भयानक और खूबसूरत बातें
भय हमें स्तंभित कर सकता है l हम सब भयभीत होने के कारण जानते हैं-सबकुछ जिसने अतीत में हमें हानि पहुंचायी है, और सबकुछ जो आसानी से पुनः हमें नुक्सान पहुँचा सकती है l इसलिए कभी-कभी हम अटक जाते हैं-लौटने में असमर्थ, आगे बढ़ने में अत्यधिक भयभीत l मैं बिलकुल असमर्थ हूँ l मैं इतना तीव्र बुद्धि वाला नहीं हूँ, इतना ताकतवर नहीं हूँ, अथवा मैं पुनः इस तरह की हानि को नहीं संभाल सकता हूँ l
लेखक फ्रेडरिक बुएच्नेर जिस प्रकार परमेश्वर के अनुग्रह का वर्णन करते हैं उससे मैं मुग्द हूँ :
“एक धीमी आवाज़ जो कहती है, “यहाँ यह संसार है l भयानक और खूबसूरत बातें होंगी l भयभीत न होना l मैं तुम्हारे साथ हूँ l”
भयानक बातें होंगीं l हमारे संसार में, चोटिल लोग दूसरों को चोट पहुंचाते हैं, कभी-कभी अत्यधिक चोट l भजनकार दाऊद की तरह, हमारे चारोंओर की बुराइयों की हमारी अपनी कहानियाँ हैं, जब, “सिंहों,” की तरह अन्य लोग हमें हानि पहुंचाते हैं (भजन 57:4) l और इसलिए हम दुखित होते हैं; हम पुकारते हैं (पद.1-2) l
किन्तु इसलिए कि परमेश्वर हमारे साथ है, हमारे साथ खूबसूरत बातें भी होंगी l जब हम अपनी चोट और भय के साथ उसके निकट जाते हैं, हम खुद को ऐसे महान प्रेम से घिरा हुआ पाते हैं जहां कोई भी ताकत हमारी हानि नहीं कर सकती(पद.1-3), ऐसी करुणा जो स्वर्ग तक है (पद.10) l विनाश के हमारे चारों ओर होने के बावजूद, उसका प्रेम हमारे हृदयों के लिए स्थिर आश्रय है (पद.1,7) l उस दिन तक जब हम नूतन साहस प्राप्त करके, उसकी विश्वासयोग्यता का गीत गाकर उस दिन का स्वागत करेंगे (पद.8-10) l
हमारे मित्रों के लिए
एमिली ब्रोंट के उपन्यास वुथरिंग हाइट्स(Wuthering Heights) में, एक चिड़चिड़ा व्यक्ति जो अक्सर दूसरों की आलोचना करने के लिए बाइबल का सन्दर्भ देता था, उसे यादगार ढंग से “सबसे उबाऊ स्व-धर्मी फरीसी बताया गया है जिसने कभी खुद पर लागू करने और अपने पड़ोसियों को श्रापित करने के लिए बाइबल को लूटा हो l”
यह एक हास्य पंक्ति है; और खास लोगों की याद दिला सकता है l लेकिन क्या हम सब कुछ इस तरह के नहीं है-खुद की असफलताओं के लिए बहाने बनाते हुए दूसरों की आलोचना करने के लिए तैयार रहते हैं?
वचन में कुछ लोगों ने आश्चर्यजनक रूप से ठीक इसके विपरीत किया; उन्होंने उनके लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं से खुद को वंचित करने और दूसरों को बचाने के लिए श्रापित होना स्वीकार्य किया l मूसा पर विचार करें, जिसने इस्राएलियों को क्षमा दिलाने के लिए परमेश्वर के पुस्तक से अपना नाम भी हटवाने के लिए तैयार था (निर्गमन 32:32) l अथवा पौलुस, जिसने कहा कि मैं यहाँ तक चाहता हूँ कि मैं स्वयं ही मसीह से शापित हो [जाऊं] “यदि इसके परिणामस्वरुप उसके लोग परमेश्वर को जान जाएँ” (रोमियों 9:3) l
स्व-धर्मी जो हम स्वाभाविक रूप से हैं भी, वचन खुद से अधिक दूसरों को प्रेम करनेवालों को चिन्हांकित करता है l
क्योंकि आख़िरकार ऐसा प्रेम यीशु की ओर इशारा करता है l यीशु ने कहा, “इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे” (यूहन्ना 15:13) l इससे पहले कि हम यीशु को जानते, उसने “अंत तक” (13:1) हमसे प्रेम किया-हमें जीवन देने के लिए मृत्यु का चुनाव किया l
अब हमें प्रेम करने और ऐसा ही प्रेम पाने के लिए परमेश्वर के परिवार में आमंत्रित किया गया है (15:9-12) l और जब हम मसीह के अकल्पनीय प्रेम को दूसरों में उंडेलेंगे, संसार उसका झलक पाएगा l
चंगाई की वर्षा
तूफान मुझे हमेशा से पसंद रहा है। बचपन में तेज़ बारिश में अपने भाई-बहनों समेत घर के बाहर जमा पानी में छलांग लगाना, फिसलना, और पूरी तरह से भीगना रोमांचकारी होता था। उस समय यह कहना कठिन था कि हमें मज़ा आ रहा है या डर लग रहा है।
वचन परमेश्वर के पुनरुद्धार की तुलना उस निर्जल देश से करता है जिसमें जल के ताल भर जाएँ, उदाहरण के लिए भजन संहिता 107 को लें। जो रेगिस्तान को जल के ताल में बदल दे वह एक मंद वर्षा नहीं वरन घनघोर बारिश होगी जिससे बंजर भूमि की दरारों में नया जीवन भर जाएगा।
क्या हम ऐसे ही पुनरुद्धार की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं? जब चंगे होने के भूखे-प्यासे हम लक्ष्यहीन भटकने लगते हैं (पद 4-5), तब हमें एक ज़रा सी तस्सली भर से बढ़कर कुछ और पाने की लालसा होती है। जब पाप की जड़ें हमें घोर अंधकार के बन्धनों में जकड़ती हैं (पद 10-11 ) तब हमें मात्र अपनी दशा में परिवर्तन से बढ़कर कुछ और पाने की लालसा होती है।
ऐसा परिवर्तन परमेश्वर ला सकते हैं (पद 20)। अपने डर और शर्म को परमेश्वर के पास लाने में देर नहीं हुई है, जो हमें पाप के अंधकार से निकालकर अपने प्रकाश में लाने से बढ़कर करने में सक्षम हैं।
सिद्ध अपूर्णता
मेरे कॉलेज के एक प्रोफेसर ने मुझमें आदर्शवाद-प्रेरित विलम्ब(टालमटोल) को देखते हुए मुझे कुछ बुद्धिमान सलाह दी l “सिद्धता को अच्छे का शत्रु मत बनाओ,” उसने कहा, सिद्ध प्रदर्शन का प्रयास उन्नत्ति के लिए आवश्यक जोखिम उठाने से रोकता है l स्वीकार करते हुए कि मेरे काम हमेशा अपूर्ण रहेंगे मुझे उन्नत्ति करने की स्वतंत्रता मिलेंगी l
प्रेरित पौलुस ने खुद को सिद्ध बनाने में अपने प्रयास को त्यागने का एक और ख़ास कारण समझाया : मसीह हमारी ज़रूरत है, यह हमें इसके प्रति अँधा कर सकता है l
पौलुस ने इस सच को कठिन तरीके से सीखा था l कई वर्षों तक परमेश्वर की व्यवस्था को सिद्धता से पालन करने के प्रयास में, जब यीशु से मुलाकात हुई सब कुछ बदल गया (गलातियों 1:11-16) l पौलुस ने समझ लिया कि यदि परमेश्वर के साथ पूर्ण और सही होने के लिए उसके प्रयास काफी हैं, “तो मसीह का मरना व्यर्थ होता” (2:21) l केवल खुद का इनकार ही, खुद पर भरोसा करना त्यागकर ही, वह यीशु को अपने जीवन में जीवित महसूस कर सकता था (पद.20) l अपनी अपूर्णता में वह परमेश्वर की पूर्ण सामर्थ्य अनुभव कर सकता था l
इसका अर्थ यह नहीं है कि हम पाप का सामना न करें (पद.17); किन्तु इसका अर्थ यह ज़रूर है कि हम आत्मिक उन्नत्ति के लिए अपनी सामर्थ्य पर भरोसा करना छोड़ दें (पद.20) l
इस जीवन में, हम प्रगति करने वाले बने रहेंगे l किन्तु जब हमारे हृदय सिद्ध परमेश्वर की ज़रूरत के लिए नम्र बने रहेंगे, यीशु वहां निवास करेगा (इफिसियों 3:17) l हम उसमें जड़वत रहकर, उस ज्ञान से परे प्रेम में और गहराई से बढ़ते जाएंगे (पद.19) l
परेशानी के मध्य आशीष
मैं इस समस्या में फँस गयी हूँ, इसलिए मुझे इसमें से निकलना ही होगा, कभी-कभी मैं ऐसे सोचती हूँ l यद्यपि मैं परमेश्वर के अनुग्रह में विश्वास करती हूँ, फिर भी मैं ऐसा करने की ओर झुकती हूँ मानो उसकी सहायता केवल उसी समय उपलब्ध है जब मैं उसके योग्य होती हूँ l
परमेश्वर का याकूब के साथ पहली बार आमना-सामना एक खुबसूरत उदहारण है कि उपरोक्त बात कितनी गलत है l
इस प्रकार याकूब ने पिता की आशीष पाने के लिए वह सब कुछ किया जो वह कर सकता था l आख़िरकार, वह धोखा देकर सफल हो गया और अपने भाई की आशीष प्राप्त कर लिया (उत्पत्ति 27:19-29) l
उपरोक्त घटना का परिणाम एक विभाजित परिवार था, जब याकूब अपने क्रोधित भाई से भागा (पद. 41-43) l जब रात हुयी (पद.28:11), याकूब सदैव के लिए जीवन की एक आशीष से वंचित हो गया होता l
किन्तु आशीष एक निशानी छोड़ते हुए वहां पर थी, कि याकूब ने परमेश्वर से मुलाकात की थी l परमेश्वर ने उसे दिखा दिया था कि उसकी ज़रूरत जोखिम उठाकर आशीष पाना नहीं था; वह खुद ही आशीष था l उसकी नियति का उद्देश्य भौतिक समृद्धि से कहीं महान था (पद.14) और परमेश्वर द्वारा सुरक्षित था जो उसे कभी नहीं छोड़ने वाला था (पद.15) l
यह एक ऐसा पाठ था जो याकूब अपनी पूरी ज़िन्दगी सीखने वाला था l
और हम भी सीखेंगे l चाहे हम जितनी बार खेद प्रगट करें या परमेश्वर हमसे दूर नज़र आए, वह उपस्थित है और हमें परेशानियों में से निकालकर अपनी आशीष देना चाहता है l
अनुसरण करने की स्वतंत्रता
एक बार मेरे स्कूल के कोच ने मुझे एक दौड़ के पहले कहा, “आगे-आगे मत दौड़ना l आगे दौड़ने वाले जल्द ही थक जाते हैं l” इसके बदले उनकी सलाह थी कि मैं सबसे तेज दौड़ने वाले के निकट रहूँ l तेज दौड़ने वालों द्वारा गति बनाए रखने के कारण मैं अपने मानसिक और शारीरिक ताकत को बनाए रख सकूँगा और दौड़ भी अच्छी तरह पूरी कर लूँगा l
नेतृत्व थका सकता है; अनुसरण स्वतंत्र रखता है l इसको जानकार मेरा दौड़ना और बेहतर हो गया, किन्तु मसीही शिष्यता में यह लागू कैसे होता है, जानने में समय लगा l मेरे खुद के जीवन में, मेरी सोच थी कि यीशु का विश्वासी होने का अर्थ है सश्रम कोशिश करना l एक मसीही को कैसा होना चाहिए के विषय अपनी थकाऊ इच्छा का पीछा करने के द्वारा, मैं सरलता से उसका अनुसरण करने की जगह गलती से आनंद और स्वतंत्रता को खो रहा था (यूहन्ना 8:32,36) l
किन्तु हमें अपने जीवनों को चलाने कि ज़रूरत नहीं है, और यीशु ने आत्म-सुधार कार्यक्रम आरंभ नहीं किया था l इसके बदले, उसकी प्रतिज्ञा थी कि उसका अनुसरण करके हम उस शांति को प्राप्त करेंगे जिसकी हम इच्छा करते हैं (मत्ती 11:25-28) l अन्य धार्मिक शिक्षकों के विपरीत जो वचन के कठोर अध्ययन अथवा नियम पालन पर बल देते हैं, यीशु की शिक्षा थी कि उसको जानने के द्वारा हम परमेश्वर को जान सकते हैं (पद.27) l उसको खोजने से, हमारे भारी बोझ उतर जाएंगे (पद.28-30) और हमारे जीवन बदल जाएंगे l
क्योंकि नम्र और दीन अगुए के पीछे चलना सरल है (पद.29) – यह आशा और चंगाई का मार्ग है l उसके प्रेम में विश्राम करने से हम स्वतंत्र रहते हैं l
अनाम दया
ग्रेजुएशन के बाद मुझे एक कड़ा बजट बनाना पड़ा- सप्ताह में पच्चीस डॉलर। एक दिन, बिलिंग लाइन में मुझे लगा कि मेरा सामान मेरे बजट से अधिक लागत का है। "बीस डॉलर तक पहुंचकर बिलिंग रोक देना" मैंने केशियर से कहा। मिर्च छोड़कर बाकि सभी चीजें बिल हो गईं।
मैं निकल ही रही थी कि एक व्यक्ति मेरी कार के पास आया। मुझे एक पैकेट पकड़ा कर उसने कहा “आपकी मिर्ची यह रही”। इससे पहले मैं उसे धन्यवाद देती, वह जा चुका था।
दया के कार्य की इस भलाई की याद, मेरे दिल को आज भी छू जाती है और मत्ती 6 में यीशु के शब्दों का स्मरण दिलाती है। यीशु ने उन कपटियों की आलोचना करते हुए जो दिखावे के लिए दान देते थे, (पद 2) अपने चेलों को अलग रास्ता सिखाया। उन्होंने दान को ऐसे गुप्त रखने की प्रेरणा दी कि “जो तेरा दाहिना हाथ...(पद 3)!
एक अंजान व्यक्ति की दया ने मुझे याद दिलाया, देना कभी हमारे बारे में कभी न हो। हम देते हैं क्योंकि हमारे उदार परमेश्वर ने हमें बहुतायत से दिया है (2 कुरिन्थियों 9:6-11) गुप्त और उदार रूप से दान देकर हम यह दर्शाते हैं कि वह कौन हैं-और परमेश्वर को धन्यवाद की भेंट मिलती हैं जिसके केवल वो ही योग्य हैं (पद 11)।
जीवित रहने का मुद्दा
वित्तीय सलाह पर अधिकांश पुस्तकों में मैंने एक रोचक विचारधारा देखी है, कि आज खर्चे कम करो कल करोड़पति बनो। एक पुस्तक का भिन्न दृष्टिकोण था, समृद्ध जीवन जीना हो तो सादगी से जिओ। यदि आनन्द अनुभव करने के लिए आपको अधिक फैंसी सामान चाहिए, तो “आप जीने के मुख्य मुद्दे से चूक गए हैं”।
इस व्यावहारिक ज्ञान से यीशु की प्रतिक्रिया याद आती है जब किसी ने उनसे उसके भाई से सम्पति बाँटने को कहा। “जीवन सम्पति की बहुतायत से नहीं होता” कहते हुए यीशु ने “हर प्रकार के लोभ” से बचने की चेतावनी दी (लूका 12:14-15)। उन्होंने बताया कि सुखी जीवन के लालच में एक धनवान ने फ़सल भंडार में रखने की योजना बनाई-पहली सदी की रिटायरमेंट प्लानिंग-जिसका कटु परिणाम हुआ। सम्पति ने उसे सुख न दिया क्योंकि उसी रात उसकी मृत्यु हो गई (पद 16-20 )।
यीशु के शब्द हमें अपनी मंशा जाँचने की प्रेरणा देते है। हमारा हृदय परमेश्वर के राज्य की खोज में-उन्हें जानने में और दूसरों की सेवा करने में लगना चाहिए न कि भविष्य सुरक्षित करने में (पद 29-31)। जब हम यीशु के लिए जिएँ और उनका सन्देश निसंकोच दूसरों से बांटें, तो हम उनके साथ सुखी जीवन जी सकते हैं अभी -ऐसे राज्य में जो हमारे जीवन को अर्थ देता है (पद 32-36)।
जीवन कैसे परिवर्तित करें
रॉक एंड रोल के सुप्रसिद्ध कलाकार ब्रूस स्प्रिंगस्टीन के कठिन बचपन में और डिप्रेशन से लगतार संघर्ष करने में सगींत कलाकारों के काम ने ही मदद की थी। अपने कार्य का अभिप्राय उन्हें उसी सत्य से मिला, जिसका अनुभव उन्होंने स्वयं किया था, “एक उचित गीत से आप किसी के जीवन को तीन मिनट में परिवर्तित कर सकते हैं”।
ध्यान से चुने हुए शब्द हमें आशा देते हैं, यहां तक कि जीवन बदल सकते हैं। जैसे किसी शिक्षक के शब्द जो संसार को देखने का हमारा नजरिया बदलते हैं, आत्मविश्वास बढ़ाने वाले उत्साह वर्धक शब्द, कठिन समय में मित्र के नम्र शब्द जो हमें सम्भालते हैं।
वचन की पुस्तक शब्दों को खज़ाना समझने और बुद्धिमानी से उनका उपयोग करने के हमारे उत्तरदायित्व पर बल देती है। हमारे शब्दों में मृत्यु और जीवन के परिणाम हो सकते हैं, (18:21 नीति)। शब्दों से हम किसी की आत्मा को दु:खित कर सकते हैं, या दूसरों के मनोबल को बढ़ा कर उन्हें मजबूत कर सकते हैं (15:4)।
प्रभावशाली संगीत बनाने की क्षमता हम सब में नहीं है। परन्तु अपनी बातों के माध्यम से दूसरों की सेवा करने के लिए हम परमेश्वर की बुद्धि मांग सकते हैं (भजन 141:3)। किसी के जीवन को कुछ शब्दों से बदलने के लिए परमेश्वर हमारा उपयोग कर सकते हैं।