पुस्तक मियर क्रिचियानिटी(Mere Christianity) में, सी.एस. लियुईस ने खुद से यह जानने के लिए कि क्या हम अहंकार महसूस करते हैं कुछ प्रश्न पूछने की सिफारिश की : “जब अन्य लोग मुझे कोई महत्त्व नहीं देते हैं, या मेरी अनदेखी करते हैं, . . . या सहायता करते हैं, इतराते हैं तो मैं इसको कितना नापसंद करता हूँ?” लियुईस ने अहंकार को “परम दुष्टता” के प्रतिनिधिरूप और घरों और राष्ट्रों में दुख के प्रमुख कारण के रूप में देखा l उन्होंने इसे “आत्मिक कैंसर” कहा जो प्रेम, संतोष और सामान्य ज्ञान की मूल संभावना को खा जाता है l
अहंकार युगों से एक समस्या रही है l परमेश्वर ने, नबी यहेजकेल के द्वारा, शक्तिशाली तटीय नगर सोर(Tyre) के अगुआ के अहंकार के विरुद्ध चेतावनी दी l उसने कहा कि राजा का अहंकार उसके पतन में बदल जाएगा : “तू जो अपना मन परमेश्वर-सा दिखाता है . . . मैं तुझ पर . . . परदेशियों से चढ़ाई कराऊँगा” (यहेजकेल 28:6-7) l तब वह जान जाएगा कि वह ईश्वर नहीं था, लेकिन नश्वर था (पद.9) l
अहंकार के विपरीत नम्रता है, जिसे लियुईस ने एक गुण के रूप में नामित किया है जिसे हम ईश्वर को जानने से प्राप्त करते हैं l लियुईस ने कहा कि जैसे-जैसे हम उसके संपर्क में आते हैं, हम “”ख़ुशी से विनम्र” बनते हैं, अपनी खुद की गरिमा के बारे में मूर्खतापूर्ण बकवास से छुटकारा पाने के लिए राहत महसूस करते हैं जो पहले हमें बेचैन और दुखी करता था l
जितना अधिक हम परमेश्वर की उपासना करते हैं, उतना ही अधिक हम उन्हें जानेंगे और अधिकाधिक अपने को नम्र कर सकते हैं l हम आनंद, नम्रता से प्रेम और सेवा करने वाले बन जाएँ l