“प्रतीक्षा चाहे मछली के जाल में फंसने की, पतंगबाजी में हवा के रुख की या शुक्रवार शाम की हो….हर कोई प्रतीक्षा कर रहा है”-बाल-पुस्तक लेखक डॉक्टर सिउस।

जीवन का बड़ा भाग प्रतीक्षा के बारे में है,परंतु परमेश्वर उतावले नहीं होते। कहावत है, “परमेश्वर का अपना अवसर और अपना विलम्ब होता है”। इसलिए हम प्रतीक्षा करें।

प्रतीक्षा कठिन बात है। हम अंगूठा मोड़ते, पैर बदलते, उबासी को दबाते, लंबी आहें भरते, और हताश होकर चिंतित होते हैं। इतने अजीब व्यक्ति के साथ क्यों रहूं, इतना कठिन कार्य, इतना उलझन भरा व्यवहार, इतनी लाइलाज बीमारी!  परमेश्वर कुछ करते क्यों नही?  परमेश्वर का उत्तर:”थोड़ा ठहर और देख मैं क्या करूंगा”।

प्रतीक्षा जीवन की शिक्षिका है, इसमें हम…प्रतीक्षा के गुण को सीखते हैं-जब परमेश्वर हममें और हमारे लिए कार्य करते हैं तो प्रतीक्षा करें। प्रतीक्षा हमारे धीरज और परमेश्वर की भलाई और करुणा पर भरोसा करने की क्षमता को बढ़ाते हैं, भले ही बातें हमारे अनुरूप ना हों (भजन संहिता 70: 5)।

परंतु प्रतीक्षा का अर्थ उदासीन होना या दांत पीसना नहीं। प्रतीक्षा करते हुए हम “हर्षित और [उनमें] अनन्दित हो सकते हैं (पद 4)। हम इस आशा में प्रतीक्षा करते हैं कि परमेश्वर हमें उचित समय में छुड़ा लेंगे-इस जीवन में या अगले मेंI परमेश्वर उतावली नही करते वरन वो सदा समय पर होते हैं।