अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान,  राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन एक बार खुद को एक राजनेता को खुश करते हुए पाया, तो उन्होंने कुछ केंद्रीय सेना रेजिमेंटों(सैन्य दलों) को स्थानांतरित करने का आदेश जारी किया l जब युद्ध के सचिव,  एडविन स्टैंटन को आदेश मिला,  तो उन्होंने इसे अंजाम देने से इनकार कर दिया l उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति मूर्ख थे l लिंकन को बताया गया कि स्टैंटन ने क्या कहा था,  और उन्होंने उत्तर दिया : “अगर स्टैंटन ने कहा कि मैं मूर्ख हूँ,  तो मुझे होना चाहिए,  क्योंकि वे लगभग हमेशा सही है l मैं अपने लिए देखूँगा l”  जब दोनों लोगों ने बात की,  राष्ट्रपति ने जल्द समझ लिया कि उनका निर्णय एक गंभीर गलती थी,  और बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने इसे वापस ले लिया l यद्यपि स्टैंटन ने लिंकन को मूर्ख कहा था,  लेकिन जब स्टैंटन उनसे असहमत थे,  तो राष्ट्रपति ने अड़ियल ढंग से इन्कार न करके बुद्धिमान साबित हुए l इसके बजाय,  लिंकन ने सलाह सुनी,  उस पर विचार किया और अपना विचार बदल दिया l

क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति का सामना किया है जो महज बुद्धिमान सलाह नहीं सुनता था? (1 राजा 12:1-11 देखें) l यह क्रोधित करनेवाला हो सकता है,  क्या यह नहीं हो सकता?  या, और भी व्यक्तिगत,  क्या आपने कभी सलाह मानने से इनकार किया है?  जैसा कि नीतिवचन 12:15 कहता है, “मूढ़ को अपनी ही चाल सीधी जान पड़ती है, परन्तु जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान है l लोग हमेशा सही नहीं हो सकते,  लेकिन हमारे लिए भी वैसा ही है! यह जानते हुए कि हर कोई गलतियाँ करता है,  केवल मूर्ख यह मानते हैं कि वे अपवाद हैं l इसके बजाय,  आइए ईश्वरीय बुद्धिमत्ता का अभ्यास करें और दूसरों के बुद्धिमान सलाह सुने ─भले ही हम शुरू में असहमत हों l कभी-कभी परमेश्वर हमारे अच्छे (पद. 2) के लिए ऐसे ही काम करता है l