“कौन सबको गले लगाएगा?”

यही सवाल उन अनेक सवालों में से एक था जो हमारे मित्र स्टीव ने तब पूछा जब उसे पता चला कि उसे कैंसर हो गया है और उसे जान पड़ा कि वह थोड़े समय के लिए हमारे चर्च में अनुपस्थित रहेगा l यदि हम रोमियों 16:16 को लागू करें जिसके अनुसार, “आपस में पवित्र चुम्बन से नमस्कार करो” लिखा है, तो, स्टीव सबके साथ मित्रवत भाव रखते हुए अभिनन्दन करता था,  गर्मजोशी से हाथ मिलाता था, और “पवित्र चुम्बन” से बहुतों को गले भी लगाता था l

और अब जब हम सब स्टीव की चंगाई के लिए परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं, वह इस बात से चिंतित है कि जब उसकी शल्यचिकित्सा और इलाज होता है और वह हमारे चर्च से कुछ समय के लिए अनुपस्थित रहेगा, हम उसके अभिवादन करने की कमी को महसूस करेंगे l

शायद हम सब स्टीव की तरह एक दूसरे का अभिवादन खुलकर नहीं कर सकते, किन्तु लोगों की चिंता करने का उसका नमूना हमारे लिए ताकीद है l स्मरण करें कि पतरस कहता है, “बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो,” अथवा जिसका केंद्र प्रेम हो (1 पतरस 4:9; देखें फ़िलि. 2:14) l जबकि प्रथम शताब्दी की पहुनाई में यात्रियों को रहने की व्यवस्था करना होता था, तो उसमें भी गर्मजोशी से स्वागत सम्मिलित होता था l

जब हम दूसरों के साथ प्रेम से व्यवहार करते हैं, चाहे गले लगाकर या मित्रवत मुस्कराहट के द्वारा, हम “सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट [करें]” (1 पतरस 4:11) l