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Articles by जेम्स बैंक्स

प्रेम और पुरानी जूती

कभी-कभी हम दोनों पति-पत्नी एक दूसरे के वाक्य पूरी करते हैं l हम तीस वर्षों के वैवाहिक जीवन में एक दूसरे की सोच और बात करने से बहुत अधिक परिचित हैं l हमें किसी वाक्य को पूरा करने की ज़रूरत नहीं; केवल एक शब्द अथवा एक झलक किसी विचार को ज़ाहिर करने के लिए पर्याप्त है l

इसमें सुख है-एक जोड़ी पुरानी जूती की तरह जिसे आप पहनते हैं क्योंकि वे अच्छे से पैरों में आ जाती है l कभी-कभी हम एक दूसरे को प्रेमपूर्वक “मेरी पुरानी जूती” भी पुकारते हैं-ऐसा अभिनन्दन जिसे आप समझ नहीं पाएंगे यदि आप हमें अच्छी तरह जानते नहीं हैं l हमारे वर्षों के सम्बन्ध ने अभिव्यक्तियों के साथ अपनी एक भाषा बना ली है, जो दशकों  के प्रेम और भरोसा का परिणाम है l

यह जानना सुखकर है कि परमेश्वर हमें गहरी अंतरंगता से प्रेम करता है l दाऊद ने लिखा, “हे यहोवा, मेरे मुँह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो” (भजन 139:4) l यीशु के साथ एक शांत बातचीत की कल्पना करें जब आप उसे अपने हृदय की गहरी बातें बता रहें हों l बोलने में कठिनाई होने पर, वह परिचित होने की मुस्कराहट के साथ आपकी बाते पूरी करता है l कितना भला है कि परमेश्वर के साथ बातचीत में सही शब्दों की ज़रूरत नहीं होती! वह हमें समझने के लिए हमें पर्याप्त प्रेम करता और जानता है l

यीशु पर निर्भरता

कभी-कभी रात में अपनी तकिया पर सिर रखकर प्रार्थना करते वक्त मैं कल्पना करता हूँ जैसे मैं यीशु पर टिका हुआ हूँ l ऐसा करते समय मैं परमेश्वर के वचन में वर्णित प्रेरित यूहन्ना को स्मरण करता हूँ l यूहन्ना खुद के विषय लिखता है कैसे अंतिम भोज में वह यीशु के निकट था l “उसके चेलों में से एक जिससे यीशु प्रेम रखता था, यीशु ... की ओर झुका हुआ बैठा था” (यूहन्ना 13:23) l

यूहन्ना “[चेला] जिससे यीशु प्रेम रखता था” शब्दों का प्रयोग अपना नाम लिए बगैर अपने लिए करता है l वह प्रथम-शताब्दी इस्राएल का एक ख़ास भोज विन्यास दर्शाता  है, जब मेज आज से नीचे, लगभग घुटने तक हुआ करता था l बिना कुर्सियों के मेज के चारों ओर चटाई अथवा गद्दियों पर बैठना स्वाभाविक था l यूहन्ना प्रभु के करीब बैठे हुए प्रश्न पूछते समय “यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था” (यूहन्ना 13:23) l

उस समय यूहन्ना की यीशु से निकटता आज हमारे जीवनों के लिए एक उदाहरण है l हम यीशु को स्पर्श नहीं कर सकते किन्तु अपनी कठिनतम परिस्थितियाँ उसे सौंप सकते हैं l उसने कहा, “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरी पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा” (मत्ती 11:28) l हमारे हर परिस्थिति में हमारे साथ विश्वासयोग्य रहनेवाला उद्धारकर्ता पाकर हम धन्य हैं! क्या आज आप उस पर “टिके हुए” हैं?

स्मरण रखें कब

हमारा बेटा नशीली दवाओं की लत से सात वर्षों तक संघर्ष करता रहा, और उन दिनों में मेरी पत्नी और मैं अनेक कठिन दिनों का अनुभव किये l जब हम उसकी आरोग्यता के लिए प्रार्थना करके ठहरे रहे, हमने छोटी-छोटी जीत का उत्सव मनाना सीखा l चौबीस घंटे में कुछ बुरा नहीं होने पर, हम एक दूसरे से बोलते, “आज का दिन अच्छा था l” यह छोटा वाक्य परमेश्वर की छोटी-से-छोटी सहायता के लिए धन्यवादी बनने की ताकीद बन गयी l

भजन 126:3 में परमेश्वर की कोमल करुणा की और बेहतर ताकीद है और वे हमारे लिए आख़िरकार क्या अर्थ रखते हैं : यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े काम किये हैं; और इससे हम आनंदित हैं l” क्रूस पर यीशु की करुणा को स्मरण करते हुए यह पद हमारे लिए कितनी बड़ी ताकीद है! किसी भी प्राप्त दिन की कठिनाइयाँ इस सच्चाई को बदल नहीं सकती कि जो भी आए, हमारे प्रभु ने हमें अगम दयालुता दिखाई है, और “उसकी करुणा सदा की है” (भजन 136:1) l

कठिन परिस्थिति से निकलकर परमेश्वर की विश्वासयोग्यता अनुभव करने के बाद, हमें जीवन में आनेवाली कठिनाई में बहुत अधिक सहायता मिलती है l हमें यह ज्ञात नहीं परमेश्वर हमारी परिस्थिति में हमें कैसे ले चलेगा, किन्तु अतीत में उसकी करुणा हमें उसकी सहायता का भरोसा देता है l

किसी का उत्सव मनाना

चरनी के अनेक दृश्यों में, ज्योंतिषियों को चरवाहों के साथ बेतलहम में यीशु से मिलते दर्शाया जाता है l किन्तु मत्ती के सुसमाचार के अनुसार, ज्योतिषी यीशु से मिलने एक घर में आते हैं l वह एक सराए के गौशाले की चरनी में  नहीं था l मत्ती 2:11 हमें बताता है, “उन्होंने उस घर में पहुँचकर उस बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, और मुँह के बल गिरकर बालक को प्रणाम किया, और अपना-अपना थैला खोलकर उसको सोना, और लोबान, और गंधरस की भेंट चढ़ाई l”

यह जानकार कि ज्योतिषी बाद में यीशु से मिलने आए हमें नया वर्ष आरंभ करते समय एक ताकीद मिलती है l छुट्टियों के बाद जब हम पुनः अपने दिनचर्या में लौटते हैं, हमारे पास अभी भी कोई है जिसके साथ हम उत्सव माना सकते हैं l

यीशु मसीह प्रत्येक मौसम में इम्मानुएल, “परमेश्वर हमारे साथ” है (मत्ती 1:23) l उसने “सदा” (28:20) हमारे साथ रहने का वादा किया है l क्योंकि वह सदा हमारे साथ है, हम अपने हृदयों में उसकी आराधना प्रतिदिन कर सकते हैं और भरोसा कर सकते हैं कि वह आनेवाले वर्षों में भी विश्वासयोग्य रहेगा l जैसे ज्योतिषियों ने उसको खोजा, हम भी उसको अपने स्थान पर खोजें और उपासना करें l

अपनी प्रार्थना द्वारा परमेश्वर की सेवा

परमेश्वर अक्सर हमारी प्रार्थनाओं द्वारा अपने कार्य संपन्न करने का चुनाव करता है l ऐसे हम पाते हैं जब परमेश्वर ने एलिय्याह नबी से यह कहकर, “मैं भूमि पर मेंह बरसाऊंगा,” इस्राएल में साढ़े तीन वर्षों के अकाल को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की (याकूब 5:17) l परमेश्वर द्वारा वर्षा की प्रतिज्ञा करने के बावजूद, कुछ समय बाद “एलिय्याह कर्मेल की चोटी पर चढ़ गया, और भूमि पर गिरकर अपना मुँह घुटनों के बीच [करके]”-वर्षा के लिए साभिप्राय प्रार्थना किया (1 राजा 18:42) l तब, प्रार्थना करते हुए, एलिय्याह ने “सात बार” अपने सेवक को समुद्र की ओर वर्षा के आने का संकेत देखने के लिए भेजा (पद.43) l

एलिय्याह समझ गया था कि परमेश्वर चाहता है कि हम दीन, और निरंतर प्रार्थना के द्वारा उसके कार्य में संलग्न हों l हमारे मानवीय सीमाओं के बावजूद, परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं द्वारा आश्चर्यजनक कार्य करता है l इसलिए याकूब की पत्री हमें ताकीद देते हुए कि “एलिय्याह हमारे सामान दुःख-सुख भोगी मनुष्य था” हमसे कहती है कि “धर्मी जन की प्रार्थना के प्रभाव से बहुत कुछ हो सकता है” (याकूब 5:16-17) l

जब हम एलिय्याह की तरह विश्वासयोग्य प्रार्थना द्वारा परमेश्वर की सेवा करने का लक्ष्य बना लेते हैं, हम एक खुबसूरत अवसर के हिस्से हैं-जब परमेश्वर हमारे द्वारा किसी समय आश्चर्यकर्म कर सकता है l

शांत संवाद

क्या कभी आप खुद से बात करते हैं? कभी-कभी किसी योजना पर कार्य करते हुए-अक्सर कार के अन्दर-मैं मरम्मत के लिए जोर-जोर से बोलकर, सर्वोत्तम विकल्प ढूंढ़ता हूँ l किसी का मुझे “संवाद” करते हुए देखना लज्जाजनक हो सकती है-यद्यपि हममें से अनेक प्रतिदिन खुद से बातचीत करते हैं l

भजनकार अक्सर भजनों में खुद से संवाद करते थे l भजन 116 का लेखक अलग  नहीं है l पद 7 में उसने लिखा, “हे मेरे प्राण, तू अपने निवासस्थल में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है l” अतीत में परमेश्वर की भलाई और विश्वासयोग्यता खुद को याद दिलाना वर्तमान में उसके लिए व्यावहारिक सुख और सहायता है l हम अक्सर इस तरह के “संवाद” भजनों में देखते हैं l भजन 103:1 में दाऊद खुद से बोलता है, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कर; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे l” और भजन 62:5 में वह दृढ़तापूर्वक कहता है, “हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है l”

खुद को परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और उसमें अपनी आशा याद करना भला है l हम भजनकार के उदहारण का अनुसरण करके खुद के प्रति परमेश्वर की अनेक भलाइयों को नाम-ब-नाम याद कर सकते हैं l ऐसा करके हम उत्साहित होते हैं l अतीत में विश्वासयोग्य रहनेवाला परमेश्वर भविष्य में भी अपना प्रेम दिखाता रहेगा l

घर की चाह

मेरी पत्नी ने कमरे में आकर मुझे बड़ी घड़ी की आलमारी में झांकते देखा l “आप क्या कर रहे हैं?” उसने पुछा l इस घड़ी की महक मेरे माता-पिता के घर जैसी है,” मैंने दरवाज़ा बंद करते हुए सुस्ती से जवाब  दिया l “मेरा अनुमान है आप सोचते होंगे मुझे घर की याद आ रही थी l”

गंध प्रबल यादें जगाता है l हम उस घड़ी को 20 वर्ष पहले अपने माता-पिता के घर से लाए थे, किन्तु उसके अन्दर की लकड़ी की खुशबू आज भी मुझे मेरे बचपन की याद दिलाती है l

इब्रानियों का लेखक दूसरों के विषय बताता है जो और ही तरीके से घर की चाह रखते थे l अतीत में झाँकने की जगह, वे विश्वास से स्वर्गिक घर की ओर देख रहे थे l यद्यपि उनकी आशा बहुत दूर थी, उनका भरोसा था कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए उनको ऐसे स्थान में ले जाएगा जहाँ वे उसके साथ सर्वदा रहेंगे (इब्रा. 11:13-16) l

फिलिप्पियों हमें याद दिलाता है कि “हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है,” और हमें “एक उद्धारकर्ता  प्रभु यीशु मसीह के वहाँ से आने की बाट [जोहना है] l” यीशु को देखने की और परमेश्वर की प्रतिज्ञानुसार उससे सब कुछ प्राप्त करने की चाह हमें केन्द्रित रखे l हमारे लिए भविष्य में रखी बातों से अतीत या वर्तमान की तुलना नहीं हो सकती!

अक्षय प्रेम

हाल ही के एक उड़ान में विमान का अवतरण थोड़ा कठिन था, सम्पूर्ण हवाई पट्टी पर झटका देनेवाला l कुछ यात्री घबराए हुए दिखे, किन्तु तनाव ख़त्म हुआ जब पीछे बैठीं दो छोटी लड़कियाँ उल्लासित हुईं, “हाँ! फिर हो जाए!”

बच्चे नए रोमांच के लिए खुले होते हैं और जीवन को आँखें फाड़कर सरल अचरज से देखते हैं l शायद…

“क्योंकि आपने प्रार्थना की”

आप चिंता के साथ क्या करते हैं? आप उनको मन में रखते हैं, अथवा ऊपर ले जाते  हैं?

जब अश्शूर के क्रूर राजा सन्हेरीब ने यरुशलेम को नष्ट करना चाहा, उसने राजा हिजकिय्याह को लिखा कि उसके द्वारा जीते गए दूसरे राष्ट्रों में यहूदा अलग नहीं होगा l हिजकिय्याह ने इस सन्देश को यरूशलेम के मंदिर में ले जाकर, “यहोवा…