हम पति-पत्नी से हमारे घर में छोटे समूह की मेजबानी करने के आग्रह को मैंने अस्वीकार किया l बैठने के लिए अपर्याप्त स्थान और छोटा घर होने से मैंने  अयोग्यता महसूस की l हम यह भी नहीं जानते थे, हम इस चर्चा में मददगार होंगे या नहीं l मैं चिंतित थी कि मुझे भोजन पकाना होगा जिसके लिए मेरे पास उत्सुकता और धन कम था l मेरी समझ में हमारे पास “प्रयाप्त” साधन नहीं था, हमारे लिए करने को “पर्याप्त” नहीं था l किन्तु हम परमेश्वर और अपने समुदाय के लिए करना चाहते थे, इस कारण भय के बाद भी, हम तैयार हो गए l अगले पाँच वर्षों तक अपने बैठक में इस समूह की मेजबानी आनंददायक थी l

मैं परमेश्वर के सेवक, एलिशा के पास रोटी लानेवाले व्यक्ति के अन्दर भी समान अनिच्छा देखता हूँ l  एलिशा ने उसे लोगों को परोसने को कहा था, किन्तु वह व्यक्ति शंकित था  कि सौ लोगों के लिए वह अपर्याप्त होगा l वह अपनी मानवीय समझ में भोजन को अपर्याप्त मानकर परोसना नहीं चाहा l फिर भी वह पर्याप्त से अधिक था (2 राजा 4:44), क्योंकि परमेश्वर ने आज्ञाकारिता में दिए हुए उसके दान को, पर्याप्त बना दिया l

अयोग्य महसूस करने पर, अथवा अपने दान को अपर्याप्त समझने पर, याद रखे कि परमेश्वर चाहता है कि जो हमारे पास है उसे हम विश्वासयोग्य आज्ञाकारिता में दे दें l वह ही उसे “पर्याप्त” कर देगा l