मेरी बाईं आंख में एक दर्दनाक मामूली सर्जरी के बाद,  मेरे डॉक्टर ने दृष्टि परीक्षण की सिफारिश की l आत्मविश्वास के साथ,  मैंने अपनी दाहिनी आंख को ढक लिया और चार्ट पर प्रत्येक पंक्ति को आसानी से पढ़ा l अपनी बाईं आंख को ढँकने पर,  मैं धक से रह गयी l मैं कैसे महसूस नहीं कर सकी कि मैं इतनी अंधी थी?

नए चश्मे और नवीनीकृत दृष्टि के साथ तालमेल बिठाते हुए,  मैंने सोचा कि कैसे दैनिक अभ्यास मुझे अक्सर आध्यात्मिक निकट दृष्टि वाली बना दी l केवल उसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करना,  जिसे मैं अति निकट देख सकती थी—मेरे दर्द और हमेशा बदलती परिस्थितियाँ —मैं अपने शाश्वत और अपरिवर्तनीय परमेश्वर की ईमानदारी के प्रति अंधी हो गयी l इस तरह के सीमित परिप्रेक्ष्य के साथ,  आशा एक अप्राप्य धुंधलापन बन गया l

पहला शमूएल 1 एक अन्य महिला की कहानी बताता है जो अपनी वर्तमान पीड़ा,  अनिश्चितता और नुकसान पर ध्यान केंद्रित करते हुए परमेश्वर की विश्वसनीयता को पहचानने में विफल रही l सालों तक, हन्ना ने अपने पति एलकाना की दूसरी पत्नी पन्निना से संतानहीनता और अंतहीन पीड़ा को सहन किया l हन्ना के पति ने उसे स्वीकार किया,  लेकिन संतोष उससे दूर रहा l एक दिन,  उसने अत्यधिक ईमानदारी के साथ प्रार्थना की l जब एली याजक ने उससे पूछा,  तो उसने अपनी स्थिति बताई l जब वह चली गई,  तो उसने प्रार्थना की कि परमेश्वर उसके अनुरोध को स्वीकार करे (1 शमूएल 1:17) l  हालाँकि हन्ना की स्थिति में तुरंत बदलाव नहीं आया,  लेकिन वह आत्मविश्वास की उम्मीद के साथ वापस गयी (पद.18) l

1 शमूएल 2:1-2 में हन्ना की प्रार्थना उसके ध्यान में बदलाव दर्शाती है l उसकी परिस्थितियों में सुधार होने से पहले,  हन्ना के नए दर्शन ने उसके दृष्टिकोण और उसके व्यवहार को बदल दिया l वह परमेश्वर की निरंतर उपस्थिति में आनन्दित थी─उसकी चट्टान और और हमेशा की आशा l