अपने आत्मिक जीवन में परिपक्व और अधिक धन्यवादी होने की इच्छा से, सु ने धन्यवादी-जीवन मर्तबान बनाया l रोज़ शाम वह एक कागज पर परमेश्वर के प्रति धन्यवाद का विषय लिखकर मर्तबान में डाल देती थी l कुछ दिन उसके पास अनेक प्रशंसा होती थी; दूसरे कठिन दिनों में वह एक ढूँढने के लिए संघर्ष करती थी l वर्ष के अंत में उसने मर्तबान को खाली करके सभी पर्चे पढ़े l उसने अपने परमेश्वर को उसके हर एक कार्य के लिए धन्यवाद  देते हुए पाया l उसने खुबसूरत सूर्यास्त  या पार्क में घुमने के लिए ठंडी शाम और दूसरे मौकों पर उसे  किसी कठिन समस्या के हल के लिए अनुग्रह या प्रार्थना का उत्तर जैसी सरल आशीषें दी थीं l

सु की खोज मुझे भजनकार दाऊद के अनुभव की ताकीद देती है (भजन 23) l परमेश्वर ने उसे “हरी हरी चराईयों” और “सुखदाई जल” से तरोताज़ा किया (पद.2-3) l उसने उसे  मार्गदर्शन, सुरक्षा, और शांति दी (पद.3-4) l दाऊद अंत करता है : “निश्चय भलाई और करुणा जीवन भर मेरे साथ-साथ बनी रहेंगी” (पद.6) l

मैं इस वर्ष धन्यवादी-जीवन मर्तबान बनाउँगी l शायद आप भी l मेरा विचार है हमारे पास परमेश्वर को धन्यवाद देने के अनेक कारण होंगे-मित्र और परिवार और उसके भौतिक, आत्मिक, और भावनात्मक ज़रूरतों के साथ l हम देखेंगे कि परमेश्वर की भलाई और करुणा और प्रेम हमारे साथ जीवन भर रहेंगे l