यद्यपि संसार आज इलेक्ट्रानिक तरीके से जिस तरह जुड़ा है, पूर्व में कभी नहीं था, व्यक्तिक रूप से बिताया गया समय सर्वोत्तम है l हम सहभागिता और खिलखिलाहट द्वारा-लगभग अनजाने में-अगले व्यक्ति के चेहरे की गतिविधियों को देखकर उसकी भावनाएं जान जाते हैं l जो आपस में प्रेम करते हैं, चाहे परिवार या मित्र, आमने-सामने संगति करना चाहते हैं l

हम इस तरह का आमने-सामने का सम्बन्ध परमेश्वर और उसके लोगों की अगुवाई करने वाले, मूसा के मध्य देखते हैं l मूसा परमेश्वर का अनुसरण करता गया, और लोगों के अक्खड़पन और मूर्तिपूजा के बावजूद उसका अनुसरण करता रहा l लोगों द्वारा प्रभु के बदले सोने के बछड़े की उपासना करने के बाद (देखें निर्ग. 32), मूसा ने परमेश्वर से मुलाकात करने हेतु एक तम्बू लगाया, जबकि लोग दूर ही से देख सकते थे (33:7-11) l जब परमेश्वर की उपस्थिति बादल के खम्बे में तम्बू पर आकर ठहरता था, मूसा उनका प्रतिनिधि होकर बातें करता था l परमेश्वर ने उनके साथ अपनी उपस्थिति का वादा किया (पद.14) l

यीशु की क्रूसित मृत्यु और पुनरुत्थान के कारण, हमें परमेश्वर से बातें करने के लिए मूसा की तरह व्यक्ति नहीं चाहिए l इसके बदले, शिष्यों के सामने यीशु की पेशकस की तरह, हम मसीह द्वारा परमेश्वर के साथ मित्रता कर सकते हैं (यूहन्ना 15:15) l हम भी उससे मुलाकात कर सकते हैं, प्रभु के साथ मित्र की तरह बातें कर सकते हैं l