हम पर प्रेम का नियंत्रण
अधिकांश युवा समोन लड़के (ऑस्ट्रेलिया के तट से दूर एक टापू) को एक टैटू मिलता है जो उनके लोगों और उनके प्रमुख के प्रति उनकी जिम्मेदारी का संकेत देता है l स्वाभाविक रूप से, तब, निशान समोन पुरुषों की रग्बी टीम के सदस्यों की बाहों को ढके होते हैं l जापान की यात्रा जहाँ टैटू नकारात्मक धारणाओं को ले जा सकता है, टीम के साथियों ने महसूस किया कि उनके प्रतीकों ने उनके मेजबानों के लिए एक समस्या पेश की l दोस्ती के एक उदार कार्य में, समोन लड़को ने डिजाइनों को ढकनेवाली त्वचा के रंग की आस्तीन पहन ली l टीम के कप्तान ने समझाया, “हम जापानी तरीके के प्रति आदरकारी और सावधान हैं l “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जो हम प्रदर्शित कर रहे हैं वह ठीक होगा l”
व्यक्तिगत अभिव्यक्ति पर जोर देने वाले युग में, आत्मसीमन(self-limitation) का सामना करना उल्लेखनीय है─एक अवधारणा जिसे पौलुस ने रोमियों की पुस्तक में लिखा l उसने हमें बताया कि कभी-कभी प्रेम हमसे दूसरों के लिए अपने अधिकार छोड़ने को कहता है l प्रेरित ने बताया कि कैसे चर्च के कुछ लोगों का मानना था कि “सब कुछ खाना उचित है,” लेकिन दूसरे केवल “साग पात ही” खाते थे (रोमियों 14:2) l हालांकि यह एक मामूली बात की तरह लग सकती है, पहली शताब्दी में, पुराने नियम के आहार संबंधी नियमों का पालन विवादास्पद था l पौलुस ने सभी को निर्देश दिया कि वे स्वतंत्र रूप से खाने वाले लोगों के लिए विशेष शब्दों के साथ निष्कर्ष निकालने से पहले “एक दूसरे पर दोष न लगाएँ” (पद.13) l “भला तो यह है कि तू माँस न खाए और न दाखरस पीये, न और कुछ ऐसा करे जिससे तेरा भाई [या बहन] ठोकर खाए” (पद.21) l
कई बार, दूसरे को प्यार करने का मतलब हमारी अपनी आज़ादी को सीमित करना है l हमें हमेशा वह सब नहीं करना होगा जो हम करने के लिए स्वतंत्र हैं l कभी-कभी प्यार हमें सख्ती से नियंत्रित करता है l
आत्मा के साथ चलना
10 हज़ार घंटे l लेखक मैल्कम ग्लैडवेल बताते हैं कि किसी भी शिल्प में निपूर्ण बनने के लिए इतना समय लगता है l यहाँ तक कि सभी समय के महानतम कलाकारों और संगीतकारों के लिए, उनकी जबरदस्त जन्मजात प्रतिभा विशेषज्ञता के स्तर को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं थी जो वे अंततः प्राप्त करनेवाले थे l उन्हें हर एक दिन अपने शिल्प में तल्लीन होने की ज़रूरत थी l
जैसा कि यह अजीब लग सकता है, हमें एक समान मानसिकता की ज़रूरत है जब यह पवित्र आत्मा की सामर्थ्य में जीना सीखना है l गलातियों में, पौलुस कलीसिया को परमेश्वर के लिए अलग होने के लिए प्रोत्साहित करता है l लेकिन पौलुस ने समझाया कि यह केवल नियमों के एक सेट का पालन करने से हासिल नहीं किया जा सकता है l इसके बजाय हमें पवित्र आत्मा के साथ चलने के लिए करता है l गलातियों 5:16 में पौलुस जिस यूनानी शब्द का उपयोग “चलने” के लिए किया है, उसका शाब्दिक अर्थ है किसी चीज़ के इर्द-गिर्द घूमना या यात्रा करना(peripateo) l इसलिए पौलुस के लिए, आत्मा के साथ चलना प्रत्येक दिन आत्मा के साथ यात्रा करना था – यह उसकी सामर्थ्य का सिर्फ एक बार का अनुभव नहीं है l
हम प्रतिदिन आत्मा से भरे रहने के लिए प्रार्थना करें – आत्मा के कार्य के अधीन होने के लिए जब वह परामर्श, मार्गदर्शन, तसल्ली देता है, और मगज़ हमारे साथ रहता है l और जब हम “आत्मा के चलाए चलते” हैं (पद.18), हम उसकी आवाज़ सुनने और उसके मार्गदर्शन का अनुसरण करने में बेहतर और बेहतर जाते हैं l पवित्र आत्मा, मैं आज आपके साथ चल सकूं, और हर दिन!
यीशु और वह बड़ी कहानी
एक उदार मित्र ने हमारे बच्चों की देखभाल करने की पेशकश कि ताकि मैं और मेरी पत्नी डेट(date) पर जा सकें l “तुम दोनों को कहीं अनोखे पर स्थान जाना चाहिए l” वह यकायक बोल पड़ी l व्यवहारिक लोग होने के कारण, डेट पर जाने के बदले हमने किराने की खरीदारी करने का फैसला किया l जब हम अपने हाथों में किराने की थैलियाँ लेकर लौटे, हमारे मित्र ने पूछा कि हमने कुछ ख़ास क्यों नहीं किया l हमने उससे बोला कि जो कुछ आप करते हैं की तुलना में आप किसके साथ हैं डेट को विशेष बनाता है l
बाइबल की कुछ पुस्तकों में से रूत की पुस्तक जो परमेश्वर को सीधे तौर पर कुछ बोलते हुए अथवा उसे कुछ करते हुए अंकित नहीं करती, बहुत साधारण दिखाई दे सकती है l तो कुछ लोग इसे मर्मस्पर्शी पुस्तक के रूप में परन्तु मुख्य रूप से दो लोगों के एक सम्बन्ध में जुड़ने के मानवीय नाटक के रूप में पढ़ते हैं l
लेकिन वास्तव में, कुछ असाधारण हो रहा है l रूत के अंतिम अध्याय में, हम पढ़ते हैं कि रूत और बोअज़ के सम्बन्ध से एक पुत्र जन्म लेता है जिसका नाम ओबेद है, जो दाऊद का दादा है (4:17) l और जैसा कि हम मत्ती 1:1 में पढ़ते हैं, यह दाऊद के परिवार से है कि यीशु का जन्म हुआ था l यह यीशु है रूत और बोअज़ की साधारण कहानी का खुलासा करता है और परमेश्वर की अद्भुत योजनाओं और होते हुए उसके कार्य के उद्दश्यों को प्रगट करता है l
इसलिए अक्सर हम अपने जीवनों को उसी तरह से देखते हैं : जैसे कोई साधारण और विशेष उद्देश्य के बिना l लेकिन जब हम मसीह के द्वारा अपने जुवान को देखते हैं, तो वह सबसे साधारण स्थितियों और संबंधों को भी शाश्वत महत्त्व देता है l
हमारी आशिशें, उसका प्यार
2015 में, एक महिला ने अपने मृत पति के कंप्यूटर को पुनर्चक्रण केंद्र(recycling center) में छोड़ आई – एक कंप्यूटर जो 1976 में बनाया गया था l लेकिन जब इसे बनाया गया था, तो इससे भी अधिक महत्वपूर्ण था कि इसे किसने बनाया था l यह एप्पल(Apple) संस्थापक स्टीव जॉब्स द्वारा बनाए गए 200 कंप्यूटर्स में से एक था, और यह चौथाई मिलियन डॉलर अनुमानित कीमत का था! कभी-कभी किसी चीज की असली कीमत जानने का मतलब होता है बनानेवाले को जानना l
यह जानते हुए कि परमेश्वर ही है जिसने हमें बनाया है हमें बताता है कि हम उसके लिए कितने मूल्यवान हैं (उत्पत्ति 1:27) l भजन 136 उसके लोगों अर्थात् प्राचीन इस्राएल के प्रमुख क्षणों को सूचीबद्ध करता है : किस तरह वे मिस्र के दासत्व से छुडाए गए थे (पद.11-12), जंगल से गुज़रे थे (पद.16), और उनको कनान में नया घर मिला था (पद.21-22) l परन्तु हर बार जब इस्राएल के इतिहास का उल्लेख किया जाता है उसके साथ इन शब्दों को दोहराया गया है : “उसकी करुणा सदा की है l” इन शब्दों का दोहराया जाना इस्राएल के लोगों को स्मरण दिलाना था कि उनके अनुभव मात्र निरुद्देश्य ऐतिहासिक क्षण नहीं थे l प्रत्येक क्षण परमेश्वर द्वारा निर्धारित था और उसके द्वारा बनाए गए लोगों के लिए उसके स्थायी प्रेम का प्रतिबिम्ब था l
बहुत बार, मैं ऐसे क्षणों को यूँ ही निकल जाने की अनुमति देता हूँ जो परमेश्वर को कार्य करते हुए और उसके उदार तरीकों को दर्शाते हैं, और पहचानने में विफल होता हूँ कि हर एक उत्तम दान स्वर्गिक पिता की ओर से मिलता है (याकूब 1:17) जिसने मुझे बनाया और मुझे प्यार करता है l काश आप और मैं अपने जीवनों में हर आशीष को अपने परमेश्वर के स्थायी प्रेम से जोड़ना सीख जाएँ l
दूसरी श्रेणी नहीं
प्रथम विश्व युद्ध के समापन के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक के रूप में मान्य्ता दी गयी थी l परन्तु कम ही लोग जानते थे कि 1919 में विनाशकारी हृदयाघात के बाद, यह उनकी पत्नी ही थी जिन्होनें उनके सभी मामलों को प्रबंधित किया, यह निर्धारित करते हुए कि किन मामलों को उनके ध्यान में लाया जाना चाहिए l वास्तव में आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि थोड़े समय के लिए, यह वास्तव में इडिथ विल्सन ही थी जिन्होनें संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में सेवा की थी l
यदि आरंभिक कलीसिया के अगुओं के नाम पूछें जाएँ, तो हममें से अधिकाँश पतरस, पौलुस, और तीमुथियुस को मुट्ठीभर व्यक्तियों के रूप सूचीबद्ध करते हैं जिनके पास प्रलेखित वरदान थे l परन्तु रोमियों 16 में, पौलुस ने विभिन्न पृष्ठभूमि के लगभग चालीस व्यक्तियों को सूचीबद्ध किया है – पुरुष, महिलाएँ, दास, यहूदी, और गैरयहूदी – जिनमें से सभी ने विविध तरीके से कलीसिया के जीवन में योगदान दिया l
और कलीसिया के दूसरे दर्जे के सदस्यों पर विचार करने से दूर, यह स्पष्ट है कि पौलुस ने इन लोगों को सबसे अधिक सम्मान दिया l वह उन्हें प्रेरितों के मध्य उत्कृष्ट बताता है (पद.7) – लोग जिनको यीशु की सेवा करने के लिए सराहा जाना था l
हममें से कई लोग अनुभव करते हैं कि हम कलीसिया में अगुआ बनने के लिए बहुत सामान्य हैं l परन्तु सच्चाई यह है कि हममें से प्रयेक के पास वरदान हैं जिनका उपयोग दूसरों की सेवा और सहायता के लिए किये जा सकते हैं l परमेश्वर की ताकत में, हम अपने वरदानों को उसके आदर के लिए उपयोग करें!
प्रोत्साहन की सामर्थ्य
बचपन में, बेंजामिन वेस्ट अपनी बहन की तस्वीर बनाने की कोशिश की, परन्तु तस्वीर बिगाड़ने में सफल हो गया l उसकी माँ ने उसकी रचना देखी, फिर उसके माथे को चूमकर बोली, “क्यों, यह तो सैली है!” वह बाद में कहनेवाला था कि उस चुम्बन ने उसे एक कलाकार बना दिया – और वह महान अमेरिकी चित्रकार बनने वाला था l प्रोत्साहन एक शक्तिशाल बात है!
पेंट करना सीखनेवाले बच्चे की तरह, पौलुस के पास उसकी आरंभिक सेवा में अधिक विश्वसनीयता नहीं थी, परन्तु बरनबास ने उसकी बुलाहट की पुष्टि की l यह बरनबास का प्रोत्साहन ही था जिसके कारण कलीसिया ने शाऊल को सहविश्वासी स्वीकार कर लिया (प्रेरितों 9:27) l बरनबास अन्ताकिया की मूल कलीसिया को भी प्रोत्साहित करके, उसे प्रेरितों के काम में एक सबसे प्रभावशाली कलीसिया बनने में सहायता की (11:22-23) l और बरनबास के साथ-साथ पौलुस का प्रोत्साहन ही था, जिससे यरूशलेम की कलीसिया ने गैरयहूदी विश्वासियों को मसीही के रूप में अपना लिया (15:19) l इसलिए, अनेक प्रकार से, आरंभिक कलीसिया की कहानी वास्तव में प्रोत्साहन की कहानी है l
यह हमारे जीवनों पर भी लागू होना चाहिए l हमारे विचार में प्रोत्साहन मात्र किसी को कुछ अच्छा कहना हो सकता है l परन्तु यदि हम उस दिशा में सोचते हैं, हम उसकी स्थायी शक्ति को पहचान नहीं पाते हैं l यह एक तरीका है जिससे परमेश्वर हमारे व्यक्तिगत जीवनों के साथ-साथ कलीसिया के जीवन को भी आकार देता है l
हम उन क्षणों के लिए धन्यवाद दें जब हम प्रोत्साहित किये गए और इसे दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करें l
हम कौन हैं
मैं वह समय कभी नहीं भूल सकता जब मैं अपनी होनेवाली पत्नी को अपने परिवार से मिलाने ले गया l आँखों में चमक के साथ, मेरे दो बड़े भाई-बहनों में उससे पूछा, “आपने इस लड़के में क्या देखा?” उसने मुस्कराते हुए आश्वास्त किया कि परमेश्वर के अनुग्रह से मेरा पालन पोषण एक ऐसे पुरुष के रूप में हुआ है जिससे वह प्रेम करती थी l
मुझे वह अकलमंद उत्तर पसंद था क्योंकि वह यह भी प्रतिबिंबित करता है कि किस तरह, मसीह में, प्रभु हमारे अतीत से अधिक देखता है l प्रेरितों 9 में, वह हनन्याह को शाऊल को चंगा करने भेजता है, जो कलीसिया को सतानेवाला एक जाना हुआ व्यक्ति था जिसे परमेश्वर ने दृष्टिहीन कर दिया था l हनन्याह इस सेवा को पाकर संदेह करके बोला कि शाऊल यीशु के विश्वासियों को सताने और यहाँ तक कि मारने के लिए भी घेर रहा था l परमेश्वर ने हनन्याह से इस बात पर ध्यान नहीं देने को कहा कि अतीत में शाऊल कौन था परन्तु इस पर कि वह क्या बन गया था : एक सुसमाचार प्रचारक जो उस समय के ज्ञात संसार को सुसमाचार सुननेवाला था, जिसमें गैरयहूदी (वे जो यहूदी नहीं थे) और राजा भी सम्मिलित थे (पद.15) l हनन्याह ने शाऊल को एक फरीसी और सनानेवाले के रूप में देखा, परन्तु परमेश्वर ने उसे प्रेरित पौलुस और सुसमाचार प्रचारक देखा l
हम कितनी बार खुद को केवल उस रूप में देखते हैं जैसे हम रहे हैं – अपने समस्त असफलताओं और कमियों के साथ l परन्तु परमेश्वर हमें नई सृष्टि के रूप में देखता है, हम कौन थे नहीं परन्तु हम यीशु में क्या हैं और पवित्र आत्मा की सामर्थ्य द्वारा हम क्या बन रहे हैं l हे परमेश्वर, हमें खुद को और दूसरों को इस प्रकार देखना सिखाएं!
कभी भी अति विलंबित नहीं
मेरे सास के हृदयाघात के बाद के चिंताजनक क्षणों में, वह त्वरित चिकित्सीय देखभाल प्राप्त करने में भाग्यशाली थी l बाद में, उनके डॉक्टर ने मुझे से कहा कि गंभीर हृदयाघात रोगियों का इलाज पंद्रह मिनट के भीतर होने पर 33 फीसदी लोग बच जाते हैं l परन्तु इस समय सीमा के बाहर इलाज पानेवाले केवल 5 फीसदी ही बच पाते हैं l
याईर की गंभीर रूप से बीमार बेटी (जिसे त्वरित चिकित्सीय देखभाल की ज़रूरत थी) को चंगाई देने जा रहे यीशु ने अकल्पनीय कार्य किया : वह ठहर गया (मरकुस 5:30) l उसने रुककर जानना चाहा किसने उसे छुआ था, और तब उस स्त्री से कोमलता से बात की l आप कल्पना कर सकते हैं कि याईर क्या सोच रहा था : इस के लिए समय नहीं है, मेरी बेटी मरनेवाली है! और तब, उसका सबसे बड़ा डर सच साबित हुआ – यीशु ने बहुत देर कर दिया था और उसकी बेटी की मृत्यु हो गयी (पद.35) l
परन्तु यीशु याईर की ओर मुड़कर उससे उत्साह के शब्द कहे : “मत डर; किवल विश्वास रख” (पद. 36) l तब, तमाशबीनों के उपहास को शांति से अनदेखा करके, मसीह ने याईर की बेटी से बोला और वह जीवित हो गयी! उसने प्रगट किया कि वह कभी भी अति विलंबित नहीं हो सकता है l जो वह कर सकता है और जब वह करता है समय उसको सीमित नहीं कर सकता है l
कितनी बार हम भी याईर की तरह अनुभव करते हैं, जो हम करने की आशा रखते थे उसमें परमेश्वर ने यूँ ही विलम्ब कर दिया l किन्तु परमेश्वर के साथ, ऐसी कोई बात नहीं है l वह हमारे जीवनों में अपना अच्छा और करुणामय कार्य पूरी करने में कभी देर नहीं करता है l
इंतज़ार से बढ़कर
सड़क छोड़कर और फूटपाथ पर ड्राइव करने के कारण पुलिस ने एक महिला पर लापरवाह ड्राइविंग की वजह दोषारोपित किया क्योंकि उसने एक स्कूल बस का इंतज़ार नहीं किया जो विद्यार्थियों को बस से उतार रही थी!
जबकि यह सच है कि इंतज़ार हमें अधीर कर सकता है, इंतज़ार में कुछ अच्छी बातें की जा सकती हैं और सीखी जा सकती हैं l यीशु इस बात से अवगत था जब उसने अपने शिष्यों से “यरूशलेम को न [छोड़ने]” को कहा (प्रेरितों 1:4) l वे “पवित्र आत्मा से बप्तिस्मा” प्राप्त करने का इंतज़ार कर रहे थे (पद.5) l
संभवतः उत्तेजना और अपेक्षा की स्थिति में, जब वे ऊपरी कोठरी में इकट्ठे थे, शिष्य शायद समझ रहे थे कि जब यीशु ने उनसे इंतज़ार करने को कहा था, वह उनसे कुछ करने को नहीं कहा था l उन्होंने प्रार्थना करने में समय व्यतीत किया (पद.14), और वचन से सूचित होकर, उन्होंने यहूदा के स्थान पर एक नये चेला का चुनाव किया (पद.26) l जब वे आराधना और प्रार्थना में संयुक्त थे, पवित्र आत्मा उनपर उतरा (2:1-4) l
शिष्य केवल इंतज़ार नहीं कर रहे थे – वे तैयारी भी कर रहे थे l जब हम परमेश्वर के सामने इंतज़ार करते हैं, इसका अर्थ कुछ नहीं करना नहीं है या अधीर होकर आगे बढ़ना भी नहीं l इसके बदले हम प्रार्थना, आराधना कर सकते हैं, और वह क्या करेगा की अपेक्षा करते हुए हम उसकी संगति का आनंद ले सकते हैं l इंतज़ार हमारे हृदयों, मनों, और शरीरों को आनेवाली बातों के लिए तैयार करता है l
वास्तव में, जब परमेश्वर हमें इंतज़ार करने की आज्ञा देता हैं, हम उत्तेजित हो सकते हैं – यह जानकार कि हम उसपर और हमारे लिए उसकी योजनाओं पर भरोसा कर सकते हैं!