हाल ही में मैं एक बड़े विमान में चढ़नेवाला अंतिम यात्री था जिसे कोई सीट भी नहीं मिली थी l विमान के अन्दर उसके पंख के पास दो सीटों के बीच में एक सीट मुझे मिली किन्तु मुझे अपना सामान बिलकुल पीछे की कतार के सीट के ऊपर बने स्थान में रखना पड़ा l अर्थात् सब लोगों के बाहर निकलने के बाद ही मैं अपना सामान निकाल सकता था l

मैं अपनी सीट पर बैठते समय मुस्कराने लगा और उसी समय मानों प्रभु की ओर से एक विचार आया : “ठहरने से तुम्हारी कुछ भी हानि नहीं होगी l इससे तुम्हारा भला होगा l” इसलिए मैंने अतिरिक्त समय का आनंद उठाने का निर्णय किया, और विमान के उतरने के बाद दूसरे यात्रियों को उनके सामान उतरवाने में और एक विमान परिचारक को सफाई करने में सहायता भी की l जब मैंने अपना बैग उतारा, मुझे फिर हंसी आयी क्योंकि किसी ने सोचा कि मैं विमान-कंपनी के लिए काम करता था l

उस दिन के अनुभव से मैं यीशु द्वारा शिष्यों से कहे गए शब्दों पर विचार करने को विवश हुआ : “यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सब से छोटा और सब का सेवक बने” (मरकुस 9:35) l

मैं ठहरा रहा क्योंकि मेरी मजबूरी थी, किन्तु यीशु के “उलटे” राज्य में, उनके लिए आदर का एक स्थान है जो अपने आप से आगे बढ़कर दूसरों की ज़रूरतों में सहायता करते हैं l

यीशु हमारे उतावली, और जहां लोग पहले सेवा की मांग करते हैं, वाले संसार में “इसलिए नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिए आने प्राण दे” (मत्ती 20:28) l हम दूसरों की सेवा करके ही उसकी सर्वोत्तम सेवा कर सकते हैं l हम जितना झुकेंगे, उतना ही उसके निकट रहेंगे l