एक दोपहर अपनी बहन और उसके बच्चों के संग भोजन समाप्त करते समय, मेरी बहन ने मेरी तीन वर्षीय भांजी, अनिका से कहा कि दोपहर में उसके सोने का समय हो गया है l वह चौंक गयी l “किन्तु मोनिका आंटी ने आज मुझे गोद में नहीं लिया!” वह आँसुओं से बोली l मेरी बहन मुस्कराकर बोली l “ठीक है, तुम कितनी देर तक चाहती हो कि वह तुम्हें गोद में उठाए?” उसका उत्तर था, “पाँच मिनट l”

अपनी भांजी को गोद में लेकर, मैं कृतज्ञ हूँ कि प्रयास के अभाव में भी, वह मुझे याद दिलाती है प्रेम करना और प्रेम पाने का अनुभव क्या होता है l मेरी सोच में हमारी विश्वास यात्रा कल्पना से परे परमेश्वर का प्रेम अनुभव करने का है (इफि.3:18) l अपना ध्यान खोने पर हम यीशु के उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त में जेठा पुत्र स्वरुप होते हैं, और भूलकर कि हमारे पास सब कुछ है, परमेश्वर का समर्थन पाने की कोशिश करते हैं (लूका 15:25-32) l

भजन 131 वचन में एक प्रार्थना है जो हमें “बालकों के समान”(मत्ती. 18:3) बनने में मदद करता है और हमें हमारे मस्तिष्क के नहीं समझने वाले द्वन्द से दूर करता है (भजन 131:1) l इसके बदले, हम समय के साथ उसमें शांति स्थान में लौट सकते हैं (पद.2),उसके प्रेम में आवश्यक आशा प्राप्त कर सकते हैं (पद.3)-जैसे हम शांति और चैन से अपनी माता के बाहों में हों (पद.2) l