हर महीने “कार्य प्रगति पर” से “कार्य सम्पन्न” तक मेरी जिम्मेदारियां बदलती रहती हैं। मुझे कार्य “सम्पन्न” का बटन दबाना पसंद है। सोचता हूँ, काश इतने ही सहज रूप से मैं अपने विश्वास की खामियों पर भी विजय पा सकता! मसीही जीवन प्रगति पर होता है, सम्पन्न नहीं।
“क्योंकि उस ने… (इब्रानियों 10:14)”। अर्थात एक मायने में, “कार्य सम्पन्न बटन” दबा दिया गया है । यीशु की मृत्यु ने हमारे लिए वह किया जिसे हम स्वयं के लिए नहीं कर सकते थे: जब हम उन पर विश्वास करते हैं वह हमें परमेश्वर की दृष्टि में स्वीकार्य बनाते हैं। “पूरा हुआ”, जैसा कि यीशु ने कहा (यूहन्ना 19:30)। विडंबना यह है कि भले ही उनका बलिदान पूर्ण और सम्पन्न है, हमें अपना जीवन इस आत्मिक वास्तविकता में जीना होता है कि “हम पवित्र किए जाते हैं”।
यह समझना जटिल है कि, जिस कार्य को यीशु ने पूरा किया उसका सम्पन्न होना हमारे जीवन में अब भी प्रगति पर है। अपने आत्मिक संघर्ष में यह याद रखना उत्साहजनक है कि मेरे लिए और आपके लिए यीशु का बलिदान- पूरा हो चुका है…भले ही जीवन-भर `उसके सम्पन्न होने का कार्य प्रगति पर रहे’। परमेश्वर के प्रयोजनों के अंततः पूरा होने तक: हम उसी तेजस्वी रूप में अंश-अंश कर बदलते जाते हैं (2 कुरिन्थियों 3:18 देखें )।
परमेश्वर हमें वैसा बनाने के लिए कार्यरत हैं जैसा वह हमें बनाना चाहते हैं।