रिपोर्ट में अत्यधिक सूखे,  गर्मी और आग की “गंभीर कहानी” बताया गया था l वर्णन में केवल अल्प वर्षा के साथ एक भयावह वर्ष का वर्णन किया गया था,  जिसमें सूखी झाड़ियाँ ईंधन में बदल गईं l भड़की आग ने ग्रामीण इलाकों को जला दिया l मछलियाँ मर गईं l फसलें बर्बाद हो गईं l सब कुछ क्योंकि उनके पास एक साधारण संसाधन नहीं था, हम जिसका महत्व् नहीं समझते हैं─जल, जिसकी आवश्यकता हम सब को जीने के लिए होती है l

इस्राएल ने खुद को भयानक दुविधा में पाया l जब लोगों ने धूल,  बंजर रेगिस्तान में डेरा डाला, हमने इस खतरनाक पंक्ति को पढ़ा : “लोगों को पीने का पानी न मिला” (निर्गमन 17:1) l लोग भयभीत थे l उनके गले सूख गए थे l रेत गर्म हो गई l उनके बच्चों को अत्यधिक प्यास लगी l भयभीत,  लोगों ने “मूसा से वादविवाद किया,” “हमें पीने का पानी दे” (पद.2) l लेकिन मूसा क्या कर सकता था?  वह केवल परमेश्वर के पास जा सकता था l

और परमेश्वर ने मूसा को अजीब निर्देश दिए : “लोगों . . . को . . . साथ ले ले . . . चट्टान पर [मार], तब उसमें से पानी निकलेगा, जिससे ये लोग पीएँ” (पद.5-6) l इसलिए मूसा ने चट्टान को मारा,  और बहुत पानी फूट निकला, जो लोगों और उनके पशुओं के लिए बहुत था l उस दिन, इस्राएल जान गया कि उनका परमेश्वर उनसे प्रेम करता था l उनका परमेश्वर उनके लिए अत्यधिक जल का प्रबंध किया l

यदि आप जीवन में सूखा या निष्फलता का सामना कर रहे हैं,  तो जान लें कि परमेश्वर इसके बारे में जानता है और वह आपके साथ है l जो कुछ भी आपकी जरूरत है,  आपकी जो भी कमी है, आप उसके प्रचुर जल में आशा और ताजगी प्राप्त कर सकते हैं l