पहुंचना (हाथ बढ़ाना)
हाल ही में एक पोस्ट में, ब्लॉगर बोनी ग्रे ने उस पल को याद किया जब उसके दिल में भारी उदासी छाने लगी थी। उसने कहा, “मेरे जीवन के सबसे सुखद हिस्से (अध्याय) में, मुझे अचानक घबराहट और निराशा का अनुभव होने लगा।” ग्रे ने अपने दर्द को दूर करने के लिए अलग अलग तरीके खोजने की कोशिश की, लेकिन उसने जल्द ही महसूस किया कि वह अकेले इसे संभालने के लिए काफी मजबूत नहीं थी। उसने बताया कि, “मैं नहीं चाहती थी कि कोई मेरे विश्वास पर सवाल उठाए, इसलिए मैं चुप रही और प्रार्थना की, कि मेरी निराशा दूर हो जाए। परन्तु परमेश्वर हमें चंगा करना चाहता है, न कि हमें लज्जित करना चाहता है; और न ही हमें हमारे दुखों से छिपाना चाहता है।” ग्रे ने परमेश्वर की उपस्थिति की शान्ति में चंगाई पाई; तूफानों की लहरों के बीच, जिसमें उसे डूबने का खतरा, था वह उसका सहारा था ।
जब हम नीची जगह पर होते हैं और निराशा से भरे होते हैं, तो परमेश्वर वहां होते हैं और हमें संभालेंगे भी। भजन संहिता 18 में, दाऊद ने परमेश्वर की प्रशंसा की कि उसने उसे उस नीची जगह से छुड़ाया, जिसमें वह अपने शत्रुओं से लगभग पराजित होने के बाद था। उसने घोषणा की – “उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, उसने मुझे गहरे जल में से खींच लिया” (पद 16)। ऐसे क्षणों में भी जब निराशा हमें समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त लहरों की तरह नष्ट करने लगती है, परमेश्वर हमसे इतना प्यार करते हैं कि वह हमारे पास पहुंचेंगे और हमारी मदद करेंगे, हमें शांति और सुरक्षा के “खुले स्थान” में लाएंगे (पद 19)। जब हम जीवन की चुनौतियों से व्याकुल महसूस करते हैं, तो आइए हम उसे अपने शरणस्थान के रूप में देखें।
प्रेम की मजदूरी
डॉ. रेबेका ली क्रुम्प्लेर मेडिकल डिग्री हासिल करने वाली पहली अफ्रीकी अमरीकी महिला थी। फिर भी उसके जीवनभर में (1831-95) वह खुद को “त्यागी, तिरस्कृत और महत्वहीन होने” के रूप में स्मरण करती है। हालाँकि, वह उपचार और अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए समर्पित रही। क्रुम्प्लेर ने कहा की भले ही लोग उसे उसके जाति और लिंग के अनुसार उसका न्याय करना चुने, फिर भी उसके पास हमेशा एक नवीनीकृत और साहसी तत्परता होती “जब भी और जहाँ भी ड्यूटी हो वहाँ जाने के लिए” और वह उसे करती। उसने विश्वास किया की महिलओं और बच्चों का इलाज करना और मुक्त दासों को चिकित्सा सुविधा प्रदान करना परमेश्वर की सेवा करने का एक तरीका था। अफसोस की बात है कि लगभग एक सदी बाद तक उन्हें अपनी उपलब्धियों के लिए औपचारिक मान्यता नहीं मिली।
कई बार हम अपने आस-पास के लोगों द्वारा अनदेखे, अवमूल्यन, या नाचीज होंगे। हालाँकि, बाइबल का ज्ञान हमें याद दिलाता है कि जब परमेश्वर ने हमें किसी कार्य के लिए बुलाया है, हमें सांसारिक स्वीकृति और मान्यता प्राप्त करने पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि हमें “तन मन से, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते है;” करना चाहिए। (कुलुस्सियों 3:23)। जब हम परमेश्वर की सेवा करने पर ध्यान देते है तो हम उनके सामर्थ्य और अगुआई में सबसे कठिन कार्यों को भी उत्साह और प्रसन्नता के साथ पूरा कर सकते हैं। तब हम सांसारिक मान्यता प्राप्त करने को कम चिंतित और उस इनाम को पाने के लिए जो केवल वह प्रदान कर सकते है, अधिक उत्सुक हो सकते है (24)।
परमेश्वर आपको जानता है
ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी माँ परेशानी को एक मील दूर से भाप लेती है l एक दिन स्कूल में एक कठिन दिन के बाद, मैं अपनी हताशा को छिपाने का प्रयास किया कि किसी का ध्यान मुझ पर नहीं जायेगा l “बात क्या है?” उन्होंने पूछा l फिर आगे बोली, “इससे पहले कि तुम मुझे यह बताओ कि कुछ नहीं है, याद रखो कि मैं तुम्हारी माँ हूँ l मैंने तुम्हें जन्म दिया है, और जितना तुम खुद को जानते हो उसकी तुलना में मैं तुम्हें तुमसे बेहतर जानती हूँl” मेरी माँ ने मुझे निरंतर स्मरण दिलाया है कि उनकी इस गहरी जागरूकता ने कि मैं कौन हूँ उनको उन क्षणों में जहाँ मुझे उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है उन्हें वहां रहने में मदद करता है l
यीशु में विश्वासी होने के कारण, हम एक ऐसे परमेश्वर द्वारा देखभाल किये जाते हैं जो बहुत निकटता से हमें जानता है l भजनकार दाऊद परमेश्वर की संतानों के जीवनों के प्रति उसकी परवाह के लिए उसकी प्रशंसा करता है, “हे यहोवा, तू ने मुझे जाँचकर जान लिया है l तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है” (भजन 139:1-2) l इसलिए कि परमेश्वर जानता है कि हम कौन हैं—हमारे हर एक विचार, इच्छा, और कार्य—ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ हम जा सकते हैं जहाँ हम उसके अत्यधिक प्रेम और देखभाल की सीमा से बाहर है (पद.7-12) l जैसे कि दाऊद लिखता है, “यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूं, तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा” (पद.9-10) l हम यह जानने में आराम पाते हैं कि जीवन में हम कहीं भी रहें, जब हम प्रार्थना में परमेश्वर को पुकारते हैं, वह हमें प्रेम, बुद्धि, और मार्गदर्शन देता है जो हमारी ज़रूरत है l
परमेश्वर में आशा
जैसे-जैसे छुट्टियों का मौसम नजदीक आता गया, ऑनलाइन ऑर्डर की अभूतपूर्व बाढ़ के कारण पैकेज शिपमेंट में देरी हुई। मुझे एक समय याद है जब मेरे परिवार ने दूकान पर जाकर सामान खरीदना पसंद था क्योंकि हम जानते थे कि मेल डिलीवरी की गति पर हमारा बहुत कम नियंत्रण था। हालाँकि, जब मेरी माँ ने एक ऐसे खाते के लिए नाम दर्ज़ किया जिसमें शीघ्र शिपिंग शामिल थी, तो यह अपेक्षा बदल गई। अब दो दिन की गारंटीकृत डिलीवरी के साथ, हम जल्दी से चीजें प्राप्त करने के आदी हैं, और हम देरी से निराश हो जाते हैं।
हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो तत्काल संतुष्टि के आदी हैं, और प्रतीक्षा करना मुश्किल हो सकता है। लेकिन आत्मिक क्षेत्र में, धैर्य को प्रतिफल दिया जाता है। जब विलापगीत की पुस्तक लिखी गई, तब इस्राएली बेबीलोन की सेना द्वारा यरूशलेम के विनाश का शोक मना रहे थे, और उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हालाँकि, अराजकता के बीच, लेखक ने साहसपूर्वक कहता है की कि क्योंकि उसे विश्वास था कि परमेश्वर उसकी आवश्यकताओं को पूरा करेगा, वह उसकी प्रतीक्षा करेगा (विलापगीत 3:24)। परमेश्वर जानता है कि जब हमारी प्रार्थनाओं के उत्तर में देरी होती है तो हम चिंतित हो जाते हैं। पवित्रशास्त्र हमें परमेश्वर की प्रतीक्षा करने की याद दिलाने के द्वारा प्रोत्साहित करता है। हमें भस्म होने या चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि "उसकी करुणा कभी विफल नहीं होती" (पद 22)। इसके बजाय, परमेश्वर की मदद से हम “..चुपचाप रह, और धीरज से उसकी प्रतीक्षा कर" सकते हैं (भजन संहिता ३७:७)। जब हम लालसाओं और अनुत्तरित प्रार्थनाओं के साथ संघर्ष करते हैं, तब भी हम परमेश्वर की प्रतीक्षा करें, उसके प्रेम और विश्वासयोग्यता पर भरोसा करें।
उद्धार का चमत्कार
ब्लॉगर केविन लिन की जिंदगी बिखरती नजर आ रही थी। हाल के एक लेख में उन्होंने बताया, “मैं वास्तव में अपने सिर पर बंदूक रखा...परमेश्वर को अलौकिक रूप से मेरे कमरे और मेरे जीवन में कदम रखना पड़ा। और उस क्षण, मुझे वास्तव में वह मिल गया है जो मैं जानता हूं कि अब परमेश्वर है।” भगवान ने हस्तक्षेप किया और लिन को अपनी जान लेने से रोका। उन्होंने उसे दोषशिद्धि से भरा और उसे अपनी प्रिय उपस्थिति का एक जबरदस्त अनुस्मारक दिया। इस शक्तिशाली मुठभेड़ को छुपाने के बजाय, लिन ने अपने अनुभव को संसार के साथ बाँटा, एक यू-ट्यूब सेवा बनाया जहाँ वह अपना और साथ ही दूसरों की परिवर्तन का कहानी बांटता है।
जब यीशु का अनुयायी और मित्र लाजरस मर गया, तो बहुतों को लगा की यीशु को काफी देर हो चुके हैं (11:32)। मसीह के आने से पहले लाजर चार दिन से कब्र में पड़ा था, पर जब उन्होंने उसे मृतकों में से जिलाया उन्होंने इस पीड़ा के क्षण को चमत्कार में बदल दिए (38)। “क्या मैं ने तुझ से नहीं कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।”(40)।
जिस तरह यीशु ने लाजर को मृत्यु से जीवन के लिए जिलाए, वह हमें उनके द्वारा नया जीवन प्रदान करते हैं। क्रूस पर अपना जीवन बलिदान करने के द्वारा, मसीह ने हमारे पापों का कीमत चुकाया और जब हम उसके अनुग्रह के उपहार को ग्रहण करते हैं वह हमें क्षमा प्रदान करते हैं। हम हमारे पाप के बंधन से आजाद होते है, उसके चिरस्थायी प्रेम के द्वारा नवीकृत, और हमारे जीवन के क्रम को बदलने का मौका दिया जाता है।
साहसपूर्वक खड़े रहना
भारत का इतिहास महिलाओं के खिलाफ कई अपराधों को दर्ज करता है। महिलाओं और हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों को अनदेखा किया गया था। लेकिन पंडिता रमाबाई, १९ वीं शताब्दी के अंत में एक नई विश्वासी, इन समस्याओं से दूर हटने के बजाय अपने विश्वास का प्रयोग करने और आर्य महिला समाज शुरू करके इस मुद्दे को साहसपूर्वक संबोधित करने का चुनाव करती है। उन्होंने कई बाधाओं और खतरों के बावजूद महिलाओं की शिक्षा और मुक्ति के लिए अथक प्रयास किये। जैसा कि उन्होंने एक बार कहा था, "परमेश्वर के लिए पूरी तरह से समर्पित जीवन में कोई भी डर नहीं होता, खोने के लिए कुछ भी नहीं होता और पछतावा करने के लिए कुछ भी नहीं है।"
जब एस्तेर, फारस की रानी, एक कानून के खिलाफ बोलने से हिचकिचा रही थी जो उसके लोगों के नरसंहार को अधिकृत करता था, तो उसे उसके चाचा ने चेतावनी दी थी कि अगर वह चुप रही, तो वह और उसका परिवार बच नहीं पाएगा, लेकिन नष्ट हो जाएगा (एस्तेर ४:१३-१४)। यह जानते हुए कि यह साहसी होने और कुछ करने का समय था, मोर्दकै ने कहा, " क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिये राजपद मिल गया हो?" (पद १४) । चाहे हमें अन्याय के खिलाफ बोलने के लिए या किसी ऐसे व्यक्ति को क्षमा करने के लिए बुलाया जाए जिसने हमें संकट में डाला हो, बाइबल हमें आश्वासन देती है कि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में, परमेश्वर हमें कभी नहीं छोड़ेगा और न ही त्यागेगा (इब्रानियों १३:५-६)। जब हम उन क्षणों में सहायता के लिए परमेश्वर की ओर देखते हैं जहाँ हम भयभीत महसूस करते हैं, तो वह हमें हमारे कार्य को अंत तक देखने के लिए "शक्ति, प्रेम और आत्म-अनुशासन" देगा (२ तीमुथियुस १:७)।
परमेश्वर में हियाव
भारत में वयस्कों पर 2020 में की एक खोज में पाया गया कि, औसतन, भारतीयों के लिए स्क्रीन देखने का समय प्रतिदिन 2 घंटे से बढ़कर प्रतिदिन 4.5 घंटे हो गया। लेकिन ईमानदारी से कहूं तो यह आँकड़ा अत्यंत रूढ़िवादी लगता है जब मैं इस बात पर विचार करती हूँ कि मैं किसी प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए कितनी बार गूगल खोजती हूँ या दिन भर मेरे फ़ोन पर आने वाले टेक्स्ट, कॉल और ईमेल से अंतहीन सूचनाओं का जवाब देती हूँ। हम में से कई लोग लगातार अपने उपकरणों की ओर देखते हैं, विश्वास करते हैं कि वे हमें वह प्रदान करेंगे जो हमें व्यवस्थित, सूचित और एक दूसरे से संबंध बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
यीशु में विश्वासियों के रूप में, हमारे पास एक स्मार्टफोन की तुलना में असीम रूप से बेहतर संसाधन है। परमेश्वर हमसे घनिष्ठ रूप से प्रेम करता है और हमारी सुधी लेता है और चाहता है कि हम अपनी आवश्यकताओं के साथ उसके पास आएं। बाइबल कहती है कि जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हम आश्वस्त हो सकते हैं कि "यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार कुछ माँगते हैं, तो वह हमारी सुनता है" (1 यूहन्ना 5:14 )। बाइबल को पढ़ने और अपने हृदयों में परमेश्वर के वचनों को संग्रहीत करने के द्वारा, हम उन चीज़ों के लिए निश्चित रूप से प्रार्थना कर सकते हैं जो हम जानते हैं कि वह पहले से ही हमारे लिए चाहता है, जिसमें शांति, ज्ञान और यह विश्वास शामिल है कि वह हमें वही प्रदान करेगा जिनकी हमें आवश्यकता है (पद 15 )।
कभी-कभी जब हमारी स्थिति नहीं बदलती हमें ऐसा लग सकता है कि परमेश्वर हमारी नहीं सुनते। लेकिन हम हर परिस्थिति में मदद के लिए लगातार उसकी ओर मुड़ने के द्वारा परमेश्वर में अपना भरोसा बढ़ाते हैं (भजन संहिता 116:2)। यह हमें विश्वास में बढ़ने में सहायता करता है, तथा इस पर भरोसा करते हुए कि यद्यपि हमें वह सब कुछ न मिले जो हम चाहते है, वो वादा करता है कि अपने सिद्ध समय में वह हमें वो देगा जिसकी हमें आवश्यकता है।
सेवा के लिए एक हृदय
न्यूमेक्सिको में एक मिनिस्ट्री (सेवकाई) स्थानीय निवासियों को हर महीने 24,000 पाउंड से अधिक मुफ्त भोजन देकर अपने समुदाय की मदद करता है। मिनिस्ट्री (सेवकाई) के अगुए ने कहा, “लोग यहाँ आ सकते हैं, और हम उन्हें स्वीकार करेंगे और उनसे वही मिलेंगे जहाँ वह हैं।” हमारा लक्ष्य है –उनकी आत्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिये उनकी व्यवहारिक जरूरतों को पूरा करना । मसीह में विश्वासी होने के नाते, परमेश्वर हमसे चाहता है की जो हमें दिया गया है उसके द्वारा हम दूसरों को आशीषित करें और अपने समुदायों को उसके करीब लाएं। हम सेवा करने के लिए अपने हृदय को कैसे विकसित कर सकते है जो परमेश्वर को महिमा दे ?
हम परमेश्वर से यह कह कर दूसरों के सेवा करने वाला हृदय विकसित करते है वह हमें दिखाए कि उसके दिए गये वरदानों का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए कैसे करें (1पतरस4:10) ।इस तरीके से हम परमेश्वर को बहुत सारे धन्यवाद के भाव चढ़ाते है, उस बहुतायतता के लिए जिससे उसने हमें आशीषित किया है। (2कुरिन्थियों9:12)
दूसरों की सेवा करना यीशु की सेवकाई का एक महत्वपूर्ण भाग था। जब उसने बिमारों को चंगा किया और भूखों को खिलाया, तो परमेश्वर के प्रेम और भलाई से बहुत लोग परिचित हुए। हमारे समुदाय की देखभाल करने के द्वारा, हम उसकी शिष्यता का अनुकरण कर रहे है। परमेश्वर की बुद्धि हमें स्मरण कराती है कि जब हम अपने कर्मों के द्वारा परमेश्वर के प्रेम को प्रदर्शित करते हैं, तो अन्य लोग परमेश्वर की महिमा करेंगे (पद13)। सेवा आत्म–संतुष्टि के बारे में नहीं परन्तु दूसरों को परमेश्वर के प्रेम की सीमा दिखाना है और उन चमत्कारी तरीकों को दिखाना है जो उनके द्वारा काम करता है जो उनके नाम से बुलाये गये हैं।
विश्वास में बढ़ना
जब मैंने अपनी बागवानी शुरू किया, मैं जल्दी उठता और अपने सब्जी के बगीचे में यह देखने के लिए पहुंचता था कि कहीं कुछ अंकुरित तो नहीं हुआ l कुछ नहीं l “त्वरित उद्यान विकास” के लिए इंटरनेट पर खोजने के बाद, मुझे पता चला कि एक पौधे के जीवन काल का सबसे महत्वपूर्ण चरण उसका अंकुरण होता है l जानकर कि यह प्रक्रिया तेज नहीं किया जा सकता, मैं छोटे अंकुरों की शक्ति को सराहने लगा जो मिट्टी के भीतर से सूर्य के किरण की ओर और स्वभाविक मौसम के उनके लचीलेपन की ओर निकलने के लिए संघर्ष कर रहे थे l कुछ सप्ताहों तक धीरज धरने के बाद ज़मीन से बाहर फूटकर निकलते हरे अंकुरों ने मेरा स्वागत किया।
कभी-कभी हमारे जीवन में जीत और विजय को देख स्तुति करना सरल होता है, इसी तरह यह स्वीकार किए बिना कि हमारे चरित्र में वृद्धि अक्सर समय और संघर्ष के द्वारा होती है l याकूब हमें समझाता है कि जब हम “नाना प्रकार की परीक्षाओं में” पड़ें “तो इसको पूरे आनंद की बात” समझें (याकूब 1:2) l परंतु परीक्षाओं के विषय आनंद की बात क्या हो सकती है?
परमेश्वर कभी-कभी हमें चुनौतियों और संघर्ष से होकर जाने देता है जिससे कि हम वैसे बन सके, जिसके लिए उसने हमें बुलाया है। वह इस प्रत्याशा में प्रतीक्षा करता है कि हम जीवन की परीक्षाओं से “पूरे और सिद्ध” हो जाएं और हममें “किसी बात की घटी न रहे” (पद.4) l यीशु में जड़वत रहकर, हम किसी भी चुनौती में दृढ़ रहते हुए, और मजबूत होते हुए और आखिरकार अपने जीवनों में आत्मा के फल को खिलने की अनुमति देते हैं (गलतियों 5: 22–23)। उसकी बुद्धि हमें प्रत्येक दिन आवश्यक्तानुसार पोषण प्रदान करती है (यूहन्ना 15:5)।