विश्वसनीय और असुरक्षित
“अरे, पोह फैंग!” एक चर्च मित्र ने टेक्स्ट किया l “माह की देखभाल समूह के लिए, आइए हम सभी को याकूब 5:16 करने के लिए कहें l विश्वास और गोपनीयता का एक सुरक्षित वातावरण बनाएं, ताकि हम अपने जीवन में संघर्ष के एक क्षेत्र को साझा कर सकें और परस्पर प्रार्थना कर सकें l”
एक पल के लिए, मुझे यकीन नहीं था कि कैसे जवाब दूँ l जबकि हमारे छोटे समूह के सदस्य एक-दूसरे को वर्षों से जानते हैं, हम वास्तव में कभी भी अपने सभी दुखों और संघर्षों को परस्पर साझा नहीं करते थे l आखिरकार, असुरक्षित होना भयानक है l
लेकिन सच्चाई यह है कि हम सभी पापी हैं और संघर्ष करते हैं l सबको यीशु चाहिए l परमेश्वर के अद्भुत अनुग्रह और मसीह पर हमारे भरोसे के बारे में असली बातचीत हमें उस पर भरोसा के लिए प्रोत्साहित करने का एक तरीका है l यीशु संग, हम परेशानी से मुक्त जीवन का पाखण्ड करना बंद कर सकते हैं l
तो मैंने जवाब दिया, “हाँ! उसे करते हैं!” शुरू में खराब लगा l लेकिन जैसे ही एक व्यक्ति ने साझा किया, तुरंत दूसरा बोला l हालाँकि कुछ चुप रहे, लेकिन समझ थी l दबाव नहीं था l हमने याकूब 5:16 का दूसरा भाग, “एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो” के द्वारा समाप्त किया l
उस दिन मैंने यीशु में विश्वासियों की संगति की सुन्दरता अनुभव किया l मसीह में हमारे समान विश्वास से, हम परस्पर असुरक्षित हो सकते हैं और अपनी निर्बलताओं और संघर्षों में हमारी मदद करने के लिए उस पर और दूसरों पर निर्भर हो सकते हैं l
अपने पड़ोसी से प्रेम रखना
युवा ग्रुप में यह एक मजेदार खेल था, लेकिन यह हमारे लिए एक पाठ था: पड़ोसी बदलने के बजाय, उनसे प्रेम करना सीखें जो आपके पास है। सब कोई एक बड़े गोले में बैठा है, सिवाय एक व्यक्ति के जो घेरे के बिच में खड़ा रहता है। वह खड़ा व्यक्ति बैठे हुए में से किसी एक से पूछता है, “क्या तुम अपने पड़ोसी से प्रेम करते हो” बैठा हुआ व्यक्ति उस प्रश्न को दो तरीकों से जवाब दे सकता है: हाँ या नहीं। उसे निर्णय लेने का मौका मिलता है यदि वह अपने पड़ोसी को किसी और से बदलना चाहता है।
क्या हम नहीं चाहते की वास्तविक जीवन में भी हम अपना “पड़ोसी” चुन सकें? खासकर जब हमारे पास एक ऐसा सहकर्मी है जिसके साथ हमारी पटती न हो या पड़ोस का कोई पड़ोसी जो गलत समय पर मैदान का घास काटना पसंद करता है। हालाँकि, हमें अपने कठिन पड़ोसियों के साथ जीना सीखना होगा।
जब इस्राएली प्रतिज्ञा किए हुए देश में गये, परमेश्वर ने उन्हें अपने लोगों के रूप में जीने के लिए महत्वपूर्ण शिक्षा दिए। उन्हें कहा गया “परन्तु एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखना;” (लैव्यव्यवस्था 19:18), जिसमें बकवाद या अफवाहें न फैलाना, अपने पड़ोसियों का फायदा न उठाना, और अगर हमारे पास उनके खिलाफ कुछ है तो उनसे सीधा मिलना (पद 9-18) शामिल है।
जबकि सबसे प्रेम करना कठिन है, दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण तरीके से व्यवहार करना संभव है क्योंकि यीशु हम में और हमारे द्वारा कार्य करता है। जब हम उसके लोगों के रूप में अपनी पहचान को जीने की कोशिश करते हैं तो परमेश्वर हमें ऐसा करने के लिए बुद्धि और क्षमता प्रदान करेंगे।
कृतज्ञ दिल
हंसल पार्चमेंट एक संकट में था। उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में अपने सेमीफ़ाइनल के लिए गलत जगह की बस पकड़ लिया और अब समय पर स्टेडियम पहुंचने की उम्मीद लगभग ख़त्म हो गया। लेकिन शुक्र है कि वह खेलों में मदद करने वाली एक वालंटियर त्रिजाना स्टोजकोविक से मिले। उसने उसे टैक्सी लेने के लिए कुछ पैसे दिए। पार्चमेंट ने समय पर सेमीफाइनल में जगह बनाई और अंततः 110 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। बाद में, वह स्टोजकोविक को खोजने के लिए वापस गया और उसकी दया के लिए उसे धन्यवाद दिया।
लूका 17 में, हम सामरी कोढ़ी के बारे में पढ़ते हैं जो यीशु को चंगा करने के लिए धन्यवाद देने के लिए वापस आया (पद. 15-16)। यीशु एक गाँव में गया था जहाँ उसे दस कोढ़ी मिले थे। उन सभी ने यीशु से चंगाई के लिए कहा, और उन सभी ने उसके अनुग्रह और सामर्थ्य का अनुभव किया। दस खुश थे कि वे ठीक हो गए हैं, लेकिन केवल एक आभार व्यक्त करने के लिए लौटा। वह “ऊँचे स्वर में परमेश्वर की स्तुति करता हुआ लौटा। वह यीशु के पाँवों पर गिर पड़ा और उसका धन्यवाद करने लगा” (पद. 15-16)।
हर दिन, हम कई तरीकों से परमेश्वर की आशीषों का अनुभव करते हैं। यह उतना ही नाटकीय हो सकता है, जितना कि एक विस्तारित समय तक पीड़ित होने या किसी अजनबी से समय पर सहायता प्राप्त करने के लिए प्रार्थना का उत्तर मिलना । कभी-कभी, उनका आशीर्वाद सामान्य तरीकों से भी आ सकता है, जैसे किसी बाहरी कार्य को पूरा करने के लिए अच्छा मौसम। सामरी कोढ़ी की तरह, आइए हम पर परमेश्वर की दया के लिए उसका धन्यवाद करना याद रखें।
मौके का लाभ उठाएं
विश्वविद्यालय में प्रवेश की प्रतीक्षा करते हुए, बीस वर्षीय शिन यी ने एक युवा मिशन संगठन में सेवा करने के लिए अपने ब्रेक के तीन महीने देने का फैसला किया। ऐसा करने के लिए एक अजीब समय लग रहा था, COVID-19 प्रतिबंधों को देखते हुए जो आमने-सामने की बैठकों को रोकते थे। लेकिन शिन यी को जल्द ही एक रास्ता मिल गया। उसने बताया "हम छात्रों के साथ सड़कों पर, शॉपिंग मॉल, या फास्ट-फूड केंद्रों में नहीं मिल सकते थे, जैसा कि हम आमतौर पर करते थे"। "लेकिन हम एक दूसरे के लिए प्रार्थना करने के लिए जूम के माध्यम से मसीही छात्रों के साथ और गैर-विश्वासियों के साथ फोन कॉल के माध्यम से संपर्क में रहना जारी रखा।"
शिन यी ने वही किया जो प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को करने के लिए प्रोत्साहित किया था: " सुसमाचार प्रचार का काम कर " (2 तीमुथियुस 4:5)। पौलुस ने चेतावनी दी थी कि लोगों को ऐसे शिक्षक मिलेंगे जो उन्हें वही बताएंगे जो वे सुनना चाहते थे न कि वह जो उन्हें सुनने की जरूरत थी (पद. 3-4)। फिर भी तीमुथियुस को साहस रखने और "समय और असमय तैयार रहने" के लिए बुलाया गया था। उसे "बड़े धैर्य और सावधान शिक्षा के साथ सुधारना, डाँटना और प्रोत्साहित करना था" (पद. 2)।
यद्यपि हम सभी को सुसमाचार प्रचारक या शिक्षक होने के लिए नहीं बुलाया गया है, हम में से प्रत्येक अपने आस-पास के लोगों के साथ अपने विश्वास को साझा करने में एक भूमिका निभा सकते है। अविश्वासी मसीह के बिना नाश हो रहे हैं। विश्वासियों को मजबूती और प्रोत्साहन की आवश्यकता है। परमेश्वर की सहायता से, आइए जब भी और जहाँ भी हम कर सकते हैं, उसके सुसमाचार को बांटे।
सोमवार के लिए शुक्रगुज़ार
मैं सोमवार से डरता था l कभी-कभी, जब मैं अपनी पिछली नौकरी पर जाने के लिए ट्रेन से उतरता था, तो मैं स्टेशन पर थोड़ी देर के लिए बैठ जाता, बिल्डिंग तक पहुँचने में थोड़ा समय लगाता, भले ही केवल कुछ मिनटों के लिए ही सही l मेरा हृदय तेजी से धड़कता था जब मैं समय सीमा को पूरा करने और एक तुनकमिज़ाज बॉस के मूड को सँभालने के बारे में चिंतित होता था l
हममें से कुछ एक लोगों के लिए, एक और नीरस कार्य-सप्ताह(workweek) को आरम्भ करना विशेष रूप से कठिन हो सकता है l हम अपने कार्य में अभिभूत या कम सराहनीय महसूस कर रहे हों l राजा सुलैमान कार्य के परिश्रम का वर्णन करता है जब उसने लिखा : “मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगाकर परिश्रम करता है उससे उसको क्या लाभ होता है? उसके सब दिन तो दुखों से भरे रहते हैं” (सभोपदेशक 2:22-23) l
हालांकि उस बुद्धिमान राजा ने हमें कार्य को कम तनावपूर्ण या अधिक लाभकारी बनाने का सम्पूर्ण हल नहीं दिया, परन्तु उसने हमें हमारे दृष्टिकोण में बदलाव अवश्य दिया l चाहे हमारा कार्य कितना भी कठिन हो, वह हमें परमेश्वर की ओर से (पद.24) प्राप्त करके उसमें “संतोष पाने” के लिए प्रोत्साहित करता हैं l शायद यह तब आएगा जब पवित्र आत्मा हमें मसीह के समान चरित्र प्रदर्शित करने में सक्षम बनाता है l या जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से सुनते हैं जिसे हमारी सेवा के माध्यम से आशीष मिली है l या जैसा कि हम उस बुद्धिमत्ता को याद करते हैं जिसे परमेश्वर ने एक कठिन परिस्थति से निपटने के लिए प्रदान किया था l यद्यपि हमारा कार्य कठिन हो सकता है, हमारा विश्वासयोग्य परमेश्वर हमारे साथ है l उसकी उपस्थिति और सामर्थ्य उदास व् धुंधले दिनों को भी प्रकाशित कर सकती है l उसकी मदद से हम सोमवार के लिए शुक्रगुजार हो सकते हैं l
सच्ची आज़ादी
ट्रेन में पढ़ते समय, जाह्नवी अपनी किताब के वाक्यों को हाइलाइट करने और किताब के हाशिये (मार्जिन) में नोट्स लिखने में व्यस्त थी। लेकिन पास में बैठी एक मां और बच्चे के बीच हुई बातचीत ने उसे रोक दिया। माँ अपने बच्चे को अपनी लाइब्रेरी की किताब में बेकार के चित्र बनाने को मना कर रही थी। जाह्नवी ने जल्दी से अपनी कलम हटा दी, वह नहीं चाहती थी कि बच्चा जाह्नवी की मिसाल पर चलकर अपनी माँ की बातों को नज़रअंदाज़ करे। वह जानती थी कि बच्चा उधार ली गई किताब को नुकसान पहुंचाने और अपनी खुद की किताब में नोट्स बनाने के बीच के अंतर को नहीं समझेगा।
जाह्नवी के कार्यों ने मुझे 1 कुरिन्थियों 10:23–24 में प्रेरित पौलुस के प्रेरणादायक शब्दों की याद दिला दी: “सब वस्तुयें मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं; सब वस्तुयें मेरे लिये उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुंओं से उन्नति नहीं। कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढे, बरन औरों की भलाई को ढूंढे।” कुरिन्थ की युवा कलीसिया में यीशु के विश्वासियों ने मसीह में अपनी स्वतंत्रता को व्यक्तिगत हितों को आगे बढ़ाने के अवसर के रूप में देखा। परन्तु पौलुस ने लिखा कि उन्हें इसे दूसरों को लाभ पहुँचाने और उनको बनाने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। उसने उन्हें सिखाया कि सच्ची स्वतंत्रता वह करने का अधिकार नहीं है जो वे चाहते हैं, परन्तु परमेश्वर के लिए जैसा उन्हें करना चाहिए वैसा करने की स्वतंत्रता है।
जब हम अपनी स्वतंत्रता का उपयोग खुद की सेवा करने के बजाय दूसरों को बनाने के लिए करते हैं तब हम यीशु का अनुकरण करते हैं ।
संकरा दरवाजा काफीघर
क्रोइसैन, पकौड़ी, मांस करी, और सभी प्रकार के स्वादिष्ट भोजन उन लोगों की प्रतीक्षा करता है जो संकरा दरवाजा काफीघर ढूंढते हैं और उसमें प्रवेश करते हैं। तैनान के तैवानसेने शहर में स्थित यह काफीघर वस्तुतः दीवार में एक छेद है, उसका प्रवेशद्वार मुश्किल से 40सैन्टीमीटर चौड़ा (16 इंचों से कम) – औसत व्यक्ति के लिए निचोड़ कर अपना रास्ता निकालने के लिये पर्याप्त है! उस चुनौती के बावजूद भी, इस अनोखे काफीघर ने बड़ी भीड़ को आकर्षित किया है ।
क्या यह लूका 13:22–30 में वर्णित सकेत द्वार के बारे में सच होगा ? “और किसी ने उस से पूछा, हे प्रभु,क्या उद्धार पाने वाले थोड़े हैं?” (पद 23)प्रतिउत्तर में यीशु ने उस व्यक्ति को चुनौती दी “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, परमेश्वर के राज्य में” (पद 24) वह अनिवार्य रूप से पूछ रहे थे, “क्या बचाए हुए में आप शामिल होगें?” यीशु ने इस समरुपता का इस्तेमाल यहूदियों को अभिमानी न होने के लिए किया उनमें से बहुतों ने विश्वास किया कि वे परमेश्वर के राज्य में शामिल होंगे क्योंकि वे अब्राहम के वंशज थे या क्योंकि उन्होंने नियमों का पालन किया था, पर यीशु ने उन्हें उसे “जब घर का स्वामी उठकर द्वार बन्द कर चुका हो” (पद 25) के पहले प्रतिउत्तर देने की चुनौती दी।
न हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि, और न ही हमारे कर्म हमें परमेश्वर के साथ सही कर सकते हैं, सिर्फ यीशु में विश्वास हमें पाप और मृत्यु से बचा सकता है (इफिसियों 2:8–9 तितुस 3:5) दरवाजा सकरा है, पर उन सब के लिए खुला है जो यीशु में अपना विश्वास रखेंगे। आज वह हमें उसके राज्य में सकरे मार्ग से प्रवेश करने के मौका का लाभ उठाने के लिए आमंत्रित कर रहे है।
धन्यवाद, लेकिन इसकी कोई ज़रूरत नहीं
भारत में स्वलीन (autistic) बच्चों के लिए एक मसीही स्कूल को एक संस्था से बड़ा दान मिला। यह जांचने के बाद कि यह बिना किसी शर्त का है, उन्होंने धन स्वीकार किया। लेकिन बाद में, संस्था ने स्कूल बोर्ड में प्रतिनिधित्व करने का अनुरोध किया। स्कूल संचालक ने पैसा लौटा दिया। उन्होंने स्कूल के मूल्यों के साथ समझौता करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, "परमेश्वर के कार्य को परमेश्वर के तरीके से करना ज्यादा महत्वपूर्ण है।"
सहायता अस्वीकार करने के कई कारण हैं, और यह उनमें से एक है। बाइबिल में हम एक और देखते हैं। जब निर्वासित यहूदी यरूशलेम लौटे, तो राजा कुस्रू ने उन्हें मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए अनुमति दी (एज्रा 3)। जब उनके पड़ोसियों ने कहा, "हमें भी अपने संग बनाने दो; क्योंकि तुम्हारी नाई हम भी तुम्हारे परमेश्वर की खोज में लगे हुए हैं"(4:2), इस्राएल के अगुवों ने मना कर दिया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि उनकी मदद को स्वीकार करने से, मंदिर पुनर्निर्माण कार्य की पवित्रता से समझौता करना होगा और मूर्तिपूजा उनके समुदाय में प्रवेश कर सकती है क्योंकि उनके पड़ोसी भी मूर्तियों को पूजते थे। इस्राएलियों ने सही निर्णय लिया, क्योंकि उनके पड़ोसियों ने इमारत बनने के काम को हतोत्साहित करने के लिए जो कुछ वह कर सकते थे उन्होंने किया।
पवित्र आत्मा और यीशु में बुद्धिमान विश्वासियों की सलाह की मदद से, हम परखने की समझ विकसित कर सकते हैं। हम साहसपूर्वक उन मैत्रीपूर्ण प्रस्तावों को ना कह सकते हैं जिनमें सूक्ष्म आत्मिक खतरा छुपा हो। क्योंकि जब परमेश्वर का काम परमेश्वर के तरीके से किया जाता है तो उसमें उसके प्रावधान की कोई घटी नहीं होती।
अच्छे से जीना
जीवितों के लिए मुफ्त अंतिम-संस्कार l दक्षिण कोरिया में एक संस्थान यही सेवा देती है l जब से यह 2012 में आरंभ हुई है, 25,000 से अधिक लोगों ने──किशोर से लेकर सेवानिवृत लोगों तक── अपनी मृत्यु पर विचार करते हुए अपने जीवनों को सुधारने की आशा में ”जीवित अंतिम-संस्कार” सभाओं में भागीदारी की है l अधिकारी बताते हैं “दिखावटी मृत्यु सभाओं का अर्थ भागीदारों को उनके जीवनों के विषय एक सच्चा भाव देना है, कृतज्ञता प्रेरित करना है, और क्षमा देने में मदद, और परिवार और मित्रों के बीच पुनः सम्बन्ध स्थापित करना है l”
ये शब्द सभोपदेशक के लिखनेवाले शिक्षक की बुद्धिमत्ता को प्रतिध्वनित करते हैं l “सब मनुष्यों का अंत(मृत्यु) है, और जो जीवित है वह मन लगाकर इस पर सोचेगा” (सभोपदेशक 7:2) l मृत्यु हमें जीवन की लघुता की याद दिलाती है और कि जीवन जीने और अच्छे से प्रेम करने के लिए हमारे पास सीमित समय है l यह परमेश्वर के कुछ अच्छे उपहारों──जैसे धन/पैसा, सम्बन्ध, और सुख──पर हमारी पकड़ को ढीला करता है और हमें इसका आनंद यहाँ और वर्तमान में लेने के लिए स्वतंत्र करता है जब हम “स्वर्ग में धन इकठ्ठा [करते हैं], जहाँ न तो कीड़ा और न काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर न सेंध लगाते और न चुराते हैं” (मत्ती 6:20) l
जब हम याद करते हैं कि मृत्यु किसी समय दस्तक दे सकती है, शायद यह हमें अपने माता-पिता से मुलाकात को न टालने को विवश करे, एक ख़ास तरीके से परमेश्वर की सेवा करने के हमारे निर्णय को विलंबित न होने दे, या हम अपने काम के ऊपर अपने बच्चों के साथ अपना समय बिताने को प्राथमिकता दें l परमेश्वर की सहायता से, हम बुद्धिमत्ता से जीवन जीना सीख सकते हैं l