जब मैं छोटा था, तो जब भी मेरी अत्यधिक स्नेह करनेवाली बेट्टी आंटी आती थी, मुझे क्रिसमस जैसा लगता था । वह खिलौने लाती थी और दरवाजे से बाहर जाते समय पैसे भी दे जाती थी l जब भी मैं उनके साथ रहा, उन्होंने फ्रीज़र को आइसक्रीम से भर दिया और सब्जियां कभी नहीं पकायी l उनके कुछ नियम थे और मुझे देर रात तक जगा कर रखती थीं l परमेश्वर की उदारता को दर्शानेवाली मेरी आंटी अद्भुत थी । हालाँकि, स्वस्थ रूप से उन्नति करने के लिए, मुझे केवल आंटी बेट्टी के तरीके से अधिक की आवश्यकता थी । मैं चाहता था कि मेरे माता-पिता मुझसे और मेरे आचरण से अपेक्षा करें, और मेरी माने l    

परमेश्वर बेट्टी आंटी से अधिक मेरे विषय मुझसे पूछता है l जबकि वह हमें अथक प्रेम से भर देता है, एक ऐसा प्यार जो उस समय भी कभी डगमगाता नहीं जब हम विरोध करते हैं या भाग जाते हैं, वह हमसे कुछ अपेक्षा ज़रूर करता है l जब परमेश्वर इस्राएल को कैसे जीना है का निर्देश दिया, उसने दस आज्ञाएँ दीं, दस सुझाव नहीं (निर्गमन 20:1-17) । हमारे आत्म-धोखे के बारे में अभिज्ञ, परमेश्वर स्पष्ट अपेक्षाएँ प्रदान करता है : “हम परमेश्वर से प्रेम [करें] और उसकी आज्ञाओं को [मानें]” (1 यूहन्ना 5:2) l

शुक्र है, “[परमेश्वर की] आज्ञाएँ कठिन नहीं [हैं] (पद.3) । पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा, हम उनको व्यवहारिक रूप से जी सकते हैं जब हम परमेश्वर के प्रेम और आनंद का अनुभव करते हैं । हमारे लिए उसका प्रेम अनवरत है l लेकिन पवित्रशास्त्र हमें यह जानने में मदद करने के लिए एक प्रश्न प्रस्तुत करता है कि क्या हम बदले में परमेश्वर से प्रेम करते हैं : क्या हम उसकी आज्ञाओं का पालन कर रहे हैं जब पवित्र आत्मा हमारा मार्गदर्शन करता है?

हम कह सकते हैं कि हम परमेश्वर से प्यार करते हैं, लेकिन हम उसकी ताकत में क्या करते हैं वास्तविक कहानी बताती है ।