प्रेम का बरतन
वर्षों पहले फिजिक्स के एक शिक्षक ने हमसे बिना मुड़े कक्षा की पीछे दीवार का रंग बताने को कहा? कोई बता नहीं पाया, क्योंकि किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया था। कभी-कभी हम “बातों” को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि हम हर बात याद नहीं रख सकते। और कई बार हम उस चीज़ को नहीं देख पाते जो वहां सदा से थी।
यीशु का उनके चेलों के पैर धोने का वृतांत मैंने कई बार पढ़ा है। जिसमें हमारा उद्धारकर्ता और राजा अपने चेलों के पैर धोने के लिए झुकता है। उन दिनों इस काम को इतना तुच्छ समझा जाता था कि दासों से भी यह काम नहीं लिया जाता था। हाल ही में यह वृतांत एक बार फिर पढ़ने पर मैंने उस पर गौर किया जिसपर आज तक मेरा ध्यान नहीं गया था कि यीशु ने, जो मनुष्य और परमेश्वर दोनों थे, यहूदा के पैर धोए। यह जानते हुए कि वह उन्हें धोखा देगा। जैसा हम यूहन्ना 13:11 में देखते हैं। तो भी यीशु ने स्वयं को विनम्र किया और यहूदा के पैर धोए।
पानी के बर्तन से प्रेम छलका-जिसे उन्होंने उन्हें धोखा देने वाले से भी बाँटा। हमें भी उस विनम्रता का वरदान मिले ताकि यीशु के प्रेम को हम अपने मित्रों और किसी शत्रु से भी बाँट सकें।
भय से छुटकारा
हमारे शरीर भय और डर की भावनाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं। श्वास भरते समय दिल की धडकन तेज़ होना और पेट में मरोड़ पड़ना, ये सब हमारे चिंतित होने का संकेत देते हैं। हमारी शारीरिक प्रकृति हमें संकट को अनदेखा नहीं करने देती।
यीशु के पांच हजार से भी अधिक लोगों को खिलाने के बाद प्रभु ने उन्हें अपने आगे बैतसैदा भेज दिया था जिससे प्रार्थना करने के लिए उन्हें एकांत मिल सके। रात को चेले हवा के विरुद्ध नाव खेत रहे थे जब उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है और चिल्ला उठे...। (मरकुस 6:49–50)। परंतु यीशु ने कहा मत डरो और ढाढ़स बान्धो। जैसे ही यीशु नाव पर आए, हवा थम गई और नाव घाट पर लग गई। मेरा मानना है कि उनके डर की भावनाएं शांत हो गईं थी क्योंकि उन्होंने उनकी शांति को धारण कर लिया था।
चिंता के कारण जब हमें घुटन हो तो हम यीशु के सामर्थ में आश्वस्त हो सकते हैं। चाहे वे हमारी लहरों को शांत करें या उनका सामना करने का हमें सामर्थ दें, वे हमें शांति का ऐसा वरदान देंगे जो “समझ से परे है” (फिल्लिपियों 4: 7)। जैसे वे हमें भयमुक्त करते हैं हमारी आत्मा और शरीर विश्राम की स्थिति में वापस लौट सकते हैं।
बात का अंतिम शब्द
फिलोसोफी की कक्षा के दौरान प्रोफेसर के विचारों के बारे किसी छात्र ने भड़काऊ टिप्णियाँ कीं। अन्य छात्र हैरान थे कि, शिक्षक ने उसका धन्यवाद किया और अगली टिपणी पर बढ़ गए। पूछने पर कि उन्होंने उस छात्र को जवाब क्यों नहीं दिया वे कहने लगे, "मैं अन्त अपनी बात से ना करने के अनुशासन का अभ्यास कर रहा हूँ।"
यह शिक्षक परमेश्वर को प्रेम और आदर करते थे, और प्रेम दिखा कर वह विनम्र भावना का श्रेष्ठ उदाहरण बन गए। मुझे एक अन्य शिक्षक की याद आगई-सभोपदेशक की पुस्तक के लेखक। जिन्होंने कहा कि जब हम परमेश्वर के भवन में जाएं तब हमें सावधानी बरतनी चाहिए, हमें बातें करने और अपने मन में उतावली न करके "सुनने के लिए समीप जाना चाहिए"। ऐसा करके हम स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर प्रभु हैं और हम उनकी रचना हैं। (सभोपदेशक 5:1-2)
आप परमेश्वर के भवन में कैसे आते हैं? यदि आपको कुछ सुधार की आवश्यकता है, तो क्यों ना कुछ समय प्रभु की महिमा और महानता पर विचार करने में बिताएं? उनके अंतहीन विवेक, सामर्थ, और उपस्थिति पर विचार करके, हमारे प्रति उनके उमड़ते प्रेम से हम आदर भाव का अनुभव कर सकते हैं। विनम्रता के इस भाव से, हमें भी अपनी बात से अन्त नहीं करना चाहिए।
प्रार्थना का सामर्थ
जब मैं अपने किसी करीबी मित्र के हित को लेकर चिंतित थी, तब पुराने नियम में शमूएल की कहानी से मुझे प्रोत्साहन मिला। मैंने पढ़ा कि जब परमेश्वर के लोग परेशान थे तो शमूएल ने कैसे उनके लिए यहोवा की दोहाई दी थी, मैंने भी अपने मित्र के लिए प्रार्थना करने का संकल्प किया।
इस्राएली लोग पलिश्तियों का सामना कर रहे थे, जो पहले उन्हें हरा चुके थे जब लोगों ने उन पर भरोसा नहीं किया था (1 शमूएल 4)। अपने पापों का पश्चाताप कर लेने के बाद, उन्होंने सुना कि पलिश्ती हमला करने वाले थे। अब उन्होंने शमूएल से उन लोगों के लिए प्रार्थना करते रहने को कहा (7:8), उत्तर में परमेश्वर ने उनके दुश्मन को भ्रम में डाल दिया(10)। यद्यपि पलिश्ती इस्राएलियों की तुलना में अधिक शक्तिशाली थे, परन्तु यहोवा उन सबमें सबसे बलवान थे।
अपने प्यारों को चुनौतियों का सामना करते देख हमें पीड़ा होती है, और डरते हैं कि स्थिति नहीं बदलेगी, या प्रभु कार्य नहीं करेंगे। लेकिन हमें प्रार्थना के सामर्थ को कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि हमारा प्रेमी परमेश्वर हमारी प्रार्थना सुनता है। हमारे पिता के रूप में उनकी इच्छा है कि हम उनका प्रेम अपनाएं और उनकी सच्चाई पर भरोसा करें।
क्या किसी के लिए आप आज प्रार्थना कर सकते हैं?
परमेश्वर हमारे साथ
“मसीह हमारे साथ, मसीह हमारे आगे, मसीह हमारे पीछे, मसीह हमारे अन्दर, मसीह हमारे नीचे, मसीह हमारे ऊपर, मसीह हमारे दाहिने, मसीह हमारे बाएँ ... l” यीशु के जन्म के विषय मत्ती का वर्णन पढ़ते समय मुझे, पांचवी शताब्दी के केल्ट मसीही (यूरोपीय लोगों का एक सदस्य जो किसी समय ब्रिटेन और स्पेन और गौल में रहते थे) संत पैट्रिक द्वारा लिखे हुए इस गीत के शब्द याद आते हैं l मैं महसूस करता हूँ जैसे कोई मुझे गले लगा रहा है और याद दिला रहा है कि मैं कभी भी अकेला नहीं हूँ l
मत्ती का वर्णन हमें बताता है कि परमेश्वर का अपने लोगों के बीच निवास करना ही क्रिसमस का केंद्र है l यशायाह का एक बालक के विषय नबूवत का सन्दर्भ देते हुए जो इम्मानुएल, अर्थात् “परमेश्वर हमारे साथ” कहलाएगा(यशायाह 7:14), मत्ती नबूवत की अंतिम पूर्णता बताता है अर्थात् यीशु, जो पवित्र आत्मा की सामर्थ से जन्म लेकर परमेश्वर हमारे साथ निवास किया l इस सच्चाई की विशेषता इस बात में है कि मत्ती इसी से अपने सुसमाचार का आरंभ और अंत करते हुए यीशु द्वारा अपने शिष्यों को कहे शब्दों से समाप्त करता है : “और देखो, मैं जगत के अंत तक सदैव तुम्हारे संग हूँ” (मत्ती 28:20) l
संत पैट्रिक का गीत मुझे याद दिलाता है कि मसीह हमेशा अपनी आत्मा के द्वारा हममें बसते हुए हमारे साथ है l जब मैं घबराता या भयभीत होता हूँ, मैं उसकी प्रतिज्ञाओं को थामें रह सकता हूँ क्यों वह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा l जब मैं बेखबर सो रहा होता हूँ, मैं उसकी शांति पर भरोसा कर सकता हूँ l जब मैं उत्सव मनाता हूँ और आनंदित होता हूँ, मैं अपने जीवन में उसके अनुग्रहकारी कार्य के लिए धन्यवाद दे सकता हूँ l
यीशु, इम्मानुएल – परमेश्वर हमारे साथ l
इंतज़ार
“क्रिसमस में और कितना समय बाकी है?” जब मेरे बच्चे छोटे थे, वे बार-बार यह प्रश्न पूछते थे l वे क्रिसमस का दिन गिनने के लिए यीशु मसीह के जन्म से सम्बंधित दैनिक कैलेंडर का उपयोग करते थे l फिर भी इंतज़ार करना उनके लिए कष्टदायक होता था l
हम सरलता से समझ सकते हैं कि एक बच्चे के लिए इंतज़ार करना एक संघर्ष हो सकता है, किन्तु हम परमेश्वर के सभी लोगों के लिए इंतज़ार करने की चुनौती को कम आँक सकते हैं l उदाहरण के लिए, उन लोगों के विषय सोचें जिन्होंने मीका का सन्देश सुना था l मीका ने प्रतिज्ञा दी थी कि बैतलहम में से एक पुरुष निकलेगा जो “इस्राएलियों पर प्रभुता करनेवाला होगा” (5:2) जो “खड़ा होकर यहोवा की दी हुयी शक्ति से, ... उनकी चरवाही करेगा” (पद.4) l इस नबूवत की आरंभिक पूर्ति लोगों के 700 वर्षों तक इंतज़ार करने के बाद बैतलहम में यीशु के जन्म के रूप में हुयी (मत्ती 2:1) l किन्तु कुछ एक नबुवतों का पूरा होना अभी भी बाकी है l हम यीशु के वापस आने का इंतज़ार कर रहे हैं, जब परमेश्वर के सब लोग “सुरंक्षित रहेंगे’ और “वह पृथ्वी की छोर तक महान् ठहरेगा” (मीका 5:4) l उस समय हम अति आनंदित होंगे, क्योंकि हमारा इंतज़ार समाप्त हो जाएगा l
हममें से ज़यादातर लोगों के लिए इंतज़ार कठिन होता है, किन्तु हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं कि परमेश्वर हमारे साथ रहने की अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरी करेगा (मत्ती 28:20) l इसलिए कि जब यीशु ने छोटे बैतलहम में जन्म लिया, वह जीवन की संपूर्ण परिपूर्णता में अर्थात् दण्ड रहित जीवन में प्रवेश किया (देखें यूहन्ना 10:10) l हम वर्तमान में हमारे साथ उसकी उपस्थिति का आनंद लेते हुए उत्सुकता से उसके वापस आने का इंतज़ार करते हैं l
हमारा सामर्थी परमेश्वर
एक दिन समुद्र के निकट, मैंने कुछ लोगों को विशेष प्रकार के पटरे पर खड़े होकर समुद्र की लहरों से खेलते हुए देखा जो हवा के दबाव से पानी पर तैर रहे थे l एक से मैंने उसके अनुभव के विषय पूछा कि वह अनुभव कठिन तो नहीं था जैसा दिखाई देता था l उसने कहा, “नहीं, सामान्य तौर पर पटरे पर फिसलना सरल है क्योंकि आप हवा की शक्ति को नियंत्रित कर लेते हैं l”
बाद में समुद्र तट के निकट टहलते समय, पटरे को चलाने के लिए ही नहीं किन्तु मेरे बालों को मेरे चेहरे पर उड़ाने की शक्ति के विषय सोचकर, मैंने हमारे सृष्टिकर्ता पर विचार किया l जैसे हम पुराने नियम के आमोस की पुस्तक में देखते हैं, वह जो “पहाड़ों का बनानेवाला” है “भोर को अन्धकार” में बदल देता है (पद.13) l
इस नबी के द्वारा, प्रभु ने अपने लोगों को वापस अपने पास लौटाकर उन्हें अपनी सामर्थ्य के विषय याद दिलाया l इसलिए कि उन्होंने उसकी आज्ञाएँ नहीं मानी थी, उसने कहा कि वह उन पर खुद को प्रगट करेगा (पद.13) l यद्यपि हम यहाँ पर उसके न्याय को देखते हैं, हम बाइबिल में अन्यत्र उसके बलिदानी प्रेम को भी देखते हैं जब उसने हमें बचाने के लिए अपने पुत्र को भेजा (देखें यूहन्ना 3:16) l
दक्षिण इंग्लैंड में इस दिन हवा की शक्ति ने मुझे प्रभु की कोरी विशालता याद दिलायी l जब आप हवा को महसूस करें, क्यों न रुककर सर्वसामर्थी परमेश्वर पर विचार करें?
एक अच्छा अंत
बत्तियाँ बंद होने के बाद जैसे ही हमने अपोलो 13, देखने की तैयारी की, मेरी सहेली ने सांस रोककर कहा, “शर्मनाक, वे सब मर गए l” मैं भय के साथ 1970 के अन्तरिक्ष यान के विषय फिल्म देख रही थी, और त्रासदी के घटित होने का इंतज़ार कर रही थी, और अन्त के निकट मुझे महसूस हुआ कि मुझे धोखा मिला हो l इस सत्य कहानी का अंत मैं नहीं जानती थी या मुझे याद नहीं था-कि यद्यपि सभी अन्तरिक्ष यात्री कठिनाई सहे थे, पर वे जीवित घर पहुंचे थे l
मसीह में, हम कहानी का अंत जान सकते हैं-कि हम भी जीवित घर पहुंचेंगे l इससे मेरा मतलब है कि हम अपने स्वर्गिक पिता के साथ सर्वदा के लिए रहेंगे, जैसा हम प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में देखते हैं l प्रभु “[नया] आकाश और नयी पृथ्वी” बनाएगा जैसे कि वह सब कुछ नया कर देता है (21:1, 5) l इस नए नगर में, प्रभु परमेश्वर अपने लोगों को बिना डर और बिना अन्धकार के अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित करेगा l हम कहानी का अंत जानकार आशा से भर जाते हैं l
इससे क्या अंतर होता है? यह अति दुःख के समय को बदल सकता है, जैसे जब लोग अपने प्रिय को खो देते हैं अथवा स्वयं की मृत्यु l यद्यपि हम मृत्यु के विचार से घबराते हैं, फिर भी अनंत की प्रतिज्ञा के आनंद को गले लगा सकते हैं l हम उस नगर का इंतज़ार कर रहे हैं जहाँ श्राप न होगा, जहाँ हम सर्वदा परमेश्वर के उजियाले में निवास करेंगे (22:5) l
परमेश्वर में जड़वत
मेरे मित्र के अपने नए घर में जाने के बाद, उन्होंने अपने बाड़े के निकट एक विशेष फूल का पौधा लगाकर पांच वर्ष का पौधा हो जाने के बाद खुशबूदार फूल की इच्छा की l उन्होंने दो दशकों तक उस पौधे का आनंद लिया, और सावधानी पूर्वक उसको छांटते और उसकी देखभाल करते रहे l किन्तु पड़ोसियों द्वारा बाड़े की दूसरी ओर कुछ कीटनाशक डालने के कारण अचानक वह पौधा मर गया l विष पौधे के जड़ों तक चला गया और पौधा मर गया-या मेरे मित्रों की सोच यही थी l अचानक, अगले वर्ष भूमि में से कुछ कोपलें निकलीं l
यिर्मयाह नबी द्वारा भरोसा करनेवाले परमेश्वर के लोग अथवा उसके मार्गों को त्यागने वालों के विषय बताते समय हम फलते-फूलते और बर्बाद होते पेड़ों की तस्वीर देखते हैं l परमेश्वर का अनुसरण करनेवाले अपनी जड़े जल के निकट फैलाएंगे और फलदायी होंगे (यिर्मयाह 17:8), किन्तु अपनी इच्छा पर चलनेवाले मरुभूमि में अधमरे पेड़ के समान होंगे (पद.5-6) l नबी की चाहत है कि परमेश्वर के लोग सच और जीवित परमेश्वर पर निर्भर होंगे, कि वे “उस वृक्ष के समान [होंगे] जो नदी के किनारे लगा” है (पद.8) l
हम जानते हैं कि “पिता किसान है” (यूहन्ना 15:1) और कि हम उसमें भरोसा करके प्रतीति करते हैं (यिर17:7) l हम टिकनेवाले फल उत्पन्न करते हुए सम्पूर्ण हृदय से उसका अनुसरण करें l