पचास पैसे,  एक या दो रुपये और कभी-कभी पाँच या दस रुपये । आप इतने ही उसके बिस्तर के बगल में पाएंगे l वह हर शाम अपनी जेब खाली कर देता है और उसकी सामग्री वहीं छोड़ देता है,  क्योंकि वह जानता था कि आखिरकार वे उससे मिलने आएँगे – वे अर्थात् उसके नाती- पोते । इन वर्षों में बच्चे वहां आने के तुरंत बाद उसके बिस्तर के निकट आना सीख लिए l वह उन सारे छोटे सिक्को को बैंक में जमा कर सकता था या बचत खाते में जमा कर सकता था । लेकिन उसने ऐसा नहीं किया । वह अपने घर में मौजूद छोटे, अनमोल मेहमानों के लिए इसे छोड़कर खुश हो जाता था l

इसी तरह की मानसिकता लैव्यव्यवस्था 23 में व्यक्त की गई है जब धरती से फसल लाने की बात आती है । परमेश्वर ने मूसा के माध्यम से,  लोगों को बिलकुल उदार बनने की शिक्षा दी : “जब तुम अपने देश में के खेत काटो, तब अपने खेत के कोनों को पूरी रीति से न काटना” (पद.22) l  अनिवार्य रूप से,  उसने कहा, “थोड़ा पीछे छोड़ दो l” इस निर्देश ने लोगों को याद दिलाया कि परमेश्वर ही सबसे पहले फसल के पीछे था, और वह कम महत्व के लोगों (देश में रहने वाले परदेशी) की आवश्यकताओं को अपने लोगों द्वारा पूरी करता है l

इस तरह की सोच निश्चित रूप से हमारे संसार का नमूना नहीं है । लेकिन यह ठीक उसी तरह की मानसिकता है जो परमेश्वर के कृतज्ञ पुत्रों और पुत्रियों की विशेषता होगी । वह एक उदार हृदय में प्रसन्न होता है । और वह मानसिकता अक्सर आपके और मेरे द्वारा आता है ।