अंदर क्या है?
“तुम देखोगी कि अंदर क्या है?" मेरी मित्र ने पूछा। उसकी बेटी के हाथों में कपड़े की गुड़िया थी। “हाँ, अवश्य”, मैंने जवाब दिया। एमिली ने गुड़िया के पीठ में लगी ज़िप खोली। उसके अन्दर से, उसने एक ख़जाना निकाला: उसकी अपनी गुड़िया जिसके साथ 20 वर्ष पूर्व अपने बचपन में वह खेलती थी। "बाहरी" गुड़िया इस भीतरी गुडिया का केवल ढाँचा थी जिससे उसे ताकत और रूप दिया जा सके।
यीशु के जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान का विवरण पौलुस एक खजाने के रूप में करते हैं, जो परमेश्वर के लोगों की कमजोर मानवता के अन्दर छिपा है। जो विश्वासियों को बल देता है कि कठिन परिस्थितियों में डटे रहकर वे सेवा करते रहें। जिससे लोगों की मानवीयता से उनकी ज्योति-उनका जीवन प्रकाशित होता हैं। पौलुस हम सभी को “हियाव न छोड़ने का” प्रोत्साहन देते हैं (2कुरिन्थियों 4:16)। परमेश्वर हमें उनके कार्य करने के सामर्थ से भरते हैं।
"भीतरी गुड़िया", के समान हमारे भीतर सुसमाचार का खजाना इस जीवन को उद्देश्य और संयम देता है। जब परमेश्वर का सामर्थ हम में चमकता है, तो दूसरों को पूछने के लिए बाध्य करता है, कि "अंदर क्या है"? फिर अपने हृदय की ज़िप खोल कर हम मसीह में मिलने वाले उद्धार की जीवनदाई प्रतिज्ञा को दिखा सकते हैं।
फिर आरम्भ करना
क्रिसमस के बाद, अक्सर मैं आने वाले वर्ष के बारे सोचती हूँ और परखती हूँ कि पिछला वर्ष मुझे कहाँ लाया और अगले में कहाँ पहुँचने की मैं आशा कर सकती हूँ। एक नए वर्ष के आरम्भ की बात मुझे आशा और अपेक्षा से भर देती है। लगता है, कि पिछले साल में चाहे जो भी हुआ हो, मेरे पास फिर से आरम्भ करने का अवसर है।
नए आरम्भ की मेरी कल्पना उस आशा के समाने फ़ीकी पड़ जाती है जिसे इस्राएलियों ने तब अनुभव किया होगा जब बाबुल में सत्तर साल की लम्बी बंधुआई के बाद उनके देश यहूदा लौट जाने के लिए उन्हें मुक्त किया गया था। पिछले राजा नबूकदनेस्सर ने इस्राएलियों को उनके अपने देश से निर्वासित कर दिया था। परन्तु परमेश्वर ने राजा कुस्रू से बंधकों को यहोवा के भवन के पुनर्निर्माण के लिए उनके घर यरूशलेम भेज देने को कहा (एज्रा 1: 2-3)। कुस्रू ने उन्हें वे खजाने भी लौटा दिए जिन्हें यहोवा के भवन से लाया गया था। पापों के कारण बाबुल में कठिन और लंबा समय बिताने के बाद उनके जीवन का नया आरम्भ उस स्थान पर हुआ जिसे परमेश्वर ने उनके लिए ठहराया था।
अतीत में किए अपने पापों का जब हम अंगीकार करते हैं, परमेश्वर हमें क्षमा और नया आरम्भ देते हैं।
गोश्त और अन्डे
मुर्गी और बकरे की कहानी में, दोनों ही एक रेस्टोरेंट खोलने की बात करते हैं l भोजन सूची में, मुर्गी की सलाह थी कि हम गोश्त और अन्डे परोसेंगे l बकरे ने यह कहकर तुरंत आपत्ति जतायी, “बिलकुल नहीं l इसमें मुझे पूरी तौर से समर्पित होना पड़ेगा, किन्तु इसमें तुम केवल शामिल होगी l”
यद्यपि बकरा थाली में अपने आपको रखने में सहमत नहीं हुआ, समर्पण के विषय उसकी समझ शिक्षाप्रद है जिससे मैं पूरे मन से परमेश्वर का अनुसरण करना सीखता हूँ l
यहूदा के राजा, आसा ने अपने राज्य को बचाने के लिए, इस्राएल और आराम के राजाओं के साथ संधि को तोड़ना चाहा l उसने आराम के राजा, बेन्हदद का समर्थन पाने के लिए, अपने धन के साथ-साथ “यहोवा के भवन ... में से चाँदी-सोना [निकालकर]” उसके पास भेजा(2 इतिहास 16:2) l बेन्हदद सहमत हो गया और उनकी संयुक्त सेना ने इस्राएल को मार भगाया l
किन्तु नबी हनानी ने आसा को परमेश्वर पर, जिसने दूसरे शत्रुओं को उनके अधीन कर दिया था, की जगह मानवीय सहायता पर भरोसा करने के कारण उसे मुर्ख संबोधित किया l हनानी ने दावा किया, “यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिए फिरती रहती है कि जिसका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपनी सामर्थ्य दिखाए l पद.9) l
अपनी लड़ाई और चुनौतियों का सामना करते हुए, हमेशा याद रखें कि परमेश्वर ही हमारा सबसे उत्तम मित्र है l जब हम पूरे मन से उसके लिए समर्पित होते हैं वह हमें सामर्थी बनाता है l
बेहतर जानना
जब हम अपने दत्तक बेटे को विदेश से घर लाए, मैं उस पर अपना प्रेम निछावर करना चाहता था और पिछले महीनों में जो उसकी कमियाँ रहीं थी उन्हें पूरा करना चाहता था, विशेषकर अच्छा भोजन, क्योंकि उसे पोषण का अभाव था l किन्तु हमारे सबसे अच्छे प्रयासों और विशेषज्ञों की सलाह के बाद भी, उसकी उन्नति बहुत कम हो रही थी l लगभग तीन वर्षों के बाद, हमें पता चला कि वह कुछ भोजन वस्तु नहीं खा सकता था l उन वस्तुओं को उसके भोजन से हटाने के बाद, वह कुछ ही महीनों में पाँच इंच बढ़ गया l मेरे अफ़सोस करने पर कि काफी समय तक मैंने उसके स्वास्थ्य के विरुद्ध भोजन खिलाया था, मैं अब उसके स्वास्थ्य की उन्नति से आनंदित था l
मैं समझता हूँ कि मंदिर में वर्षों तक खोयी हुई व्यवस्था की पुस्तक के मिलने पर योशिय्याह भी ऐसा ही महसूस किया होगा l जैसे मैंने भी अनजाने में अपने बेटे की उन्नति में बाधा था, योशिय्याह भी दुखित हुआ कि उसने अज्ञानता के कारण परमेश्वर की पूर्ण और सर्वोत्तम इच्छाओं से अपने लोगों को वंचित रखा (2 राजा 22:11) l यद्यपि प्रभु की नज़रों में सही कार्य के लिए उसकी प्रशंसा की गयी(पद.2), उसने व्यवस्था की पुस्तक प्राप्त करने के बाद बेहतर तरीके से परमेश्वर को आदर दिया l नया ज्ञान प्राप्त करने के बाद, उसने परमेश्वर के निर्देश के अनुसार अराधना में लोगों की अगुवाई किया (23:22-23) l
जब हम बाइबिल से उसका आदर करना सीखते हैं, हम दुखित होंगे कि हम परमेश्वर की इच्छानुसार नहीं कर सके l फिर भी हम चैन प्राप्त करते हैं कि वह हमें चंगा करता है और पुनःस्थापित करता है, और गहरी समझ प्राप्त करने में कोमलता से अगुवाई करता है l
सर्वोत्तम उपहार क्या है?
मेरे पति ने हाल ही में महत्वपूर्ण जन्म-दिन मनाया, ऐसा जो शून्य में समाप्त होता है l इस विशेष मौके पर मैंने उन्हें सर्वोत्तम तरीके से सम्मानित करना चाहा l मैंने इसे सर्वोत्तम बनाने के लिए अपने बच्चों से अपने विचारों को बाँटा और उनसे सहायता मांगी l मेरी इच्छा थी कि हमारा उत्सव एक नए दशक के महत्व को दर्शाए और कि वे हमारे परिवार के लिए कितने विशेष हैं l मेरी इच्छा थी कि हमारा उपहार उनके जीवन के इस महत्वपूर्ण अवसर के महत्व के अनुकूल हो l
राजा सुलैमान एक “बड़े जन्मदिन” के योग्य उपहार से कहीं महान उपहार परमेश्वर को देना चाहता था l वह चाहता था कि उसके द्वारा निर्मित मंदिर उसमें परमेश्वर की उपस्थिति के योग्य हो l कच्चे माल के लिए उसने सोर के राजा को सन्देश भेजा l अपने पत्र में, उसने कहा कि मंदिर विशाल होगा “क्योंकि हमारा परमेश्वर सब देवताओं में महान है” (2 इतिहास 2:5) l उसने माना कि परमेश्वर की विशालता और भलाई मनुष्य के हाथों से निर्मित किसी भी वस्तु से कहीं अधिक महान होने पर भी, कार्य प्रेम और उपासना के कारण ठहराया गया है l
हमारा परमेश्वर वास्तव में दूसरे देवताओं से महान है l वह हमारे जीवनों में अद्भुत कार्य करके, भेंट के भौतिक मूल्य के बावजूद, हमारे हृदयों से प्रेमी और बहुमूल्य भेंट लाने को उत्साहित करता है l सुलैमान जानता था कि उसका भेंट परमेश्वर की तुलना में नहीं हो सकता, फिर भी अपना आनंदपूर्वक भेंट उसके सामने लाया; और हम भी ला सकते हैं l
अत्यंत बेहतर
मेरा जन्म दिन मेरी माँ के जन्मदिन के बाद आता है l एक किशोरी के रूप में, मैं अपने बजट में रहकर ऐसा उपहार खरीदने का प्रयास करती हूँ जिससे मेरी माँ खुश हो जाए l उन्होंने मेरे उपहार को हमेशा पसंद किया, और अगले दिन मेरे जन्मदिन पर उसे मुझे दे दिया l कोई शक नहीं कि उनका उपहार मेरे उपहार को मात देता था l उनका उद्देश्य मेरे उपहार को फीका करना नहीं होता था, बल्कि वो अपने साधन से देती थीं, जो मेरे से कहीं अधिक था l
मेरी माँ को देने की मेरी इच्छा मुझे दाऊद का परमेश्वर के लिए एक घर बनाने की इच्छा याद दिलाती है l अपने महल और उस तम्बू के विषय जहाँ परमेश्वर ने खुद को प्रगट किया था के बीच विरोध से प्रभाबित होकर, दाऊद परमेश्वर के लिए एक मंदिर बनाना चाहा l दाऊद के देने की इच्छा पूर्ति के स्थान पर, परमेश्वर ने उसे अत्यंत बेहतर उपहार दिया l परमेश्वर की प्रतिज्ञा थी कि दाऊद का एक पुत्र (सुलेमान) मंदिर ही नहीं बनाएगा (1 इतिहास 17:11), किन्तु वह दाऊद के लिए एक घर, एक वंश बनाएगा l वह प्रतिज्ञा सुलेमान से आरम्भ होकर अंततः यीशु में पूर्ण हुई, जिसकी राजगद्दी वास्तव में “सदैव स्थिर” है (पद. 12) l दाऊद अपने सिमित श्रोत में से देना चाहता था, किन्तु परमेश्वर ने कुछ असीमित देने की प्रतिज्ञा की l
दाऊद की तरह, हम भी परमेश्वर को कृतज्ञता और प्रेम से दें l और सर्वदा महसूस करें कि उसने यीशु में हमें अधिक बहुतायत से दिया है l
पर्याप्त
हम पति-पत्नी से हमारे घर में छोटे समूह की मेजबानी करने के आग्रह को मैंने अस्वीकार किया l बैठने के लिए अपर्याप्त स्थान और छोटा घर होने से मैंने अयोग्यता महसूस की l हम यह भी नहीं जानते थे, हम इस चर्चा में मददगार होंगे या नहीं l मैं चिंतित थी कि मुझे भोजन पकाना होगा जिसके लिए मेरे पास उत्सुकता और धन कम था l मेरी समझ में हमारे पास “प्रयाप्त” साधन नहीं था, हमारे लिए करने को “पर्याप्त” नहीं था l किन्तु हम परमेश्वर और अपने समुदाय के लिए करना चाहते थे, इस कारण भय के बाद भी, हम तैयार हो गए l अगले पाँच वर्षों तक अपने बैठक में इस समूह की मेजबानी आनंददायक थी l
मैं परमेश्वर के सेवक, एलिशा के पास रोटी लानेवाले व्यक्ति के अन्दर भी समान अनिच्छा देखता हूँ l एलिशा ने उसे लोगों को परोसने को कहा था, किन्तु वह व्यक्ति शंकित था कि सौ लोगों के लिए वह अपर्याप्त होगा l वह अपनी मानवीय समझ में भोजन को अपर्याप्त मानकर परोसना नहीं चाहा l फिर भी वह पर्याप्त से अधिक था (2 राजा 4:44), क्योंकि परमेश्वर ने आज्ञाकारिता में दिए हुए उसके दान को, पर्याप्त बना दिया l
अयोग्य महसूस करने पर, अथवा अपने दान को अपर्याप्त समझने पर, याद रखे कि परमेश्वर चाहता है कि जो हमारे पास है उसे हम विश्वासयोग्य आज्ञाकारिता में दे दें l वह ही उसे “पर्याप्त” कर देगा l
खाली से भरपूर
बच्चों की एक लोकप्रिय पुस्तक में गाँव के एक गरीब बच्चे की कहानी है जिसने राजा के सम्मान में अपनी टोपी उतार दी l तुरंत ही दूसरी उसके सिर पर आ गयी, जिसे राजा अपमान समझकर क्रोधित हुआ l महल में दण्डित करने ले जाते समय बार्थोल्म्यु टोपी उतरता गया और लगातार नयी सुन्दर, बहुमूल्य मणि जड़ी और पंखों से सज्जित टोपियाँ उसके सिर पर आती गयी l राजा डरविन ने 500 वीं टोपी पसंद की और, बार्थोल्म्यु को क्षमा करके सोने के 500 टुकड़ों में टोपी खरीद ली l आखिर में, बार्थोल्म्यु परिवार की जीविका के लिए आज़ादी और धन के साथ अपने घर चला गया l
क़र्ज़ चुकाने में नाकाम और बच्चों के दासत्व में जाने के भय से एक विधवा आर्थिक तंगी में एलिशा के पास आई (2 राजा 4) l परमेश्वर ने एक हांड़ी तेल को गुणित करके क़र्ज़ भरने के लिए और दैनिक आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए उधार लिए गए अनेक बर्तन भर दिए (पद.7) l
जैसे परमेश्वर ने विधवा को आर्थिक मदद दी, वह मेरे लिए उद्धार का प्रबंध करता है l मैं पाप से दिवालिया हूँ, किन्तु यीशु ने मेरा क़र्ज़ भर दिया- और मुझे अनंत जीवन भी देता है l यीशु के बिना, हम उस निर्धन, गाँव के बच्चे की तरह अपने राजा के विरुद्ध किये गए गुनाह के बदले कुछ नहीं दे सकते l परमेश्वर हमारे लिए अद्भुत रूप से अत्यधिक फिरौती देता है, और उस पर भरोसा करनेवालों को अनंत जीवन भी देगा l
परमेश्वर को दे दें
किशोरावस्था में, बड़ी चुनौतियों अथवा जोखिम भरे बड़े फैसलों से परेशान होने पर, मेरी माँ ने दृष्टिकोण प्राप्त करने हेतु उन्हें लिख लेने के फाएदे सिखाए l किसी ख़ास अध्ययन अथवा कार्य के विषय अनिश्चित होने पर अथवा वयस्क होने की अवस्था की डरावनी सच्चाइयों से कैसे निपटा जाए, मैंने अपनी माँ की तरह उनकी मूल सच्चाइयों, उसके उपयुक्त परिणामों के साथ संभव कार्यवाही योजनाओं को लिखने की आदत बनायी l उस पृष्ठ पर मन लगाते हुए, मैं परेशानी से कदम पीछे हटाते हुए उन्हें अपनी भावनाओं की बजाए सच्चाइयों पर आधारित होकर देख पाती थी l
जिस तरह कागज़ पर विचारों को अंकित करने से मुझे नए दृष्टिकोण मिलते थे, प्रार्थना में परमेश्वर के सामने मन लगाने से उसका दृष्टिकोण प्राप्त होता है और हम उसकी सामर्थ्य याद कर पाते हैं l मनहूस शत्रु से एक चुनौतीपूर्ण पत्र प्राप्त करने के बाद राजा हिजकिय्याह ने ऐसा ही किया l अशुरों ने अनेक राष्ट्रों की तरह यरूशलेम को भी नाश करने की धमकी दी l हिजकिय्याह ने पत्र को प्रभु के आगे फैलाकर प्रार्थनापूर्वक अपने लोगों के छुटकारे के लिए प्रार्थना की ताकि संसार पहचान जाए कि वह “केवल यहोवा” है (2 राजा 19:19) l
घबराहट, डर, या गहरी जानकारी वाली स्थितियों का सामना करते हुए हमें अपनी योग्यता से बढ़कर चाहिए l हिजकिय्याह की तरह प्रभु के पास जाएँ l उसकी तरह हम भी परमेश्वर के समक्ष अपनी समस्या रखकर अपने बेचैन हृदयों के लिए उसके मार्गदर्शन पर भरोसा रखें l