कानूनी रूप से उसका
शीबा ने खुशी के कारण रोयी जब उसने और उसके पति ने अपने बच्चे के लिए जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट प्राप्त किया, जिससे गोद लेना कानूनी रूप से बाध्यकारी बन गया l अब मीना हमेशा उनकी बेटी होगी, हमेशा के लिए उनके परिवार का हिस्सा l जब शीबा ने कानूनी प्रक्रिया पर विचार किया, उसने “सच्चे आदान-प्रदान” के बारे में भी सोचा जो तब होता है जब हम यीशु के परिवार का हिस्सा बनते हैं : “अब हम पाप और टूटेपन के अपने जन्मसिद्ध अधिकार से दबाकर रखे गए हैं l” इसके बजाय, उसने जारी रखा, जब हम उसके बच्चों के रूप में अपनाए जाते हैं, तो हम कानूनी रूप से परमेश्वर के राज्य की पूर्णता में प्रवेश करते हैं l
प्रेरित पौलुस के दिनों में, यदि एक रोमी परिवार एक पुत्र को अपनाता था, तो उसकी कानूनी स्थिति पूरी तरह बदल जाती थी l उसके पुराने जीवन प्रत्येक ऋण रद्द कर दिया जाता था और वह अपने नए परिवार के सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों को हासिल कर लेता था l पौलुस चाहता था कि यीशु में रोम के विश्वासी समझें कि यह नया दर्जा उनपर भी लागू होता था l अब वे पाप और दण्डाज्ञा के लिए बाध्य नहीं थे, लेकिन अब वे “आत्मा के अनुसार” चलते थे (रोमियों 8:4) l और जिनकी अगुवाई आत्मा करता है वे परमेश्वर की संतान के रूप में गोद लिए जाते हैं (पद. 14-15) l उनका कानूनी दर्जा बदल गया जब वे स्वर्ग के नागरिक बन गए l
यदि हमें उद्धार का उपहार मिला है, तो हम भी परमेश्वर के बच्चे हैं, उनके राज्य के उत्तराधिकारी हैं और मसीह के साथ संयुक्त l हमारे ऋण यीशु के बलिदान के उपहार द्वारा रद्द कर दिए गए हैं l हमें अब डर या दण्डाज्ञा में जीने की जरूरत नहीं है l
हमारे हृद्यों में निवास
कभी-कभी बच्चों के शब्द हमें ईश्वर के सत्य की गहरी समझ में डाल सकते हैं l एक शाम जब मेरी बेटी छोटी थी, मैंने उसे मसीही विश्वास के महान रहस्यों में से एक के बारे में बताया─कि परमेश्वर अपने पुत्र और आत्मा के द्वारा अपने बच्चों में निवास करता है l जैसे ही मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया, मैंने कहा कि यीशु उसके साथ और उसके अन्दर है l “वह मेरे पेट में हैं?” उसने पुछा l “ठीक है, तुमने उसे निगला नहीं है,” मैंने उत्तर दिया l “लेकिन वह तुम्हारे साथ पूरी तरह से है l”
मेरी बेटी का यीशु का “उसके पेट में” होने का शाब्दिक अनुवाद मुझे ठहरकर विचार करने को विवश किया कि कैसे जब मैंने यीशु को अपना उद्धारकर्ता बनने के लिए कहा, तो वह आया और मेरे भीतर निवास करने लगा l
प्रेरित पौलुस ने इस रहस्य का उल्लेख किया जब उसने प्रार्थना की कि पवित्र आत्मा इफिसुस के विश्वासियों को मजबूत करेगा ताकि “विश्वास के द्वारा मसीह [उनके] हृदय में बसे” (इफिसियों 3:17) l यीशु के भीतर रहने के साथ, वे समझ सकते थे कि वह उनसे कितना प्यार करता था l इस प्रेम से परिपूर्ण, वे अपने विश्वास में परिपक्व होंगे और प्रेम में सच बोलते हुए दूसरों को दीनता और नम्रता से प्यार करेंगे (4:2,25) l
यीशु का अपने अनुयायियों के अंदर रहने का मतलब है कि उसका प्यार उन लोगों को कभी नहीं छोड़ता, जिन्होंने उसको अपने जीवन में निमंत्रित किया है l उसका प्रेम जो ज्ञान से परे है (3:19) हमें उसमें जड़वत करते हुए, समझने में मदद करता है कि वह हमसे कितना अधिक प्रेम करता है l
बच्चों के लिए लिखे गए शब्द इसे सबसे उत्तम तरीके से व्यक्त कर सकता है : “हाँ, यीशु मुझे प्यार करता है!”
करुणा का फैलाव
मनश्शे, वह आदमी जिसने उसके पति और उसके कुछ बच्चों को रुवान्डा नरसंहार में मार डाला था, को माफ करने के तरीके पर विचार करते हुए, बेआटा ने कहा, “मेरी क्षमा यीशु के द्वारा किए गए कार्यों पर आधारित है l उसने हर समय हर बुरे कार्य के लिए दंड सहा l उसका क्रूस वह स्थान है जहाँ हम विजय पाते हैं─एकमात्र स्थान!” मनश्शे ने बेआटा को एक से अधिक बार जेल से लिखा था, उससे─और ईश्वर से─क्षमा के लिए जब वह नियमित दुस्वप्नों द्वारा ग्रस्त होने का वर्णन किया l पहले तो वह कोई दया न कर सकी, यह कहते हुए कि वह उससे नफरत करती है क्योंकि उसने उसके परिवार की हत्या की थी l लेकिन फिर “यीशु उसके विचारों में दखल दिया,” और परमेश्वर की मदद से, कोई दो साल बाद, उसने उसे माफ कर दिया l
इसमें, बेआटा ने यीशु का अपने शिष्यों को दिए गए निर्देश का अनुसरण किया कि जो पश्चाताप करते हैं उन्हें क्षमा करें l उसने कहा कि यद्यपि वह “दिन भर में . . . सात बार तेरा अपराध करे और सातों बार तेरे पास फिर आकर कहे, ‘मैं पछताता हूँ,’ तो उसे क्षमा कर” (लूका 17:4) l लेकिन माफ करना बेहद मुश्किल हो सकता है, जैसा कि हम शिष्यों की प्रतिक्रिया से देखते हैं : “हमारा विश्वास बढ़ा” (पद.5) l
माफ करने में असमर्थता को लेकर प्रार्थना में कुश्ती करते हुए बेआटा का विश्वास बढ़ गया l यदि, उसकी तरह, हम क्षमा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो हम परमेश्वर से उसकी पवित्र आत्मा के द्वारा पूछ सकते हैं कि वह हमें ऐसा करने में मदद करे l जैसे-जैसे हमारा विश्वास बढ़ता है, वह हमें माफ करने में मदद करता है l
राजसी सत्ता का आतिथ्य
स्कॉटलैंड में एक नृत्यसभा के दौरान इंग्लैंड की रानी से मिलने के बाद, सिल्विया और उसके पति को एक सन्देश मिला कि राजपरिवार उनके साथ चाय पीने आना चाहता है l सिल्विया ने शाही मेहमानों की मेजबानी के विषय घबराहट महसूस करते हुए साफ़-सफाई और तैयारी शुरू कर दी l इससे पहले कि वे आएँ, वह मेज़ पर रखने के लिए कुछ फूलों को लाने बाहर गयी, उसका हृदय जोर से धड़क रहा था l फिर उसने महसूस किया कि परमेश्वर उसे स्मरण करा रहा था कि वह राजाओं का राजा है और वह प्रतिदिन उसके साथ है l तुरंत उसे शांति महसूस हुई और उसने सोचा, “आखिरकार, यह तो केवल रानी है!”
सिल्विया सही है l जैसा कि प्रेरित पौलुस ने उल्लेख किया है, परमेश्वर “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” है (1 तीमुथियुस 6:15) और जो लोग उसका अनुसरण करते हैं वे “परमेश्वर की संतान” हैं (गलतियों 3:26) l जब हम मसीह के होते हैं, तो हम अब्राहम के उत्तराधिकारी हैं (पद.29) l अब हम विभाजन से सिमित नहीं हैं─जैसे कि जाति, सामाजिक वर्ग, या लिंग─क्योंकि हम “सब मसीह यीशु में एक” हैं (पद.28) l हम राजा के बच्चे हैं l
हालाँकि सिल्विया और उसके पति ने रानी के साथ एक बढ़िया भोजन किया, मुझे कभी भी निकट भविष्य में उनका निमंत्रण मिलने का अनुमान नहीं है l लेकिन मुझे इस बात का स्मरण है कि सभी का सर्वोच्च राजा हर पल मेरे साथ है l और जो लोग यीशु पर पूरा विश्वास करते हैं (पद.27) वे यह जानते हुए कि वह परमेश्वर की संतान हैं एकता में रह सकते हैं l
इस सच्चाई को थामना हमारे आज के जीने के तरीके को कैसे आकार दे सकता है?
मधु से भी मीठा
अक्टूबर 1893 में शिकागो दिवस पर, शहर के सिनेमाघर बंद हो गए क्योंकि मालिकों को लगा कि सभी लोग विश्व मेले में भाग लेंगे l सात लाख से अधिक लोग गए, लेकिन ड्वाइट मूडी (1837-1899) शिकागो के दूसरे छोर पर प्रचार और शिक्षण से एक संगीत हॉल भरना चाहते थे l उनके दोस्त आर. ए. टोरी (1856-1928) को संदेह था कि मूडी उस दिन मेले की तरह एक भीड़ खींच सकते हैं l लेकिन परमेश्वर के अनुग्रह से, उन्होंने किया l जैसा कि टोरी ने बाद में निष्कर्ष निकाला, भीड़ आ गई क्योंकि मूडी को पता था “एक किताब जिसे यह संसार जानने को लालायित रहता है─बाइबल है l” टोरी चाहता था कि दूसरे लोग बाइबल से प्रेम करें जैसा कि मुडी करता था, समर्पण और जुनून के साथ इसे नियमित रूप से पढ़ना l
परमेश्वर ने अपनी आत्मा के द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में शिकागो में लोगों को अपनी ओर लौटाया, और वह आज भी बात करता है l हम परमेश्वर और उसके शास्त्रों के प्रति भजनकार के प्रेम को प्रतिध्वनित कर सकते हैं जैसे वह पुकारता है “तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं!” (भजन 119:103) l भजनकार के लिए, परमेश्वर के अनुग्रह और सच्चाई के संदेशों ने उसके मार्ग के लिए उजियाला, और उसके पाँव के लिए दीपक का काम किया (पद.105) l
आप उद्धारकर्ता और उसके संदेश के साथ प्यार में और अधिक कैसे बढ़ सकते हैं? जब हम पवित्रशास्त्र में अपने आप को डुबो देते हैं, तो परमेश्वर अपने प्रति हमारी भक्ति को बढ़ाएगा और हमारा मार्गदर्शन करेगा, और उन मार्गों पर जहाँ हम चलते हैं अपनी रौशनी चमकाएगा l
हर नई सुबह
मेरा भाई पॉल गंभीर मिर्गी(epilepsy) से जूझता हुआ बड़ा हुआ और जब वह अपनी किशोरावस्था में प्रवेश किया तो यह और भी बद्तर हो गया l रात का समय उसके और मेरे माता-पिता के लिए कष्टदायी बन गया, क्योंकि उसे एक बार में छह घंटे से अधिक समय तक लगातार दौरे का अनुभव होता था l डॉक्टरों को एक ऐसा उपचार नहीं मिल रहा था जो उसे दिन के कम से कम एक हिस्से के लिए जागरूक रखते हुए उसके लक्षणों को कम कर सकता था l मेरे माता-पिता प्रार्थना में पुकारे : “परमेश्वर, हे परमेश्वर, हमारी मदद कर!”
यद्यपि, उनकी भावनाएँ चकनाचूर हो गई थीं और उनके शरीर थक गए थे, पॉल और मेरे माता-पिता ने प्रत्येक नए दिन के लिए परमेश्वर से पर्याप्त सामर्थ्य प्राप्त की l इसके अलावा, मेरे माता-पिता को बाइबल के शब्दों में आराम मिला, जिसमें विलापगीत की किताब भी शामिल थी l यहाँ यिर्मयाह ने “नागदौने और – और विष” (3:19) को याद करते हुए बेबीलोनियों द्वारा यरूशलेम के विनाश पर अपना दुःख प्रकट किया l फिर भी यिर्मयाह ने आशा नहीं खोई l उसने परमेश्वर की दया को ध्यान में रखते हुए कहा कि उसकी दया “प्रति भोर . . . नई होती जाती है” (पद.23) l इसी तरह मेरे माता-पिता ने भी किया l
आप जिसका भी सामना कर रहे हैं, जाने कि परमेश्वर हर सुबह विश्वासयोग्य है l वह दिन-ब-दिन हमारी ताकत को नया करता है और हमें आशा देता है l और कभी-कभी, जैसे मेरे परिवार के साथ, वह राहत लाता है l कई वर्षों के बाद, एक नई दवा उपलब्ध हुई जिसने पॉल के लगातार रात के दौरे को रोक दिया, जिससे मेरे परिवार की नींद और भविष्य के लिए आशा की किरण जागी l
जब हमारी आत्माएँ हमारे भीतर दुखी हो जाती है (पद.20), तो हम परमेश्वर के वादों को ध्यान में रखें कि हर सुबह उसकी दया नई है l
हम ईश्वर नहीं हैं
पुस्तक मियर क्रिचियानिटी(Mere Christianity) में, सी.एस. लियुईस ने खुद से यह जानने के लिए कि क्या हम अहंकार महसूस करते हैं कुछ प्रश्न पूछने की सिफारिश की : “जब अन्य लोग मुझे कोई महत्त्व नहीं देते हैं, या मेरी अनदेखी करते हैं, . . . या सहायता करते हैं, इतराते हैं तो मैं इसको कितना नापसंद करता हूँ?” लियुईस ने अहंकार को “परम दुष्टता” के प्रतिनिधिरूप और घरों और राष्ट्रों में दुख के प्रमुख कारण के रूप में देखा l उन्होंने इसे “आत्मिक कैंसर” कहा जो प्रेम, संतोष और सामान्य ज्ञान की मूल संभावना को खा जाता है l
अहंकार युगों से एक समस्या रही है l परमेश्वर ने, नबी यहेजकेल के द्वारा, शक्तिशाली तटीय नगर सोर(Tyre) के अगुआ के अहंकार के विरुद्ध चेतावनी दी l उसने कहा कि राजा का अहंकार उसके पतन में बदल जाएगा : “तू जो अपना मन परमेश्वर-सा दिखाता है . . . मैं तुझ पर . . . परदेशियों से चढ़ाई कराऊँगा” (यहेजकेल 28:6-7) l तब वह जान जाएगा कि वह ईश्वर नहीं था, लेकिन नश्वर था (पद.9) l
अहंकार के विपरीत नम्रता है, जिसे लियुईस ने एक गुण के रूप में नामित किया है जिसे हम ईश्वर को जानने से प्राप्त करते हैं l लियुईस ने कहा कि जैसे-जैसे हम उसके संपर्क में आते हैं, हम “"ख़ुशी से विनम्र” बनते हैं, अपनी खुद की गरिमा के बारे में मूर्खतापूर्ण बकवास से छुटकारा पाने के लिए राहत महसूस करते हैं जो पहले हमें बेचैन और दुखी करता था l
जितना अधिक हम परमेश्वर की उपासना करते हैं, उतना ही अधिक हम उन्हें जानेंगे और अधिकाधिक अपने को नम्र कर सकते हैं l हम आनंद, नम्रता से प्रेम और सेवा करने वाले बन जाएँ l
सब कुछ समर्पित करना
दो लोगों को यीशु के लिए दूसरों की सेवा करने के लिए याद किया जाता जिन्होंने कला में आजीविका छोड़कर उस स्थान को जाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया जिसे वे मानते थे कि परमेश्वर ने उनको बुलाया है l जेम्स ओ. फ्रेजर (1886-1938) ने चीन में लिसु लोगों की सेवा करने के लिए इंग्लैंड में एक कॉन्सर्ट(संगीत-गोष्ठी) पियानोवादक बनने का फैसला छोड़ दिया, जबकि अमेरिकी जडसन वैन डीवेंटर (1855-1939) ने कला में अपनी कैरियर/आजीविका बनाने के बजाय एक प्रचारक बनने का विकल्प चुना l उन्होंने बाद में “यीशु को मैं सब कुछ देता” गीत लिखा l
जबकि कला में एक व्यवसाय होना कई लोगों के लिए सही आह्वान है, इन लोगों का मानना था कि परमेश्वर ने उन्हें एक कैरियर को दूसरे के लिए त्यागने के लिए बुलाया था l शायद उन्हें यीशु से प्रेरणा मिली जिसने धनी, युवा शासक से सब संपत्ति छोड़कर उसका अनुसरण करने की सलाह दी थी (मरकुस 10:17-25) l अदला-बदली को देखकर, पतरस ने कहा, “देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिए हैं!” (पद.28) l यीशु ने उसे आश्वस्त किया कि जो उसका अनुसरण करेंगे परमेश्वर उन्हें “इस समय सौ गुना” और अनंत जीवन देगा (पद.30) l लेकिन वह अपनी बुद्धि के अनुसार देगा : “बहुत से जो पहले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, वे पहले होंगे” (पद.31) l
कोई फर्क नहीं पड़ता कि ईश्वर ने हमें कहाँ रखा है, हमें रोजाना अपने जीवन को मसीह के सामने समर्पित करने के लिए कहा गया है, उसका अनुसरण करने के लिए उसकी कोमल बुलाहट को मानना और अपने गुण और संसाधनों के साथ उसकी सेवा करना – चाहे घर, दफ्तर, अथवा समुदाय में या घर से दूर l जब हम ऐसा करते हैं, वह हमें दूसरों से प्यार करने के लिए प्रेरित करेगा, उनकी ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों के ऊपर रखकर l
परिपक्व होने की प्रक्रिया
कैम्ब्रिज, इंग्लैंड में अपने पचास साल की सेवा में, चार्ल्स सिमियन (1759-1836) ने एक पड़ोसी पास्टर, हेनरी वेन और उनकी बेटियों से मुलाकात की । यात्रा के बाद, बेटियों ने टिप्पणी की कि वह युवा व्यक्ति कितना कठोर और अपने ऊपर भरोसा रखनेवाला है l जवाब में, वेन ने अपनी बेटियों को पेड़ों से आड़ू तोड़ने को कहा l जब उन्होंने सोचा कि उनके पिता को कच्चा फल क्यों चाहिए, तो उन्होंने जवाब दिया, ““ठीक है, मेरे प्रियों, यह अभी हरा है, और हमें इंतजार करना चाहिए; लेकिन थोड़ा और सूरज, और कुछ और बारिश, और आड़ू पक जाएगा और मीठा होगा l तो ऐसा ही मिस्टर सिमियन के साथ है l”
पिछले कुछ वर्षों में परमेश्वर का रूपांतरित करनेवाले अनुग्रह ने वास्तव में सिमियन को नरम किया । हर दिन बाइबल पढ़ने और प्रार्थना करने की उसकी प्रतिबद्धता एक कारण थी । एक मित्र जो कुछ महीनों तक उसके साथ रहा, उसने इस अभ्यास को देखा और टिप्पणी की, “यहाँ उसके महान अनुग्रह और आध्यात्मिक सामर्थ्य का रहस्य था l”
परमेश्वर के साथ अपने दैनिक समय में सिमियन ने भविष्यवक्ता यिर्मयाह के अभ्यास का पालन किया, जिसने परमेश्वर के वचनों को विश्वासयोग्यता से सुना । यिर्मयाह उन पर इतना निर्भर था कि उसने कहा, “जब तेरे वचन मेरे पास पहुंचे, तब मैं ने उन्हें मानों खा लिया, और तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनंद का कारण हुए” (यिर्मयाह 15:16) l
अगर हम भी खट्टे हरे फल से मिलते-जुलते हैं, तो हम भरोसा कर सकते हैं कि परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा हमें नरम बनाने में मदद करेगा जब हम वचन को पढ़ने और उसे मानने के द्वारा उसे जान जाएंगे