हमारे बाइबल अध्ययन समूह के एक व्यक्ति ने सलाह दी, “आइये हम अपने भजन लिखें!” पहले तो कुछ लोगों ने विरोध किया कि उनके पास लिखने का गुण नहीं है,  किन्तु कुछ प्रोत्साहन के बाद हर एक ने अपने जीवन में परमेश्वर के कार्य का वर्णन करते हुए एक मार्मिक काव्यात्मक गीत लिखा l परीक्षा, सुरक्षा, प्रबन्ध, पीड़ा और आँसू के परिणाम स्वरुप  निकले स्थायी संदेशों ने हमारे भजनों को चिताकर्षक प्रसंग दिए l भजन 136 की तरह, प्रत्येक भजन ने दर्शाया कि परमेश्वर की करुणा सदा की है  l  

हममें से हर एक के पास परमेश्वर के प्रेम की कहानी है – चाहे हम उसे लिखते हैं या गाते हैं या बताते हैं l कुछ लोगों के लिए, हमारे अनुभव रोमांचक अथवा भावुक हो सकते हैं – भजन 136 के लेखक की तरह जिसने याद किया कि किस तरह परमेश्वर ने अपने लोगों को दासत्व से छुड़ा कर अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त की (पद.10-15) l अन्य लोग केवल परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि का वर्णन करेंगे; जिसने “अपनी बुद्धि से आकाश बनाया . . . पृथ्वी को जल के ऊपर फैलाया . . . बड़ी बड़ी ज्योतियाँ बनायीं, – . . . दिन पर प्रभुता करने के लिए सूर्य को बनाया . . . और रात पर प्रभुता करने के लिए चंद्रमा और तारागन को बनाया” (पद.5-9) l

यह याद करना कि परमेश्वर कौन है और उसने क्या किया प्रशंसा और धन्यवाद लेकर आता है जिससे उसकी महिमा होती है l तब हम प्रभु की भलाइयों के विषय जिसकी करुणा सदा की है  –  “आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत”  गाते हैं (इफिसियों 5:19) l

परमेश्वर और उसके कार्यों को स्मरण करने का परिणाम प्रशंसा और धन्यवाद होता है जिससे वह महिमामंडित होता है l तब हम प्रभु की भलाइयों का जिसकी करुणा सदा की है “आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया [करें]” (इफि.5:19) l परमेश्वर के प्रेम के अपने अनुभव को अपनी प्रशंसा के गीत बनाइये और उसके अनवरत भलाइयों का आनंद उठाइये l