लेपालक की खूबसूरती
2009 की एक अंग्रेजी फिल्म द ब्लाइंड साइड(The Blind Side) में एक बेघर किशोर माइकल ओहेर की सच्ची कहानी दिखाई गई है l एक परिवार उसे अपना लेता है और सीखने की कठिनाइयों को दूर करने और अमेरिकी फुटबॉल में उत्कृष्टता हासिल करने में उसकी मदद करता है l एक दृश्य में, परिवार कई महीनों तक माइकल के साथ रहने के बाद उसे गोद लेने की संभावना के बारे में उससे बात करता है l एक मधुर और कोमल उत्तर में, माइकल ने चिल्लाया कि उसे लगा कि वह पहले से ही परिवार का हिस्सा है!
यह एक सुन्दर क्षण है, जिस तरह गोद लेना एक सुन्दर चीज़ है l प्यार बढ़ जाता है और पूर्ण समावेश की पेशकश की जाती है जब एक परिवार एक नए सदस्य के लिए अपनी बाहें खोलता है l दत्तक-ग्रहण जीवन बदलता है, जिस प्रकार उसने अद्भुत रूप से माइकल का जीवन बदल दिया l
यीशु में, विश्वासियों को विश्वास के द्वारा “परमेश्वर की संतान” बनाया जाता है (गलतियों 3:26) l हम परमेश्वर द्वारा अपनाए जाते हैं और उसके बेटे और बेटियाँ (4:5) बन जाते हैं l परमेश्वर के दत्तक संतानों के रूप में, हम उसके पुत्र की आत्मा प्राप्त करते हैं, हम परमेश्वर को “पिता” (पद.6) संबोधित करते हैं, और हम उसके उत्तराधिकारी (पद.7) और मसीह (रोमियों 8:17) के साथ सहकर्मी बन जाते हैं l हम उसके परिवार के पूर्ण सदस्य बन जाते हैं l जब माइकल ओहेर को अपनाया गया, तो इसने उसके जीवन, उसकी पहचान और उसके भविष्य को बदल दिया l हमारे लिए और कितना अधिक जो परमेश्वर द्वारा अपनाए जाते हैं! जैसे ही हम उसे पिता के रूप में जानते हैं हमारा जीवन बदल जाता है l जब हम उसके हो जाते हैं, हमारी पहचान बदल जाती है l और हमारा भविष्य बदल जाता है जैसा कि हमारे लिए एक महिमामयी, अनंत विरासत का वादा किया गया है l
यीशु हमारी शांति है
टेलेमैकुस नाम का एक सन्यासी शांत जीवन व्यतीत करता था, लेकिन चौथी सदी के अंत में उसकी मृत्यु ने संसार को बदल दिया l पूर्व से रोम में आकर, टेलेमैकुस ने पेशेवर लड़ाका रंगशाला (gladiatorial arena) के रक्त खेल में हस्तक्षेप किया l वह रंगशाला की दीवार से कूदकर लड़ाकों को एक दूसरे को मारने से रोकने की कोशिश की l पर क्रोधित भीड़ ने पथराव करके सन्यासी को मार डाला l हालांकि, सम्राट होनोरिअस, टेलेमैकुस के कार्य के द्वारा द्रवित हुआ और 500 वर्षों के ग्लैडिएटर खेलों के अंत का फैसला किया ।
जब पौलुस यीशु को ‘हमारी शांति’ कहता है, तो वह यहूदियों और गैरयहूदियों के बीच के विद्वेश के अंत को दर्शाता है (इफिसियों 2:14) l परमेश्वर के चुने हुए इस्राएली लोग बाकी देशों से अलग थे और कुछ विशेषाधिकारों का आनंद लेते थे l उदाहरण के लिए, जबकि गैरयहूदियों को यरूशलेम के मन्दिर में उपासना करने की अनुमति थी, एक विभाजित करनेवाली दीवार उन्हें बाहरी आँगन तक सीमित रखती थी──उल्लंघन करने पर मृत्युदंड तय थी l यहूदी गैरयहूदियों को अशुद्ध मानते थे, और वे परस्पर शत्रुता अनुभव करते थे l लेकिन अब, सभी के लिए यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा, यहूदी और गैरयहूदी दोनों ही उसमें विश्वास करने के द्वारा स्वतंत्रापूर्वक परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं (पद.18-22) l प्रभु के सामने दोनों बराबर हैं l
जिस तरह टेलेमैकस ने अपनी मृत्यु के द्वारा योद्धाओं को शांति दी, उसी तरह यीशु सभी के लिए जो उस पर उसकी मृत्यु और पुनरुथान के द्वारा विश्वास करते हैं शांति और मेल को संभव बनाता है l इसलिए यदि, यीशु हमारी शांति है, तो हम अपनी विभिन्नताओं को हमें विभाजित करने न दें l उसने हमें अपनी मृत्यु द्वारा एक किया है l
वह हमारी सुनता है
अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन डी. रूज़वेल्ट ने व्हाइट हाउस में अक्सर उनसे मुलाकात करने आए लोंगों को सहन किया जो लम्बी पंक्तियों में खड़े इंतज़ार करते थे l जैसे एक खबर में बताया गया, उन्होंने शिकायत की कि जो भी कहा जाता था कोई भी उन बातों पर ध्यान नहीं देता है । तो उन्होंने एक अभिनन्दन(reception) में एक प्रयोग करने का निर्णय लिया । हर एक से जिसने पंक्ति से गुज़रते हुए उनसे हाथ मिलाया, उन्होंने कहा, “आज सुबह मैंने अपनी दादी की हत्या कर दी l” आगंतुकों ने कुछ इस तरह के वाक्यांशों में उत्तर दिया, “बेहतरीन! अपने नेक काम जारी रखें l महोदय, ईश्वर आपको आशीष दे l” पंक्ति के अंत में, बोलिविया के राजदूत का अभिवादन करते समय वह समय आया, जब वास्तव में उनके शब्द सुन गए l स्तंभित, राजदूत ने फुसफुसाया, “वह उसके लायक थी l”
क्या आप कभी आश्चर्य करते हैं कि लोग सचमुच सुनते है? या इससे भी बदतर, क्या आप डरते है कि परमेश्वर नहीं सुन रहा है? हम लोगों के प्रत्युत्तर या आँख के संपर्क के आधार पर कह सकते हैं कि वे सुन रहे हैं l पर हम कैसे जानते है कि परमेश्वर सुन रहा है? क्या हमें भावनाओं पर आश्रित होना चाहिए? या देखना चाहिए कि क्या परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है?
बेबीलोन में 70 सालों की बँधुआई के बाद, परमेश्वर ने अपने लोगों को वापस यरूशलेम लौटा ले आने और उनके भविष्य को सुरक्षित करने की प्रतिज्ञा की (यिर्मयाह 29:10-11) । जब उन्होंने उसे पुकारा, उसने उनकी सुनी (पद.12) । वे जानते थे कि परमेश्वर उनकी प्रार्थनाएँ सुन ली थी क्योंकि उसने सुनने की प्रतिज्ञा की थी l और यह हमारे लिए भी सच है (1 यूहन्ना 5:14) । हमें यह जानने के लिए कि परमेश्वर हमारी सुनता है अपनी भावनाओं पर आश्रित होने की या परमेश्वर की ओर से किसी चिन्ह का इंतजार करने की जरूरत नहीं है । उसने सुनने की प्रतिज्ञा की है, और वह हमेशा अपनी प्रतिज्ञाएँ पूरी करता है (2 कुरिन्थियों 1:20) l
बुद्धिमान सलाह सुनना
अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान, राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन एक बार खुद को एक राजनेता को खुश करते हुए पाया, तो उन्होंने कुछ केंद्रीय सेना रेजिमेंटों(सैन्य दलों) को स्थानांतरित करने का आदेश जारी किया l जब युद्ध के सचिव, एडविन स्टैंटन को आदेश मिला, तो उन्होंने इसे अंजाम देने से इनकार कर दिया l उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति मूर्ख थे l लिंकन को बताया गया कि स्टैंटन ने क्या कहा था, और उन्होंने उत्तर दिया : “अगर स्टैंटन ने कहा कि मैं मूर्ख हूँ, तो मुझे होना चाहिए, क्योंकि वे लगभग हमेशा सही है l मैं अपने लिए देखूँगा l” जब दोनों लोगों ने बात की, राष्ट्रपति ने जल्द समझ लिया कि उनका निर्णय एक गंभीर गलती थी, और बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने इसे वापस ले लिया l यद्यपि स्टैंटन ने लिंकन को मूर्ख कहा था, लेकिन जब स्टैंटन उनसे असहमत थे, तो राष्ट्रपति ने अड़ियल ढंग से इन्कार न करके बुद्धिमान साबित हुए l इसके बजाय, लिंकन ने सलाह सुनी, उस पर विचार किया और अपना विचार बदल दिया l
क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति का सामना किया है जो महज बुद्धिमान सलाह नहीं सुनता था? (1 राजा 12:1-11 देखें) l यह क्रोधित करनेवाला हो सकता है, क्या यह नहीं हो सकता? या, और भी व्यक्तिगत, क्या आपने कभी सलाह मानने से इनकार किया है? जैसा कि नीतिवचन 12:15 कहता है, “मूढ़ को अपनी ही चाल सीधी जान पड़ती है, परन्तु जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान है l लोग हमेशा सही नहीं हो सकते, लेकिन हमारे लिए भी वैसा ही है! यह जानते हुए कि हर कोई गलतियाँ करता है, केवल मूर्ख यह मानते हैं कि वे अपवाद हैं l इसके बजाय, आइए ईश्वरीय बुद्धिमत्ता का अभ्यास करें और दूसरों के बुद्धिमान सलाह सुने ─भले ही हम शुरू में असहमत हों l कभी-कभी परमेश्वर हमारे अच्छे (पद. 2) के लिए ऐसे ही काम करता है l
मुर्खता से सीखना
एक व्यक्ति किराने की दुकान में गया, उसने काउंटर पर 500 रुपये रखे और रेजगारी देने को कहा l जब दुकानदार ने नकद दराज खोली, तो आदमी ने एक बंदूक खींची और रजिस्टर में दर्ज पूरी नकदी मांगी, जो दुकानदार ने तुरंत दे दी l व्यक्ति ने क्लर्क से कैश लिया और काउंटर पर रखे पांच सौ रुपये के नोट को छोड़कर फरार हो गया l दराज से उसे कुल कितनी नकदी मिली? तीन सौ रुपये l
हम सभी मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं─भले ही, इस चोर के विपरीत, हम सही काम करने की कोशिश करते हैं l कुंजी यह है कि हम अपने मूर्ख व्यवहार से कैसे सीखते हैं l सुधार के बिना, हमारे खराब चुनाव आदत बन सकते हैं, जो हमारे चरित्र को नकारात्मक रूप से आकार देंगे l हम “मूर्ख [बन जाएंगे . . . जिसकी] समझ काम नहीं देती” (सभोपदेशक 10:3) l
कभी-कभी अपनी मूर्खता को स्वीकार करना कठिन होता है क्योंकि इसके लिए अतिरिक्त काम की आवश्यकता होती है l शायद हमें एक विशेष चरित्र दोष पर विचार करना हो और यह पीड़ादायक है l या शायद हमें यह स्वीकार करना हो कि एक निर्णय जल्दबाजी में किया गया था और अगली बार हमें अधिक ध्यान रखना चाहिए l कारण जो भी हो, अपने मूर्खतापूर्ण तरीकों को अनदेखा करने की कीमत बड़ी होती है l
शुक्र है, परमेश्वर हमारी मूर्खता का उपयोग अनुशासन और हमें आकार देने के लिए कर सकता है l अनुशासन “आनंद [का] नहीं,” लेकिन इसके अभ्यास से लंबे समय में अच्छे फल मिलते हैं (इब्रानियों 12:11) l आइए अपने मूर्खतापूर्ण व्यवहार के लिए हमारे पिता के अनुशासन को स्वीकार करें और उससे हमें और अधिक वैसे पुत्र और पुत्रियाँ बनाने के लिए कहें जैसा वह चाहता है कि हम बनें l
पिता को जानना
दंतकथा के अनुसार, ब्रिटिश संगीत निदेशक सर थॉमस बीचम ने एक बार होटल के उपकक्ष में एक प्रतिष्ठित दिखने वाली महिला को देखा l यह मानते हुए कि वह उसे जानता है लेकिन उसका नाम याद नहीं कर पा रहा था, वह उसके साथ बात करने के लिए रुक गया l जैसा कि दोनों ने बातचीत की, उसने अस्पष्ट रूप से याद किया कि उसका एक भाई था l एक सुराग की उम्मीद करते हुए, उसने पूछा कि उसका भाई कैसा है और क्या वह अभी भी उसी काम में लगा हुआ है l “ओह, वह बहुत अच्छा है,” वह बोली, "और अभी भी राजा है l”
गलत पहचान का मामला शर्मनाक हो सकता है, जैसा कि सर बीचम के लिए था l लेकिन अन्य समय में यह अधिक गंभीर हो सकता है, जैसा कि यीशु के शिष्य फिलिप्पुस के लिए था l शिष्य यीशु को जानता था, जी हाँ, लेकिन वह पूरी तरह समझ नहीं पाया था कि वह कौन है l वह चाहता था कि यीशु “[उन्हें] पिता को दिखा [दे]” और यीशु ने उत्तर दिया, “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है” (यूहन्ना 14:8-9) l परमेश्वर के अद्वितीय पुत्र के रूप में, यीशु पिता को पूरी तरह से प्रकट करता है कि एक को जानना दूसरे को जानना है (पद.10-11) l
अगर हमें कभी उत्सुकता होती है कि परमेश्वर अपने चरित्र, व्यक्तित्व, या दूसरों की परवाह करने में कैसा है, तो हमें जानने के लिए केवल यीशु की ओर देखने की ज़रूरत है l यीशु का चरित्र, दया, प्रेम और करुणा परमेश्वर का चरित्र प्रगट करते हैं l और यद्यपि हमारा अद्भुत, विस्मयकारी परमेश्वर हमारी पूरी समझ और बोध से परे है, यीशु में स्वयं के बारे में उसने जो प्रगट किया है उसमें हमारे पास एक जबरदस्त उपहार है l
अनुग्रह द्वारा सामर्थी
अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान, कर्तव्य छोड़कर भागने का दण्ड फांसी थी l लेकिन संघ की सेनाओं ने शायद ही कभी भागनेवालों को मृत्युदंड दिया, क्योंकि उनके कमांडर-इन-चीफ अब्राहम लिंकन ने उन सभी को माफ कर दिया था l इसने युद्ध के सचिव, एडविन स्टेनटन को व्यथित किया, जिनका यह मानना था कि लिंकन की उदारता भावी भागनेवालों को केवल प्रलोभित किया l लेकिन लिंकन ने उन सैनिकों के साथ सहानुभूति व्यक्त की, जिन्होंने अपनी साहस खो दी थी और जिन्होंने लड़ाई की ताप में अपने डर से हार मान लिया था l और उसकी सहानुभूति ने उसे उसके सैनिकों के लिए प्रिय बनाया l वे अपने “फादर अब्राहम” से प्यार करते थे, और उनके स्नेह ने सैनिकों को लिंकन की और अधिक सेवा करने की इच्छा दी l
जब पौलुस तीमुथियुस को “मसीह यीशु के एक अच्छे योद्धा के समान” उसके साथ “दुःख” उठाने के लिए बुलाता है (2 तीमुथियुस 2:3), तो वह उसे कठिन काम विवरण(job description) के लिए बुलाता है l एक सैनिक को पूरी तरह से समर्पित, कड़ी मेहनत करने वाला और निस्वार्थ होना चाहिए l उसे अपने कमान ऑफिसर, यीशु की सेवा पूरे हृदय से करना है l लेकिन वास्तव में, हम कभी-कभी उसके अच्छे सैनिक बनने में असफल होते हैं l हम हमेशा उसकी सेवा ईमानदारी से नहीं करते हैं l और इसलिए पौलुस का आरंभिक वाक्यांश महत्वपूर्ण है : “उस अनुग्रह से जो मसीह यीशु में है बलवंत हो जा” (पद.1) l हमारा उद्धारकर्ता अनुग्रह से भरा हुआ है l वह हमारी कमजोरियों में सहानुभूति रखता है और हमारी असफलताओं को क्षमा करता है (इब्रानियों 4:15) l और जिस तरह लिंकन की करुणा ने संघ के सैनिकों को प्रोत्साहित किया, उसी तरह यीशु के अनुग्रह से विश्वासियों को बल मिलता है l हम उसकी और अधिक सेवा करना चाहते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि वह हमसे प्यार करता है l