Our Authors

सब कुछ देखें

Articles by केनेथ पीटरसन

मुख्य पद

चार महीने की उम्र तक लिओ ने अपने माता-पिता को कभी नहीं देखा था। वह एक असाधारण स्थिति के साथ पैदा हुआ था जिससे उसकी दृष्टि धुंधली हो गई थी। उसके लिए यह घने कोहरे में जीने जैसा था। लेकिन फिर आंखों के डॉक्टर ने उसे एक ख़ास तरह का चश्मा पहनने को दिया।

लिओ के पिता ने एक विडिओ पोस्ट किया जिसमे लिओ की माँ उसे पहली बार चश्मा पहना रही थीI हम देखते हैं जैसे लिओ की आंखें धीरे-धीरे ध्यान केंद्रित करती हैं। जब वह पहली बार अपनी मां को देखता है तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल जाती है। अमूल्य! उस पल में, नन्हा लिओ स्पष्ट देख सकता था।

यूहन्ना यीशु के अपने शिष्यों के साथ हुई बातचीत के बारे में बताता है। फिलिप्पुस ने उससे पूछा, ''पिता को हमें दिखा'' (यूहन्ना 14:8) इतने समय तक एक साथ रहने के बाद भी, यीशु के शिष्य यह नहीं पहचान सके कि उनके ठीक सामने कौन था। उसने उत्तर दिया, “क्या तू विश्वास नहीं करता, कि मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में है?” (पद. 10) पहले यीशु ने कहा था, "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूं" (पद. 6) यीशु के साथ "मैं हूँ" कथनों में से यह छठा है। वह हमें इस "मैं हूँ" के कथन को चश्मा के माध्यम से देखने के लिए कह रहा है ताकि हम यह देख सके कि वास्तव में वह कौन है—स्वयं परमेश्वर।

हम अधिकतर शिष्यों के समान है। कठिन समय में, हम संघर्ष करते हैं और धुंधली दृष्टि विकसित करते हैं। हम इस बात पर ध्यान केन्द्रित करने में विफल रहते हैं कि परमेश्वर ने क्या किया है और क्या कर सकता है। जब छोटे लिओ ने विशेष चश्मा पहना, तो वह अपने माता-पिता को स्पष्ट रूप से देख सकता था। शायद हमें अपना ईश्वरीय -चश्मा पहनने की आवश्यकता है ताकि हम स्पष्ट रूप से देख सकें कि यीशु वास्तव में कौन है।

आप कौन हैं, प्रभु?

सोलह साल की उम्र में, लुइस रोड्रिग्ज कोकीन बेचने के आरोप में पहले ही जेल में बंद था। लेकिन अब, हत्या के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार वह फिर से जेल में था–आजीवन कारावास की सजा के बारे में सोच रहा  था। परन्तु परमेश्वर ने उसकी दोषी परिस्थितियों में उससे बात की। सलाखों के पीछे, युवा लुइस ने अपने जीवन के शुरुआती वर्षों को याद किया जब उसकी मां उसे विश्वासपूर्वक चर्च ले गई थी। अब उसे लगा कि ईश्वर अपने दिल को छू रहा है। लुइस ने अंततः अपने पापों का पश्चाताप किया और यीशु के पास आए।

प्रेरितों के काम की पुस्तक में हम शाऊल नाम के एक जोशीले यहूदी व्यक्ति से मिलते हैं, जिसे पौलुस भी कहा जाता था। वह यीशु में विश्वासियों पर गंभीर हमले और घात करने का दोषी था (प्रेरितों के काम 91)। इस बात के प्रमाण हैं कि वह एक प्रकार का गिरोह का नेता था, और स्तिफनुस (7:58) की हत्या के समय भीड़ का एक हिस्सा था। परन्तु परमेश्वर ने शाऊल की दोषी परिस्थितियों  में भी बात की। दमिश्क की ओर जाने वाले मार्ग पर शाऊल एक ज्योति के चमकने से  अन्धा हो गया, और यीशु ने उस से कहा, “तू मुझे क्यों सताता है?” (9:4)। शाऊल ने पूछा, “हे प्रभु तू कौन है?” (पद 5) और वही उसके नए जीवन की शुरुआत थी। वह यीशु के पास आ गया।

लुइस रोड्रिगेज ने अपनी सज़ा का समय पूरा किया लेकिन अंततः उसे कारावास अवकाश दिया गया। तब से, उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और मध्य अमेरिका में जेल सेवकाई के लिए अपना जीवन समर्पित करते हुए परमेश्वर की सेवा की है। परमेश्वर हम में से सबसे बुरे को छुड़ाने में माहिर हैं। वह हमारे दिलों को छूता है और हमारे अपराध–बोध से भरे जीवन में बोलता है। शायद अब समय है कि हम अपने पापों का पश्चाताप करें और यीशु के पास आएं।

जिन्दगी का मतलब

अर्जेण्टीनी लेखक जॉर्ज लुइस बोर्गेस की एक छोट्टी कहानी एक रोमी सैनिक, मार्कस रूफस के बारे में बताती है, जो “मनुष्यों को मृत्यु से शुद्ध करने वाली गुप्त नदी” से पीता है। हालांकि, समय के साथ, मार्कस ने यहसास किया कि अमरता वह सब नहीं थी जो सब बनाई गयी थी: बिना सीमा के जीवन बिना महत्व का जीवन है, यह मृत्यु ही है जो जीवन को अर्थ देती है। मार्कस एक प्रतिषेधक पाता है- साफ पानी का एक झरना। उसमें से पीने के बाद, वह अपना हाथ एक कांटे से छिल लेता है, खून की एक बूंद बन जाती है, उसकी पुनर्स्थापित मृत्यु दर को दर्शाते हुए।

माक्र्स की तरह, हम भी कभी-कभी जीवन के पतन और मृत्यु की संभावना से निराश हो जाते हैं (भजन 88:3)। हम इस बात से सहमत हैं कि मृत्यु जीवन को महत्व देती है। लेकिन यहीं से कहानियां अलग हो जाती हैं। मार्कस के विपरीत, हम जानते हैं कि मसीह की मृत्यु में ही हम अपने जीवन का सही अर्थ पाते हैं। क्रूस पर उसके लहू बहाने के द्वारा, मसीह ने मृत्यु को जय से निगलते हुए जीत लिया,(1 कुरिंथियों 15:54)। हमारे लिए, वह प्रतिशोधक  यीशु मसीह के “जीवित जल” में है (यूहन्ना 4:10)। क्योंकि हम उसे पीते हैं, जीवन, मृत्यु और अनंत जीवन सब के नियम बदल गए हैं (1 कुरिंथियों 15:52)।

यह सच है कि, हम शारीरिक मौत से नहीं बचेंगे, लेकिन वह मुख्य नहीं है। यीशु जीवन और मृत्यु के प्रति हमारी सारी निराशा को दूर कर देता है (इब्रानियों 2:11-15)।

मसीह में, हम स्वर्ग की आशा और उसके साथ अनन्त जीवन में सार्थक आनंद के साथ आश्वस्त हैं।

परमेश्वर का प्रेम

1917 में, वित्तीय घाटे की असफलता से कैलिफ़ोर्निया का एक व्यवसायी, फ्रेडरिक लेहमन ने, “द लव ऑफ़ गॉड(The Love of God)” गीत के शब्द लिखे l उसकी प्रेरणा ने उसे पहले दो अंतरा लिखने के लिए प्रेरित किया, लेकिन वह तीसरे पर अटक गया l उसने एक कविता को याद किया जो वर्षों पहले खोजी गयी थी, जो एक जेल की दीवारों पर लिखी गयी थी l एक कैदी परमेश्वर के प्रेम के बारे में गहरी जागरूकता व्यक्त करते हुए, इसे वहां पत्थर पर कुरेद कर गया था l संयोग से वह कविता और लेहमन के भजन के छंद दोनों समान थे l उसने इसे अपना तीसरा अंतरा बनाया l 

ऐसा समय होता है जब हम लेहमन और जेल की कोठरी से कवि के समान कठिन नाकामयाबियों का सामना करते हैं l निराशा के समय, हम भजनकार दाऊद के शब्दों को प्रतिध्वनित करके बेहतर महसूस करते हैं और “[परमेश्वर के] पंखो तले शरण [लेते हैं]” (भजन 57:1) l अपनी परेशानियों के साथ “परमेश्वर को [पुकारना] (पद.2), उससे अपने  वर्तमान की आजमाइश और “सिंहों के बीच में” होने के अपने डर के बारे में बात करना ठीक है (पद.4) l हमें जल्द ही अतीत में परमेश्वर के प्रावधान की सच्चाई की याद आ जाती है, और दाऊद के साथ जुड़ जाते हैं जो कहता है, “मैं गाऊँगा वरन् कीर्तन करूँगा . . . मैं . . . पौ फटते ही जाग उठूँगा” (पद. 7-8) l 

“द लव ऑफ़ गॉड इज़ ग्रेटर फार(The Love of God is greater far),” यह गीत घोषणा करता है, और उसमें जोड़ता है “इट गोज़ बियॉन्ड द हाईयेस्ट स्टार(it goes beyond the highest star) l” यह वास्तव में हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता के समय में है जब हमें गले लगाना है कि वास्तव में परमेश्वर का प्रेम कितना महान है—जो निस्संदेह “आकाशमंडल तक पहुँचता है” (पद.10) l 

जीवन प्रत्याशा

1990 में, फ्रांसीसी शोधकर्ताओं को एक कंप्यूटर समस्या आयी: जीन कैलमेंट की उम्र को संसाधित  करते समय एक डेटा त्रुटि। वह 115  वर्ष की थी, सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के मापदंडों से बाहर की उम्र। प्रोग्रामरों ने यह मान लिया था कि कोई भी संभवतः इतने लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता है! दरअसल, जीन 122 साल की उम्र तक जीवित रहीं।

भजनकार लिखता है, " हमारी आयु के वर्ष सत्तर ..चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष भी हो जाएँ" (भजन संहिता 90:10)। यह कहने का एक आलंकारिक तरीका है कि हम जितनी भी आयु तक जिए, यहाँ तक कि जीन कैलमेंट के आयु तक भी, पृथ्वी पर हमारा जीवन वास्तव में सीमित ही है। हमारा जीवन एक प्रेम करने वाले परमेश्वर के प्रभुसत्ताधारी हाथों में है (पद 5)। आत्मिक क्षेत्र में, हालांकि, हमें याद दिलाया जाता है कि "ईश्वर का समय" वास्तव में क्या है: " क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं .. जैसे कल का दिन जो बीत गया। " (पद 4 )।

और यीशु मसीह के व्यक्तित्व में "जीवन प्रत्याशा" को एक नया अर्थ दिया गया है: "जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है" (यूहन्ना 3:36)। "है" वर्तमान काल में है: अभी, हमारे वर्तमान शारीरिक परेशानी और आँसू के क्षण में, हमारा भविष्य आशीषित है, और हमारा जीवनकाल असीमित है।

इसमें हम आनन्दित होते हैं और भजनहार के साथ प्रार्थना करते हैं, "भोर को हमें अपनी करुणा से तृप्त कर, कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें" (भजन संहिता 90:14)।

समय के बीज

१८७९ में, विलियम बील को देखने वाले लोग शायद सोचते होंगे कि वह पागल है। उन्होंने वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर को विभिन्न बीजों से बीस बोतलें भरते हुए, फिर उन्हें गहरी मिट्टी में गाड़ते हुए देखा। वे जो नहीं जानते थे वह यह था कि बील एक बीज जीवनक्षमता प्रयोग कर रहे थे जो सदियों तक चलेगा। हर बीस साल में इसके बीज बोने के लिए एक बोतल भरी जाती थी और देखा जाता था कि कौन से बीज अंकुरित होंगे।

यीशु ने बीज बोने के बारे में बहुत कुछ बताया, अक्सर बीज बोने की तुलना "वचन" के प्रसार से की (मरकुस ४:१५)। उसने सिखाया कि कुछ बीज शैतान द्वारा छीन लिए जाते हैं, दूसरों ऐसे होते है जिनकी कोई नींव नहीं होती है और वे जड़ नहीं पकड़ पाते, और अन्य होते है जो अपनी जीवन की चिन्ताओं से दबकर (पद १५-१९)। जैसे-जैसे हम सुसमाचार फैलाते हैं, यह हमारे ऊपर नहीं है कि कौन से बीज फलेगा। पर हमारा काम केवल सुसमाचार बोना है—दूसरों को यीशु के बारे में बताना: "सारे संसार में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ" (१६:१५)।

२०२१ में, बील की तरह की एक और बोतल भरी गई। बीज शोधकर्ताओं द्वारा लगाए गए थे और कुछ अंकुरित हुए, १४२ से अधिक वर्षों तक जीवित रहे। जब परमेश्वर हमारे माध्यम से कार्य करता है और हम अपना विश्वास दूसरों के साथ साझा करते हैं, तो हम कभी नहीं जानते कि जो शब्द हम बाटते हैं वह जड़ पकड़ेगा या कब पकड़ेगा। लेकिन हम इस बात से प्रोत्साहित हो सकते है कि सुसमाचार का बीच जो हमने बोया है, बहुत सालों बाद भी, किसी के द्वारा ज़रूर “स्वीकारा जाएगा और फसल पैदा करेगा”।

यात्रा में परमेश्वर का साथ

भारत भर में सड़क यात्रा आपको कुछ खतरनाक सड़कों पर ले जाएगी। सबसे पहले– किलर किश्तवाड़ रोड, जम्मू और कश्मीर। उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ते हुए गुजरात के डुमास समुद्र तट के पास आप एक भयानक अहसास  का अनुभव करते हैं। मध्य भारत की ओर आगे बढ़ते हुए, आप बस्तर, छत्तीसगढ़ में, जो एक खतरनाक जगह है,  आराम करने का साहस  नहीं करते। जैसे ही आप दक्षिण की ओर बढ़ते हैं, आप पहुंचेंगे–डरावनी कोल्ली हिल रोड, तमिलनाडु। ये भारत के परिदृश्य में कुछ वास्तविक स्थान हैं, जहां आप कभी भी यात्रा करना नहीं चाहेंगें।

कभी–कभी जिंदगी का सफर भी कुछ ऐसा ही लगता है। हम जंगल में इस्राएलियों के कठिन जीवन को आसानी से पहचान लेते हैं (व्यवस्थाविवरण 2:7)— जीवन कठिन हो सकता है। लेकिन क्या हम अन्य समानताएं देखते हैं? हम परमेश्वर के मार्ग से मुड़कर अपना स्वयं का यात्रा कार्यक्रम बनाते हैं (1:42–43)। इस्राएलियों की तरह हम अक्सर अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुड़कुड़ाते हैं (गिनती 14:2)। हमारे दैनिक झल्लाहट में हम वैसे ही परमेश्वर के उद्देश्यों पर संदेह करते हैं (पद 11)। इस्राएलियों की कहानी हमारी अपनी कहानी में बार–बार दोहराई जाती है।

परमेश्वर हमें विश्वास दिलाता है कि यदि हम उसके मार्ग का अनुसरण करते हैं, तो वह हमें उस स्थान से कहीं बेहतर स्थान पर पहुँचाएगा जहाँ खतरनाक सड़कें हमें ले जाती हैं। वह प्रदान करेगा और हमारे पास ऐसी किसी भी वस्तु की घटी नहीं होगी जिसकी हमें वास्तव में आवश्यकता है (व्यवस्थाविवरण 2:7: फिलिप्पियों 4:19)। फिर भी जितना हम पहले से ही जानते हैं, हम अक्सर इसे करने में असफल हो जाते हैं। हमें परमेश्वर के रोडमैप का अनुसरण करने की आवश्यकता है।

यह एक ड्राइव से थोड़ा अधिक है, लेकिन कार द्वारा कुछ और घंटों का सफर आपको डरावनी कोल्ली हिल से “परमेश्वर के अपने देश”  केरल में हरे–भरे और शांत वायनाड तक ले जाएगी। यदि हम परमेश्वर को हमारे पथों को निर्देशित करने देते हैं (भजन संहिता 119:35) तो हम उसकी स्टेयरिंग व्हील  पर  मौजूदगी के साथ आनंद में यात्रा करेंगे — वास्तव में एक आशीषित आश्वासन!