Month: अगस्त 2018

प्रबल प्रेम

शादी के एक हफ्ते पहले, सारा की सगाई टूट गई। उदास और निराश होने के बावजूद, उसने रिसेप्शन के खाने को बेकार ना जाने देने का फैसला किया।  उत्सव की योजना और अतिथियों की लिस्ट बदल कर उसने स्थानीय आश्रय स्थलों के निवासियों को भोज में बुलाया।

फरीसियों को स्वार्थहीन दया करने के महत्व को समझाने के लिए यीशु ने कहा, "जब तू भोज करे..." (लूका 14:13-14)। उन्होंने कहा कि तू धन्य होगा, क्योंकि उनके पास बदले में मेज़बान को देने के लिए कुछ नहीं। यीशु ने उन लोगों की मदद करने की अनुमति दी जो ना तो दान दक्षिणा, न दिलचस्प बातें और नाही ऊंची जान-पहचान से इसकी आपूर्ति कर सकें।

यदि विचार किया जाए कि यीशु ने ये वचन तब कहे जब वे एक फरीसी के दिए भोज में बैठे थे तो, उनका कथन भडकाने वाला और उग्र लगेगा। परन्तु सच्चा प्रेम उग्र होता है। बदले में बिना कुछ पाने के उम्मीद किए दूसरों की मदद करना प्रेम है। इसी समान यीशु ने हम में से प्रत्येक से प्रेम किया। उन्होंने हमारी भीतरी दरिद्रता को देखकर हमारे लिए अपना जीवन दे दिया।

मसीह को व्यक्तिगत रूप से जानना, उनके अनंत प्रेम की थाह लेना है। हम सभी आमंत्रित हैं कि यह जानें कि "मसीह के प्रेम की चौड़ाई..." (इफिसियों 3:18)।

मेरे प्रिय मित्र के नाम

पहली सदी में प्रेरित यूहन्ना का गयुस को पत्र लिखना ऐसी कला है जो इक्कीसवीं सदी में लुप्त हो चुकी है। न्यूयॉर्क टाइम्स की लेखिका कैथरीन फील्ड लिखती हैं, "पत्र लिखना हमारी प्राचीनतम कलाओं में से एक है।

गयुस को लिखे पत्र में, यूहन्ना शारीरिक और आत्मिक चंगाई की आशा के साथ गयुस की सत्यनिष्ठा पर एक उत्साहवर्धक वचन शमिल करते हैं और कलीसिया के प्रति उसके प्रेम पर टिपण्णी करते हैं। यूहन्ना ने कलीसिया में किसी समस्या की बात कही जिसे अलग से बाद में संबोधित करने का वादा किया। और उन्होंने परमेश्वर की महिमा हेतु अच्छे कार्य करने के महत्व के बारे में लिखा। कुल मिलाकर यह पत्र उत्साहवर्धक और चुनौतीपूर्ण था।

डिजिटल बातचीत के युग का अर्थ है, कागज के पत्र का लुप्त होना, परन्तु इसे दूसरों को प्रोत्साहित करने से हमें नहीं रोकना चाहिए। पौलुस ने चर्मपत्र पर प्रोत्साहन भरे पत्र लिखे; हम विभिन्न तरीकों में दूसरों को प्रोत्साहित कर सकते हैं। मुख्य यह नहीं कि तरीका क्या है, परन्तु यह है कि हम दूसरों को बताएँ कि हम यीशु के नाम पर उनकी परवाह करते हैं!

गयुस को यूहन्ना के पत्र से मिले प्रोत्साहन की कल्पना करें। हम भी मेसेज लिखकर या फ़ोन करके प्रेरणाप्रद शब्दों द्वारा अपने मित्रों को परमेश्वर का प्रेम दिखा सकते हैं।

चंगाई की वर्षा

तूफान मुझे हमेशा से पसंद रहा है। बचपन में तेज़ बारिश में अपने भाई-बहनों समेत घर के बाहर जमा पानी में छलांग लगाना, फिसलना, और पूरी तरह से भीगना रोमांचकारी होता था। उस समय यह कहना कठिन था कि हमें मज़ा आ रहा है या डर लग रहा है।

वचन परमेश्वर के पुनरुद्धार की तुलना उस निर्जल देश से करता है जिसमें जल के ताल भर जाएँ, उदाहरण के लिए भजन संहिता 107 को लें। जो रेगिस्तान को जल के ताल में बदल दे वह एक मंद वर्षा नहीं वरन घनघोर बारिश होगी जिससे बंजर भूमि की दरारों में नया जीवन भर जाएगा।  

क्या हम ऐसे ही पुनरुद्धार की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं?  जब चंगे होने के भूखे-प्यासे हम लक्ष्यहीन भटकने लगते हैं (पद 4-5), तब हमें एक ज़रा सी तस्सली भर से बढ़कर कुछ और पाने की लालसा होती है। जब पाप की जड़ें हमें घोर अंधकार के बन्धनों में जकड़ती हैं (पद 10-11 ) तब हमें मात्र अपनी दशा में परिवर्तन से बढ़कर कुछ और पाने की लालसा होती है।

ऐसा परिवर्तन परमेश्वर ला सकते हैं (पद 20)। अपने डर और शर्म को परमेश्वर के पास लाने में देर नहीं हुई है, जो हमें पाप के अंधकार से निकालकर अपने प्रकाश में लाने से बढ़कर करने में सक्षम हैं।

असीम प्रेम

एक बुद्धिमान मित्र ने मुझे सलाह दी कि "तुम हमेशा" या "तुम कभी नहीं" जैसे बोल कभी न बोलूँ विशेष रूप से परिवार के साथ। हमसे प्रेम करने वाले लोगों की आलोचना करना तथा और उनके प्रति उदासीनता का भाव रखना कितना आसान होता है। परंतु हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम अपरिवर्तित रहता है।

भजन संहिता 145 शब्द सभों शब्द से भरा हुआ है। " यहोवा सभों के लिये..."(पद 9)। "यहोवा अपने सभी वायदों...”। "यहोवा सब गिरते हुओं...(13,14)

इस भजन में हमें एक दर्जन बार याद दिलाया गया है कि परमेश्वर का प्रेम असीम और अपक्षपाती है। और नया नियम बताता है कि इसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति यीशु मसीह में दिखती है: "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। " (यूहन्ना 3:16)

भजन संहिता 145 घोषणा करता है कि "जितने उसे पुकारते हैं, अर्थात जितने उसे सच्चाई से पुकारते हें; वह उन सभों के निकट रहता है। वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुन कर उनका उद्धार करता है। "(पद 18-19)      

हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम सदा बना है, और कभी विफल नहीं होता!