अपने शिशु कक्षा में प्रथम दिन, छोटी चारलोट से खुद को बनाने को कहा गया l उसकी तस्वीर में शरीर के लिए एक सरल गोला, एक अंडाकार सिर, और आँखें दो गोले थे l फिर अंतिम दिन उससे अपनी तस्वीर बनाने को कहा गया l इसमें रंगीन वस्त्र, एक मुस्कराते चेहरे के साथ स्पष्ट मुखाकृति, सुन्दर लाल रंग के लहराते बाल थे l स्कूल ने एक सरल कार्य द्वारा दर्शा दिया कि समय परिपक्वता के  स्तर में अंतर लाता है l

जबकि हम स्वीकार करते हैं कि बच्चों के परिपक्वता में समय लगता है, हम खुद के साथ अथवा सह विश्वासियों के धीमी आत्मिक विकास से अधीर हो जाते हैं l हम “आत्मा के फल” (गला. 5:22-23), देखकर आनंदित होते हैं, किन्तु पापमय चुनाव देखकर दुखित होते हैं l इब्रानियों का लेखक कलीसिया को लिखते हुए यह बात प्रगट करता है : “समय के विचार से तो तुम्हें गुरु हो जाना चाहिए था, तौभी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए” (इब्रा. 5:12) l

जब हम स्वयं यीशु के साथ निकटता में आगे बढ़ते हैं, हम परस्पर प्रार्थना करते हुए धीरज से परमेश्वर से प्रेम करनेवालों के साथ हो लें जो आत्मिक उन्नत्ति के लिए संघर्षरत हैं l “प्रेम में सच्चाई से चलते हुए,” हम परस्पर उत्साहित करें, ताकि हम साथ मिलकर “चलते हुए सब बातों में उसमें जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते जाएँ (इफि.4:15) l