Month: नवम्बर 2016

शक्तिशाली विजेता

हममें से अधिक लोग अच्छे शासन की आशा से मत देते, सेवा करते, और उचित और न्याय-संगत कारणों से आवाज़ उठाते हैं l किन्तु अधिकतर राजनैतिक हल हमारे हृदयों की स्थिति परिवर्तन में असमर्थ हैं l

यीशु के अनेक अनुयायियों को एक छुड़ानेवाला चाहिए था जो रोम के निरंकुश शोषण का जोरदार राजनैतिक प्रतिउत्तर दे सके l पतरस ने इस प्रक्रिया में, रोमी सैनिकों द्वारा मसीह की गिरफ़्तारी के समय, तलवार से याजक के सेवक का कान उड़ा दिया l

यीशु ने एक-व्यक्ति जंग को यह कहकर रोका, “अपनी तलवार म्यान में रख l जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है, क्या मैं उसे न पीऊँ?” (यूहन्ना 18:11) l  घंटो बाद, यीशु पिलातुस से बोल सकता था, “मेरा राज्य इस संसार का नहीं; यदि ... होता, तो मेरे सेवक लड़ते कि मैं यहूदियों के हाथ सौपा न जाता” (पद.36) l

प्रभु के जीवन के न्याय के समय, उसके उद्देश्य के विस्तार पर विचार करते उसका संयम हमें चकित करता है l एक दिन, वह युद्ध में स्वर्गिक सेना की अगुवाई करेगा l यूहन्ना ने लिखा, “वह धर्म के साथ न्याय और युद्ध करता है” (प्रका. 19:11) l

किन्तु अपनी गिरफ़्तारी, जांच, और क्रूसीकरण के आज़माइश में, यीशु अपने पिता की इच्छा पर केन्द्रित था l क्रूस पर मृत्यु द्वारा, उसने घटनाओं की एक कड़ी प्रतिपादित की जो हृदय बदलता है l और उस प्रक्रिया में, हमारा शक्तिशाली विजेता मृत्यु को पराजित किया l

प्रेम द्वारा मार्गदर्शन

अपनी पुस्तक स्पिरिचुअल लीडरशिप  में जे. ऑस्वाल्ड सैंडर्स युक्ति  और कूटनीति  के गुण एवं महत्त्व खोजता है l सैंडर्स कहते हैं, “इन दोनों शब्दों के मेल से अपकार और सिद्धांत में समझौता किये बगैर दो विपरीत विचारों के सामंजस्य के कौशल का विचार उभरकर आता है l”

पौलुस रोम में कैद के दौरान, उनेसिमुस नामक भगोड़े दास का आत्मिक सलाहकार और निकट मित्र बन गया, जिसका मालिक फिलेमोन था l पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया का अगुआ, फिलेमोन को पत्र लिखकर उनेसिमुस को मसीह में भाई मानकर स्वीकार करने का आग्रह करते समय, यक्ति और कूटनीति का उदहारण प्रस्तुत किया l “इसलिए यद्यपि मुझे मसीह में बड़ा साहस है कि जो बात ठीक है, उसकी आज्ञा तुझे दूँ l तौभी ... भला जान पड़ा कि प्रेम से विनती करूँ ... [उनेसिमुस] मेरा तो विशेष प्रिय है ही, पर अब शरीर में और प्रभु में भी, तेरा भी विशेष प्रिय हो” (फिले. 8-9, 16) l

आरंभिक कलीसिया का आदरणीय अगुआ, पौलुस यीशु के अनुयायियों को अक्सर स्पष्ट आदेश देता था l इस परिस्थिति में, यद्यपि, उसने फिलेमोन से समानता, मित्रता, और प्रेम के आधार पर आग्रह किया l “मैं ने तेरी इच्छा बिना कुछ भी करना न चाहा, कि तेरी यह कृपा दबाव से नहीं पर आनंद से हो” (पद.14) l

हम अपने सभी संबंधों में, प्रेम के भाव में तालमेल और सिद्धांत को बनाए रखने का प्रयास करें l

सचेत और सतर्क

मेरी मेज पड़ोस की ओर खुलनेवाली खिड़की के निकट है l मैं वहाँ से पक्षियों को निकट के पेड़ों पर बैठते हुए देख सकता हूँ l कुछ खिड़की की जाली में फंसे कीटों को खाने आती हैं l

पक्षी अपने आस-पास के तात्कालिक खतरे को जांचती और इधर-उधर देखकर ध्यानपूर्वक सुनती हैं l  खतरा न होने के निशिचय पश्चात ही वह चुगने को बैठती हैं l उसके बाद भी, आस-पास की जांच करने हेतु कुछ पल ठहरती हैं l

इन पक्षियों की सतर्कता मुझे स्मरण दिलाती है कि बाइबिल हम मसीहियों को सतर्कता का अभ्यास सिखाती है l हमारा संसार परीक्षाओं से पूर्ण है, और हमें निरंतर सचेत रहकर खतरों को नहीं भूलना है l आदम और हव्वा की तरह, हम आकर्षणों में फंसते हैं जिससे संसार की वस्तुएँ “खाने के लिए अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिए चाहने योग्य” लगती हैं (उत्प.3:6) l

पौलुस ने सावधान किया, “जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो” (1 कुरिं. 16:13) l और पतरस ने चिताया, “सचेत हो, और जागते रहो; क्योंकि तुम्हारा विरोधी शैतान गर्जनेवाले सिंह के सामान इस खोज में रहता है कि किस को फाड़ खाए” (1 पतरस 5:8) l

दैनिक ज़रूरतों के लिए मेहनत करते हुए, क्या हम बर्बाद करनेवाली बातों की ओर सचेत हैं? क्या हम अभिमान अथवा इच्छा की कोई झलक देखते हैं जो हमें हमारे परमेश्वर पर भरोसा करने की ओर उन्मुख करे?

मेरे निकट आओ

स्थानीय उद्यान में घूमते समय दो खुले कुत्तों से मेरे बच्चों का और मेरा सामना हुआ l उन मालिक ध्यान नहीं दे रहा था कि एक ने मेरे बेटे को डरना आरंभ कर दिया था l मेरे बेटे ने कुत्ते को भगाने की कोशिश की, किन्तु वह पशु उसे और भी परेशान करने लगा l

 मेरा बेटा घबरा गया l वह कई गज़ पीछे हटा, किन्तु कुत्ते ने उसका पीछा किया l वह कुत्ता मेरे चिल्लाने तक, “मेरे निकट आओ!,” मेरे बेटे का पीछा करता रहा l मेरा बेटा शांत होकर मेरे पीछे छिप गया, और अनन्तः कुत्ता कहीं और शैतानी करने चला गया l

हमारे जीवनों में ऐसे क्षण होते हैं जब परमेश्वर हमसे कहता है, “मेरे निकट आओ!” हमारे निकट कुछ परेशानी है l हम जितनी गति से और जितनी दूर भागते हैं, वह उतना ही हमारे अति निकट आता है l हम उससे छुटकारा नहीं पा सकते हैं l हम लौटने और उसका सामना स्वयं करने में अति भयभीत होते हैं l किन्तु वास्तव में हम अकेले नहीं हैं l परमेश्वर वहाँ हमें मदद और ढाढ़स देने हेतु मौजूद है l हमें मुड़कर उसकी ओर लौटना है l उसका वचन कहता है, “यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है , धर्मी उसमें भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है” (नीतिवचन 18:10) l