कभी-कभी ज़िन्दगी हम पर भयानक वार करती है l अन्य समयों में आश्चर्यजनक होता है l

बेबीलोन में तीन युवक, उस देश के भयंकर राजा के सामने साहसपूर्वक डटे रहे और अपने सामने खड़ी सोने की बड़ी मूरत को किसी भी स्थिति में दण्डवत् करने से इनकार किया l वे एक साथ बोले : “इस विषय में तुझे उत्तर देने का हमें कुछ प्रयोजन नहीं जान पड़ता l हमारा परमेश्वर, जिसकी हम उपासना करते है वह हम को उस धधकते हुए भट्ठे की आग से बचाने की शक्ति रखता है; वरन् हे राजा, वह हमें तेरे हाथ से भी छुड़ा सकता है l परन्तु यदि नहीं, तो हे राजा, तुझे मालूम हो, कि हम लोग . . . उपासना नहीं करेंगे, और न तेरी खड़ी कराई हुई . . .  मूरत को दण्डवत् करेंगे” (दानिय्येल 3:16-27) l

ये तीन युवक – शद्रक, मेशक, और अबेदनगो – धधकते हुए भट्ठे में फेंक दिए गए; और परमेश्वर ने आश्चर्जनक रूप से उनको छुड़ाया और उनके सिर का एक बाल भी न झुलसा और न ही उनके कपड़ों से जलने की गंध आई (पद.19-27) l  वे मृत्यु के लिए तैयार किये गए थे किन्तु परमेश्वर में उनका विश्वास अटल था – यदि वह उनको नहीं बचाता “तो भी l”

परमेश्वर की यह इच्छा है कि हम उससे लिपटे रहें –मेरे किसी प्रिय को चंगाई नहीं मिलने के बावजूद भी, हमारी नौकरी चले जाने के बावजूद भी, हमारे सताए जाने के बावजूद भी l कभी-कभी इस जीवन में परमेश्वर हमें बचाता है, और कभी-कभी नहीं भी बचाता है l लेकिन हमें इस सच्चाई पर अडिग रहना है : “परमेश्वर जिसकी हम सेवा करते हैं वह सक्षम है, और . . . . के बावजूद भी  “हमें प्यार करता है, और हमारे कठिनतम परीक्षा में हमारे साथ है l