आज का बाइबिल वचन
ब्लूस्टोन एक मनमोहक किस्म का पत्थर है। जब आपस में टकराते है, तो कुछ ब्लूस्टोन संगीतमय स्वर के साथ बजते हैं। मेनक्लोचोग, एक वेल्श गांव जिसके नाम का अर्थ "घंटी" या "बजने वाले पत्थर" है, अठारहवीं शताब्दी तक चर्च की घंटियों के रूप में ब्लूस्टोन का इस्तेमाल करता था। दिलचस्प बात यह है कि इंग्लैंड में स्टोनहेंज के खंडहर, ब्लूस्टोन से बने हैं, जिससे कुछ लोगों को आश्चर्य होता है कि क्या उस भूमि का मूल उद्देश्य संगीतमय था। कुछ शोधकर्ताओं का दावा है कि स्टोनहेंज में ब्लूस्टोन को उनके अद्वितीय ध्वनिक गुणों के कारण लगभग दो सौ मील दूर मेनक्लोचोग के पास से लाया गया था।
संगीतमय बजते हुए पत्थर परमेश्वर की महान रचना के चमत्कारों में से एक हैं, और वे हमें कुछ याद दिलाते हैं जो यीशु ने अपने खजूर रविवार को यरूशलेम में प्रवेश के दौरान कहा था। जैसे ही लोगों ने यीशु की प्रशंसा की, धार्मिक नेताओं ने उनसे उन्हें फटकारने की माँग की। " मैं तुम से कहता हूं, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।" (लूका 19:40)।
यदि नीला पत्थर संगीत बना सकता है, और यदि यीशु ने अपने सृष्टिकर्ता की गवाही देने वाले पत्थरों का भी उल्लेख किया है, तो हम कैसे उसकी प्रशंसा करे जिसने हमें बनाया, हमसे प्रेम करता है, और हमें बचाया? वह सारी आराधना के योग्य है। पवित्र आत्मा हमें उसे वह आदर देने के लिए उभारे जिसका वह हकदार है। सारी सृष्टि उसकी स्तुति करती है।
मैंने घंटियाँ सुनी
हेनरी वेड्सवर्थ लॉन्गफेलो की 1863 की कविता पर आधारित, “मैंने क्रिसमस के दिन घंटियाँ सुनी” वास्तव में असामान्य क्रिसमस गीत है। अपेक्षित क्रिसमस आनंद और उल्लास के बजाय, गीत विलाप करता, रोता है, “और मैंने निराशा में सिर झुका लिया/ पृथ्वी पर कोई शांति नहीं है मैंने कहा/ क्योंकि नफरत मजबूत है/ और पृथ्वी पर शांति के गाने मनुष्यों की अच्छी इच्छा का मजाक उड़ाता है/” हालाँकि, यह विलाप आगे आशा में बढ़ता है, हमें आश्वस्त करता है कि “परमेश्वर मरा नहीं है, ना ही वो सोता है/ पृथ्वी पर शांति और मनुष्यों की अच्छी इच्छा के साथ गलत विफल हो जाएगा, सही जीत जाएगा”
विलाप में उठने वाली आशा का प्रतिरूप बाइबल के विलाप गीतों में भी पाया जाता है। जैसे, भजन 43 भजनकार का अपने शत्रु जो उस पर हमला करते हैं और उसका परमेश्वर जो लगता है कि उसे भूल गया है (पद 2) से पुकारने के साथ शुरू होता है (1)। लेकिन भजनकार विलाप में नहीं रहता—वह उस परमेश्वर की ओर देखता है जिसे वह पूरी तरह से नहीं समझता है लेकिन फिर भी उस पर भरोसा करता है, यह गाते हुए, “हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।” (पद 5)।
जीवन विलाप के कारणों से भरा है, और हम सब नियमित रूप से उसका अनुभव करते हैं।
परन्तु, यदि उस विलाप को हम आशा के परमेश्वर की ओर संकेत करने दें, भले ही हम अपने आंसुओं से गाएं-हम खुशी से गा सकते हैं।
सुकराती क्लब
1941 में, इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में सुकराती क्लब की स्थापना हुयी l इसका गठन यीशु के विश्वासियों और नास्तिकों या अज्ञेयवादियों(agnostics) के बीच वाद-विवाद(debate) को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया था l
एक धर्मनिरपेक्ष विश्वविद्यालय में धार्मिक बहस असामान्य नहीं है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पन्द्रह वर्षों तक सुकराती क्लब की अध्यक्षता किसने की— वह थे महान मसीही विद्वान सी.एस.लियुईस l अपनी सोच की जाँच लेने के इच्छुक, लियुईस का मानना था कि मसीह में विश्वास बड़ी जाँच के लिए खड़ा हो सकता था l वह जानते थे कि यीशु में विश्वास करने के लिए विश्वसनीय, तर्कसंगत प्रमाण हैं l
एक मायने में, लियुईस पतरस की उस सलाह का अभ्यास कर रहे थे जो सताव से बिखरे हुए विश्वासियों के लिए थी, जब उसने उन्हें याद दिलाया, “मसीह को प्रभु जानकार अपने अपने मन में पवित्र समझो l जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ” (1 पतरस 3:15) l पतरस दो मुख्य बिंदु पेश करते है : हमारे पास मसीह में हमारी आशा के लिए अच्छे कारण हैं और हमें अपने तर्क को “नम्रता और भय” के साथ प्रस्तुत करना है l
मसीह पर विश्वास करना धार्मिक पलायनवाद(escapism) या ख्याली पुलाव(wishful thinking) नहीं है l हमारा विश्वास इतिहास के तथ्यों पर आधारित है, जिसमें यीशु का पुनरुत्थान और सृष्टिकर्ता की साक्षी देने वाली सृष्टि के प्रमाण सम्मिलित हैं l जब हम परमेश्वर की बुद्धि और आत्मा की शक्ति में विश्राम करते हैं, तो हम उन कारणों को साझा करने के लिए तैयार हो सकते हैं जो हमारे पास हमारे महान परमेश्वर पर भरोसा करने के लिए हैं l
क्रोध का ह्रदय
ग्वेर्निका, पाब्लो पिकासो की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पेंटिंग, 1937 में उस नाम के एक छोटे से स्पेनिश शहर के विनाश का एक आधुनिकतावादी चित्रण था। स्पेनिश क्रांति और द्वितीय विश्व युद्ध के बढ़ने के दौरान, नाजी जर्मनी के विमानों को स्पेन की राष्ट्रवादी ताकतों द्वारा बमबारी अभ्यास के लिए शहर का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। नागरिक ठिकानों पर बमबारी की अनैतिकता पर चिंतित एक वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित करते हुए, इन विवादास्पद बम विस्फोटों ने कई लोगों की जान ले ली। पिकासो की पेंटिंग ने दर्शनीय संसार की कल्पनाओं को पकड़ा और एक दूसरे को नष्ट करने की मानवता की क्षमता के बारे में बहस के लिए उत्प्रेरक बन गया।
हम में से जिन्हें इस बात के लिए आत्मविश्वासी है कि हम जानबूझकर कभी खून नहीं बहाएंगे, हमें यीशु के शब्दों को याद रखने की ज़रूरत है, "तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि, 'हत्या न करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।' परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दंड के योग्य होगा .." (मत्ती 5:21-22)। ह्रदय एक हत्यारा हो सकता है बिना वास्तव में हत्या किये हुए।
जब दूसरों के प्रति अनियंत्रित क्रोध हमें भस्म करने का खतरा पैदा करता है, तो हमें पवित्र आत्मा की सख्त आवश्यकता है हमारे हृदयों को भरने और नियंत्रित करने के लिए ताकि हमारी मानवीय प्रवृत्तियों को आत्मा के फल से बदला जा सके (गलातियों 5:19-23)। फिर, प्रेम, आनंद और शांति हमारे संबंधों को चिह्नित कर सकते हैं।
घर को बनाना
19वीं शताब्दी में, भारत में सबसे महत्वाकांक्षी निजी गृह निर्माण परियोजना शुरू हुई। कार्य जारी रहा जब तक की—12 साल बाद महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ III के "शाही परिवार निवास" का समापन हुआ। उसका परिणाम गुजरात के वडोदरा में लक्ष्मी विलास महल था। वह भारत में सबसे बड़ा निजी निवास महल है और माना जाता है की लंदन में बकिंघम महल से लगभग 4 गुना बड़ा है। उसमें 170 कमरे हैं जिसमें अच्छी तरह से बनाये हुए कट्टीभचित्र, झूमर, कलाकृतियां और लिफ्ट के साथ जो की 500 एकड़ में बनाया गया है।
यह परियोजना, महत्वाकांक्षी के रूप में था, लेकिन मत्ती 16 में यीशु ने अपने चेलों को जिस “इमारत” के इरादे के बारे में बताया उसकी तुलना में कुछ नहीं था। पतरस का यह पुष्टीकरन करने के बाद की यीशु ही “परमेश्वर का पुत्र मसीह है”(16), यीशु ने कहा, “और मैं भी तुझ से कहता हूँ की तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा, और अधोलोक के फटक उस पर प्रबल न होंगे.”(18)। ) जबकि धर्मशास्त्री "चट्टान" की पहचान पर बहस करते हैं, लेकिन यीशु के इरादों के बारे में कोई बहस नहीं है। वह पृथ्वी की छोर तक फ़ैलाने के लिए अपनी कलीसिया बनाता (मत्ती 28:19-20), दुनिया भर के हर राष्ट्र और जातीय समूह के लोगों के साथ। (प्रकाशितवाक्य 5:9)।
इस भवन परियोजना की लागत? क्रूस पर यीशु मसीह के अपने लहू का बलिदान (प्रेरितों 20:28)। उनके “भवन” के सदस्यों के रूप में (इफिसिओं 2:11), इतनी बड़े दाम से खरीदे हुए, हम उनके प्रेममय बलिदान का जश्न मनाएं और इस महान कार्य में उनके साथ शामिल हों।
उतरने का स्थान
मृग परिवार का एक सदस्य इम्पाला दस फीट ऊंची और तीस फीट लंबाई तक कूदने में सक्षम है। यह एक अविश्वसनीय करतब है, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अफ्रीकी जंगली में इसके जीवित रहने के लिए यह आवश्यक भी है। फिर भी, चिड़ियाघरों में पाए जाने वाले कई इम्पाला बाड़ों में, आप पाएंगे कि जानवरों को एक दीवार से सटाकर रखा जाता है जो केवल तीन फीट लंबी होती है। इतनी नीची दीवार में ये एथलेटिक जानवर कैसे रह सकते हैं? पर यह संभव होता है क्योंकि इम्पाला तब तक नहीं कूदेंगे जब तक कि वे यह नहीं देख पाय की वें कहाँ उतरेंगे। दीवार इम्पलास को बाड़े के अंदर रखती है क्योंकि वे नहीं देख सकते कि दूसरी तरफ क्या है।
इंसानों के रूप में, हम सब भी कुछ अलग नहीं हैं। हम आगे बढ़ने से पहले किसी स्थिति का परिणाम जानना चाहते हैं। हालाँकि, विश्वास का जीवन शायद ही कभी इस तरह से काम करता है। कुरिन्थ की कलीसिया को लिखते हुए, पौलुस ने उन्हें याद दिलाया, "हम रूप को देखकर नहीं, पर विश्वास से चलते है" (२ कुरिन्थियों ५:७)।
यीशु ने हमें प्रार्थना करना सिखाया, "तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में पूरी होती है वैसे पृथ्वी पर भी हो" (मत्ती ६:१०)। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसके परिणामों को पहले ही जान लेंगे। विश्वास से जीने का अर्थ है उसके अच्छे उद्देश्यों पर भरोसा करना, भले ही वे उद्देश्य रहस्य में डूबे हों।
जीवन की अनिश्चितताओं के बीच, हम उसके अटूट प्रेम पर भरोसा कर सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि जीवन हमारे सामने क्या लेकर आये, "हम उसे प्रसन्न करना अपना लक्ष्य बना लेते हैं" (२ कुरिन्थियों ५:९)।
सिखाने योग्य एक आत्मा
न केवल दूसरों की राय बल्कि राय देने वाले व्यक्ति पर भी हमला करना (दोष ढूंढना) दुखद रूप से “सामान्य” हो गया है। यह शिक्षा सम्बंधी क्षेत्रों में भी सच हो सकता है। इस कारण से, मैं दंग रह गया जब विद्वान और धर्मशास्त्री रिचर्ड बी हेज़ ने एक पेपर लिखा जिसमें उन्होंने वर्षों पहले अपने खुद के लिखे एक काम में संशोधन करने के लिये कमियां निकालीं । रीडिंग विद द ग्रेन ऑफ स्क्रिप्चर में हेज़ ने दिल की बड़ी विनम्रता का प्रदर्शन किया जब उन्होंने अपनी पिछली सोच को ठीक किया, जो अब सीखने के लिए अपनी आजीवन प्रतिबद्धता से ठीक हो गई है।
जब नीतिवचन की पुस्तक पेश की जा रही थी, राजा सुलैमान ने बुद्धिमान कथनों के इस संग्रह के विभिन्न उद्देश्यों को सूचीबद्ध किया। परन्तु उन उद्देश्यों के बीच में, उसने इस चुनौती को सम्मिलित किया, “बुद्धिमान उन्हें सुन कर निज ज्ञान बढ़ायें और समझदार व्यक्ति दिशा निर्देश पायें” (नीतिवचन 1: 5)। प्रेरित पौलुस की तरह, जिसने दावा किया कि दशकों तक मसीह का अनुसरण करने के बाद भी, उसने यीशु को जानना जारी रखा (फिलिप्पियों 3: 10) सुलैमान ने बुद्धिमानों को सुनने, सीखने और बढ़ते रहने का आग्रह किया।
एक सिखाने योग्य भावना को बनाए रखने से कभी किसी को नुकसान नहीं होता। जैसे–जैसे हम बढ़ते रहना चाहते हैं और विश्वास की बातों और जीवन की बातों के बारे में सीखते हैं, क्या हम पवित्र आत्मा को हमें सच्चाई में मार्गदर्शन करने की अनुमति दे सकते हैं, (यूहन्ना 16:13), ताकि हम अपने भले और महान परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों को और अच्छी तरह समझ सकें।
अलग हट कर
नवंबर 1742 में, चार्ल्स वेस्ली द्वारा प्रचारित सुसमाचार संदेश के विरोध में इंग्लैंड के स्टैफोर्डशायर में दंगा भड़क उठा। ऐसा लगता था कि चार्ल्स और उनके भाई जॉन चर्च की कुछ पुरानी परंपराओं को बदल रहे थे, और यह शहर के कई लोगों को अस्वीकार था।
जब जॉन वेस्ली ने दंगे के बारे में सुना, तो वह अपने भाई की मदद करने के लिए स्टैफोर्डशायर पहुंचे। जल्द ही एक अनियंत्रित भीड़ ने उस जगह को घेर लिया जहाँ जॉन ठहरे हुए थे। साहसपूर्वक, वह उनके अगुवों के साथ आमने-सामने मिले, उनके साथ इतनी शांति से बात करी कि एक-एक करके उनका गुस्सा शांत हो गया।
जॉन वेस्ली की सौम्य और शांत आत्मा ने एक संभावित क्रूर भीड़ को शांत कर दिया। लेकिन यह कोई सज्जनता नहीं थी जो उनके हृदय में स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुई थी। बल्कि, यह उद्धारकर्ता का हृदय था जिसका वेस्ली इतनी नज़दीकी से अनुसरण करते थे। यीशु ने कहा, "मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो और मुझ से सीखो, क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं, और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे" (मत्ती 11:29)। नम्रता का यह जूआ हमारे लिए प्रेरित पौलुस की चुनौती के पीछे सच्ची शक्ति बन गया: “अर्थात सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो" (इफिसियों 4:2)।
हमारी मानवीयता में, ऐसी धीरजता हमारे लिए असंभव है। परन्तु हम में आत्मा के फल के द्वारा, मसीह के हृदय की नम्रता हमें अलग कर सकती है और हमें शत्रुतापूर्ण संसार का सामना करने के लिए तैयार कर सकती है। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम पौलुस के शब्दों को पूरा करते हैं, "तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो" (फिलिप्पियों 4:5)।
हमारा परमेश्वर कितना महान है!
लोगों को पहचानने के लिए उंगलियों के निशान लम्बे समय से इस्तेमाल किये गये है, पर उनके प्रतियां बनाकर धोखा दिया जा सकता है। उसी प्रकार से, मनुष्य की आंख की पुतली का पैटर्न आईडी के लिए एक विश्वसनीय स्रोत है, जब तक कोई परिणाम गलत करने के लिए कांटेक्टलेंस पहन कर पैटर्न बदल नहीं देता। किसी व्यक्ति को पहचानने के लिए बॉयोमीट्रिक (शारीरिक चिन्ह) के उपयोग को असफल किया जा सकता है। तो, एक विशिष्ट पहचान के लक्षणों का कैसे पता चलता है? सबकी रक्त–वाहिकाओं का पैटर्न अद्वितीय है और नकल के लिए लगभग असम्भव। आपका अपना निजी नसों का नक्शा एक खास तरह की आपकी पहचान है जो आपको सब से अलग करता है।
मनुष्य की ऐसी जटिलताओं पर विचार करने से उस सृष्टिकर्ता के लिए आराधना और आश्चर्य की भावना पैदा होनी चाहिए जिसने हमें बनाया है। दाउद ने हमें याद दिलाया कि “हम भयभीत और अद्भुत तरीके से बनाए गए हैं” भजनसंहिता 139:14, और यह निश्चित रूप से जश्न मनाने लायक है। वास्तव में भजन संहिता 111:2 हमें स्मरण दिलाता है: “यहोवा के काम महान हैं जो उन से प्रसन्न होते हैं वे उन पर विचार करते हैं।”
हमारे ध्यान के और भी अधिक योग्य स्वयं दिव्य निर्माता हैं। परमेश्वर के महान कार्यों का जश्न मनाते हुए, हमें उसके लिये भी जश्न मनाना चाहिए! उसके काम महान हैं लेकिन वह उससे भी बड़ा है जिससे भजनकार को प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया, “क्योंकि तू महान है और अद्भुत काम करता है केवल तू ही परमेश्वर है” ( 86:10)।
आज जैसे हम परमेश्वर के कार्य की महानता पर विचार करते है, हम इस बात पर भी अचम्भा करें कि वह कौन है।