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Articles by जॉन ब्लैस

लिखने का उद्देश्य

“प्रभु मेरा ऊँचा गढ़ है . . . . हम शिविर छोड़ते समय गा रहे थे l” 7 सितंबर, 1943 को, एट्टी हिल्सम ने पोस्टकार्ड पर इन शब्दों को लिखकर ट्रेन से फेंक दिया l वे अंतिम रिकॉर्ड किए गए शब्द थे जो हम उनसे सुन सकते थे l 30 नवंबर, 1943 को ऑउशवेट्ज़ में उनकी हत्या कर दी गई थी l बाद में, (द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान) एक नज़रबंदी-शिविर(concentration camp) में हिल्सम के अनुभवों की डायरी का अनुवाद और प्रकाशन किया गया l उन्होंने परमेश्वर के संसार की सुंदरता के साथ नाज़ी(Nazi/नात्सी/फासिस्ट) कब्जे की भयावहता के बारे में उसके दृष्टिकोण को लेखबद्ध किया l उसकी डायरी का अनुवाद सरसठ भाषाओं में किया गया है - सभी के लिए एक उपहार जो अच्छा और बुरा दोनों को पढ़ेंगे और विश्वास करेंगे l
प्रेरित यूहन्ना ने पृथ्वी पर यीशु के जीवन की कठोर वास्तविकताओं को रद्द नहीं किया; उसने दोनों ही को लिखा, भलाई जो यीशु ने किया और चुनौतियाँ जिनका उसने सामना किया l उसके सुसमाचार के अंतिम शब्द उस पुस्तक के पीछे के उद्देश्य का बोध कराते हैं जो उसके नाम है l यीशु ने “बहुत से चिन्ह . . . दिखाए,” ((20:30) जो यूहन्ना द्वारा लिखे नहीं गए l लेकिन ये शब्द, उसका कहना है, “इसलिए लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो” (पद.31) l यूहन्ना की “डायरी” विजय के स्वर पर समाप्त होती है : “यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है l” सुसमाचार के इन शब्दों का उपहार हमें विश्वास करने और “उसके नाम से जीवन” पाने का अवसर देता है l
सुसमाचार हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम का डायरी खाता है l वे शब्द पढ़ने और विश्वास करने और साझा करने के लिए हैं, क्योंकि वे हमें जीवन की ओर ले जाते हैं l वे हमें मसीह की ओर ले जाते हैं l

ज्योति पर भरोसा रखें

मौसम पूर्वानुमान ने विशाल चक्रवात बताया l यही होता है जब वायुमंडलीय दबाव गिरता है तो सर्दियों का तूफान तेजी से बढ़ता है l रात होने तक, धूल भरी स्थितियों ने हवाई अड्डे की ओर जानेवाले राजमार्ग को देखना लगभग असंभव बना दिया l प्रायः l लेकिन जब यह आपकी बेटी है, जो हवाई यात्रा द्वारा आपसे मुलाकात करने घर आ रही है, तो आप वही करेंगे जो आपको करना चाहिए l आप अतिरिक्त कपड़े और पानी पैक करते हैं (यदि आप राजमार्ग पर फंस जाते हैं), तो बहुत धीरे-धीरे ड्राइव करते हैं, निरंतर प्रार्थना करते हैं, और अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण, अपने हेडलाइट पर भरोसा करते हैं l और कभी-कभी आप लगभग असंभव को प्राप्त करते हैं l
यीशु ने क्षितिज पर एक तूफान की भविष्यवाणी की, जिसमें उसकी मृत्यु शामिल थी (यूहन्ना 12:31-33), और एक जो उसके अनुयायियों को विश्वासयोग्य रहने में और सेवा करने के लिए चुनौती देने वाला था (पद.26) l अंधेरा होने वाला था जिसके कारण देखना लगभग असंभव हो जाता l तो यीशु ने उन्हें क्या करने के लिए कहा? ज्योति पर विश्वास करो, या ज्योति पर भरोसा करो (पद.36) l यही एकमात्र तरीका था जिससे कि वे आगे बढ़ते रह सकते थे और विश्वाश्योग्य बने रह सकते थे l
यीशु थोड़ी देर और उनके साथ रहने वाला था l लेकिन विश्वासियों के पास हमारे निरंतर मार्गदर्शक के रूप में मार्ग को प्रकाशित करने के लिए उसकी आत्मा है l हम भी अंधकारमय समय का सामना करेंगे जब आगे का रास्ता देखना लगभग असंभव होगा l प्रायः l लेकिन विश्वास करने या प्रकाश में भरोसा करने से हम आगे बढ़ सकते हैं l

जब बाढ़ें आती हैं

मैं पश्चिमी अमेरिका के एक राज्य, कोलोराडो में रहता हूं, जो चट्टानी पर्वत और हमारी वार्षिक हिमपात के लिए मशहूर है । फिर भी मेरे राज्य में सबसे खराब प्राकृतिक आपदा का बर्फ से कोई लेना-देना नहीं था बल्कि बारिश से था । द बिग थॉमसन बाढ़ 31 जुलाई, 1976 को, एस्टेस पार्क के शहर रिसॉर्ट(सैरगाह) में आयी l जब जलस्तर उतर गया,  तब पशुधन सहित मरने वालों की संख्या 144 थी l उस आपदा के मद्देनजर उस क्षेत्र में महत्वपूर्ण अध्ययन किए गए, खासकर सड़कों और राजमार्गों की नींव के संबंध में । सड़कों की दीवारें जो कंक्रीट की थी ने ही तूफ़ान का सामना किया l दूसरे शब्दों में, उनके पास एक निश्चित और मजबूत नींव थी ।

हमारे जीवनों में सवाल यह नहीं है कि यदि बाढ़ आएगी, लेकिन कब । कभी-कभी हमारे पास अग्रिम सूचना होती है, लेकिन आमतौर पर नहीं । यीशु ऐसे समय के लिए एक मजबूत नींव पर बल देता है -  जो केवल उसके शब्दों को सुनकर नहीं, बल्कि सुसमाचार (लूका 6:47) को जीकर भी बनता है । यह अभ्यास हमारे जीवन में लगभग कंक्रीट डालने के समान है । जब बाढ़ आती है, और वे आएँगी,  तो हम उनका सामना कर सकेंगे क्योंकि हम "पक्के बने” हैं (पद.48) l  अभ्यास की अनुपस्थिति हमारे जीवन को पतन और विनाश की चपेट में छोड़ देती है (पद.49) । यह बुद्धिमान और मूर्ख होने के बीच का अंतर है ।

कभी-कभार रुकना और थोड़ा आधार निर्धारण करना अच्छा है । यीशु उन कमजोर स्थानों को मजबूत करने में हमारी मदद करेगा, ताकि बाढ़ आने पर हम उनकी शक्ति में मजबूत खड़े रह सकेंगे l

कुछ पीछे छोड़ दें

पचास पैसे,  एक या दो रुपये और कभी-कभी पाँच या दस रुपये । आप इतने ही उसके बिस्तर के बगल में पाएंगे l वह हर शाम अपनी जेब खाली कर देता है और उसकी सामग्री वहीं छोड़ देता है,  क्योंकि वह जानता था कि आखिरकार वे उससे मिलने आएँगे - वे अर्थात् उसके नाती- पोते । इन वर्षों में बच्चे वहां आने के तुरंत बाद उसके बिस्तर के निकट आना सीख लिए l वह उन सारे छोटे सिक्को को बैंक में जमा कर सकता था या बचत खाते में जमा कर सकता था । लेकिन उसने ऐसा नहीं किया । वह अपने घर में मौजूद छोटे, अनमोल मेहमानों के लिए इसे छोड़कर खुश हो जाता था l

इसी तरह की मानसिकता लैव्यव्यवस्था 23 में व्यक्त की गई है जब धरती से फसल लाने की बात आती है । परमेश्वर ने मूसा के माध्यम से,  लोगों को बिलकुल उदार बनने की शिक्षा दी : “जब तुम अपने देश में के खेत काटो, तब अपने खेत के कोनों को पूरी रीति से न काटना” (पद.22) l  अनिवार्य रूप से,  उसने कहा, “थोड़ा पीछे छोड़ दो l” इस निर्देश ने लोगों को याद दिलाया कि परमेश्वर ही सबसे पहले फसल के पीछे था, और वह कम महत्व के लोगों (देश में रहने वाले परदेशी) की आवश्यकताओं को अपने लोगों द्वारा पूरी करता है l

इस तरह की सोच निश्चित रूप से हमारे संसार का नमूना नहीं है । लेकिन यह ठीक उसी तरह की मानसिकता है जो परमेश्वर के कृतज्ञ पुत्रों और पुत्रियों की विशेषता होगी । वह एक उदार हृदय में प्रसन्न होता है । और वह मानसिकता अक्सर आपके और मेरे द्वारा आता है ।

टूटे हृदय की प्रार्थना

“प्रिय स्वर्गिक पिता, मैं प्रार्थना करने वाला आदमी नहीं हूँ, लेकिन अगर आप ऊपर वहाँ हैं, और आप मुझे सुन सकते हैं, तो मुझे रास्ता दिखाएँ l मैं अपनी समस्या का हल ढूँढ़ने में असमर्थ हूँ l" यह प्रार्थना हिम्मत हार चुके जॉर्ज बेली द्वारा फुसफुसायी गयी, जो प्रसिद्ध अंग्रेजी फिल्म इट्स ए वंडरफुल लाइफ(It’s a Wonderful Life) का एक चरित्र है । अब उस प्रतिष्ठित दृश्य में उसकी आँखें में आंसू भर आते हैं । वे कथानक/script का हिस्सा नहीं थे, लेकिन उस भूमिका को निभाने वाले चरित्र ने जब वह प्रार्थना की उसने कहा कि उसने “अकेलापन महसूस किया,  लोगों की वह आशाहीनता जिनके पास मुड़ने की कोई दिशा नहीं थी l” उससे वह टूट गया l  

इस प्रार्थना का बुनियादी अर्थ है, बस "मेरी मदद कीजिए ।" और यह वही है जो भजन 109 में सुनाई देता है । दाऊद को अपनी समस्या का हल नहीं मिल रहा था : “दीन और दरिद्र,” उसका हृदय घायल” था (पद.22), और उसका शरीर “चर्बी न रहने से . . . सुख गया [था]” (पद.24) l वह "ढलती हुई छाया के समान जाता रहा [था]” (पद.23), और “लोगों में [उसकी] नामधराई” हो रही थी और लोग देखकर “सर हिलाते [थे]” (पद.25) l अपने चरम टूटेपन में, वह कहीं और नहीं मुड़ सकता था l उसने परम प्रभु यहोवा से उसे राह दिखाने के लिए अनुनय किया : “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी सहायता कर” (पद.26) l

हमारे जीवन में ऐसे काल आते हैं जब "टूटापन” सब कह देता है l ऐसे समय में यह जानना कठिन हो सकता है कि प्रार्थना क्या करें । हमारा प्रेमी परमेश्वर मदद के लिए हमारी सरल प्रार्थना का जवाब देगा ।

केवल एक भोजन

ऐश्टन और ऑस्टिन सैमुएलसन ने एक मसीही कॉलेज से यीशु की सेवा करने की तीव्र इच्छा के साथ स्नातक किया । हालांकि, दोनों में से कोई भी चर्च में पारंपरिक सेवा के लिए बुलाहट महसूस नहीं की l लेकिन संसार में सेवा के बारे में क्या? बिलकुल । उन्होंने अपने ईश्वर प्रदत्त उद्यमशीलता कौशल के साथ बचपन की भूख को समाप्त करने के लिए अपने बोझ को एक किया और 2014 में एक रेस्तरां शुरू किया । लेकिन यह सिर्फ कोई भी रेस्तरां नहीं है । सैमुअलसन एक खरीदें-एक दान करें दर्शन से काम करते हैं । खरीदे गए हर भोजन के लिए, वे कुपोषित बच्चों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए भोजन प्रदान करने के लिए दान करते हैं । अब तक, उन्होंने साठ से अधिक देशों में योगदान दिया है । उनका लक्ष्य बचपन की भूख को खत्म करना है - एक समय में एक भोजन ।

मत्ती 10 में यीशु के शब्द अप्रगट नहीं हैं । वे आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट हैं : भक्ति कर्मों से स्पष्ट होती है, शब्दों से नहीं (पद.37–42) । उन कार्यों में से एक "छोटों" को देना है । सैमुअलसन के लिए, वह ध्यान बच्चों को देना है । लेकिन ध्यान दें, "छोटे लोग" एक कालानुक्रमिक उम्र तक सीमित वाक्यांश नहीं है । मसीह हमें इस संसार की दृष्टि में “कम महत्त्व” के किसी भी व्यक्ति को देने के लिए बुला रहा है : गरीब, बीमार, कैदी, शरणार्थी, किसी भी तरह से वंचित । और दें क्या? ठीक है, यीशु कहते हैं, "केवल एक कटोरा ठंडा पानी" (पद.42) । यदि एक कप ठंडे पानी के रूप में छोटा और सरल कुछ होता है, तो भोजन भी निश्चित रूप से पंक्ति में सही बैठता है ।

संसार में क्या गड़बड़ी है?

किसी से सुनी हुई एक कहानी है कि लंदन टाइम्स ने बीसवीं सदी के मोड़ पर पाठकों से एक सवाल किया । संसार में क्या गड़बड़ी है?

यह काफी अहम् सवाल है, क्या यह नहीं है? कोई जल्दी से जवाब दे सकता है, "ठीक है, मेरे पास आपको बताने के लिए कितना समय है?" और यह उचित होगा, क्योंकि ऐसा लगता है कि हमारी दुनिया के साथ बहुत कुछ गलत है । जैसे ही कहानी आगे बढ़ती है, द टाइम्स को कई प्रतिक्रियाएँ मिलती हैं, लेकिन विशेष रूप से एक ही अपनी संक्षिप्त प्रतिभा में धीरज धरा है । अंग्रेजी लेखक, कवि और दार्शनिक जी. के. चेस्टरटन ने इन चार शब्दों की प्रतिक्रिया के साथ, दूसरे पर आरोप मढ़ने के विपरीत एक तरोताजा आश्चर्य प्रगट किया : “प्रिय महोदय, मैं हूँ l”

कहानी तथ्यात्मक है या नहीं, बहस के लिए तैयार है । लेकिन वह प्रतिक्रिया? यह सच है इसके आलावा कुछ नहीं l चेस्टरटन के आने से बहुत पहले, पौलुस नाम का एक प्रेरित था । एक आजीवन मॉडल नागरिक से दूर, पौलुस ने अपनी पिछली कमियों को कबूल किया : “मैं तो पहले निंदा करनेवाला, और सतानेवाला, और अंधेर करनेवाला था” (पद.13) । यह बताने के बाद कि यीशु किसको (“पापी”) बचाने आया, वह आगे बढ़कर एक घोषणा करता है : “जिनमें सबसे बड़ा मैं हूँ”(v.15) । पौलुस को ठीक-ठीक पता था कि संसार में क्या गड़बड़ी है । और वह आगे भी चीजों को सही बनाने की एकमात्र आशा जानता था - "हमारे प्रभु का अनुग्रह" (पद.14) । क्या अद्भुत वास्तविकता है! यह स्थायी सत्य हमारी आँखों को मसीह के प्रेम के प्रकाश की ओर ले जाता है ।

सब दे दें जो आपके पास है

अनुमाप परिवर्तन(Scaling) l यह फिटनेस/स्वस्थता की दुनिया में उपयोग किया जाने वाला एक शब्द है जो किसी को भी भाग लेने की अनुमति देता है l यदि विशिष्ट व्यायाम एक पुश-अप है, उदाहरण के लिए, तो शायद आप एक बार में दस कर सकते हैं, लेकिन मैं केवल चार कर सकता हूँ l मेरे लिए प्रशिक्षक का प्रोत्साहन उस समय मेरी फिटनेस के स्केल के अनुसार पुश-अप्स वापस करना होगा l हम सभी एक ही स्तर पर नहीं हैं, लेकिन हम सभी एक ही दिशा में आगे बढ़ सकते हैं l दूसरे शब्दों में, वह कहेगी, “अपनी पूरी ताकत के साथ अपने चार पुश-अप्स करें l किसी और से अपनी तुलना न करें l अब गति को स्केल करें, जो आप कर सकते हैं उसे करते रहें, और आप चकित हो जाएंगे कि उतने ही समय में आप सात कर रहे हैं, और यहाँ तक कि एक दिन में, दस तक कर सकते हैं l”

जब देने की बात आती है, तो प्रेरित पौलुस स्पष्ट था : “परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है” (2 कुरिन्थियों 9:7) l  लेकिन कुरिन्थुस के विश्वासियों के लिए और हमारे लिए उसका  प्रोत्साहन स्केलिंग का बदलाव है l “हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे”(पद.7) l हम में से प्रत्येक अपने आप को देने के विभिन्न स्तरों पर देखते हैं, और कभी-कभी वे स्तर समय के साथ बदलते हैं l करुणा फायदेमंद नहीं है, लेकिन रवैया/व्यवहार है l आप जहाँ हैं, उसके आधार पर उदारता से दें (पद.6) l हमारे परमेश्वर ने वादा किया है कि इस तरह के हर्ष से देंनेवाले का अनुशासित अभ्यास हर तरह से एक समृद्ध जीवन के साथ समृद्धि लाता है जिसके परिणामस्वरूप “परमेश्वर का धन्यवाद” (पद.11) होता है l

पिता की राह पर

एक प्राचीन कहानी एक लालची, अमीर ज़मींदार के विषय बतायी गई है जिसने एक गरीब किसान को घर के साथ कुआँ बेचा l अगले दिन जब किसान ने अपने खेतों के लिए पानी खींचना चाहा, तो ज़मींदार ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उसने केवल कुआँ बेचा है, उसमें का पानी नहीं l व्याकुल होकर, किसान ने राजा अकबर के दरबार में न्याय माँगा l इस अज़ीबोगरीब मामले को सुनने के बाद, राजा ने सलाह के लिए अपने बुद्धिमान मंत्री बीरबल की ओर रुख किया l बीरबल ने ज़मींदार से कहा, “सच है, कुएँ का पानी किसान का नहीं है और  कुआँ तुम्हारा नहीं है l इसलिए यदि तुम किसान के कुएँ में पानी जमा करना चाहते हो तो भला है कि तुम उस जगह के लिए किराए का भुगतान करो l”  तुरंत जमींदार समझ गया कि वह मात खा गया है, और उसने घर और कुएँ पर अपने दावों को छोड़ दिया l

शमूएल ने भी अपने पुत्रों को इस्राएल के ऊपर न्यायी नियुक्त किया, और वे लालच से प्रेरित थे l उसके बेटे “उसकी राह पर न चले” (1 शमूएल 8:3) l शमूएल की ईमानदारी की तुलना में,  उसके बेटे “लालच में आकर घुस लेते और न्याय बिगाड़ते थे” और अपने लाभ के लिए अपने स्थिति का उपयोग करने लगे l इस अन्यायपूर्ण व्यवहार ने इस्राएल के वृद्धों और परमेश्वर को नाराज़ किया, और राजाओं का एक क्रम आरंभ हुआ जिससे पुराना नियम के पन्ने भरे पड़े हैं (पद.4-5) l

परमेश्वर के तरीकों पर चलने से इनकार करना उन मूल्यों के विकृत होने की अनुमति देता है, और परिणामस्वरूप अन्याय पनपता है l उसके तरीके से चलने का मतलब ईमानदारी और न्याय केवल हमारे शब्दों में ही नहीं बल्कि हमारे कर्मों में भी स्पष्ट रूप से देखा जाता है l वे अच्छे काम कभी अपने आप में अंत नहीं होते, लेकिन हमेशा ऐसे होते है कि दूसरे देखेंगे और हमारे स्वर्गिक पिता की महिमा करेंगे l