जो भोज हमनें पाँच देशों के परिवारों के लिए आयोजित किया था एक अद्भुत यादगार है l पता नहीं क्यों बातचीत दो भागों में नहीं बँटा, किन्तु हम सब ने लन्दन के जीवन पर एक चर्चा में विश्व के विभिन्न भागों के दृष्टिकोण प्रस्तुत किये l शाम के अंत में, हम दोनों पति-पत्नी ने विचारा कि हमने देने से अधिक पाया, जिसमें नए मित्र बनाने और भिन्न संस्कृतियों से सीखने के वे स्नेही अहसास शामिल थे l
इब्रानियों के लेखक ने सामाजिक जीवन के लिए कुछ प्रोत्साहन में अपने पाठकों से आतिथ्य जारी रखने को कहा l ऐसा करने से, “कुछ लोगों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का आदर-सत्कार किया है” (13:2) l संभवतः वह अब्राहम और सारा का सन्दर्भ दे रहा होगा, जिन्हें हम उत्पति 18:1-12 में अपरिचितों का स्वागत करते हुए, उनके लिए उदारता से भोज खिलाते देखते हैं, जैसे कि बाइबिल के दिनों में प्रथा थी l उन्हें पता नहीं था कि वे स्वर्गदूतों का खातिर कर रहे थे, जो उनके लिए आशीष का सन्देश लेकर आए थे l
हम लोगों से कुछ पाने के लिए उनको अपने घर आमंत्रित नहीं करते हैं, किन्तु देने से अधिक पाते हैं l उसके नाम से दूसरों का स्वागत करते समय परमेश्वर हमारे द्वारा अपना प्रेम फैलाए l
आतिथ्य करते समय, हम परमेश्वर की भलाईयाँ और उपहार बाँटते हैं l