विशेषज्ञ यह मानते हैं कि प्रतिदिन ख़ासा समय रुकावाटों में नष्ट हो जाता है l कार्य हो अथवा घर, एक फ़ोन कॉल अथवा किसी से अनपेक्षित मुलाकात हमें सरलता से हमारे मुख्य उद्देश्य से भटका देती हैं l
हममें से अनेक अपने जीवनों में रुकावटें पसंद नहीं करते, विशेषकर जब वे परेशानी उत्पन्न करते हैं अथवा हमारी योजनाओं को बदल देते हैं l किन्तु जो रुकावटें महसूस होती हैं उनके साथ यीशु भिन्न तरीके से पेश आया l बार-बार सुसमाचारों में, हम प्रभु को रूककर ज़रुरतमंदों की सहायता करते पाते हैं l
यीशु का यरूशलेम जाते समय जहाँ उसे क्रूसित होना था, सड़क किनारे बैठा एक अंधे व्यक्ति ने उसे पुकारा, “हे यीशु, दाऊद की संतान, मुझ पर दया कर!” (लूका 18:35-38) l भीड़ में से कुछ लोगों ने उसे शांत रहने को कहा, किन्तु वह यीशु को पुकारता रहा l यीशु ने रुककर उससे पूछा, “ ‘तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?’ ‘हे प्रभु, यह कि मैं देखने लगूँ,’ उसने कहा l यीशु ने उससे कहा, ‘देखने लग; तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है’ “ (पद.41-42) l
जब एक असली ज़रूरतमंद द्वारा आपकी योजना बाधित होती है, हम उससे करुणा सहित व्यवहार करने के लिए प्रभु से बुद्धि मांगे l जिसे हम रूकावट कहते हैं वह उस दिन के लिए प्रभु की ओर से एक दिव्य सुअवसर हो सकता है l
रुकावटें सेवा हेतु सुअवसर हो सकते हैं l