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Articles by बिल क्राऊडर

आज का बाइबिल वचन

ब्लूस्टोन एक मनमोहक किस्म का पत्थर है। जब आपस में टकराते है, तो कुछ ब्लूस्टोन संगीतमय स्वर के साथ बजते हैं। मेनक्लोचोग, एक वेल्श गांव जिसके नाम का अर्थ "घंटी" या "बजने वाले पत्थर" है, अठारहवीं शताब्दी तक चर्च की घंटियों के रूप में ब्लूस्टोन का इस्तेमाल करता था। दिलचस्प बात यह है कि इंग्लैंड में स्टोनहेंज के खंडहर, ब्लूस्टोन से बने हैं, जिससे कुछ लोगों को आश्चर्य होता है कि क्या उस भूमि का मूल उद्देश्य संगीतमय था। कुछ शोधकर्ताओं का दावा है कि स्टोनहेंज में ब्लूस्टोन को उनके अद्वितीय ध्वनिक गुणों के कारण लगभग दो सौ मील दूर मेनक्लोचोग के पास से लाया गया था।

संगीतमय बजते हुए पत्थर परमेश्वर की महान रचना के चमत्कारों में से एक हैं, और वे हमें कुछ याद दिलाते हैं जो यीशु ने अपने खजूर रविवार को यरूशलेम में प्रवेश के दौरान कहा था। जैसे ही लोगों ने यीशु की प्रशंसा की, धार्मिक नेताओं ने उनसे उन्हें फटकारने की माँग की। " मैं तुम से कहता हूं, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।" (लूका 19:40)।

यदि नीला पत्थर संगीत बना सकता है, और यदि यीशु ने अपने सृष्टिकर्ता की गवाही देने वाले पत्थरों का भी उल्लेख किया है, तो हम कैसे उसकी प्रशंसा करे जिसने हमें बनाया, हमसे प्रेम करता है, और हमें बचाया? वह सारी आराधना के योग्य है। पवित्र आत्मा हमें उसे वह आदर देने के लिए उभारे जिसका वह हकदार है। सारी सृष्टि उसकी स्तुति करती है।

मित्र और शत्रु

विद्वान केनेथ ई. बेली ने एक अफ़्रीकी राष्ट्र के नेता के बारे में बताया जिसने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय में एक असामान्य स्थान बनाए रखना सीखा था l उसने इस्राएल और उसके आस-पास के राष्ट्रों दोनों के साथ एक अच्छा सम्बन्ध स्थापित किया था l जब किसी ने उनसे पूछा कि उनका देश इस नाजुक संतुलन को कैसे बनाए रखता है, तो उन्होंने उत्तर दिया, “हम अपने दोस्त चुनते हैं l हम अपने मित्रों को हमारे शत्रु [हमारे लिए] चुनने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं l”

यह बुद्धिमानी है—और सच में व्यवहारिक है l उस अफ़्रीकी देश ने जो एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नमूना पेश किया, वही पौलुस ने अपने पाठकों को व्यक्तिगत स्तर पर करने के लिए प्रोत्साहित किया l मसीह द्वारा बदले गए जीवन की विशेषताओं के एक लम्बे विवरण के बीच में, उसने लिखा, “जहाँ तक हो सके, तुम भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो” (रोमियों 12:18)  वह हमें याद दिलाते हुए दूसरों के साथ हमारे व्यवहार के महत्व को सुदृढ़ करने के लिए आगे कहता है कि यहाँ तक कि जिस तरह से हम अपने शत्रुओं के साथ व्यवहार करते हैं (पद. 20-21) वह परमेश्वर और उसकी परम देखभाल में हमारे भरोसे और निर्भरता को दर्शाता है l 

हर किसी के साथ शांति से रहना हमेशा संभव नहीं हो सकता (आखिरकार,पौलुस “भरसक” कहता है) लेकिन यीशु में विश्वासियों के रूप में हमारी जिम्मेदारी उसकी बुद्धि को हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने की अनुमति देना है (याकूब 3:17-18) ताकि हम अपने आसपास के लोगों  को शांतिदूतों के रूप में सम्मिलित

सूचना और प्रमाण

जब डोरिस किर्न्स गुडविन ने अब्राहम लिंकन के बारे में एक किताब लिखने का फैसला किया, उन्हें इस तथ्य ने भयभीत कर दिया था कि अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति के बारे में लगभग चौदह हजार किताबें पहले ही लिखी जा चुकी थीं, इस प्रिय नेता के बारे में कहने के लिए और क्या बाकि रह सकता है? अविचलित, गुडविन के काम का परिणाम ए टीम ऑफ़ राइवल्स: द पॉलिटिकल जीनियस ऑफ़ अब्राहम लिंकन था। लिंकन की नेतृत्व शैली पर उनकी ताज़ा अंतर्दृष्टि एक टॉप रेटेड और टॉप रिव्यूड वाली पुस्तक बन गई।

प्रेरित यूहन्ना ने एक अलग चुनौती का सामना किया जब उसने यीशु की सेवकाई और जुनून के बारे में अपना विवरण लिखा। यूहन्ना के सुसमाचार का अंतिम पद कहता है, “यीशु ने और भी बहुत से काम किए। यदि वे एक एक करके लिखे जाते तो मैं समझता हूं, कि जो पुस्तकें लिखी जातीं, वे संसार में भी न समाती" (यूहन्ना 21:25) यहुन्ना के पास जितना वह इस्तेमाल कर सकता था उससे कही अधिक तथ्य थे! इसलिए यहुन्ना की रणनीति केवल कुछ चुनिंदा चमत्कारों (संकेतों) पर ध्यान केंद्रित करने की थी जो यीशु के "मैं हूँ" के दावों का समर्थन करते थे। फिर भी इस रणनीति के पीछे यह शाश्वत उद्देश्य था: "ये इसलिये लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है, और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ" (पद. 31) सबूतों के पहाड़ों में से, यूहन्ना ने यीशु पर विश्वास करने के लिए बहुत से कारण प्रदान किए। आज आप उसके बारे में किसे बता सकते हैं?

भीड़

दार्शनिक और लेखक हन्ना अरेंड्ट (1906–75) ने कहा, “पुरुषों को सबसे शक्तिशाली सम्राटों का विरोध करने और उनके सामने झुकने से इनकार करने के लिए पाया गया है।” उसने आगे कहा, “लेकिन वास्तव में भीड़ का विरोध करने के लिएए गुमराह जनता के सामने अकेले खड़े होने के लिएए हथियारों के बिना उनके उग्र उन्माद का सामना करने के लिए कुछ ही पाए गए हैं।” एक यहूदी के रूप में,अरेंड्ट ने इस सीधी खबर को अपने मूल जर्मनी में  देखा। समूह द्वारा अस्वीकार किए जाने के बारे में  कुछ भयानक बात होती है।

प्रेरित पौलुस ने ऐसी अस्वीकृति का अनुभव किया। एक फरीसी और रब्बी के रूप में प्रशिक्षित, उसका जीवन उल्टा हो गया जब उसने पुनर्जीवित यीशु का सामना किया। पौलुस उन लोगों को सताने के लिए दमिश्क की यात्रा कर रहा था जो मसीह में विश्वास करते थे (प्रेरितों के काम 9)। अपने बदलाव के बाद, प्रेरित ने स्वयं को अपने ही लोगों द्वारा अस्वीकार किया हुआ पाया। अपने पत्र, जिसे हम 2 कुरिन्थियों के रूप में जानते हैं, पौलूस ने उन कुछ परेशानियों की समीक्षा की जिनका उसने उनके हाथों सामना किया, उनमें से  “मारपीट”  और  “कैद”  था  (6:5) । 

इस तरह की अस्वीकृति का क्रोध या कटुता के साथ जवाब देने के बजाय, पौलुस ने चाहा कि वे भी यीशु को जानें। उन्होंने लिखा, “मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुखता रहता है, क्योंकि मैं यहाँ तक चाहता था कि अपने भाइयों के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, स्वयं ही मसीह से शापित हो जाता।”(रोमियों 9:2–3)। जैसे परमेश्वर ने अपने परिवार में हमारा स्वागत किया हैए वैसे ही वह हमें अपने विरोधियों को भी अपने साथ संबंध बनाने के लिए आमंत्रित करने में सक्षम करे।

मैंने घंटियाँ सुनी

हेनरी वेड्सवर्थ लॉन्गफेलो की 1863 की कविता पर आधारित, “मैंने क्रिसमस के दिन घंटियाँ सुनी” वास्तव में असामान्य क्रिसमस गीत है। अपेक्षित क्रिसमस आनंद और उल्लास के बजाय, गीत विलाप करता, रोता है, “और मैंने निराशा में सिर झुका लिया/ पृथ्वी पर कोई शांति नहीं है मैंने कहा/ क्योंकि नफरत मजबूत है/ और पृथ्वी पर शांति के गाने मनुष्यों की अच्छी इच्छा का मजाक उड़ाता है/” हालाँकि, यह विलाप आगे आशा में बढ़ता है, हमें आश्वस्त करता है कि “परमेश्वर मरा नहीं है, ना ही वो सोता है/ पृथ्वी पर शांति और मनुष्यों की अच्छी इच्छा के साथ गलत विफल हो जाएगा, सही जीत जाएगा”

विलाप में उठने वाली आशा का प्रतिरूप बाइबल के विलाप गीतों में भी पाया जाता है। जैसे, भजन 43 भजनकार का अपने शत्रु जो उस पर हमला करते हैं और उसका परमेश्वर जो लगता है कि उसे भूल गया है (पद 2) से पुकारने के साथ शुरू होता है (1)। लेकिन भजनकार विलाप में नहीं रहता—वह उस परमेश्वर की ओर देखता है जिसे वह पूरी तरह से नहीं समझता है लेकिन फिर भी उस पर भरोसा करता है, यह गाते हुए, “हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है?  परमेश्‍वर पर भरोसा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्‍वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।” (पद 5)।

जीवन विलाप के कारणों से भरा है, और हम सब नियमित रूप से उसका अनुभव करते हैं।

परन्तु, यदि उस विलाप को हम आशा के परमेश्वर की ओर संकेत करने दें, भले ही हम अपने आंसुओं से गाएं-हम खुशी से गा सकते हैं।

सुकराती क्लब

1941 में, इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में सुकराती क्लब की स्थापना हुयी l इसका गठन यीशु के विश्वासियों और नास्तिकों या अज्ञेयवादियों(agnostics) के बीच वाद-विवाद(debate) को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था l 

एक धर्मनिरपेक्ष विश्वविद्यालय में धार्मिक बहस असामान्य नहीं है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पन्द्रह वर्षों तक सुकराती क्लब की अध्यक्षता किसने की— वह थे महान मसीही विद्वान सी.एस.लियुईस l अपनी सोच की जाँच लेने के इच्छुक, लियुईस का मानना था कि मसीह में विश्वास बड़ी जाँच के लिए खड़ा हो सकता था l वह जानते थे कि यीशु में विश्वास करने के लिए विश्वसनीय, तर्कसंगत प्रमाण हैं l 

एक मायने में, लियुईस पतरस की उस सलाह का अभ्यास कर रहे थे जो सताव से बिखरे हुए विश्वासियों के लिए थी, जब उसने उन्हें याद दिलाया, “मसीह को प्रभु जानकार अपने अपने मन में पवित्र समझो l जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ” (1 पतरस 3:15) l पतरस दो मुख्य बिंदु पेश करते है : हमारे पास मसीह में हमारी आशा के लिए अच्छे कारण हैं और हमें अपने तर्क को “नम्रता और भय” के साथ प्रस्तुत करना है l 

मसीह पर विश्वास करना धार्मिक पलायनवाद(escapism) या ख्याली पुलाव(wishful thinking) नहीं है l हमारा विश्वास इतिहास के तथ्यों पर आधारित है, जिसमें यीशु का पुनरुत्थान और सृष्टिकर्ता की साक्षी देने वाली सृष्टि के प्रमाण सम्मिलित हैं l जब हम परमेश्वर की बुद्धि और आत्मा की शक्ति में विश्राम करते हैं, तो हम उन कारणों को साझा करने के लिए तैयार हो सकते हैं जो हमारे पास हमारे महान परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए हैं l 

क्रोध का ह्रदय

ग्वेर्निका, पाब्लो पिकासो की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पेंटिंग, 1937 में उस नाम के एक छोटे से स्पेनिश  शहर के विनाश का एक आधुनिकतावादी चित्रण था। स्पेनिश क्रांति और द्वितीय विश्व युद्ध के बढ़ने के दौरान, नाजी जर्मनी के विमानों को स्पेन की राष्ट्रवादी ताकतों द्वारा बमबारी अभ्यास के लिए शहर का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। नागरिक ठिकानों पर बमबारी की अनैतिकता पर चिंतित एक वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित करते हुए, इन विवादास्पद बम विस्फोटों ने कई लोगों की जान ले ली। पिकासो की पेंटिंग ने दर्शनीय संसार की कल्पनाओं को पकड़ा और एक दूसरे को नष्ट करने की मानवता की क्षमता के बारे में बहस के लिए उत्प्रेरक बन गया।

हम में से जिन्हें इस बात के लिए आत्मविश्वासी है कि हम जानबूझकर कभी खून नहीं बहाएंगे, हमें यीशु के शब्दों को याद रखने की ज़रूरत है, "तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि, 'हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।' परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दंड के योग्य होगा .." (मत्ती 5:21-22)। ह्रदय एक हत्यारा हो सकता है बिना वास्तव में हत्या किये हुए।

जब दूसरों के प्रति अनियंत्रित क्रोध हमें भस्म करने का खतरा पैदा करता है, तो हमें पवित्र आत्मा की सख्त आवश्यकता है हमारे  हृदयों को भरने और नियंत्रित करने के लिए  ताकि हमारी मानवीय प्रवृत्तियों को आत्मा के फल से बदला जा सके (गलातियों 5:19-23)। फिर, प्रेम, आनंद और शांति हमारे संबंधों को चिह्नित कर सकते हैं।

घर को बनाना

19वीं शताब्दी में, भारत में सबसे महत्वाकांक्षी निजी गृह निर्माण परियोजना शुरू हुई। कार्य जारी रहा जब तक की—12 साल बाद महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ III के "शाही परिवार निवास" का समापन हुआ। उसका परिणाम गुजरात के वडोदरा में लक्ष्मी विलास महल था। वह भारत में सबसे बड़ा निजी निवास महल है और माना जाता है की लंदन में बकिंघम महल से लगभग 4 गुना बड़ा है। उसमें 170 कमरे हैं  जिसमें अच्छी तरह से बनाये हुए कट्टीभचित्र, झूमर, कलाकृतियां और लिफ्ट के साथ जो की 500 एकड़ में बनाया गया है। 

यह परियोजना, महत्वाकांक्षी के रूप में था, लेकिन मत्ती 16 में यीशु ने अपने चेलों को जिस “इमारत” के इरादे के बारे में बताया उसकी तुलना में कुछ नहीं था। पतरस का यह पुष्टीकरन करने के बाद की यीशु ही “परमेश्वर का पुत्र मसीह है”(16), यीशु ने कहा, “और मैं भी तुझ से कहता हूँ की तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फटक उस पर प्रबल न होंगे.”(18)। ) जबकि धर्मशास्त्री "चट्टान" की पहचान पर बहस करते हैं, लेकिन यीशु के इरादों के बारे में कोई बहस नहीं है। वह पृथ्वी की छोर तक फ़ैलाने के लिए अपनी कलीसिया बनाता (मत्ती 28:19-20), दुनिया भर के हर राष्ट्र और जातीय समूह के लोगों के साथ। (प्रकाशितवाक्य 5:9)। 

इस भवन परियोजना की लागत? क्रूस पर यीशु मसीह के अपने लहू का बलिदान (प्रेरितों 20:28)। उनके “भवन” के सदस्यों के रूप में (इफिसिओं 2:11), इतनी बड़े दाम से खरीदे हुए, हम उनके प्रेममय बलिदान का जश्न मनाएं और इस महान कार्य में उनके साथ शामिल हों। 

उतरने का स्थान

मृग परिवार का एक सदस्य इम्पाला दस फीट ऊंची और तीस फीट लंबाई तक कूदने में सक्षम है। यह एक अविश्वसनीय करतब है, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अफ्रीकी जंगली में इसके जीवित रहने के लिए यह आवश्यक भी है। फिर भी, चिड़ियाघरों में पाए जाने वाले कई इम्पाला बाड़ों में, आप पाएंगे कि जानवरों को एक दीवार से सटाकर रखा जाता है जो केवल तीन फीट लंबी होती है। इतनी नीची दीवार में ये एथलेटिक जानवर कैसे रह सकते हैं? पर यह संभव होता है क्योंकि इम्पाला तब तक नहीं कूदेंगे जब तक कि वे यह नहीं देख पाय की वें कहाँ उतरेंगे। दीवार इम्पलास को बाड़े के अंदर रखती है क्योंकि वे नहीं देख सकते कि दूसरी तरफ क्या है।

इंसानों के रूप में, हम सब भी कुछ अलग नहीं हैं। हम आगे बढ़ने से पहले किसी स्थिति का परिणाम जानना चाहते हैं। हालाँकि, विश्वास का जीवन शायद ही कभी इस तरह से काम करता है। कुरिन्थ की कलीसिया को लिखते हुए, पौलुस ने उन्हें याद दिलाया, "हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते है" (२ कुरिन्थियों ५:७)।

यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया, "तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी पर भी हो" (मत्ती ६:१०)। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसके परिणामों को पहले ही जान लेंगे। विश्वास से जीने का अर्थ है उसके अच्छे उद्देश्यों पर भरोसा करना, भले ही वे उद्देश्य रहस्य में डूबे हों।

जीवन की अनिश्चितताओं के बीच, हम उसके अटूट प्रेम पर भरोसा कर सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि जीवन हमारे सामने क्या लेकर आये, "हम उसे प्रसन्न करना अपना लक्ष्य बना लेते हैं" (२ कुरिन्थियों ५:९)।