तेज़, दुखी पुकार ने उस अँधेरे दोपहर के वातावरण को बेध दिया l मैं यीशु के पांवों के निकट उसके मित्रों और प्रियों के घोर विलाप की कल्पना कर सकता हूँ l यीशु के दोनों ओर क्रूसित अपराधियों की आहें भी फीकी महसूस हो रही थीं l और सब सुननेवाले भी चकित थे l  

यीश गुलगुथा के उस क्रूस पर लटके हुए अत्यंत वेदना में पूरी निराशा से पुकार उठा,  “एली, एली, लमा शबक्तनी?”  (मत्ती 27:45-46) l

उसने कहा, “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?”

मैं हृदय को कष्ट देनेवाले इन शब्दों से अधिक की कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ l अनंतकाल से, यीशु परमेश्वर पिता के साथ पूर्ण संगति में था l दोनों ने मिलकर सृष्टि की रचना की, अपनी समानता और स्वरुप में मनुष्य को रचा, और उद्धार की योजना बनायी l कभी भी दोनों एक दूसरी की संगति से अलग नहीं हुए l

और अब, जब क्रूस की अत्यंत मनोव्यथा यीशु पर तिरस्कारपूर्ण पीड़ा लेकर आई, उसने संसार के पाप का बोझ उठाते हुए पहली बार परमेश्वर की उपस्थिति से अपने को दूर पाया l

यह एक ही मार्ग था l केवल इस बाधित संगति के द्वारा ही हमें उद्धार मिल सकता था l यीशु के क्रूस पर त्यागे जाने का अनुभव करने के कारण ही हम मनुष्य जाति परमेश्वर के साथ संगति रख सकते हैं l

यीशु, आपको धन्यवाद l हमें क्षमा देने के लिए आपने अत्यंत पीड़ा सही l