एक ऑनलाइन लेखक समूह में जहाँ हम परस्पर सहयोग और प्रोत्साहित करते हैं एक सहेली बोली, “मैं आपको देख सकती हूँ l तनाव और चिंता महसूस करते हुए, मैं उसके शब्दों से शांति और सुख महसूस करती हूँ l उसने मुझे “देखा”-मेरी आशाएँ, भय, संघर्ष, और सपने-और मुझसे प्रेम किया l

अपनी सहेली के सरल किन्तु सामर्थी प्रोत्साहन को सुनकर, मैंने अब्राहम के घर की दासी, हाजिर पर विचार किया l सारै और अब्राम के अनेक वर्षों तक वारिस की चाह में, सारै ने संस्कृति का अनुसरण करके अपने पति से हाजिर द्वारा संतान उत्पन्न करने को कहा l किन्तु हाजिरा गर्भवती होकर सारै को तिरस्कार की निगाहों से देखा, बदले में सारै के दुर्व्यवहार से हाजिरा दूर मरुभूमि की ओर भागी l

प्रभु ने हाजिरा को दुःख और भ्रम में देखकर उसे अनेक वंश देने की प्रतिज्ञा की l इस सामना के बाद, हाजिरा ने प्रभु को “एल रोई,” अर्थात् सर्वदर्शी ईश्वर पुकारा (उत्प. 16:13), क्योंकि उसे मालुम था कि वह अकेली और त्यागी हुई नहीं है l

हाजिरा की तरह हम भी देखे गए और प्रेम प्राप्त किये l मित्र अथवा परिवार द्वारा हम उपेक्षित अथवा अस्वीकृत किये जा सकते हैं, फिर भी हमारा पिता हमारे बाहरी चेहरे को नहीं, किन्तु हमारे समस्त भीतरी भावनाओं और भय को जानता है l वह हमें जीवन देनेवाले शब्द बोलता है l