जब हमारी पौत्री सारा छोटी थी, उसने मुझे समझाया कि मृत्यु के बाद क्या होता है : “केवल आपका चेहरा स्वर्ग जाता है, आपका शरीर नहीं l आपको नया शरीर मिलता है, किन्तु चेहरा वही होता है l”

वास्तव में, हमारे अनंत की स्थिति के विषय में सारा का विचार एक बच्चे की समझ थी, किन्तु वह एक विशेष सच्चाई समझ गयी थी l एक अर्थ में, हमारे चेहरे अदृश्य आत्मा का दृश्य प्रतिबिम्ब है l

मेरी माँ कहती थी कि किसी दिन क्रोधित रूप मेरे चेहरे पर ठहर जाएगा l वह अपने ज्ञान से बुद्धिमान थी l एक चिंतित ललाट, हमारा क्रोधित चेहरा, हमारी आँखों में एक कुटिल दृष्टि एक दयनीय आत्मा को दर्शाती है l  दूसरी ओर, झुर्री, दाग़, और अन्य कुरूपता के बावजूद दयालु आँखें, एक कोमल दृष्टि, स्नेही और स्वागत करनेवाली मुस्कराहट आंतरिक रूपांतरण के चिन्ह बन जाते हैं l

जिस चेहरे के साथ हम जन्म लिए हैं उसके विषय में हम अधिक कुछ नहीं कर सकते हैं, किन्तु हम जिस तरह के व्यक्ति बन रहे हैं उसके विषय ज़रूर कुछ कर सकते हैं l हम नम्रता, धीरज, दयालुता, धीरज, कृतज्ञता, क्षमा, शांति, और प्रेम के लिए प्रर्थना कर सकते हैं (गलातियों 5:22-26) l

परमेश्वर की सहायता से, और उसके नाम में, आप और मैं अपने प्रभु के आंतरिक स्वरुप में बढ़ते जाएं, एक सादृश्यता जो दयालु, वृद्ध चेहरे में झलकता है l इसलिए, जिस तरह अंग्रेजी कवी जॉन डॉन (1572-1631) ने कहा है, कि उम्र “आखिरी दिन में सबसे खुबसूरत” हो जाती है l