18 वर्षीय सैमी के यीशु को उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करने पर, उसके परिवार ने उसे त्याग दिया क्योंकि उनकी परंपरा भिन्न विश्वास की थी। परंतु मसीही समुदाय ने उसे प्रोत्साहन दिया, और शिक्षा के लिए आर्थिक समर्थन देकर उसका स्वागत किया। उसकी गवाही के एक पत्रिका में प्रकाशित होने पर उसका सताव और बढ़ गया।

परंतु जब संभव होता सैमी परिवार से मिलने जाता और अपने पिता से बातें करता। हालाँकि, उसके भाई-बहन उसे परिवार के मामलों में भाग लेने से रोकते। पिता की बीमारी पर उसने परिवार की नाराजगी को नज़रअंदाज़ करके चंगाई के लिए प्रार्थनाएं करते हुए, पिता की सेवा की। जब परमेश्वर ने उन्हें चंगा कर दिया तो परिवार सैमी के प्रति स्नेह दिखाने लगा। समय के साथ उसकी प्रेममई गवाही से उसके प्रति उनका व्यवहार नर्म हुआ-और कुछ परिजन यीशु के बारे में सुनने के लिए इच्छुक हो गए। 

मसीह का अनुसरण करने का हमारा निर्णय कठिनाइयों ला सकता है। पतरस ने लिखा,  “क्योंकि यदि कोई…(1 पतरस 2:19)। विश्वास के कारण जब हम दुख उठाते हैं तो हम ऐसा इसलिए करते हैं, “क्योंकि मसीह भी…(पद 21)। 

जब दूसरों ने उनका अपमान किया, “वह गाली सुन कर…(पद 23)। दुख उठाने का हमारा उदाहरण यीशु हैं। सामर्थ पाने के लिए हम उनके पास आ सकते हैं।