तूफान मुझे हमेशा से पसंद रहा है। बचपन में तेज़ बारिश में अपने भाई-बहनों समेत घर के बाहर जमा पानी में छलांग लगाना, फिसलना, और पूरी तरह से भीगना रोमांचकारी होता था। उस समय यह कहना कठिन था कि हमें मज़ा आ रहा है या डर लग रहा है।

वचन परमेश्वर के पुनरुद्धार की तुलना उस निर्जल देश से करता है जिसमें जल के ताल भर जाएँ, उदाहरण के लिए भजन संहिता 107 को लें। जो रेगिस्तान को जल के ताल में बदल दे वह एक मंद वर्षा नहीं वरन घनघोर बारिश होगी जिससे बंजर भूमि की दरारों में नया जीवन भर जाएगा।  

क्या हम ऐसे ही पुनरुद्धार की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं?  जब चंगे होने के भूखे-प्यासे हम लक्ष्यहीन भटकने लगते हैं (पद 4-5), तब हमें एक ज़रा सी तस्सली भर से बढ़कर कुछ और पाने की लालसा होती है। जब पाप की जड़ें हमें घोर अंधकार के बन्धनों में जकड़ती हैं (पद 10-11 ) तब हमें मात्र अपनी दशा में परिवर्तन से बढ़कर कुछ और पाने की लालसा होती है।

ऐसा परिवर्तन परमेश्वर ला सकते हैं (पद 20)। अपने डर और शर्म को परमेश्वर के पास लाने में देर नहीं हुई है, जो हमें पाप के अंधकार से निकालकर अपने प्रकाश में लाने से बढ़कर करने में सक्षम हैं।