सत्य, झूठ, और निगरानी
2018 के बेसबॉल के मौसम के दौरान, एक कोच डगआउट(मैदान के बाहर दोनों टीमों के लिए एक स्थान) के किनारे बैठे एक छोटे लड़के को एक बेसबॉल देना चाहता था l लेकिन जब कोच ने उसकी ओर बॉल उछाला, तो उसकी जगह पर एक व्यक्ति ने उसको पकड़ लिया l इस घटना का विडियो वायरल हो गया l समाचार ब्यूरो और सोशल मीडिया इस मनुष्य की “भावशून्यता” के साथ कठोरता से पेश आए l दर्शक को छोड़कर दूसरे पूरी कहानी को नहीं जानते थे l इसके पहले, इस व्यक्ति ने उस छोटे बच्चे की मदद एक फ़ाउल बॉल पकड़ने में की थी; और वे दोनों उनकी ओर आने वाले कोई भी अतिरिक्त बॉल पकड़ने की साझेदारी करने के लिए सहमत हुए थे l दुर्भाग्यवश, सच्ची कहानी को उभरने में चौबीस घंटे लगे l भीड़ ने उस निर्दोष आदमी को दोषी ठहरा कर पहले ही हानि कर लिया था l
कई बार, हम सोचते हैं कि हमारे पास सभी तथ्य हैं जबकि हमारे पास केवल अंश होते हैं l हमारी आधुनिक गोटचा(gotcha-पकड़ लिया) संस्कृति में, नाटकीय विडियो के टुकड़ों और उत्तेजित ट्वीट्स में, पूरी कहानी सुने बगैर लोगों को दोषी ठहराना आसान है l हालाँकि, पवित्रशास्त्र हमें चेतावनी देता है, “झूठी बात न फैलाना” (निर्गमन 23:1) l हम दोष लगाने से पहले सच्चाई की पुष्टि करने के लिए हर संभव प्रयास करें, जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि हम झूठ में शामिल नहीं हो रहे हैं l जब भी सतर्कता वाली आत्मा गिरफ्त में ले ले, जब भी भावावेश सुलगता हो और निर्णय की लहरें उठने लगे तो हमें सतर्क रहना है l हमें “अन्यायी साक्षी होकर दुष्ट का साथ न” देने में खुद को सुरक्षित करना होगा (पद.2) l
यीशु के विश्वासी के रूप में, परमेश्वर हमें झूठ को फैलाने से रोकने में मदद करे l वह हमारी बुद्धिमत्ता को प्रदर्शित करने की आवश्यकता का प्रबंध करे और हमारे शब्द वास्तव में सच्चे हैं की पुष्टि करे l
अच्छी परेशानियाँ
जब जॉन ल्युईस, एक अमेरिकी राजनेता, की मृत्यु 2020 में हुई, तो कई राजनितिक धारणा वाले लोगों ने शोक व्यक्त किया l 1965 में, ल्युईस काले नागरिकों के लिए मताधिकार प्राप्त करने के लिए मार्टिन लूथर किंग जूनियर के साथ जुलूस में शामिल हुए थे l इस जुलूस के दौरान, ल्युईस को सिर में करारी चोट लगी थी, जिसके दाग उनके जीवन भर बने रहे l ल्युईस ने कहा, “जब आप कुछ ऐसा देखते हैं जो सही नहीं है, न्यायसंगत नहीं है, अन्यायपूर्ण है, आपके पास कुछ बोलने के लिए नैतिक जिम्मेदारी है l कुछ करने के लिए l उन्होंने यह भी कहा, “कभी नहीं, कभी भी, अच्छी, अनिवार्य परेशानी में कुछ आवाज़ उठाने में डरना नहीं चाहिए l”
ल्युईस ने समय पर सीखा कि जो सही है उसे करना, सच्चाई में विश्वासयोग्य रहना, “अच्छी” परेशानी उत्पन्न करने की मांग करता है l उन्हें अलोकप्रिय बातें बोलने की ज़रूरत पड़ सकती है l आमोस भविष्यद्वक्ता भी यह जानता था l इस्राएल का पाप और अन्याय देखते हुए, वह चुप नहीं रह सका l आमोस ने निंदा किया कि “तुम धर्मी को सताते और घूस लेते, और फाटक में दरिद्रों का न्याय बिगाड़ते हो” जबकि “मनभावनी दाख की [बारियों]” के साथ “गढ़ें हुए पत्थरों” के घर बनाए हो (आमोस 5:11-12) l कलह से बाहर रहकर अपनी सुरक्षा और आराम बनाए रखने के बजाय, आमोस ने बुराई का नाम लिया l नबी ने अच्छी, अनिवार्य परेशानी उत्पन्न की l
लेकिन इस मुसीबत का उद्देश्य सभी के लिए अच्छा करना था──सभी के लिए न्याय l “न्याय को नदी के समान, और धर्म को महानद के समान बहने दो” (पद.24) l जब हम अच्छी परेशानी(न्याय जिस धार्मिकता, अहिंसक परेशानी की मांग करता है), परिणाम हमेशा भलाई और चंगाई/स्वास्थ्य होता है l
दृढ़ इंकार
जब नाज़ियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्रान्ज़ जैगरस्टेटर को अनिवार्य रूप से भर्ती किया, तो उन्होंने सैन्य बुनियादी प्रशिक्षण पूरा किया लेकिन एडॉल्फ़ हिटलर के प्रति व्यक्तिगत वफदारी की आवश्यक प्रतिज्ञा लेने से इंकार कर दिया l अधिकारियों ने फ्रान्ज़ को उसके फार्म पर लौटने की अनुमति दी, लेकिन बाद में उन्होंने उसे सक्रिय ड्यूटी पर बुलाया l नाज़ी विचारधारा को करीब से देखने और यहूदी नरसंहार के बारे में जानने के बाद,हलांकि, जैगरस्टेटरने परमेश्वर के प्रति अपनी वफादारी का फैसला किया, जिसका मतलब था कि वह नाज़ियों के लिए कभी नहीं लड़ सकता l उन्हें गिरफ्तार कर लिए गया और उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गयी, उनके पीछे उनकी पत्नी और तीन बेटियों रह गयीं l
वर्षों से, यीशु में कई विश्वासियों ने——मृत्यु की जोखिम के तहत——परमेश्वर की अवज्ञा करने की आज्ञा देने पर दृढ़ता से इंकार किया है l दानिय्येल की कहानी एक ऐसी ही कहानी है l जब राजादेश ने धमकी दी कि यदि कोई “[राजा] को छोड़, किसी मनुष्य या देवता से विनती करेगा, वह सिंहों की माँदमें डाल दिया जाएगा”(दानिय्येल 6:12) l दानिय्येल ने सुरक्षा को अस्वीकार किया और विश्वासयोग्य बना रहा l “अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के सामने घुटने टेककर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा” (पद.10) l वह नबी परमेश्वर के सामने अपने घुटने टेकता था——और केवल परमेश्वर के सामने——चाहे कुछ भी कीमत चुकाना पड़े l
कभी कभी, हमारे चुनाव स्पष्ट हैं । भले ही हमारे चारों तरफ के लोग हमे प्रचलित मत के साथ जाने के लिए फंसाते हों——भले ही हमारी खुद की प्रतिष्ठा या भलाई खतरे में हो—हम कभी परमेश्वर की आज्ञाकारिता से न पलटें । कभी-कभी, बड़ी हानि के बावजूद, हम जो पेशकश कर सकते हैं वह एक दृढ़ इनकार है l
शांति का जीवन
पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में, शालोम हाउस नाम की एक जगह है जहाँ नशे की लत से जूझ रहे लोग मदद ढूंढने के लिए जाते है । शालोम हॉउस में, वे देखभाल करने वाले कर्मचारियों से मिलते है, जो उन्हें परमेश्वर के शालोम (इब्रानी में शांति) से परिचित कराते हैं l ड्रग्स, शराब, जुआ और अन्य हानिकारक लतों के नीचे कुचले हुए जीवन, और दूसरे विनाशकारी व्यवहार परमेश्वर के प्रेम से रूपांतरित किये जा रहे हैं l
इस रूपांतरण का केंद्र क्रूस का संदेश है । शालोम हॉउस के टूटे हुए लोग यह समझते हैं कि यीशु के पुनरुत्थान के द्वारा, वे अपने जीवन को पुनरुत्थित महसूस कर सकते है । मसीह में, हम सच्ची शांति और चंगाई हासिल करते हैं ।
शांति केवल टकराव/द्वन्द् की उनुपस्थिति नहीं है; यह परमेश्वर की सम्पूर्णता की उपस्थिति है l हम सब को इस शालोम की जरूरत है, और यह सिर्फ मसीह और उसकी आत्मा में पाया जाता है । इसलिये पौलुस ने गलातियों को आत्मा के परिवर्तनकारी काम की ओर इंगित किया जिसमें प्रेम, आनंद, धीरज, और अतिरिक्त शामिल है (गलतियों 5:22-23) । वह हमें उस सच्ची, स्थायी शांति का अत्यावश्यक अंश देता है ।
जब आत्मा हमें परमेश्वर के शालोम में रहने के लिए सक्षम बनाता है, हम अपने जरूरतों और चिंताओं को अपने स्वर्गीय पिता के पास लाना सीखते हैं । यह बदले में हमें ‘‘परमेश्वर की शांति [देता है], जो सारी समझ से परे है”──वह शांति जो ‘‘[हमारे] हृदय और [हमारे] विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी” (फिलिप्पियों4:7) l
मसीह के आत्मा में, हमारे हृदय सच्चा शालोम अनुभव करते हैं l
दिव्य बचाव
टेलिफोन पर एक चिन्तित नागरिक से एक आपातस्थिति की सूचना मिलने के बाद, एक पुलिस ऑफिसर रेल की पटरी के साथ-साथ अपनी गाड़ी चलाते हुए, अपना खोज-दीप(floodlight) अँधेरे में उस समय तक चमकाते हुए आगे बढ़ा, जब तक कि उसने उस वाहन को रेल पटरी के बीच खड़े हुए नहीं देखा l जैसे ही एक ट्रेन कार की तरफ बढ़ी एक नजदीकी कैमरा ने खौफनाक दृश्य को कैद कर लिया । “वह ट्रेन तेजी से आ रही थी,” ऑफिसर ने कहा, “पचास से अस्सी मील प्रति घंटा l” इससे पहले कि ट्रेन उस कार में टक्कर मारती, मात्र कुछ क्षणों में ही बिना किसी संकोच के कार्य करते हुए उसने कार के अन्दर से एक बेहोश व्यक्ति को खींच कर निकाला l
पवित्रशास्त्र परमेश्वर को बचाने वाले के रूप में बताती है──अक्सर उस समय जब सब खोया हुआ लगता है । मिस्र में फंसे हुए और दम घुटनेवाली उत्पीड़न में नष्ट होते हुए, इस्राएलियों ने वहाँ से बचने की कल्पना भी नहीं की थी । हालाँकि, निर्गमन में हम देखतें हैं कि परमेश्वर ने उन्हें आशा से भरपूर गुंजायमान शब्द बोले : “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में है, उनके दुःख को निश्चय देखा है,” उसने कहा “और उनकी . . . चिल्लाहट . . . भी मैंने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है” (3:7) और परमेश्वर ने केवल देखा ही नहीं──परमेश्वर ने कार्य किया l “मैं उतर आया हूँ कि उन्हें छुडाऊँ” (पद.8) l परमेश्वर ने इस्राएलियों को दासत्व से बाहर निकाला । यह एक दिव्य बचाव था ।
परमेश्वर का इस्राएलियों को बचाना परमेश्वर के हृदय को प्रकट करता है──और उसकी सामर्थ्य──-हम सब जो ज़रूरतमंद हैं उनकी सहायता करने के लिए l वह हम में से उन लोगों की सहायता करता है जिनका बर्बाद होना निश्चित है जब तक कि ईश्वर हमें बचाने के लिए नहीं आता l यद्यपि हमारी स्थिति खौफनाक या असंभव हो सकती है, हम अपनी आँखें और हृदय ऊपर उठाकर उस पर निगाहें रख सकते हैं जो बचाना चाहता है l
सिद्ध न्याय
1983 में, एक 14 साल के युवा की हत्या के आरोप में तीन किशोर गिरफ्तार किये गये । समाचार के अनुसार, छोटे किशोर को, “उसके (एथलेटिक) जैकेट के कारण . . . गोली मारी गयी थी l” जेल में उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद, और सबूत द्वारा उनकी निरपराधता प्रगट होने से पूर्व तीनों ने सलाखों के पीछे छत्तीस साल गुज़ारे l एक दूसरे व्यक्ति ने अपराध किया था । न्यायधीश ने उन्हें मुक्त व्यक्तियों के रूप में छोड़ने से पहले एक क्षमायाचना अपील जारी की ।
हम चाहे कितना भी कठिन प्रयास क्यों न करें (और चाहे हमारे अधिकारियों द्वारा कितनी भी भलाई की गयी हो), इन्सानी न्याय में हमेशा त्रुटी होती है l हमारे पास कभी भी पूरी जानकारी नहीं होती है । कभी-कभी बेईमान लोग सत्य में हेरफेर करते है । कभी-कभी हम महज गलत हैं l और अक्सर, बुराई सही होने में वर्षों ले सकती है, यदि वे हमारे जीवनकाल में हैं l शुक्र है, अस्थिर इंसानों के विपरीत, परमेश्वर सिद्ध न्याय करता है । मूसा कहता है, “उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है” (व्यवस्थाविवरण 32:4) l परमेश्वर चीजों को ऐसे देखता है जैसे वे वास्तव में है । समय आने पर, हमारे बदतर प्रयास के बाद, परमेश्वर अंत में परम न्याय करेगा । यद्यपि समय के विषय अनिश्चित, हमें भरोसा है क्योंकि हम जिसकी सेवा करते है वह “सच्चा ईश्वर है, उसमें कुतिनता नहीं, वह धर्मी और सीधा है” (पद.4) l
हम क्या सही या गलत है के सम्बन्ध में अनिश्चितता द्वारा उदास हो सकते है l हम डरते हैं कि हमारे साथ या हमारे प्रियों के साथ जो अन्याय हुआ है कभी भी सही नहीं किया जा सकेगा l लेकिन हम न्याय के परमेश्वर पर भरोसा कर सकते है कि वह एक दिन न्याय करेगा──इस जीवन में या अगले जीवन में──हमारा न्याय जरूर चुकाएगा l
अत्यधिक जल
रिपोर्ट में अत्यधिक सूखे, गर्मी और आग की "गंभीर कहानी" बताया गया था l वर्णन में केवल अल्प वर्षा के साथ एक भयावह वर्ष का वर्णन किया गया था, जिसमें सूखी झाड़ियाँ ईंधन में बदल गईं l भड़की आग ने ग्रामीण इलाकों को जला दिया l मछलियाँ मर गईं l फसलें बर्बाद हो गईं l सब कुछ क्योंकि उनके पास एक साधारण संसाधन नहीं था, हम जिसका महत्व् नहीं समझते हैं─जल, जिसकी आवश्यकता हम सब को जीने के लिए होती है l
इस्राएल ने खुद को भयानक दुविधा में पाया l जब लोगों ने धूल, बंजर रेगिस्तान में डेरा डाला, हमने इस खतरनाक पंक्ति को पढ़ा : “लोगों को पीने का पानी न मिला” (निर्गमन 17:1) l लोग भयभीत थे l उनके गले सूख गए थे l रेत गर्म हो गई l उनके बच्चों को अत्यधिक प्यास लगी l भयभीत, लोगों ने “मूसा से वादविवाद किया,” “हमें पीने का पानी दे” (पद.2) l लेकिन मूसा क्या कर सकता था? वह केवल परमेश्वर के पास जा सकता था l
और परमेश्वर ने मूसा को अजीब निर्देश दिए : “लोगों . . . को . . . साथ ले ले . . . चट्टान पर [मार], तब उसमें से पानी निकलेगा, जिससे ये लोग पीएँ” (पद.5-6) l इसलिए मूसा ने चट्टान को मारा, और बहुत पानी फूट निकला, जो लोगों और उनके पशुओं के लिए बहुत था l उस दिन, इस्राएल जान गया कि उनका परमेश्वर उनसे प्रेम करता था l उनका परमेश्वर उनके लिए अत्यधिक जल का प्रबंध किया l
यदि आप जीवन में सूखा या निष्फलता का सामना कर रहे हैं, तो जान लें कि परमेश्वर इसके बारे में जानता है और वह आपके साथ है l जो कुछ भी आपकी जरूरत है, आपकी जो भी कमी है, आप उसके प्रचुर जल में आशा और ताजगी प्राप्त कर सकते हैं l
नई आँखों से देखना
एक वीडियो गेम, जो सांस्कृतिक तथ्य बन गया है, एक आभासी द्वीप पर सौ खिलाड़ियों को मुकाबला करने के लिए रखता है जब तक कि एक खिलाड़ी न रह जाए l जब भी कोई खिलाड़ी आपको प्रतियोगिता से हटाता है, तो आप उस खिलाड़ी के दृष्टिकोण को देखना जारी रख सकते हैं l जैसा कि एक पत्रकार ध्यान देता है, “जब आप किसी अन्य खिलाड़ी का स्थान लेते हैं और उनकी दृष्टिकोण में बस जाते हैं, तो भावनात्मक लेखा . . . स्व-संरक्षण से . . . सांप्रदायिक एकजुटता की ओर स्थानांतरित हो जाता है l आप खुद को अजनबी में निवेश किया हुआ आभास करने लगते हैं जिसे, थोड़ा समय पहले, आपने हराया था l
परिवर्तन तब होता है जब हम अपनी दृष्टि से परे देखते हुए और दूसरे के दर्द, भय या आशाओं का सामना करते हुए, दूसरे के अनुभव को देखने के लिए खुद को खोलते हैं l जब हम यीशु के उदाहरण का अनुसरण करते हैं और “विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ [नहीं करते हैं], बल्कि इसके बदले “दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा [समझते हैं],” तब हम उन चीजों को नोटिस करते हैं जिन्हें हम अन्यथा भूल गए होते (फिलिप्पियों 2:3) l हमारी चिंताएँ बढ़ जाती हैं l हम अलग-अलग सवाल पूछते हैं । केवल “अपने ही हित की” तलाश करने के बजाय, हम “दूसरों के हित की . . . चिंता” करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं (पद.4) l जो हम मानते हैं कि हमें जीने के लिए जरूरी है उसकी सुरक्षा करने के बजाए, हम आनंदपूर्वक उसका पीछा करते हैं जो दूसरों की उन्नति में मदद करता है l
इस रूपांतरित दृष्टि के साथ, हम दूसरों के लिए दया प्राप्त करते हैं l हम अपने परिवार से प्यार करने के नए तरीके खोजते हैं l हम एक दुश्मन को दोस्त भी बना सकेंगे!
एक वर्ष में सम्पूर्ण बाइबल
वॉरेन बफेट और बिल और मेलिंडा गेट्स ने इतिहास बनाया जब उन्होंने देने का संकल्प(giving pledge) लॉन्च किया, जिसके तहत अपने पैसे का आधा हिस्सा दान करने का वादा किया l 2018 तक, इसका मतलब था कि 92 बिलियन डॉलर दे देना l संकल्प ने मनोवैज्ञानिक पॉल पिफ को देने के नमूना का अध्ययन करने के लिए उत्सुक किया l एक शोध परीक्षण के द्वारा, उन्होंने पाया कि आमिर लोगों की तुलना में गरीब, जो उनके पास था उसमें से 44 प्रतिशत अधिक देने के इच्छुक थे l जिन लोगों ने अपनी गरीबी महसूस की है अक्सर अधिक उदारता से देने के लिए आगे बढ़ते हैं l
यीशु यह जानता था l मंदिर में पहुंचकर, उसने भीड़ को खजाने में दान डालते हुए देखा (मरकुस 12:41) l अमीरों ने नकदी की गड्डी डाली, लेकिन एक गरीब विधवा ने अपने अंतिम दो तांबे के सिक्के निकाले, जिसकी कीमत शायद एक पैसा था, और उन्हें टोकरी में रख दिया l मैं यीशु को खड़ा, प्रसन्न और आश्चर्यचकित कल्पना करता हूँ l तुरंत, उसने अपने शिष्यों को इकट्ठा किया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे इस चौंकाने वाले कार्य से वंचित नहीं होंगे l यीशु ने कहा, “इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है” (पद.43) l शिष्यों ने एक-दूसरे को देखा, वे हतप्रभ थे, उम्मीद कर रहे थे कि कोई यह बता सके कि यीशु किस बारे में बात कर रहे थे l इसलिए, उसने इसे सरल बनाया : जो लोग बहुत बड़ा उपहार लाते हैं, "उनके धन में से दिया गया; लेकिन वह अपनी गरीबी से बाहर निकलकर सबकुछ कर रही है ”(v। 44)।
हमारे पास देने के लिए बहुत कम हो सकता है, लेकिन यीशु ने हमें अपनी गरीबी से बाहर निकलने के लिए आमंत्रित किया है। हालाँकि, यह दूसरों के लिए मामूली लग सकता है, हम वही देते हैं जो हमारे पास है, और परमेश्वर हमारे दिलकश उपहारों में बहुत खुशी पाता है।