मार्क को वह क्षण याद है जब उसके पिता ने परिवार को बुलाया l कार ख़राब थी, महीने के अंत तक परिवार के पास पैसे नहीं होते l पिता ने प्रार्थना करके परिवार को परमेश्वर पर आशा रखने को कहा l  

आज मार्क को परमेश्वर की अद्भुत सहायता याद है l एक मित्र ने कार मरम्मत करवा दी; अनपेक्षित चेक आ गए; घर में भोजन पहुँच गया l परमेश्वर की स्तुति सरल थी l किन्तु परिवार की कृतज्ञता संकट की भट्टी में विकसित हुई थी l

आराधना गीतों को भजन 57 से अत्यधिक प्रेरणा मिली है l जब दाऊद ने कहा, “तू स्वर्ग के ऊपर महान है” (पद.11), हम उसे मध्य पूर्व के अद्भुत रात में आसमान की ओर टकटकी लगाए, अथवा मंदिर की आराधना में गाते हुए कल्पना कर सकते हैं l किन्तु वास्तव में भयभीत दाऊद एक गुफा में छिपा था l

“मेरा प्राण सिंहों के बीच में है,” दाऊद कहता है l ये “मनुष्य” हैं जिनके “दांत बर्छी और तीर” हैं (पद.4) l दाऊद की प्रशंसा संकट से निकली l यद्यपि वह उसकी मृत्यु चाहनेवाले शत्रुओं से घिरा था, दाऊद ने ये अद्भुत शब्द लिखे : “हे परमेश्वर, मेरा मन स्थिर है … मैं गाऊंगा वरन् भजन कीर्तन करूँगा” (पद.7) l

आज हम हर संकट में, परमेश्वर से मदद प्राप्त कर सकते हैं l तब हम आशा से, उसकी अनंत देखभाल में उसकी बाट जोह सकते हैं l