचन पर विचार करने के लिए कुछ पल देता हूँ, मैं महसूस करता हूँ कि वे वचन बाद में उस दिन मेरे मन में आकर मुझे शांति और बुद्धि देते हैं l

जब मूसा ने इस्राएलियों को प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने के लिए तैयार किया, उसने उन्हें परमेश्वर की आज्ञाओं और विधियों को पकड़े रहने के लिए कहा (व्यव.6:1-2) l उसकी इच्छा थी कि वे तरक्की करें, इस कारण उसने उनको इन आज्ञाओं को बार-बार याद करने और उनको अपने बच्चों के साथ उन पर विचार करने को कहा (पद.6-7) l उसने उनसे उनको अपने कलाइयों और माथे पर भी बाँधने के लिए कहा (पद.8) l उसकी इच्छा थी कि वे परमेश्वर के लोग हैं जो उसे आदर देते हुए उसकी आशीषों का आनंद उठाते हैं, और वे उसकी आज्ञाओं को कभी नहीं भूलें l

आज आप परमेश्वर के वचन के विषय क्या सोचते हैं? एक विचार है कि आप एक पद वचन से लिख लें, और हर एक काम करते समय, उसे पढ़ें और अपने मन में याद करें l अथवा सोने से पहले, बाइबल से एक छोटे परिच्छेद पर विचार करें जो आपके दिन का अंतिम कार्य हो l परमेश्वर के वचन को याद रखने के अनेक तरीके हैं!

जंजीरों को तोड़ना

स्टोन टाउन, ज़ांज़ीबार में क्राइस्ट चर्च कैथेड्रल की यात्रा ने हमारे दिल को छू लिया, क्योंकि यह ऐसे स्थान पर स्थित है जहाँ पूर्व अफ्रीका का सबसे बड़ा गुलाम बाजार था। कैथेड्रल में वास्तविक प्रतीकों के माध्यम से सुसमाचार द्वारा दासता की जंजीरों का तोड़ा जाना प्रदर्शित किया गया है। अब यह बुरे कामों और भयानक अत्याचारों का नहीं, वरन परमेश्वर के प्रस्तुत अनुग्रह का स्थान होगा।

कैथेड्रल निर्माता दिखाना चाहते थे कि किस प्रकार क्रूस पर यीशु की मृत्यु पाप से छुटकारा प्रदान करती है-जिसे प्रेरित पौलुस ने इफिसुस की कलीसिया को अपनी पत्री में व्यक्त किया था:"हम को उस में...."(इफिसियों 1:7)। यहां छुटकारा शब्द, पुराने नियम के बाज़ार के भाव को इंगित करता है, किसी व्यक्ति या वस्तु को वापस खरीद लेने द्वारा। यीशु मनुष्य को पाप की दासता और बुरे काम करने के जीवन से वापस खरीद लेते हैं।

मसीह में अपने छुटकारे के विचार से वह खुशी से फूले नहीं समाते(पद 3-14)। परत-दर-परत गुणगान करते हुए वह, यीशु की मृत्यु द्वारा हमारे लिए किए गए परमेश्वर के अनुग्रह के उस कार्य का बखान करते हैं, जो हमें पापों के बंधन से छुड़ा लेता है। अब हमें पाप के दास होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हम परमेश्वर और उसकी महिमा के लिए जीवित रहने के लिए स्वतंत्र हैं।

उतावले ना बनो

"उतावलेपन को कठोरता पूर्वक निकाल डालो" दो दोस्तों द्वारा बुद्धिमान डालेस विलर्ड के इस कथन के दोहराए जाने पर मैं समझ गया कि मुझे इसके बारे में सोचना चाहिए। मैं अपना समय और ऊर्जा कहाँ बर्बाद कर रहा था? मार्गदर्शन और सहायता के लिए परमेश्वर की ओर देखने की बजाय मैं उतावला होकर बेसुध चल रहा था। आगे चलकर मैंने परमेश्वर और उनकी बुद्धिमत्ता की ओर रुख कियाI अपने तरीकों पर चलने के बजाय परमेश्वर पर विश्वास करने की बात को ध्यान में रखाI

बेतहाशा दौड़ना उसका विपरीत होता है जिसे भविष्यवक्ता यशायाह "पूर्ण शांति" कहते हैं। यह वरदान परमेश्वर उन्हे देते हैं जिनके मन उसमे स्थिर हैं क्योंकि वह उनपर भरोसा करते हैं। और वह सदा विश्वासयोग्य हैं आज, कल, और हमेशा, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान हैं (पद 4)। धीरज धर कर परमेश्वर पर विश्वास करना उतावलेपन के जीवन का इलाज है।

हमारे बारे में क्या?  क्या हम जानते हैं कि हम उतावलापन या जल्दबाजी कर रहे हैं?  शायद हमें शांति भी अनुभव होती हो। या शायद हम इन दोनों चरम सीमाओं के बीच में कहीं हों। हम जहां भी हों, मैं आज प्रार्थना करती हूं कि हम अपने उतावलेपन को छोड़कर परमेश्वर पर भरोसा करें जो हमें कभी निराश नही करते और हमें अपनी शांति देते हैंI

राजा का ताज

मेज पर रखी फ़ोम डिस्क में हम सब ने टूथपिक्स डाले दिए। इस प्रकार ईस्टर के प्रथम सप्ताह में हमने कांटो का ताज बनाया। हर टूथपिक किसी ऐसी बात का प्रतीक था जो हमने की थी और जिसके लिए हम शर्मिंदा थे। जिसके लिए यीशु ने दाम चुकाया है। हर रात यह अभ्यास हमें याद दिलाता था कि हम अपराधी हैं और हमें एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है जिसने क्रूस पर अपनी मृत्यु के माध्यम से हमें मुक्त कर दिया है।

कांटों का ताज जिसे यीशु को पहनाया गया था, वह उन्हें क्रूसित करने से पहले रोमी सैनिकों के क्रूर खेल का एक हिस्सा था। उन्हें शाही पौशाक पहनाकर राजदण्ड के रूप में सरकण्डा दिया गया जिससे वे उसे मारने के लगे। उसे “यहूदियों के राजा” कहकर ठट्ठा उड़ाया (मत्ती 27:29)। इस बात से अनभिज्ञ कि इसे हजारों वर्ष बाद भी याद किया जाएगा। वह कोई साधारण राजा नहीं परन्तु राजाओं के राजा थे जिनकी मृत्यु और पुनरुत्थान ने हमें अनंत जीवन दिया है।

ईस्टर की सुबह, हमने टूथपिक्स को फूलों से’ बदलकर क्षमा और नए जीवन के उपहार का पर्व मनाया। इस विश्वास से हमने अद्भुत आनन्द का अनुभव किया `कि परमेश्वर ने हमारे पापों को मिटा दिया है और हमें मुक्ति तथा उनमें अनन्त जीवन दे दिया है!

प्रेम का बरतन

वर्षों पहले फिजिक्स के एक शिक्षक ने हमसे बिना मुड़े कक्षा की पीछे दीवार का रंग बताने को कहा? कोई बता नहीं पाया, क्योंकि किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया था। कभी-कभी हम “बातों” को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि हम हर बात याद नहीं रख सकते। और कई बार हम उस चीज़ को नहीं देख पाते जो वहां सदा से थी।

यीशु का उनके चेलों के पैर धोने का वृतांत मैंने कई बार पढ़ा है। जिसमें हमारा उद्धारकर्ता और राजा अपने चेलों के पैर धोने के लिए झुकता है। उन दिनों इस काम को इतना तुच्छ समझा जाता था कि दासों से भी यह काम नहीं लिया जाता था। हाल ही में यह वृतांत एक बार फिर पढ़ने पर मैंने उस पर गौर किया जिसपर आज तक मेरा ध्यान नहीं गया था कि यीशु ने, जो मनुष्य और परमेश्वर दोनों थे, यहूदा के पैर धोए। यह जानते हुए कि वह उन्हें धोखा देगा। जैसा हम यूहन्ना 13:11 में देखते हैं। तो भी यीशु ने स्वयं को विनम्र किया और यहूदा के पैर धोए।

पानी के बर्तन से प्रेम छलका-जिसे उन्होंने उन्हें धोखा देने वाले से भी बाँटा। हमें भी उस विनम्रता का वरदान मिले ताकि यीशु के प्रेम को हम अपने मित्रों और किसी शत्रु से भी बाँट सकें।

भय से छुटकारा

हमारे शरीर भय और डर की भावनाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं। श्वास भरते समय दिल की धडकन तेज़ होना और पेट में मरोड़ पड़ना,  ये सब हमारे चिंतित होने का संकेत देते हैं। हमारी शारीरिक प्रकृति हमें संकट को अनदेखा नहीं करने देती।

यीशु के पांच हजार से भी अधिक लोगों को खिलाने के बाद प्रभु ने उन्हें अपने आगे बैतसैदा भेज दिया था जिससे प्रार्थना करने के लिए उन्हें एकांत मिल सके। रात को चेले हवा के विरुद्ध नाव खेत रहे थे जब उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है और चिल्ला उठे...। (मरकुस 6:49–50)। परंतु यीशु ने कहा मत डरो और ढाढ़स बान्धो। जैसे ही यीशु नाव पर आए,  हवा थम गई और नाव घाट पर लग गई। मेरा मानना है कि उनके डर की भावनाएं शांत हो गईं थी क्योंकि उन्होंने उनकी शांति को धारण कर लिया था।

चिंता के कारण जब हमें घुटन हो तो हम यीशु के सामर्थ में आश्वस्त हो सकते हैं। चाहे वे हमारी लहरों को शांत करें या उनका सामना करने का हमें सामर्थ दें, वे हमें शांति का ऐसा वरदान देंगे जो “समझ से परे है” (फिल्लिपियों 4: 7)। जैसे वे हमें भयमुक्त करते हैं हमारी आत्मा और शरीर विश्राम की स्थिति में वापस लौट सकते हैं।

बात का अंतिम शब्द

फिलोसोफी की कक्षा के दौरान प्रोफेसर के विचारों के बारे किसी छात्र ने भड़काऊ टिप्णियाँ कीं। अन्य छात्र हैरान थे कि, शिक्षक ने उसका धन्यवाद किया और अगली टिपणी पर बढ़ गए।  पूछने पर कि उन्होंने उस छात्र को जवाब क्यों नहीं दिया वे कहने लगे, "मैं अन्त अपनी बात से ना करने के अनुशासन का अभ्यास कर रहा हूँ।"

यह शिक्षक परमेश्वर को प्रेम और आदर करते थे, और प्रेम दिखा कर वह विनम्र भावना का श्रेष्ठ उदाहरण बन गए। मुझे एक अन्य शिक्षक की याद आगई-सभोपदेशक की पुस्तक के लेखक। जिन्होंने कहा कि जब हम परमेश्वर के भवन में जाएं तब हमें सावधानी बरतनी चाहिए, हमें बातें करने और अपने मन में उतावली न करके "सुनने के लिए समीप जाना चाहिए"। ऐसा करके हम स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर प्रभु हैं और हम उनकी रचना हैं। (सभोपदेशक 5:1-2)

आप परमेश्वर के भवन में कैसे आते हैं? यदि आपको कुछ सुधार की आवश्यकता है, तो क्यों ना कुछ समय प्रभु की महिमा और महानता पर विचार करने में बिताएं? उनके अंतहीन विवेक, सामर्थ, और उपस्थिति पर विचार करके, हमारे प्रति उनके उमड़ते प्रेम से हम आदर भाव का अनुभव कर सकते हैं। विनम्रता के इस भाव से, हमें भी अपनी बात से अन्त नहीं करना चाहिए।

प्रार्थना का सामर्थ

जब मैं अपने किसी करीबी मित्र के हित को लेकर चिंतित थी, तब पुराने नियम में शमूएल की कहानी से मुझे प्रोत्साहन मिला। मैंने पढ़ा कि जब परमेश्वर के लोग परेशान थे तो शमूएल ने कैसे उनके लिए यहोवा की दोहाई दी थी, मैंने भी अपने मित्र के लिए प्रार्थना करने का संकल्प किया।

इस्राएली लोग पलिश्तियों का सामना कर रहे थे, जो पहले उन्हें हरा चुके थे जब लोगों ने उन पर भरोसा नहीं किया था (1 शमूएल 4)। अपने पापों का पश्चाताप कर लेने के बाद, उन्होंने सुना कि पलिश्ती हमला करने वाले थे। अब उन्होंने शमूएल से उन लोगों के लिए प्रार्थना करते रहने को कहा (7:8), उत्तर में परमेश्वर ने उनके दुश्मन को भ्रम में डाल दिया(10)। यद्यपि पलिश्ती इस्राएलियों की तुलना में अधिक शक्तिशाली थे, परन्तु यहोवा उन सबमें सबसे बलवान थे।

अपने प्यारों को चुनौतियों का सामना करते देख हमें पीड़ा होती है, और डरते हैं कि स्थिति नहीं बदलेगी, या प्रभु कार्य नहीं करेंगे। लेकिन हमें प्रार्थना के सामर्थ को कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि हमारा प्रेमी परमेश्वर हमारी प्रार्थना सुनता है। हमारे पिता के रूप में उनकी इच्छा है कि हम उनका प्रेम अपनाएं और उनकी सच्चाई पर भरोसा करें।

क्या किसी के लिए आप आज प्रार्थना कर सकते हैं?

परमेश्वर हमारे साथ

“मसीह हमारे साथ,  मसीह हमारे आगे, मसीह हमारे पीछे, मसीह हमारे अन्दर, मसीह हमारे नीचे, मसीह हमारे ऊपर, मसीह हमारे दाहिने, मसीह हमारे बाएँ ... l” यीशु के जन्म के विषय मत्ती का वर्णन पढ़ते समय मुझे, पांचवी शताब्दी के केल्ट मसीही (यूरोपीय लोगों का एक सदस्य जो किसी समय ब्रिटेन और स्पेन और गौल में रहते थे) संत पैट्रिक द्वारा लिखे हुए इस गीत के शब्द याद आते हैं l मैं महसूस करता हूँ जैसे कोई मुझे गले लगा रहा है और याद दिला रहा है कि मैं कभी भी अकेला नहीं हूँ l

मत्ती का वर्णन हमें बताता है कि परमेश्वर का अपने लोगों के बीच निवास करना ही क्रिसमस का केंद्र है l यशायाह का एक बालक के विषय नबूवत का सन्दर्भ देते हुए जो इम्मानुएल, अर्थात् “परमेश्वर हमारे साथ” कहलाएगा(यशायाह 7:14), मत्ती नबूवत की अंतिम पूर्णता बताता है अर्थात् यीशु, जो पवित्र आत्मा की सामर्थ से जन्म लेकर परमेश्वर हमारे साथ निवास किया l इस सच्चाई की विशेषता इस बात में है कि मत्ती इसी से अपने सुसमाचार का   आरंभ और अंत करते हुए यीशु द्वारा अपने शिष्यों को कहे शब्दों से समाप्त करता है : “और देखो, मैं जगत के अंत तक सदैव तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) l

संत पैट्रिक का गीत मुझे याद दिलाता है कि मसीह हमेशा अपनी आत्मा के द्वारा हममें बसते हुए हमारे साथ है l जब मैं घबराता या भयभीत होता हूँ, मैं उसकी प्रतिज्ञाओं को थामें रह सकता हूँ क्यों वह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा l जब मैं बेखबर सो रहा होता हूँ, मैं उसकी शांति पर भरोसा कर सकता हूँ l जब मैं उत्सव मनाता हूँ और आनंदित होता हूँ, मैं अपने जीवन में उसके अनुग्रहकारी कार्य के लिए धन्यवाद दे सकता हूँ l

यीशु, इम्मानुएल – परमेश्वर हमारे साथ l