पिता की आशीष
हाल ही में, हमारे चर्च के कई लोग – जिन्होनें अपने पिता के साथ ख़राब संबंधों का अनुभव किया था, ने मुझे एक प्रेमी, पिता के रूप में खड़े होने और उनके ऊपर आशीष माँगने के लिए कहा l उस आशीष ने उन तरीकों के लिए माफ़ी मांगी जिससे एक पिता अपने बच्चों को चोट पहुँचा सकता है जब वह उनसे बहुत ऊँचीं या बहुत दूर की अपेक्षाएँ करता है और कोमल उपस्थिति और समर्थन देने में विफल होता है l इसने प्रसन्नता, प्रशंसा और प्रचुर प्रेम का भी उच्चारण किया l आशीष साझा करते समय, मैं रोया l मुझे अहसास हुआ कि मुझे अभी भी ऐसे शब्दों की आवश्यकता है, और मेरे बच्चों को भी उनकी कितनी अधिक आवश्यकता है l
पवित्रशास्त्र बार-बार परमेश्वर को हमारे पिता के रूप में बताता है, जो हमारे पास मौजूद विकृत पिता की छवि को पुनः आकार देने की वास्तविकता है l परमेश्वर, हमारे अनंत पिता, ने हमसे सिद्ध “प्रेम” करके हमें “परमेश्वर की संतान” बनाया है (1 युहन्ना 3:1) l परमेश्वर के पुत्र और पुत्रियों के रूप में हमारी पहचान हमें अनिश्चित, भय उत्पन्न करने वाले संसार में स्थापित करता है l “हम परमेश्वर की संतान हैं,” युहन्ना कहता है, “भले ही अभी तक यह प्रगट नहीं हुआ” है (पद:2) l मौजूद चुनौतियों का सामना करते हुए, हम सभी सही मायने में भरोसा कर सकते हैं कि हमारा पिता हमसे प्रेम करता है और हमारे लिए प्रबंध करता है और कभी रुकता नहीं l जब सब कुछ कह दिया जाता है और कर दिया जाता है, परमेश्वर यूहन्ना के प्रेरित शब्दों के द्वारा कहते हैं, हम निश्चित हो सकते हैं कि हम उसके समान होंगे (पद.2)
हमारी चिंताओं, घावों और असफलताओं के बीच, हमारा अच्छा पिता अनंत प्रेम की आशीष बरसता है l परमेश्वर बल देता है कि हम उससे सम्बद्ध हों, क्योंकि उसने हमें अपने बच्चे बनाया है l
निंदा से मुक्त
जब एक जोड़े ने अपने ट्रेलर वाले वाहन को सूखी उत्तरी कैलिफोर्निया से होकर निकाला, उन्हें एक टायर के फटने की और फूटपाथ पर धातु के रगड़ की आवाज़ आयी l चिंगारियों ने 2018 का कार्र फायर (Carr Fire) को प्रज्वलित कर दिया – जंगल की एक आग जिसने लगभग 230,000 एकड़ को जला दिया, और 1,000 से अधिक घरों को नष्ट कर दिया और इसके परिणामस्वरूप कई लोग मारे गए l
जब बचे हुए लोगों ने सुना कि दम्पति दुःख से किस तरह अभिभूत थे, उन्होंने उस दम्पति को जिन्हें “लज्जा और निराशा” ने ढँक लिया था “कृपा और दयालुता” दिखाने” के लिए एक फेसबुक पेज बनाया l एक महिला ने लिखा, “किसी की तरह जिसने इस आग में अपना घर खो दिया है – मैं चाहती हूँ कि आप जाने कि मेरा परिवार [आप पर दोष नहीं लगाता है], न ही कोई और परिवार जिन्होनें अपने घर खो दिए . . . l दुर्घटनाएं होती हैं l मुझे वास्तव में उम्मीद है कि इस तरह के सन्देश आपके बोझ को कम करेंगे l हम सब मिलकर इसको पार करेंगे l”
निंदा अर्थात् हमारा भय कि हमने कुछ कभी न सुधर सकने योग्य किया है, मानव आत्मा को बर्बाद कर सकता है l धन्यवाद हो कि पवित्र वचन यह बताता है कि “हम जानेंगे कि . . . जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा . . . परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है” (1 यूहन्ना 3:20) l हमारी छिपी हुयी जो भी लज्जा हो, परमेश्वर इन सब से बड़ा है l यीशु हमें पश्चाताप के उपचार कार्य के लिए बुलाता है (यदि ज़रूरत हो) अथवा हमें भस्म करनेवाली लज्जा को बेनकाब करता है l उसके बाद. दिव्य छुटकारे का सामना करते हुए, हम, “अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे” (पद.19) l
उन चीजों पर पछताना जिन्हें हम सुधार सकते थे, परमेश्वर हमें निकट बुलाता है l यीशु हमें देखकर मुस्करा कर कहता है, “तुम्हारा हृदय स्वतंत्र है l”
सच्ची, गहरी अभिलाषा
एक तीखी आवाज़ वाला एक चूहा, रिपीचीप शायद द क्रॉनिकल्स of नार्निया(The Chronicles of Narnia’s) फिल्म का सबसे बहादुर चरित्र है l उसने अपनी छोटी तलवार को घुमाते हुए लड़ाई में कूद पड़ा l उसने भय को ख़ारिज कर दिया जब उसने डॉन ट्रीडर पर डार्कनेस द्वीप की ओर को यात्रा की l रिपीचीप के साहस का रहस्य? यह असलान(शेर/lion) के देश में जाने की अभिलाषा से गहराई से जुड़ा था l उसने कहा, “यह मेरे हृदय की अभिलाषा है l” रिपीचीप जानता था कि वह वास्तव में क्या चाहता था, और यह उसे उसके राजा की ओर ले गया l
यरीहो का एक दृष्टिहीन व्यक्ति, बरतिमाई, अपने सामान्य स्थान पर बैठकर सिक्कों के लिए अपना कटोरा बजा रहा था जब उसने यीशु और भीड़ को आते हुए सुना l वह चिल्लाया, “हे दाऊद की संतान, यीशु, मुझ पर दया कर!” (मरकुस 10:47) l भीड़ ने उसे चुप कराने की कोशिश की, लेकिन बरतिमाई को रोका नहीं जा सका l
मरकुस कहता है, “[यीशु ठहर गया]” (पद.49) l भीड़ के बीच में यीशु बरतिमाई को सुनना चाहता था l यीशु ने पूछा, “तू क्या चाहता है?” (पद.51) l
उत्तर स्पष्ट लग रहा था; निश्चित रूप से यीशु जानता था l लेकिन उसका मानना था कि बरतिमाई को अपनी गहरी इच्छा व्यक्त करने की अनुमति देने में शक्ति थी l “मैं देखना चाहता हूँ,” बरतिमाई ने कहा (पद.51) l और यीशु ने बरतिमाई को घर भेजा जिसने पहली बार रंग, सुन्दरता, और मित्रों के चेहरे देखे l
सभी इच्छाओं की पूर्ति तुरंत नहीं होती है (और इच्छाओं को रूपान्तरित होना चाहिए), लेकिन यहाँ जो विशेष है कि कैसे बरतिमाई अपनी इच्छा जानता था और इसे यीशु के पास ले गया l अगर हम ध्यान देंगे, तो हम जानेंगे कि हमारी सच्ची इच्छाएँ और लालसाएं हमें हमेशा उसके पास ले जाएंगी l
अब भयभीत नहीं
जब इथियोपिया की पुलिस ने उसके अपहरण के एक सप्ताह के बाद उसे पाया, तो वह घने काले बाल वाले तीन शेरों से घिरी हुयी थी जैसे कि वह उनकी थी l सात लोगों ने उस बारह वर्षीय लड़की का अपहरण करके उसे जंगल में ले जाकर उसे पीटा था l आश्चर्यजनक रूप से, हालाँकि, शेरों का एक छोटा झुण्ड लड़की के रोने की आवाज़ सुनकर आया और हमलावरों को खदेड़ दिया l पुलिस अधिकारी वोंदिमू ने एक पत्रकार को बताया, “[शेरों ने] उस समय तक उसका पहरा दिया जब तक कि हम उसे ढूँढ नहीं लिए और फिर वे उसे एक उपहार की तरह छोड़कर जगल में चले गए l”
ऐसे दिन भी होते है जब हिंसा और बुराई जिस प्रकार इस लड़की पर हावी हुयी थी हम पर भी हावी होकर, हमें बिना किसी उम्मीद और भय के छोड़ देती है l प्राचीन काल में, यहूदा के लोगों ने इसका अनुभव किया था l क्रूर सेना ने उन पर आक्रमण किया और वे किसी भी प्रकार भाग न सके l भय ने उन्हें भस्म कर दिया l हालाँकि, परमेश्वर ने हमेशा अपने लोगों के साथ अपनी निरंतर उपस्थिति को नवीकृत किया : “इस्राएल का राजा यहोवा तेरे बीच में है, इसलिए तू फिर विपत्ति न भोगेगी” (सपन्याह 3:15) l जब हमारी तबाही हमारे विद्रोह के परिणामस्वरूप होती है, तब भी परमेश्वर हमारे बचाव में आताह है l हम सुनते हैं, “तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, वह उद्धार करने में पराक्रमी है” (पद.17) l
जो भी मुसीबतें हमें घेर लेती हैं, जो भी बुराइयाँ है, यीशु – यहूदा का शेर – हमारे साथ है (प्रकाशितवाक्य 5:5) l कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितना अकेला महसूस करते हैं, हमारा मजबूत उद्धारकर्ता हमारे साथ है l इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा डर हमें नाश करता है, हमारा परमेश्वर हमें भरोसा दिलाता है कि वह हमारी ओर है l
अनुग्रह के बीज
भारत के एक व्यक्ति ने, अपनी सुखी, रेतीली उसर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए लगभग चार दशक से अधिक, तक मेहनत किया l यह देखते हुए कि अपरदन और परिवर्तनीय परितंत्र(ecosystem) ने नदी के निकट उसके प्रिय द्वीप को किस तरह नष्ट कर दिया था, उसने एक एक करके पेड़ लगाना शुरू किया, बाँस के पौधे फिर कपास के पौधे l वर्तमान में, 1,300 एकड़ से अधिक भूमि हरे-भरे जंगल और पर्याप्त वन्य-जीव से भरपूर है l हालाँकि, उस व्यक्ति का मानना है कि उसके द्वारा पुनर्जीवन संभव नहीं हुआ l प्राकृतिक संसार जिस अद्भुत तरीके से अभिकल्पित है, को पहचानते हुए, वह आश्चर्यचकित होता है कि किस प्रकार बीज वायु द्वारा उपजाऊ भूमि तक पहुँचाए जाते हैं l पक्षी और जानवर भी उन्हें बोने में सहयोग करते हैं, और नदियाँ पौधों और पेड़ों को बढ़ने में योगदान देती हैं l
सृष्टि ऐसे तरीकों से काम करती है जिसे हम समझ नहीं पाते और नियंत्रित नहीं कर पाते हैं l यीशु के अनुसार, यही सिद्धांत परमेश्वर के राज्य पर भी लागू होता है l “यीशु ने कहा, “परमेश्वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छीटें . . . वह बीज ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने” (मरकुस 4:26-27) l परमेश्वर हमारे परिचालन के बिना संसार में असली उपहार के रूप में जीवन और चंगाई लाता है l हम वही करते हैं जो परमेश्वर हमें करने को कहता है, और तब हम जीवन को प्रगट होते देखते हैं l हम जानते हैं कि सब कुछ उसके अनुग्रह से ही आता है l
यह विश्वास करना बहकानेवाली बात है कि हम किसी के हृदय को बदलने के लिए जिम्मेदार हैं या अपने विश्वासयोग्य प्रयासों के परिणाम को निश्चित कर सकते हैं l हालाँकि, हमें उस थकानेवाले तनाव के अधीन रहने की ज़रूरत नहीं है l परमेश्वर हमारे समस्त बीजों को बढ़ाता है l यह सब अनुग्रह है l
मुख्य कर्ता
मैं एक विद्यार्थी के विषय सुना जो एक प्रसिद्ध सेमिनरी(बाइबल कॉलेज) में धर्मोपदेश की शिक्षा ले रहा था l वह युवा विद्यार्थी ने, जो अपने विषय अधिक अभिमानी था, अपने धर्मोपदेश को वाक्पटुता और प्रगट उत्साह के साथ प्रस्तुत किया l वह आत्म-संतुष्ट होकर बैठ गया, और प्रोफेसर उत्तर देने से पूर्व थोड़ा रुक गए l “वह तो एक प्रभावशाली धर्मोपदेश था,” उन्होंने कहा l “यह अच्छे से व्यवस्थित था और मर्मस्पर्शी भी l”
प्रोफेसर ने हम सब की एक समस्या स्पष्ट की जिससे हम कभी-कभी संघर्ष करते हैं l हम इस प्रकार बात कर सकते हैं जैसे कि हम मुख्य कर्ता हैं (उस पर बल देते हुए जो हम करते हैं, जो हम बोलते हैं) जबकि वास्तव में परमेश्वर जीवन में मुख्य कर्ता है l हम अक्सर दावे के साथ कहते हैं कि परमेश्वर किसी न किसी तरह सामान्य रूप से “प्रभारी है,” परन्तु हम इस प्रकार अभिनय करते हैं जैसे कि समस्त परिणाम हमारे ऊपर निर्भर होते हैं l
वचन दृढ़ता से कहता है कि परमेश्वर ही हमारे जीवन का वास्तविक विषय है, वास्तविक प्रभाव है l हमारे विश्वास के अनिवार्य कार्य भी – प्रभु की सामर्थ्य में (भजन 118:10-11) - “यहोवा के नाम से” संपन्न होते हैं l परमेश्वर हमारे उद्धार को सम्पादित करता है l परमेश्वर हमें बचाता है l परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को पूरा करता है l “यह तो यहोवा की ओर से हुआ है” (पद. 23) l
इसलिए तनाव दूर हो चूका है l हमें क्षुब्ध होने, तुलना करने, बाध्यकारी ऊर्जा से कार्य करने की, या अपनी अनेक चिंताओं को पालने की ज़रूरत नहीं है l परमेश्वर नियंत्रण रखता है l हमें केवल भरोसा करने की ज़रूरत है और आज्ञाकारिता से उसकी अगुवाई का अनुसरण करना है l
उल्टा चलना
ब्रिटिश समाचार फिल्म कर्मीदल के एक फिल्म के हिस्से पर मैं चौंक गया जिन्होनें 1932 में छः वर्ष की फ्लानरी ओकोन्नोर के जीवन पर उन्हीं के पारिवारिक फार्म में फिल्म बनायी l फ्लानरी, जो आगे चलकर ख्याति प्राप्त अमरीकी लेखिका बननेवाली थी, ने कर्मीदल के कुतूहलता को आकर्षित किया क्योंकि उसने एक चूजे को उल्टा चलना सिखाया था l इस नयी कमाल की बात के अलावा, मैंने सोचा कि यह झलक इतिहास का एक पूर्ण रूपक था l अपने साहित्यिक बोध और आत्मिक दृढ़ निश्चय, दोनों ही कारण से फ्लानरी ने, अपने जीवन के उन्तीस वर्ष वास्तव में उल्टा चलने में बिताया अर्थात् संस्कृति के तरीकों के विपरीत विचार करते और लिखते हुए l प्रकाशक और पाठक पूरी तौर से चकित थे कि किस तरह उसके बाइबल सम्बन्धी मुद्दे उनके अपेक्षित धार्मिक विचारों के विरुद्ध थे l
यीशु का अनुकरण करनेवालों के लिए मानक के विरुद्ध चलने वाला जीवन वास्तव में अपरिहार्य है l फिलिप्पियों की पत्री हमें बताती है कि यीशु, “परमेश्वर के स्वरुप में [होने के बावजूद],” हमारी अपेक्षा के अनुकूल प्रत्याशित कदम नहीं बढ़ाया (पद.6) l उसने अपनी सामर्थ्य को “अपने वश में रखने की वस्तु न समझा, वरन् अपने को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरुप धारण किया” (पद.6-7) l सृष्टि का प्रभु, मसीह ने, प्रेम के कारण मृत्यु सही l उसने प्रतिष्ठा को नहीं परन्तु दीनता को गले लगाया l उसने अधिकार को नहीं छीना परन्तु इख्तियार को त्याग दिया l सारांश में, यीशु, संसार द्वारा प्रेरित तरीकों के विपरीत उल्टा चला l
बाइबल हमें ऐसा ही करने को कहती है (पद.5) l यीशु की तरह, हम हावी होने के बदले सेवा करते हैं l हम ख्याति के बदले दीनता की ओर बढ़ते हैं l हम लेने के बदले देते हैं l यीशु की सामर्थ्य में, हम उल्टा चलते हैं l
एक दुखद कहानी
यह दुखद है, एक ख़ास बुराई जो लम्बे समय से लोगों से छिपाया जाता रहा है – अनेक स्त्रियों का उन पुरुषों द्वारा यौन शोषण जो उनपर अधिकार रखते थे – अब उजागर हो गया है l एक के बाद एक स्थायी हैडलाइन, दो लोग जिनका मैं प्रशंसक था के विषय शोषण करने का सबुत सुनकर मेरा हृदय बैठ गया l चर्च इन मामलों के विषय प्रभावशून्य(immune) नहीं रही है l
राजा दाऊद ने अपने हिसाब किताब का सामना किया l शमूएल हमें बताता है कि एक दिन दोपहर के समय, दाऊद को “ एक स्त्री . . . नहाती हुए देख पड़ी” (2 शमूएल 11:2) l और दाऊद ने उसकी अभिलाषा की l यद्यपि बतशेबा उसके एक वफादार सिपाही(ऊरिय्याह) की पत्नी थी, बावजूद इसके दाऊद ने उसे ले लिया l बेतशेबा के दाऊद को बताने पर कि वह गर्भवती है, वह घबरा गया l और दाऊद ने धोखे के एक घृणित कार्य के अंतर्गत, योआब द्वारा ऊरिय्याह को युद्ध में ही मरवा दिया l
दाऊद का बेतशेबा और ऊरिय्याह के विरुद्ध अपने अधिकार का दुरूपयोग किसी भी प्रकार से छिपा हुआ नहीं है l शमूएल निश्चित तौर से चाहता है कि हम इस पूरी घटना को जानें l हमें अपने पाप से पेश आना होगा l
और, हमें इन कहानियों को सुनना भी होगा क्योंकि यह हमें हमारे समय में अधिकार के दुरूपयोग के प्रति चिताते हैं l यह दाऊद था, “एक मनुष्य [परमेश्वर] के मन के अनुसार” (प्रेरितों 13:22), परन्तु एक ऐसा व्यक्ति भी जिसे उसके कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना ज़रूरी था l हम भी प्रार्थनापूर्वक अगुओं को उनके अधिकार के उपयोग या दुरूपयोग के लिए जिम्मेदार ठहरा सकें l
परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा, छुटकारा संभव है l यदि हम आगे पढ़ें, हम दाऊद के गंभीर पश्चाताप का सामना करते हैं (2 शमूएल 12:13) l हम धन्यवादित हों, कि आज भी हृदय मृत्यु से जीवन को ओर मुड़ सकते हैं l
चीजों को सम्पूर्ण बनाना
एक डाक्यूमेंट्री(दस्तावेज़ी फिल्म) लुक एंड सी : वेन्डेल बेरी का चित्र(Look & See: A Portrait of Wendell Berry), में रचयिता बेरी कहते हैं कि किस तरह तलाक हमारे संसार की स्थिति की व्याख्या करता है l हम एक दूसरे से, हमारे इतिहास से, देश से, अलग किये जाते हैं l चीजें जिन्हें सम्पूर्ण रहना चाहिए था खंडित की जाती हैं l जब हमसे पुछा जाता है कि इस दुखद सच्चाई के विषय हमें क्या करना चाहिए, बेरी ने कहा, “हम सभी बातों को पुनः सम्पूर्ण नहीं बना सकते हैं l हम केवल दो चीजों को लेते हैं और उन्हें एक कर देते हैं l” हम दो खंडित चीजें को लेकर उन्हें एक बना देते हैं l
“धन्य हैं वे, जो मेल करानेवाले हैं,” यीशु ने हमसे कहा (मत्ती 5:9) l मेल कराने का अर्थ है शालोम लाना l और शालोम का सन्दर्भ संसार को सही करना है l एक धर्मवैज्ञानिक शालोम को इस प्रकार चित्रित करता है “विश्वव्यापी खुशहाली, सम्पूर्णता और सुख . . . l [यह] वैसा है जैसे चीजों को होना चाहिए l” शालोम खंडित को लेकर सम्पूर्ण बनाना है l यीशु के मार्गदर्शन अनुसार, हम भी चीजों को सही करने का प्रयत्न करें l वह हमें मेल करानेवाले, “पृथ्वी का नमक” और “जगत की ज्योति” बनने की चुनौती देता है (पद.13-14) l
संसार में मेल करानेवाले बनने के बहुत तरीके हैं, प्रतिदिन हम टूटेपन से संघर्ष करें न कि उसके आगे हार मान लें l परमेश्वर की सामर्थ्य में, हम किसी मित्रता को नहीं टूटने देने या संघर्ष कर रहे किसी पड़ोस को कमजोर न होने देने, या बेपरवाही और अकेलापन का चुनाव न करें l टूटे स्थानों को ढूंढें, भरोसा करते हुए कि परमेश्वर उनको पुनः सम्पूर्ण बनाने में हमें बुद्धि और कौशल देगा l