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Articles by डेव ब्रेनन

अवरुद्ध प्रार्थनाएँ

14 सालों तक, मार्स रोवर ऑपॉर्चुनिटी (Mars Rover Opportunity) ने नासा(NASA) के जेट प्रणोदन प्रयोगशाला (jet Propulsion Laboratory) में लोगों के साथ विश्वासयोग्यता से संवाद किया । 2004 में उतरने के बाद, वह मंगल की सतह पर 28 मील चला, हजारों तस्वीरें खींची, और अनेक सामग्रियों का विश्लेषण किया । लेकिन 2018 में, ऑपॉर्चुनिटी (Opportunity) और वैज्ञानिकों के बीच संवाद समाप्त हो गया जब धूल की एक बड़ी आंधी ने उसके सोलर पैनल को ढक दिया जिसकी वजह से रोवर ने अपनी शक्ति खो दी ।

क्या यह सम्भव है कि हम अपनी दुनिया से बाहर किसी के साथ संवाद को अवरुद्ध करने के लिए “धूल” को अनुमति दे सकते हैं? जब प्रार्थना की बात आती हैं──परमेश्वर के साथ संवाद करने में──कुछ चीजें हैं जो रास्ते में आ सकती हैं ।

पवित्रशास्त्र कहता है कि पाप परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते को अवरुद्ध कर सकता है । “यदि मैं मन में अनर्थ की बात सोचता, तो प्रभु मेरी न सुनता” (भजन 66:18) l यीशु निर्देश देता है, “और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्थना करते हो तो यदि तुम्हारे मन में किसी के प्रति कुछ विरोध हो, तो क्षमा करो : इसलिये कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा करें” (मरकुस 11:25) । प्रभु के साथ हमारा संवाद संदेह और रिश्ते की समस्याओं के द्वारा भी बाधित हो सकता है (याकूब 1:5-7;1 पतरस 3:7) l 

ऑपॉर्चुनिटी (Opportunity) के संवाद की रुकावट स्थायी हो सकती है । पर हमारी प्रार्थनाओं को अवरुद्ध नहीं होनी चाहिए । पवित्र आत्मा के काम के द्वारा, परमेश्वर हमें उसके साथ पुनर्स्थापित संवाद के लिए प्यार से अपनी ओर खींचता है । जब हम अपने पापों का अंगीकार करते हैं और उसकी ओर मुड़ते हैं, प्रभु के अनुग्रह के द्वारा हम सबसे बड़े संवाद का अनुभव करते हैं जो कायनात ने कभी जाना है : एक एक के साथ हमारे और पवित्र परमेश्वर के बीच प्रार्थना l 

यीशु की कुर्सी

जब मेरी सहेली मार्ज बाइबल अध्ययन सभा में तामी से मिली, उसने देखा कि उनमें कुछ सामानता है । परन्तु मार्ज ने उससे दोस्ती की, और उसने अपने नए मित्र से मूल्यवान पाठ सीखा l 

तामी कभी भी किसी बाइबल अध्ययन में नहीं गयी थी, और उसे कुछ समझने में कठिनाई हो रही थी जिसके विषय दूसरी महिलाएं अध्ययन में बातें कर रही थीं : कि परमेश्वर उनसे बातें करता था──कुछ जिसका उसने कभी भी अनुभव नहीं किया था l 

वह परमेश्वर से बहुत सुनना चाहती थी इसलिए उसने कार्य किया l बाद में, उसने मार्ज से बताया l मैंने एक ओर एक पुरानी कुर्सी रखी, और हर समय जब मैं बाइबल पढ़ती हूँ, मैं यीशु से आकर उसमें बैठने को कहती हूँ l” तब तामी ने समझाया कि जब भी कोई पद उसे अलग से दिखाई देता था, वह उस पद को चोक/खड़िया से कुर्सी पर लिख दिया करती थी l यह उसके लिए विशेष बन गयी है “यीशु की कुर्सी,” और उसने उसे परमेश्वर के संदेशों से भर दिया है जो उसे सीधे बाइबल से मिले l 

मार्ज कहती है, “[यीशु की कुर्सी] ने {तामी] के जीवन को बदल दिया है l वह आत्मिक रूप से उन्नति कर रही है क्योंकि बाइबल व्यक्तिगत बन गयी है l 

यहूदी विश्वासियों से बात करते समय, यीशु ने कहा, ‘‘यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे । तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा” (यूहन्ना 8:31-32) l हम उसके शिक्षाओं में बने रहे, चाहे उसके शब्दों को कुर्सी पर लिखना हो, उन्हें याद करना हो, या उन्हें व्यवहारिक बनाने की इच्छा हो l मसीह के संदेश की सच्चाई और बुद्धिमत्ता हमें उसमें बढ़ने में मदद करता है और हमें आजाद करता है ।

यह वह है जिसे आप जानते हैं

2019 की शुरुआत में, चार्ली वेंडरमीयर की अस्सी की उम्र में मृत्यु हो गई l राष्ट्रीय रेडियो प्रसारण चिल्ड्रन बाइबल आवर(Children’s Bible Hour) के इस होस्ट/प्रस्तुतकर्ता को कई दशकों तक,  हजारों हजार लोग अंकल चार्ली के रूप में जानते थे l अंकल चार्ली की मृत्यु से एक दिन पहले, उन्होंने एक अच्छे दोस्त से कहा, "यह वह नहीं है की आप क्या जानते हैं,  पर यह की आप किसे जानते हैं" l बेशक,  मैं यीशु मसीह के बारे में बात कर रहा हूँ l”

जैसे ​​कि जब उन्होंने अपने जीवन के अंत का सामना किया,  तो अंकल चार्ली यीशु के विषय बात करने से और लोगों का उसे अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करने की ज़रूरत से खुद को रोक नहीं सके l

प्रेरित पौलुस यीशु को जानना ही सबसे महत्वपूर्ण कार्य समझा : “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूँ l जिसके कारण में ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूँ, जिससे मैं मसीह को प्राप्त करूं” (फिलिप्पियों 3:8) l और हम यीशु को कैसे जान सकते है? “यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकार अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा” (रोमियों 10:9) l

हम यीशु के बारे में तथ्यों को जान सकते हैं,  हम चर्च के बारे में सब कुछ जान सकते हैं,  और हम बाइबल से भी परिचित हो सकते हैं l  लेकिन यीशु को उद्धारकर्ता के रूप में जानने का एकमात्र तरीका उसके उद्धार के मुफ्त उपहार को स्वीकार करना है l यही तो वह है जिसे हमें जानना है l

“अत्यधिक मददगार”

क्रिश्चियन रेडियो स्टेशन पर कॉल करने वाले ने कहा कि उसकी पत्नी सर्जरी के बाद अस्पताल से घर आ रही थी l फिर उसने कुछ ऐसा साझा किया जो मेरे हृदय से गहराई से बात की :  “हमारे चर्च परिवार में हर कोई इस दौरान हमारी देखभाल करने में अत्यंत मददगार रहा है l

जब मैंने यह सरल कथन सुना,  तो इसने मुझे मसीही आतिथ्य और देखभाल के मूल्य और आवश्यकता की याद दिला दी l मैं सोचने लगा कि एक दूसरे के लिए सह विश्वासियों का प्यार और समर्थन,  सुसमाचार की जीवन-बदलनेवाली सामर्थ्य को प्रदर्शित करने का सबसे बड़ा तरीका है l

पहले पतरस में,  प्रेरित पहली शताब्दी कलीसियाओं में जो वर्तमान में तुर्की देश है प्रसारित करने हेतु एक पत्र लिख रहा था l उस पत्र में,  उसने अपने पाठकों को ऐसा कुछ करने के लिए विवश किया जिसके विषय उसके मित्र पौलुस ने रोमियों 12:13 में लिखा था : “पहुनाई करने में लगे रहो l” पतरस ने कहा, “एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो . . . अतिथि सत्कार करो,” और उसने  उनसे कहा कि परमेश्वर द्वारा प्रदत्त वरदानों का उपयोग “दूसरे की सेवा” करने में करो (1 पतरस 4:8-10) l यीशु के सभी विश्वासियों के लिए ये स्पष्ट निर्देश हैं कि हमें साथी विश्वासियों के साथ कैसा व्यवहार करना है l

हम सभी लोग उस फोन करने वाले की पत्नी के समान लोगों को जानते हैं─वे जिनके पास किसी के आने और ख्रीस्तीय देखभाल दिखाने की ज़रूरत है l परमेश्वर की सामर्थ्य में,  हम उन लोगों के समान हो जाएँ जो “अत्यधिक मददकार” होने के लिए जाने जाते हैं l

परमेश्वर से गिड़गिड़ाना

एक सुबह एक परिवार की प्रार्थना का समय एक आश्चर्यजनक घोषणा के साथ समाप्त हुआ l जैसे ही पिताजी ने कहा, “आमीन,” पाँच वर्षीय कवि ने प्रगट की, “और मैंने जॉन के लिए प्रार्थना की, क्योंकि प्रार्थना के दौरान उसकी आँखें खुली थीं l”
मुझे पूरा यकीन है कि आपके दस वर्षीय भाई के प्रार्थना औचित्य(protocol) के लिए प्रार्थना करना हमारे लिए पवित्रशास्त्र का लक्ष्य नहीं है, जब यह हमें परहित प्रार्थना करने के लिए कहता है, लेकिन कम से कम कवि को एहसास हुआ कि हम दूसरों के लिए प्रार्थना कर सकते हैं l
बाइबल शिक्षक ऑसवॉलल्ड चेम्बर्स ने किसी और के लिए प्रार्थना करने के महत्व पर जोर दिया l उन्होंने कहा कि “मध्यस्थता की प्रार्थना अपने आप को परमेश्वर के स्थान पर रखना है; यह आपके भीतर उसका मन और दृष्टिकोण का होना है l” यह उस प्रकाश में दूसरों के लिए प्रार्थना करना है कि हम परमेश्वर के विषय और हमारे लिए उसके प्रेम के बारे में क्या जानते हैं l
हम दानिय्येल 9 में मध्यस्थता की प्रार्थना का एक बड़ा उदाहरण पाते हैं l नबी ने परमेश्वर के परेशान करने वाले वादे को समझ लिया कि यहूदी बेबीलोन में सत्तर साल के दासत्व में रहेंगे (यिर्मयाह 25:11-12) l यह महसूस करते हुए कि वे वर्ष पूरा होने के करीब थे, दानिय्येल प्रार्थना के भाव में चला गया l उसने परमेश्वर की आज्ञाओं का हवाला दिया (दानिय्येल 9:4-6), खुद को दीन किया (पद.8), परमेश्वर के चरित्र को आदर दिया (पद.9), पाप स्वीकार किया (पद.15), और उसकी दया पर निर्भर हुआ जब वह अपने लोगों के लिए प्रार्थना करता था (पद.18) l और उसे परमेश्वर का तत्काल उत्तर मिला (पद.21) l
इस तरह की नाटकीय प्रतिक्रिया के साथ सभी प्रार्थनाएं समाप्त नहीं होती हैं, लेकिन हम इस बात के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं कि हम दूसरों के लिए परमेश्वर पर विश्वास और निर्भरता के साथ जा सकते हैं l

दृढ़ता से थामे रहें

हैरियट टबमैन उन्नीसवीं सदी के महान अमेरिकी नायकों में से एक थी l जब वह उत्तर संयुक्त राज्य अमेरिका के मुक्त क्षेत्र में प्रवेश करके दासता से बच गई l उल्लेखनीय साहस दिखाते हुए, उसने तीन सौ से अधिक साथी गुलामों को स्वतंत्रता के लिए राह दिखाया केवल अपनी स्वतंत्रता का आनंद लेने से असंतुष्ट, उसने मित्रों, परिजनों, और अजनबियों को स्वतंत्रता के लिए नेतृत्व करने के लिए दास राज्यों में उन्नीस बार लौटने की जोखिम उठाई, कभी-कभी तो कनाडा तक लोंगों को पैदल राह दिखाई l
टबमैन को ऐसी बहादुर कार्य के लिए किसने प्रेरित किया? एक गहरा विश्वास वाली महिला, उसने एक समय यह कहा था : “मैंने हमेशा परमेश्वर से कहा, मैं आपको थामे रहूंगी, और आपको मुझे देखना होगा l” जब वह लोगों को गुलामी से बाहर निकालती थी परमेश्वर के मार्गदर्शन पर उसकी निर्भरता उसकी सफलता की एक बानगी(hallmark) थी l
परमेश्वर को “दृढ़ता से थामने” का क्या अर्थ है? यशायाह की भविष्यवाणी में एक पद हमें यह देखने में मदद कर सकता है कि वास्तव में यह वही है जो हमें अपने हाथों से थाम लेता है l यशायाह ने परमेश्वर को उद्धृत किया, जिसने कहा, “मैं तेरा परमेश्वर यहोवा, तेरा दाहिना हाथ पकड़कर कहूँगा, ‘मत डर, मैं तेरी सहायता करूंगा’” (41:13) l
हेरियट ने परमेश्वर को दृढ़ता से पकड़ रखा था, और उसने उसे पार पहुँचाया l आप किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं? जब वह आपके हाथ और आपके जीवन को “थाम” लेता है परमेश्वर को दृढ़ता से थामे रहेंl “मत डर” वह आपकी मदद करेगा l

सभी सड़कें?

“राजमार्ग पर नहीं जाइएगा!” ये शब्द मेरी बेटी के थे जब मैं काम से लौटने पर था l राजमार्ग प्रत्यक्ष रूप से पार्किंग स्थल बन चूका था l मैंने वैकल्पिक मार्गों की कोशिश शुरू कर दी, दूसरी सड़कों पर रूकावट का अनुभव करने के बाद, मैंने हार मान ली l इस कारण मैं विपरीत दिशा में एक एथलेटिक प्रतियोगिता में गया जिसमें मेरी नातिनी भाग ले रही थी l

यह जानकार कि कोई भी सड़क मुझे घर नहीं ले जाएगी,  मैं ऐसे लोगों के बारे में सोचने को विवश हुआ जो कहते हैं कि सभी सड़कें परमेश्वर के साथ एक शाश्वत संबंध बनाने में अगुवाई करती हैं l कुछ का मानना ​​है कि दयालुता और अच्छे व्यवहार का मार्ग आपको वहां पहुंचाएगा l  दूसरे लोग धार्मिक काम करने की राह चुनते हैं l

उन सड़कों पर भरोसा करना,  हालांकि,  एक बंद गली की ओर जाता है l परमेश्वर की शाश्वत उपस्थिति तक ले जाने वाली केवल एक सड़क है l यीशु ने इसे स्पष्ट किया जब उसने कहा, “मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता” (यूहन्ना 14:6) l वह प्रकट कर रहा था कि वह हमारे लिए मृत्यु सहने जा रहा था कि पिता के घर में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करें – उसकी उपस्थिति तक और वर्तमान और अनंत काल तक के लिए वास्तविक जीवन l

उन अवरुद्ध राजमार्गों को छोड़ दें जो परमेश्वर की उपस्थिति तक नहीं ले जाते हैं l इसके बजाय,  यीशु पर उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास करें,  क्योंकि “जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनंत जीवन उसका है” (3:36) l और जो लोग पहले से ही उस पर विश्वास करते हैं, उस मार्ग में विश्राम करें जिसका उसने प्रबंध किया है l

बच्चे को क्या नाम दिया जाए

यहाँ एक वार्तालाप है जो मरियम को युसूफ के साथ करने की आवश्यकता नहीं थी जब वे उस बच्चे के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे थे जिससे वह गर्भवती थी : “युसूफ,  हमें बच्चे का नाम क्या रखना चाहिए?” एक जन्म का इंतजार करने वाले अधिकांश लोगों के विपरीत,  उनके पास इस बारे में कोई सवाल नहीं था कि वे इस बच्चे को किस नाम से पुकारेंगे l

जो स्वर्गदूत मरियम से और फिर यूसुफ से मिले उन्होंने दोनों को बताया कि बच्चे का नाम यीशु होगा (मत्ती 1: 20–21; ल्यूक 1: 30–31) । युसूफ को दिखाई देनेवाले स्वर्गदूत ने बताया कि यह नाम संकेत करता है कि बालक “अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा l”

उसे “इम्मानुएल” भी पुकारा जाएगा (यशायाह 7:14), जिसका अर्थ है "परमेश्वर हमारे साथ,”  क्योंकि वह मानव रूप में ईश्वर होगा – खुदा जो कपड़े में लिपटा हुआ है l नबी यशायाह ने अन्य नामों को प्रगट किया “अद्भुत युक्ति करनेवाला, पराक्रमी परमेश्वर, अनंतकाल का पिता, और शांति का राजकुमार” (9:6),  क्योंकि वह सब होगा l

एक नए बच्चे को नाम देना हमेशा रोमांचक होता है l लेकिन किसी अन्य बच्चे का इतना शक्तिशाली,  रोमांचक,  विश्व-परिवर्तन करने वाला नाम नहीं था जैसा कि "यीशु जिसे मसीहा/Messiah कहा जाता है" (मत्ती 1:16) । हमारे लिए प्रभु यीशु मसीह के नाम को पुकारना” कितना रोमांचक है (1 कुरिन्थियों 1:2)! कोई अन्य नाम नहीं है जो बचाता है (प्रेरितों 4:12) l

आइए यीशु की प्रशंसा करें और सब कुछ पर चिंतन करें जो वह हमारे लिए इस क्रिसमस के मौसम में अर्थ रखता है!

अपनी भूमिका निभाना

जब मेरी दो पोतियों ने एलिस इन वंडरलैंड जूनियर में भूमिका के लिए कोशिश की जो कि बच्चों की एक अग्रेजी पुस्तक पर आधारित है, तो उनके मन में था कि उन्हें अग्रणी भूमिका मिल जाए l लेकिन उन्हें फूल बनने के लिए चुना गया था । पूरी तरह से बड़ी भूमिका नहीं l

फिर भी मेरी बेटी ने कहा कि वे अपने दोस्तों के लिए उत्साहित थीं जिन्हें [प्रमुख भूमिकाएँ] मिलीं । उनका आनंद उनके दोस्तों के लिए अधिक उत्साहजनक और उनके उत्साह में साझेदारी थी ।”

मसीह के शरीर में हमारी एक-दूसरे के साथ बातचीत कैसी होनी चाहिए, इसकी एक बेहतरीन तस्वीर! प्रत्येक स्थानीय चर्च के पास वह है जिन्हें प्रमुख भूमिकाएं मानी जा सकती हैं । लेकिन इसमें फूलों की भी जरूरत होती है - जो महत्वपूर्ण कार्य करते हैं लेकिन उच्च-प्रोफ़ाइल कार्य नहीं करते हैं । यदि दूसरों को वे भूमिकाएँ मिलती हैं जो हमारी इच्छा थी, तो हम उन्हें प्रोत्साहित करने का विकल्प चुन सकते हैं, जब हम ईश्वर द्वारा हमें दी गई भूमिकाओं को पूरी लगन से पूरा करते हैं ।

वास्तव में, दूसरों की मदद करना और उन्हें प्रोत्साहित करना उसके(यीशु) लिए प्यार दिखाने का एक तरीका है । इब्रानियों 6:10 कहता है, “परमेश्वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिए इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की l” और उनके हाथ से कोई उपहार महत्वहीन नहीं है : “जिसको जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भंडारियों के समान एक दूसरे की सेवा में लगाए” (1 पतरस 4:10) ।

महज एक प्रोत्साहित करनेवाली कलीसिया की कल्पना करें जो अपने ईश्वर प्रदत्त उपहारों को परिश्रम के साथ उसके सम्मान के लिए उपयोग करती है (इब्रानियों 6:10) l अब यह खुशी और उत्साह का सृजक है l