मेरी सहेली और मैं सर्वदा-लयबद्ध समुद्र के निकट रेत पर बैठे हुए थे l सूर्य जैसे- जैसे दूर अस्त हो रहा था, लहरें बार-बार मुड़कर हमारे पावों के निकट आकर ठहर जाती थीं l “मुझे समुद्र पसंद है,” वह मुस्करा कर बोली l “उसमें गति है इसलिए मुझे गतिमान होने की ज़रूरत नहीं l”

कितना अच्छा विचार! हममें से कितने लोग ठहरने  के लिए संघर्ष करते हैं l हम इस भय से अत्यधिक प्रयास करते जाते हैं, कि कहीं हमारे प्रयासों के विफल होने से हमारा अस्तित्व ही न मिट जाए l अथवा हमारा सामना उन वर्तमान सच्चाइयों से होगा जिनसे हम दूरी बनाकर रखना चाहते हैं l

भजन 46:8-9 में, परमेश्वर अपने सर्वसामर्थी ताकत का उपयोग करके अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन करता है l “आओ, यहोवा के महाकर्म देखो . . . . वह पृथ्वी की छोर तक की लड़ाइयों को मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है l” परमेश्वर एक व्यस्त परमेश्वर है, जो हमारे अव्यवस्थित दिनों को शांत करता है l

और उसके बाद हम पद 10 में पढ़ते है, “चुप हो जाओ, और जान लो कि मैं ही परमेश्वर हूँ l”

अवश्य ही अव्यवस्थित दिनों में भी परमेश्वर को जानना संभव है l किन्तु खुद के प्रयासों को विराम देने का भजनकार का निमंत्रण हमें एक भिन्न प्रकार का बोध कराता है l यह जानना कि हम अपने प्रयासों को विराम देकर भी अस्तित्व में रह सकते हैं क्योंकि परमेश्वर कभी भी नहीं रुकता है l यह जानना कि यह परमेश्वर की सामर्थ्य है जो हमें असली महत्त्व, सुरक्षा, और शांति देती है l