एक अच्छा कारण
दोनों महिलाओं ने एक दूसरे के आरपार गलियारों के सीट हासिल कर लिए l उड़ान दो घंटे की थी, इसलिए मैं उनकी कुछ परस्पर क्रियाओं को देखने से खुद को रोक न सका l यह स्पष्ट था कि वह एक दूसरे से परिचित थीं, शायद सम्बंधित भी होंगी l दोनों में से कम उम्र की महिला (शायद साठ के दशक में) निरंतर अपने बैग से ताज़े सेब के फांक, उसके बाद घर के बनी सैंडविच, फिर सफाई के लिए टिश्यू पेपर, और अंत में अखबार की ताजी प्रति उम्र में बड़ी महिला (मेरे अनुमान में जो नब्बे की दशक में थी) को देती रही l प्रत्येक वस्तु बड़ी कोमलता, बड़े आदर से दी गयी l जब हम विमान से बाहर निकल रहे थे, मैंने उम्र में कम महिला से कहा, ‘मैंने आपके देखभाल के तरीके पर ध्यान दिया l वह बहुत सुन्दर था l” उसने उत्तर दिया, “वह मेरी सबसे प्रिय मित्र है l वह मेरी माँ है l”
यह कितनी महान बात होती यदि हम सब कुछ उस प्रकार बोल पाते? कुछ माता-पिता सबसे अच्छे मित्र की तरह होते हैं l कुछ माता-पिता उस तरह के बिलकुल नहीं होते l सच्चाई यह है कि उस प्रकार के सम्बन्ध अपने सर्वोत्तम में हमेशा जटिल होते हैं l जबकि तीमुथियुस को लिखी गई पौलुस की पत्री इस जटिलता की उपेक्षा नहीं करती है, इसके बावजूद यह हमें अपने माता-पिता और दादा-दादी──हमारे “अपने,” अपने “घराने” की देखभाल करने के द्वारा “पहले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव” करने का आह्वान करता है (1 तीमुथियुस 5:4,8) l
हम सभी भी अक्सर इस तरह की देखभाल का अभ्यास करते हैं, यदि परिवार के सदस्य हमारे लिए अच्छे थे या हैं l दूसरे शब्दों में, अगर वे इसके लायक हैं l लेकिन पौलुस उन्हें चुकाने के लिए एक और सुन्दर कारण प्रस्तुत करता है l उनकी देखभाल करें क्योंकि “यह परमेश्वर को भाता है” (पद.4) l
न्याय का परमेश्वर
शायद यह इतिहास का सबसे महान “बलि की गाय” थी। हम नही जानते कि उसका नाम डेज़ी, मेडलिन, या ग्वेंडोलिन था (हर एक नाम सुझाया गया नाम है), पर शिकागो में 1871 की आग के लिए श्रीमती ओ’लियरी की गाय को दोषी माना गया जिसके कारण शहर का हर तीसरा निवासी बेघर हो गया था l लकड़ियों की संरचनाओं में से गुज़रती हुयी आग तेज हवा के कारण तीन दिनों तक जलती रही और लगभग तीन-सौ लोगों की जान ले ली l
कई वर्षों तक, लोगों को यह लगा कि किसी गौशाले में रात को जलती हुयी लालटेन को उस गाय द्वारा ठोकर मारने के कारण आग लगी थी l अगली छानबीन के बाद──126 साल बाद──पुलिस और अग्नि की शहरी समिति ने स्वीकृत प्रस्ताव पारित कर गाय और उसके मालिक को दोषमुक्त करते हुए पड़ोसियों की अनुबद्ध जांच का सुझाव दिया l
न्याय अक्सर समय लेता है, और पवित्र शास्त्र स्वीकार करता है कि यह कितना मुश्किल हो सकता है l राग में दोहराने के शब्द, "कब तक?" भजन 13 में चार बार दोहराए गए हैं, “हे परमेश्वर, कब तक?” क्या सदैव मुझे भुला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझसे छिपाए रहेगा? मैं कब तक अपने मन ही मन में युक्तियाँ करता रहूँ, और दिन भर अपने हृदय में दुखित रहा करूं? कब तक मेरा शत्रु मुझ पर प्रबल रहेगा?” (पद. 1-2) l लेकिन अपने विलाप के मध्य, दाऊद विश्वास और आशा का कारण ढूंढ लेता है : “परन्तु मैंने तो तेरी करुणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा (पद.5) ।”
यहाँ तक कि जब न्याय विलंबित होता है, परमेश्वर का प्रेम हमें कभी धोखा नहीं देगा l हम उस में भरोसा कर सकते हैं और आराम पा सकते है न केवल उस पल के लिए परन्तु हमेशा के लिए l
परमेश्वर के साथ समय बिताना
ए रिवर रन्स थ्रू इट(A River Runs Through It) नॉर्मन मेक्लीन की दो लड़कों की बेहतरीन कहानी है जो अमेरिका के एक पश्चिमी राज्य में अपने पिता, एक प्रेस्बिटेरियन पास्टर के साथ बड़े हो रहे थे । रविवार की सुबह, नॉर्मन और उसका भाई, पॉल, चर्च जाते थे जहाँ वे अपने पिता को उपदेश देते हुए सुनते थे l रविवार की शाम, एक दूसरी आराधना होती थी और उनके पिता फिर से उपदेश देते थे l लेकिन उन दोनों आराधनाओं के बीच, वे उसके साथ पहाड़ियों और नदियों की सैर करने के लिए स्वतंत्र थे, “जब वह अपने आप को ताज़ा करते थे ।“ उनके पिता जानबूझकर अपने आप को “शाम के उपदेश के लिए अपनी आत्मा को नया करने और पुनः भरकर उमंडने के लिए” अलग करते थे l
सुसमाचारों में हर जगह, यीशु पहाड़ों पर और शहरों में भीड़ को शिक्षा देते हुए और बीमारों और अस्वस्थ लोगों को चंगा करते हुए दिखाई देता है जो उसके पास लाये जाते थे l यह सब परस्पर क्रियाएँ मनुष्य के पुत्र का मिशन/उद्देश्य “खोए हुओं को ढूँढने और उनका उद्धार करने” के अनुकूल था (लूका 19:10) l लेकिन यह भी ध्यान दिया गया है कि वह अक्सर “जंगलों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था” (5:16) l उसका समय वहाँ पर पिता के साथ बातचीत करने में व्यय होता था, जिससे वह तरोताज़ा और नवीकृत होकर फिर से अपने मिशन में कदम रख सके l
सेवा करने के हमारे विश्वासयोग्य प्रयासों में, हमारे लिए यह याद रखना जरूरी है कि यीशु “अक्सर” अलग जाता था । यदि यह अभ्यास यीशु के लिए जरूरी था, तो हमारे लिए और कितना अधिक है? हम नियमित रूप से अपने पिता के साथ समय बिताएँ, जो हमें फिर से उमड़ने तक भर सकता है ।
परमेश्वर का राज्य
मेरी माँ अपनी जिन्दगी के दौरान बहुत सारी चीजों के प्रति समर्पित रही है, लेकिन छोटे बच्चों का यीशु से परिचय कराना निरंतर उनकी इच्छा में बनी रही l कई एक बार मैंने अपनी माँ को सर्वजनिक रूप में असहमत होते देखा, सब उपस्थित थे जब किसी ने कुछ और को अधिक “गंभीर खर्च” समझकर उसके पक्ष में बच्चों की सेवा बजट में कटौती करने का प्रयास किया l “एक गर्मी के मौसम में मैंने छुट्टी ले ली जब मैं तुम्हारे भाई के साथ गर्भवती थी, यही सही था,” वह मुझसे बोली l मैंने थोड़ा पारिवारिक गणित किया और मैंने एहसास किया कि मेरी माँ पचपन सालों से चर्च में बच्चों के साथ काम कर रही थी ।
मरकुस 10 सुसमाचारों में मनभावन कहानियों में से एक को अंकित करता है जिसे आम तौर पर “छोटे बच्चे और यीशु” शीर्षक दिया जाता है l लोग बच्चों को यीशु के पास ला रहे थे कि वह उन पर हाथ रखें और उन्हें आशीष दे । पर चेलों ने इसे रोकने की कोशिश की । मरकुस उल्लेख करता है कि यीशु “क्रोधित” हुआ──और अपने ही चेलों को डांटा : “बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना मत करो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है” (पद.14) l
चार्ल्स डिकिन्स ने लिखा, “मैं इन छोटे लोगों से प्यार करता हूँ; और यह कोई मामूली बात नहीं जब वे, जो परमेश्वर की ओर से इतने नये हैं, हमसे प्यार करते है ।“ और यह कोई मामूली बात नहीं जब हम, जो उम्रदार हैं, यह सुनिश्चित करने के लिए सब करते हैं जो हम कर सकते है कि यीशु के हमेशा नया रहनेवाले प्रेम से बच्चे कभी वंचित न रह जाएँ l
छोटे से छोटे की सेवा
उसका नाम स्पेंसर है l लेकिन हर कोई उसे “स्पेंस” पुकारता है l वह हाई स्कूल में स्टेट ट्रैक चैंपियन था; फिर वह एक पूर्ण शैक्षणिक छात्रवृत्ति पर एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ने चला गया l वह अब अमेरिका के सबसे बड़े शहरों में से एक में रहता है और रासायनिक इंजीनीयरिंग(chemical engineering) के क्षेत्र में बहुत सम्मानित है l लेकिन अगर आप स्पेंस से उसकी सबसे बड़ी उपलब्धियों के बारे में पूछते, तो वह उन चीजों में से किसी का भी उल्लेख नहीं करता l वह उत्साहपूर्वक उन यात्राओं के बारे में जो वह हर कुछ महीनों में एक जरूरतमंद राष्ट्र का करता है आपको बताता जो वह उस देश के सबसे गरीब क्षेत्रों में उसकी सहायता से स्थापित किए गए ट्यूशन कार्यक्रम में बच्चों और शिक्षकों की जांच कर सके l और वह आपको बताएगा है कि उनकी सेवा करके उसका जीवन कितना समृद्ध हुआ है l
“इनमें से छोटा से छोटा l” यह एक वाक्यांश है जिसे लोग कई तरह से उपयोग करते हैं, फिर भी यीशु ने इसका उपयोग उन लोगों के विषय में बताने के लिए किया है, जिनके पास संसार के मानकों के अनुसार, हमारी सेवा के बदले में हमें देने के लिए बहुत कम या कुछ भी नहीं है l वे पुरुष और महिलाएं और बच्चे हैं जिन्हें संसार अक्सर अनदेखा कर देता है─यदि उन्हें पूरी तरह से भूल न भी जाए l फिर भी ये बिलकुल वही लोग हैं जिन्हें यीशु यह कहते हुए इस खूबसूरत स्तर तक उठाता है, “तुमने जो [इनके लिए] किया, वह मेरे ही लिए किया” (मत्ती 25:40) l मसीह के अर्थ को समझने के लिए आपके पास एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से कोई डिग्री नहीं होनी चाहिए : “छोटे से छोटे” की सेवा करना उसकी सेवा करने के बराबर है l इसमें केवल एक इच्छुक हृदय की ज़रूरत होती है l
लिखने का उद्देश्य
“प्रभु मेरा ऊँचा गढ़ है . . . . हम शिविर छोड़ते समय गा रहे थे l” 7 सितंबर, 1943 को, एट्टी हिल्सम ने पोस्टकार्ड पर इन शब्दों को लिखकर ट्रेन से फेंक दिया l वे अंतिम रिकॉर्ड किए गए शब्द थे जो हम उनसे सुन सकते थे l 30 नवंबर, 1943 को ऑउशवेट्ज़ में उनकी हत्या कर दी गई थी l बाद में, (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान) एक नज़रबंदी-शिविर(concentration camp) में हिल्सम के अनुभवों की डायरी का अनुवाद और प्रकाशन किया गया l उन्होंने परमेश्वर के संसार की सुंदरता के साथ नाज़ी(Nazi/नात्सी/फासिस्ट) कब्जे की भयावहता के बारे में उसके दृष्टिकोण को लेखबद्ध किया l उसकी डायरी का अनुवाद सरसठ भाषाओं में किया गया है - सभी के लिए एक उपहार जो अच्छा और बुरा दोनों को पढ़ेंगे और विश्वास करेंगे l
प्रेरित यूहन्ना ने पृथ्वी पर यीशु के जीवन की कठोर वास्तविकताओं को रद्द नहीं किया; उसने दोनों ही को लिखा, भलाई जो यीशु ने किया और चुनौतियाँ जिनका उसने सामना किया l उसके सुसमाचार के अंतिम शब्द उस पुस्तक के पीछे के उद्देश्य का बोध कराते हैं जो उसके नाम है l यीशु ने “बहुत से चिन्ह . . . दिखाए,” ((20:30) जो यूहन्ना द्वारा लिखे नहीं गए l लेकिन ये शब्द, उसका कहना है, “इसलिए लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो” (पद.31) l यूहन्ना की “डायरी” विजय के स्वर पर समाप्त होती है : “यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है l” सुसमाचार के इन शब्दों का उपहार हमें विश्वास करने और “उसके नाम से जीवन” पाने का अवसर देता है l
सुसमाचार हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का डायरी खाता है l वे शब्द पढ़ने और विश्वास करने और साझा करने के लिए हैं, क्योंकि वे हमें जीवन की ओर ले जाते हैं l वे हमें मसीह की ओर ले जाते हैं l
ज्योति पर भरोसा रखें
मौसम पूर्वानुमान ने विशाल चक्रवात बताया l यही होता है जब वायुमंडलीय दबाव गिरता है तो सर्दियों का तूफान तेजी से बढ़ता है l रात होने तक, धूल भरी स्थितियों ने हवाई अड्डे की ओर जानेवाले राजमार्ग को देखना लगभग असंभव बना दिया l प्रायः l लेकिन जब यह आपकी बेटी है, जो हवाई यात्रा द्वारा आपसे मुलाकात करने घर आ रही है, तो आप वही करेंगे जो आपको करना चाहिए l आप अतिरिक्त कपड़े और पानी पैक करते हैं (यदि आप राजमार्ग पर फंस जाते हैं), तो बहुत धीरे-धीरे ड्राइव करते हैं, निरंतर प्रार्थना करते हैं, और अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण, अपने हेडलाइट पर भरोसा करते हैं l और कभी-कभी आप लगभग असंभव को प्राप्त करते हैं l
यीशु ने क्षितिज पर एक तूफान की भविष्यवाणी की, जिसमें उसकी मृत्यु शामिल थी (यूहन्ना 12:31-33), और एक जो उसके अनुयायियों को विश्वासयोग्य रहने में और सेवा करने के लिए चुनौती देने वाला था (पद.26) l अंधेरा होने वाला था जिसके कारण देखना लगभग असंभव हो जाता l तो यीशु ने उन्हें क्या करने के लिए कहा? ज्योति पर विश्वास करो, या ज्योति पर भरोसा करो (पद.36) l यही एकमात्र तरीका था जिससे कि वे आगे बढ़ते रह सकते थे और विश्वाश्योग्य बने रह सकते थे l
यीशु थोड़ी देर और उनके साथ रहने वाला था l लेकिन विश्वासियों के पास हमारे निरंतर मार्गदर्शक के रूप में मार्ग को प्रकाशित करने के लिए उसकी आत्मा है l हम भी अंधकारमय समय का सामना करेंगे जब आगे का रास्ता देखना लगभग असंभव होगा l प्रायः l लेकिन विश्वास करने या प्रकाश में भरोसा करने से हम आगे बढ़ सकते हैं l
जब बाढ़ें आती हैं
मैं पश्चिमी अमेरिका के एक राज्य, कोलोराडो में रहता हूं, जो चट्टानी पर्वत और हमारी वार्षिक हिमपात के लिए मशहूर है । फिर भी मेरे राज्य में सबसे खराब प्राकृतिक आपदा का बर्फ से कोई लेना-देना नहीं था बल्कि बारिश से था । द बिग थॉमसन बाढ़ 31 जुलाई, 1976 को, एस्टेस पार्क के शहर रिसॉर्ट(सैरगाह) में आयी l जब जलस्तर उतर गया, तब पशुधन सहित मरने वालों की संख्या 144 थी l उस आपदा के मद्देनजर उस क्षेत्र में महत्वपूर्ण अध्ययन किए गए, खासकर सड़कों और राजमार्गों की नींव के संबंध में । सड़कों की दीवारें जो कंक्रीट की थी ने ही तूफ़ान का सामना किया l दूसरे शब्दों में, उनके पास एक निश्चित और मजबूत नींव थी ।
हमारे जीवनों में सवाल यह नहीं है कि यदि बाढ़ आएगी, लेकिन कब । कभी-कभी हमारे पास अग्रिम सूचना होती है, लेकिन आमतौर पर नहीं । यीशु ऐसे समय के लिए एक मजबूत नींव पर बल देता है - जो केवल उसके शब्दों को सुनकर नहीं, बल्कि सुसमाचार (लूका 6:47) को जीकर भी बनता है । यह अभ्यास हमारे जीवन में लगभग कंक्रीट डालने के समान है । जब बाढ़ आती है, और वे आएँगी, तो हम उनका सामना कर सकेंगे क्योंकि हम "पक्के बने” हैं (पद.48) l अभ्यास की अनुपस्थिति हमारे जीवन को पतन और विनाश की चपेट में छोड़ देती है (पद.49) । यह बुद्धिमान और मूर्ख होने के बीच का अंतर है ।
कभी-कभार रुकना और थोड़ा आधार निर्धारण करना अच्छा है । यीशु उन कमजोर स्थानों को मजबूत करने में हमारी मदद करेगा, ताकि बाढ़ आने पर हम उनकी शक्ति में मजबूत खड़े रह सकेंगे l
कुछ पीछे छोड़ दें
पचास पैसे, एक या दो रुपये और कभी-कभी पाँच या दस रुपये । आप इतने ही उसके बिस्तर के बगल में पाएंगे l वह हर शाम अपनी जेब खाली कर देता है और उसकी सामग्री वहीं छोड़ देता है, क्योंकि वह जानता था कि आखिरकार वे उससे मिलने आएँगे - वे अर्थात् उसके नाती- पोते । इन वर्षों में बच्चे वहां आने के तुरंत बाद उसके बिस्तर के निकट आना सीख लिए l वह उन सारे छोटे सिक्को को बैंक में जमा कर सकता था या बचत खाते में जमा कर सकता था । लेकिन उसने ऐसा नहीं किया । वह अपने घर में मौजूद छोटे, अनमोल मेहमानों के लिए इसे छोड़कर खुश हो जाता था l
इसी तरह की मानसिकता लैव्यव्यवस्था 23 में व्यक्त की गई है जब धरती से फसल लाने की बात आती है । परमेश्वर ने मूसा के माध्यम से, लोगों को बिलकुल उदार बनने की शिक्षा दी : “जब तुम अपने देश में के खेत काटो, तब अपने खेत के कोनों को पूरी रीति से न काटना” (पद.22) l अनिवार्य रूप से, उसने कहा, “थोड़ा पीछे छोड़ दो l” इस निर्देश ने लोगों को याद दिलाया कि परमेश्वर ही सबसे पहले फसल के पीछे था, और वह कम महत्व के लोगों (देश में रहने वाले परदेशी) की आवश्यकताओं को अपने लोगों द्वारा पूरी करता है l
इस तरह की सोच निश्चित रूप से हमारे संसार का नमूना नहीं है । लेकिन यह ठीक उसी तरह की मानसिकता है जो परमेश्वर के कृतज्ञ पुत्रों और पुत्रियों की विशेषता होगी । वह एक उदार हृदय में प्रसन्न होता है । और वह मानसिकता अक्सर आपके और मेरे द्वारा आता है ।